फूलगोभी की वैज्ञानिक खेती

गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है । इसकी खेती मुख्य रूप से श्वेत, अविकसित व गठे हुए पुष्प पुंज (फूल) के लिए की जाती है । जिसका प्रयोग सब्जी, सूप, अचार, बिरियानी, पकौड़ा, इत्यदि बनाने में किया जाता है । यह प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन ’ए’ तथा विटामिन ’सी’ की भी अच्छी स्त्रोत है ।

 

भूमि एवं इसकी तैयारी

इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली जीवांश युक्त गहरी दोमट या बलुई दोमट भूमि अच्छी होती है । फूलगोभी की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत की मिट्टी अच्छी प्रकार से तैयार करनी चाहिए । इसके लिए 3-4 जुताईयाँ करके पाटा लगा देना चाहिए ।

 

फूलगोभी की उन्नत किस्में

अगेती किस्में

काशी क्वारी, पूसा दीपाली, अर्ली क्वारी, पूसा कार्तिकी, पूसा अर्ली सिंथेटिक, पूसा कार्तिक संकर, पूसा मेघना, पंत गोभी-3 ।

मध्यमी किस्में

इम्प्रूब्ड जापानी, पंतगोभी-4, पूसा शरद, पूसा अगहनी, पूसा शुभ्रा, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हिमज्योति, पूसा सिंथेटिक ।

पिछेती किस्में

स्नोबाल-16, पूसा स्नोबाल, के.-1, काला पत्ता, पूसा स्नोबाल-2 ।

 

फूलगोभी की संकर प्रजातियाँ

एम.-55, अमेजिंग, माधुरी, रेमी, हेमा, सैरानो, समर क्वीन, समर किंग, पावस, पूसा कार्तिक संकर, पूसा हाइब्रिड-2 ।

 

खाद एवं उर्वरक

एक हैक्टेयर खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए । इसके अलावा 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस व 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई या रोपण से पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में 30 व 45 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए ।

 

बीज बुआई एवं रोपण का उपयुक्त समय

फूलगोभी के पौधशाला में बीज की बुआई व पौध रोपण का उचित समय इनकी विभिन्न परिपक्वता ग्रप पर निर्भर करता है । अगेती किस्मों की बीजों की पौधशाला में बुवाई मई माह में प्रारम्भ कर देना चाहिए । इनके रोपण का उपयुक्त समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है । मध्य मौसमी किस्मों की बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक किस्मों के अनुसार करते हैं तथा रोपण सितम्बर के दूसरे सप्ताह तक करते हैं । इसी प्रकार पछेती किस्मों के बीजों की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में तथा रोपण नवम्बर माह में करते हैं ।

 

बीज दर

अगेती किस्मों के लिए 600-700 ग्राम और मध्यमी व पिछेती किस्मों का बीज दर 350-400 ग्राम बीज प्रति हैक्टेयर के लिए आवश्यक होती है ।

 

पौधशाला की तैयारी एवं बीज की बुवाई

एक हैक्टेयर की फसल लगाने के लिए 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चैड़ी व 20-25 सेमी ऊपर उठी हुई 20-25 क्यारियाँ तैयार कर लें । क्यारियाँ तैयार करने के बाद थिरम या कैप्टान 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर क्यारी तर कर देवें । बीज शोधन थीरम या कैप्टाफ या कैप्टान की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से करके इन क्यारियों में लगभग 5 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बुआई करें पंक्तियों में 0.5 से.मी. की गहराई पर इस प्रकार करें कि एक जगह पर एक ही बीज पड़े । बीज को सड़ी हुई गोबर की भुरभुरी खाद एवं बालू की समान मात्रा मिलाकर ढक देवें और फुहारे से आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें । इस प्रकार लगभग 4 सप्ताह में पौधे रोपाई योग्य तैयार हो जाते हैं ।

 

पौध रोपण

अगेती किस्मों का रोपण कतार से कतार 40 से.मी. पौधे से पौधे 40 से.मी. की दूरी पर करते हैं । परन्तु मध्य मौसमी व पिछेती किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45-60 से.मी. व पौध से पौध की दूरी 45 से.मी. रखते हैं । रोपण के तुरन्त बाद पौधों की फुआरे से सिंचाई करनी चाहिए । यदि खेत में पानी रुकने की संभावना हो तो अगेती फूलगोभी का रोपण मेड़ों पर करना अच्छा होता है ।

 

अंतः सस्य क्रियायें

फूलगोभी में पौध रोपण से लेकर फूल तैयार होने तक दो या तीन निकाई-गुड़ाई करने से खरपतवार की रोकथाम हो जाती है । रासायनिक खरपतवारनाशी जैसे स्टाप 3.3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई से पूर्व छिड़काव काफी लाभप्रद होता है । पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाने से पौधे सुरक्षित रहते हैं और गिरते नहीं ।

 

सिंचाई

पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है । सितम्बर के बाद 10 या 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए । ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

 

फूलगोभी में[mkdf_highlight background_color=”” color=”green”]सूक्ष्म तत्वों[/mkdf_highlight] का महत्व

फूलगोभी में सूक्ष्म तत्वों के प्रयोग से उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है । इसमें बोरान एवं मालीब्डेनम प्रमुख हैं ।

