बीजोपचार एक महत्वपूर्ण क्रिया है जो कि बीज व पौधे को मृदा व बीज जनित बिमारियों व कीटों द्वारा होने वाले नुकसान से बचाता हैं।
हालांकि भारत में बहुत से किसान या तो बीजोपचार के बारे जानते ही नहीं या फिर इसको अपनाते नहीं हैं बीजोपचार रोग कीट प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसानों द्वारा इस महत्वपूर्ण कार्य को अपनाने के लिए पूरे देश में प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है जिसमें कीट व रोग नाशक रसायनों, जैविक नियन्त्रण में शोध वृद्वि नियामकों एवं इनकी उपलब्धतता, सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जिससे किसान बीज व पौधे से संबंधित सामग्री को संरक्षित रख सके।
बीजोपचार की मुख्य विधियाँ
1. बीज प्रसाधन
बीजोपचार की मुख्य रुप से प्रयोग की जाने वाले विधि है। इससे बीज को सूखे या गीले पदार्थ से उपचारित किया जाता हैं। जो कि बीज की पैंकिग के समय की जाती हैं कम लागत की इस विधि में मिट्टी के साफ बर्तन या पोलीथीन की शीट को बीज व रसायनों या जैव नियंत्रको को मिलाने के काम में ले सकते है। आवश्यक मात्रा बीज पर छि़ड़क कर उसे दस्ताने पहनकर हाथ से या यंत्रिक रुप से मिला दिया जाता है।
2. बीज आवरण
इस विधि में बीज को उपचारित करते समय दवा के साथ एक चिपकने वाला पदार्थ भी काम में लिया जाता है जो बीज के चारों तरफ एक समान रसायन का आवरण बना देता है। इसके लिए गुड़ के घोल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए उन्नत तकनीक की आवश्यकता होती है, यह कार्य मुख्यतः बीज प्रसाधन कम्पनियों द्वारा ही अपनाई जाती है लेकिन कृषक भी इस तकनीक का इस्तेमाल आसानी से कर सकते है।
3. बीज गोलियाँ
बीजोपचार की यह सबसे जटिल तकनीक है, परिणाम स्वरुप बीज का भौतिक आकार बदल जाता है व बीज आवरण के कारण बीज की कठोरता व रख रखाव बढ़ जाता है। इसके लिए विशेष उपकरणों व तकनीक की आवश्यकता होती है। यह काफी मंहगी तकनीक है।
4. बीज को भिगोकर उपचार करना
इस विधि में बीजों को एक निश्चित सांद्रता वाले (500 पीपीएम) जैव नियामक रसायन जैसे थायोयूरिया से उपचारित करने पर अंकुरण या पौध का जमाव अच्छा होता है तथा पैदावार में वृद्धि होती है।
फसल का नाम |
बीमारी |
बीज उपचार |
विवरण |
गेहूँ एवं जौ | ईयर कोकल एवं टुण्डु रोग | बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल से उपचारित करना चाहिए। उपचार के दौरान पात्र में पेंदे में बैठे बीज स्वस्थ होते हैं। अतः नीचे बचे स्वथ्य बीज को अलग छांटकर साफ पानी में धोएं और सुखाकर बोने के काम में लें। | ऊपर तैरते हुए हल्के एवं रोगग्रसित बीजों को निकालकर अलग कर दे एवं जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
|
अनावृत व ifŸk कण्डुवा रोग | कार्बोक्सिन@कार्बेण्डाजिम रसायन द्वारा 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें या टुबुकोनाजोल 125 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। | ग्लोयोक्लोडियम विरेन्स 40 ग्राम$विटावेक्स 125 प्रति किलोग्राम बीज भी प्रभावी है। | |
करनाल बंट | बीज को 2-5 ग्राम वीटावेक्स प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बोने से बीज द्वारा फैलने वाला संक्रमण नहीं होता है।
|
||
दीमक | फिप्रोनिल 5 एस-सी- 6-0 मिली-लीटर या क्लोयिएनिडीन 50 डब्ल्यू डी-डी- 1-5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें। | बीजोपचार के बाद 2 घंटे में बुवाई अवश्य करें अन्यथा अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। | |
सरसों
|
तुलासिता व सफेद रोली | एप्रोन 25 एस-सी- 6-0 ग्राम या मैन्कोजेब 2-5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। | |
तना गलन रोग | 10 ग्राम बाविस्टिन या 6-0 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। |
2-5 किलो ट्राइकोडर्मा 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर बुआई से पहले खेत में मिलाए। |
|
पेन्टेड बग मोल्या रोग एवं एफिड |
इमीडाक्लोप्रिड 600 एफ-एस- 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। |
||
चना
|
उकटा रोग एवं सूखा जड़ गलन | कार्बेन्डाजिम 1-0 व थायराम 2-5 ग्राम व 6-0 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करे। | 2-5 किलो ट्राइकोडर्मा 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर 15 दिन तक छाया में रखने के बाद बुआई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में मिलाए। |
दीमक | क्लोरोपाइरिफास 20 ईसी या फिप्रोनिल 5 एस-सी 100 मिली लीटर प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। | सर्वप्रथम कवकनाशी फिर कीटनाशी व बाद में कल्चर से उपचारित करें।
|
|
राइजोबियम | तीन पैकेट कलचर एक हैक्टर के लिए उपयोग करें। बीज उपचार हेतू आवश्यकतानुसार पानी में गर्म करके गुड़ घोले व ठंडा करके कल्चर में भली भांति मिलाकर छाया में अच्छी तरह सुखा कर शीघ्र बुवाई करे। | घोल को ठण्डा अवश्य कर ले अन्यथा लाभदायक जीवाणु मर जाएगे तथा नत्रजन स्थिरीकरण से कोई इजाफा नहीं होगा। | |
मटर | जड़ गलन रोग | थाइराम 1-25 ग्राम एवं ट्राईकोडर्मा विरीडी 6-0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। | |
धनिया | झुलसा | ट्राईकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। |
विभिन्न रसायनों एवं जैविक कारकों द्वारा बीज उपचारित करते समय इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि उपचार क्रम सही हो अन्यथा लाभ के विपरीत हानि भी हो सकती है। इसके लिए सही क्रम है कीटनाशक रसायनों का उपयोग सर्वप्रथम होना चाहिए उसके पश्चात फफूंदनाशक दवाओं का उपयोग तत्पश्चात जैव कारक जैसे कि ट्राइकोडर्मा राईजोबियम इत्यादि से उपचारित करें।
सावधानी
- उपचारित बीज को छाया में सुखाने के तुरंत बाद बुवाई की जानी चाहिए।
- उपचारित बीज को ज्यादा देर ना रखे अन्यथा बीज खराब हो जाएगा।
- बीज उपचार करने से पहले फंजीसाइड लेवल को सावधानीपूर्वक पढ़े तथा दिशा निर्देशों का पालन करें।
- उपचारित बीज का थोड़ा सा हिस्सा भी जानवरों के खाने में ना मिलाये अन्यथा जानवरों के स्वास्थय पर गहरा असर होगा और अत्यधिक मात्रा में सेवन करने पर मृत्यु भी हो सकती है।
बीजोपचार के लाभ
- बीज अकुंरण में वृद्धि व सुधार
- बीजोपचार द्वारा पौधो की अकुंर उदय को सुनिश्चित किया जा सकता है ताकि पौधे के विकास में सुधार के साथ-साथ बिमारियों व कीटों द्वारा होने वाले नुकसान को नियंत्रित किया जा सके।
- पादप वृद्धि कारक हार्मोन का उपयोग कर पौधो की वृद्वि को बढ़ाया जा सकता है।
- राइजोबियम कल्चर द्वारा नत्रजन स्थारिकरण क्षमता के बढ़ने के साथ फसल का उत्पादन बढ़ता है।
- बीजोपचार द्वारा पादप आबादी और इसकी उच्च उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है।
बीज उपचार के लिए अभियान
- अभियान समन्वय समिति तैयार की जावे जिसमे आयुक्त कृषि अधिकारी राज्य के संयोजक एडी/पीपीओ के नाते अध्यक्षता राज्य स्तर पर गठित की जावे ।
- बीजोपचार की जागरुकता के लिए, जागरुकता निमार्ण साम्रगी जैसे पोस्टर पर्चे और योजना विभाग में अधिकारियों-किसानों आदि के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाने चाहिए।
- जिला स्तर पर कृषि क्षेत्र की सभी एजेंसियों की भागीदारी के साथ एक समन्वय समिति का गठन किया जावे।
- पेस्टिसाइड उद्योग के साथ परामर्श किया जाए और कीट नाशकों और बीज उपचार मशीनरी की व्यवस्था को सुदृढ़ किया जावे और प्रत्येक कंपनी द्वारा डिजिटल माध्यम से विशिष्ट क्षेत्रों को अपनाया जावे और एक डाक्यूमेंटरी तैयार की जावें।
- बीजोपचार अभियान में आत्मा, कृषि विज्ञान केन्द्र ,किसान क्लबों जैसे-बैंको/नाबार्ड और अन्य किसान संगठनों को शामिल किया जावे।
- मास मिडिया द्वारा जैसे प्रिंट मिडिया, दुरदर्शन व रेडियो द्वारा चर्चा साक्षात्कार और बीज उपचार विधियां और इसके कार्यों को किसानों को बताया जावें।
- प्रत्येक गावों में समूहों में बुआई से पहले बीजों को उपचारित करने वाली मशीनों की व्यवस्था की जाएं। इस कार्य के लिए पेस्टिसाइड कंपनियों को आंमिन्त्रत किया जा सकता है।
- 100 प्रतिशत उपचारित बीज, बीज उत्पादन कपंनियों, प्रमाणीकरण एंजेन्सियोंके माध्यक से उपलब्ध करवाया जावे।
- किसान काल सेंटर बीजोपचार संदेश प्रसार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। सभी किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा बीज उपचार के बारे में बताया जा सकता है और उन्हे इस कार्य के लिए उत्साहित कर सकते है।
निम्नलिखित फसलों को 100 प्रतिशत उपचारित करने के लिए प्राथमिकता दी गई है–
गेहूँ, चना, सरसो, मटर दाले, आलू, गन्ना एवं जौ
वर्तमान परिदृश्य
भारत में किसानों के पास पहुचने वाला 70% बीज अनुपचारित होता है। इसके पश्चात् बहुत कम ऐसे किसान होते है जो स्वंय बीज को उपचारित करते हैं। परिणामस्वरुप भारत में अधिकतर फसलें अनुपचारित बीज के द्वारा बोई जाती हैं। जबकि विकसित देशों में शत-प्रतिशत उपचारित बीज बोया जाता है। बीज उपचार से न केवल बीज और मृदा जनित बिमारियों से बचाया जा सकता है बल्कि फसल की प्रारंभिक विकास को प्रभावित करने वाले, रस चूसने वाले कीटों से भी बचाया जा सकता है। देश के अधिकतर किसान इस सामान्य प्रक्रिया से अनभिज्ञ है जिनके कारण कम खर्चीले उपाय होने के बावजूद इसका उपयोग नहीं कर पाते है।
Source-
- krishisewa.com