1.) बोरोन की कमी से गोभी का फूल हल्का गुलाबी या भूरे रंग का हो जाता है जो खाने में कडुवा लगता है । बचाव के लिए बोरेक्स 20 कि.ग्रा./है. की दर से अन्य उर्वरकों के साथ खेत में डालें । यदि फसल पर बोरेक्स का पर्णीय छिड़काव (2-4 ग्राम प्रति लीटर पानी) करें तो आशातीत उपज और अच्छे फूल प्राप्त होते हैं ।

2.) मालीब्डेनम की नमी से पत्तियों में हरे रंग की कमी हो जाती है और वे किनारे से पतले हो जाते हैं । नई पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं । इससे बचाव के लिए 1.50 कि.ग्रा. अमोनियम मालीब्डेट प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर गोभी के आकार, गुणवत्ता व विटामिन सी में वृद्धि होती है ।

 

फसल की कटाई

जब गोभी का फूल पूर्ण विकसित व आकार ग्रहण कर ले तब कटाई करें । देर से कटाई करने पर फूल का रंग पीला पड़ने लगता है और फूल ढीले पड़ने लगते हैं जिससे बाजार भाव घट जाता है ।

 

[mkdf_highlight background_color=”” color=”green”]प्रमुख कीट एवं नियंत्रण[/mkdf_highlight]

1.हीरक पृष्ठ कीट

इस कीट के वयस्क का रंग धूसर होता है । जब यह बैठता है, तो इसकी पीठ पर तीन हीरे की तरह चमकीले चिन्ह दिखाई देते हैं, इसलिए इसको हीरक पृष्ठ कीट के नाम से जाना जाता है । सूंड़ी पत्तियों की निचली सतह पर खाते हैं तथा पत्तियों की शिराओं के बीच के हरे भाग को खाकर उनमें छोटे-छोटे छिद्र बना देते हैं और शीर्ष नहीं बन पाता है । जब इनका प्रकोप अधिक मात्रा में होता है तो छोटे पौधों की पत्तियाँ बिल्कुल समान्त हो जाती हैं जिससे पौधे मर जाते हैं । शुरूआती अवस्था में जब गोभी इस कीट से ग्रसित होती है तो बढ़वार पूरी तरह रुक जाती है ।

 

नियंत्रण

जहां पर इस कीट के प्रकोप की संभावना ज्यादा हो वहां अगेती व पिछेती रोपण से बचना चाहिए । टमाटर या गाजर के साथ अंतः शस्यन क्रियाएं करें । चाइनीज गोभी को टैªप फसल के रूप में मुख्य फसल के साथ चारों तरफ मेड़ पर रोपाई करें । आवश्यकतानुसार कीटनाशी जैसे रेनेक्सपायर 18.5 प्रतिशत एससी. / 0.1 मि.ली./लीटर या क्लोरफेनापिर 10 प्रतिशत एससी. / 1.5 मि.ली./लीटर या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी. / 0.5 मि.ली./लीटर या फिप्रोंनील 5 एससी. / 1.5 मि.ली./लीटर या इंडोक्साकार्ब 14.5 प्रतिशत एससी. 0.5 मि.ली./लीटर या नोवालुरान 10 ईसी / 1.5 मि.ली./लीटर या स्पाइनोसैड 2.5 एससी. / 1.5 मि.ली./लीटर पानी में घोल बनाकर चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिलाकर 10 या 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।

 

2.तम्बाकू की सूड़ी (स्पोडोपटेरा)

वयस्क मादा कीट पत्तियों को निचली सतह पर झुण्ड में अण्डे देती हैं । 4-5 दिनों के बाद अण्डों से सूण्डी निकलती है और पत्तियों को खाती है । सितम्बर से नवम्बर के महिनों में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।

 

नियंत्रण

पत्तियों के निचले हिस्से पर गुच्छों में दिए गए अण्डों को पत्तियों से तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए । सेक्स फेरोमोन टैªप दस मीटर के अंतराल पर प्रति है. में 100 फेरोमोन फंदा लगाकर वयस्क नर कीटों को सामुहिक रूप में पकड़कर खत्म कर देना चाहिए । एस एल एन पी वी 250 से 300 एल ई को गुड़ के साथ (10 ग्राम/लीटर), साबुन पाउडर (5 ग्राम/लीटर) एवं टीनोपाल (1 मिली/ली.) को मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव इस कीट के नियंत्रण में लाभकारी है । जो कीटनाशक दवा हीरक पृष्ठ कीट के नियंत्रण में वर्णित है उसे इस कीट के नियंत्रण में भी प्रयोग किया जा सकता है ।

 

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण

1.) काला गलन रोग

रोग का प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर ’ट’ आकार में पीलापन लिए होता है । रोग का लक्षण पत्ती के किसी किनारे या केन्द्रीय भाग से शुरू हो सकता है ।

 

नियंत्रण

इसके बचाव के लिए स्ट्रेप्टोमाईसीन सल्फेट (100 पी.पी.एम. की दर से) स्टीकर के साथ मिलाकर 10-12 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें ।

 

स्रोत-

  • भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान पो.आ.-जक्खिनी (शाहंशाहपुर), वाराणसी 221 305 उत्तर प्रदेश

 

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