पीठ पर लटकाये जाने वाले स्प्रे यन्त्र
जिनमें जलीय घोल पर पंम्प की सीधी क्रिया द्वारा छिड़काव दाब बनता है इस तरह उत्पन्न हुआ दाब इस घोल को नोजल के सूक्ष्म छिद्रो से बाहर की ओर फेंकता है, जिससे यह उचित आकार की छोटी छोटी बूंदो में बट जाता है और उनकी एक समान रूप से फसल के उपर छिड़काव कर देता है। इस प्रकार के स्प्रेयर यन्त्रो के निम्न पार्ट इस प्रकार है नोजल, दाव नियंत्रक, पंम्प, छलनी, होज, टंकी आदि।
फुट/पैर चालित स्प्रेयर
उसकी सक्शन नली में राकिंग स्प्रेयर की तरह छलनी लगी होती है। जिससे घोल को टंकी में डाला जाता है इसका यन्त्र लोहे के बने स्टैण्ड में लगा होता है और पम्प सिलैंडर को पैडल से चलाकर दाब उत्पन्न कियाजाता है। लगातार स्प्रे करने के लिये एक आदमी के द्वारा पैडल को चलाया जाता है तथा दूसरा आदमी स्पे लैस द्वारा छिड़काव करता जाता है। यह स्प्रेयर 17-21 किंग्रा./वर्ग से.मी. दाव उत्पन्न कर सकता है। इसके द्वारा0.8 से 1 हेक्टेयर फसल पर प्रतिदिन छिड़काव किया जा सकता है। इसके निम्न पार्ट होते है नोजल, स्पे लैंस, निकास नली, कट आफ बाल्ब, सक्षन नली, छलनी, फेम, पैडल, पम्प सिलैंडर आदि।
पावर चालित स्प्रेयर
इस स्प्रेयर का प्रयोग अधिक क्षेत्र में स्प्रें करने के लिये किया जाता है इसके प्रयोग से समय की बचत होती है तथा छिड़काव में कम खर्च आता है। इसमें सबसे अधिक ट्रैक्टर चालित स्पेयर का ही उपयोग होता है। इसमें दाव उत्पन्न करने के लिये रोलर वेन पम्प या टुल्लु पम्प लगा होता है जिसे ट्रैक्टर के पी.टी.ओ. शाफ्ट द्वारा चलाया जाता है। इस प्रकार के स्प्रेयर के फे्रम पर एक पम्प पे्रशर गेज, टंकी, पे्रशर रिलीफ बाल्व, सक्शन एवम निकास नली, बूम और एडजेस्टेबल नोजल एक साथ लगे होते है।
इस फे्रम को ट्रैक्टर के तीन पाइन्ट लिन्केज से जोड़ा जाता है और इस स्प्रेयर के बूम को आवश्यकतानुसार उपर या नीचे किया जा सकता है। इस तरह के स्र्पेयर 200 से लेकर 500 लीटर तक की टंकी के साथ उपलब्ध है। इसका बूम 6.5 मीटर लम्बा होता है, जिसमें 12-14 एडजेस्टेबल नोजल लगे होते है। बूम तथा नोज़ल की दूरी आवश्यकतानुसार घटाया या बढ़ाया जा सकती है। इसके निम्न पार्ट होते है जैसे प्रेशर रेगुलेटर, प्रेशर गेज, बूम फ्रेम, टंकी, पम्प, बूम नोजल आदि।
विभिन्न प्रकार के नोज़ल की विशेषताएं एंव उपयोग
स्प्रे नोक (नोज़ल) कई प्रकार की होती हैं। इनका डिजाइन अलग-अलग तरह के स्प्रे के लिए किया जाता है। आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली स्प्रे नोक इस प्रकार हैंः फ्लैट फैन, एक समान फैन, फ्लड कट, वैरियेबल कोन और हेलो कोन। स्प्रे नोकों की विशेषताओं के आधार पर ही नोजलों के अलग-अलग नाम होते हैं। इनके अलग-अलग फायदों और स्प्रे पद्धति के बारे में आगे बताया गया है। नोज़ल स्प्रे पम्प का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है नोजल के अन्य भाग इस प्रकार से हैं-स्प्रेनोक, छलनी, नोजल बाॅडी, और उसकी टोपी आदि है।
फ्लैट फैन नोज़ल
इस नोज़ल से स्प्रे करने से किनारों पर कम छिड़काव होता है। अतः एकसार छिड़काव के लिए किनारों केसाथ (30: क्षेत्र तक) दुबारा छिड़काव करना आवश्यक है। एक से अघिक नोज़लों वाली बूम से शाकनाशियों की स्प्रे के लिए उपयुक्त है।
ईवन (एक समान) फैन नोज़ल
पट्टियों में स्प्रे के लिए इस नोज़ल का प्रयोग किया जाता है। लाइन (कतारों) वाली फसलों, सब्जियों व
पौधों में एक बार में स्प्रे के लिए उपयुक्त। इस प्रकार के नोज़ल को अनेक नोजलों वाली बूम में प्रयोग न करें। इस नोजल से स्प्रे एक से दूसरे किनारे तक बराबर होती है।
फ्लावित (फ्लडकट) नोज़ल
इसका प्रयोग असमान स्प्रे, कम दबाव पर स्प्रे का अधिक दायरा में किया है। फ्लैट फैन के अलावा केवल यह एक ऐसा नोज़ल है जिससे किनारों पर 50: क्षेत्र में दोबारा स्प्रे सम्भव है। पत्तीनाशक व समस्त खरपतवारों को मारने वाली दवाओं के प्रयोग के लिए अति उपयुक्त है।
वैरियेबल (परिवर्तनीय) शंकुनुमा स्प्रे नोज़ल
धुंध जैसी बारीक स्प्रे को धारा जैसी स्प्रे में बदलना सम्भव है। कीटनाशक व फफूँदनाशक दवाओं के प्रयोग के लिए उपयुक्त है। सही स्प्रे नमूना निश्चित करने में आने वाली कठिनाइयों के कारण स्प्रे माप करना कठिन है।
सम्पूर्ण शंकुनुमा स्प्रे नोज़ल
बारीक बूंदों में स्प्रे करना सम्भव है, लेकिन रसायन के छिड़कने व दोबारा स्प्रे होने पर कुप्रभाव तथा अवांछितलक्ष्य पर स्प्रे गमन का खतरा रहता है। कीटनाशकों एवं फफूंदीनाशकों के उपयोग के लिए अति उपयुक्त है।
खोखला शंकुनुमा स्प्रे नोज़ल
स्प्रे किनारों पर ज्यादा होती है। कीटनाशक, व फफूँदनाशक दवाओं के प्रयोग हेतु उपयुक्त है। कीटनाशक व फफूँदनाशक दवाओं के प्रयोग हेतु विविध नोज़लों वाली बूम पर प्रयोग किया जाता है। स्प्रे लक्ष्य पर विभिन्न कोणों से पहुंचती है। स्प्रे छिटकने का खतरा होता है।
छिड़काव करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
● फ्लैट फैन नोज़ल का विविध नोज़लों वाली बूम पर प्रयोग करने से खेत में स्प्रे की ऊंचाई को इस तरह निश्चित करें कि प्रत्येक नोज़ल द्वारा की गई स्प्रे किनारों पर 30: क्षेत्र तक दोबारा स्प्रे से ढ़क जाए। ऐसा करना विभिन्न आकार व कोणों वाले सभी फ्लैट फैन नोजलों के लिए आवश्यक है। स्प्रे के प्रयोग करने का मुख्य उद्देश्य एक या ज्यादा नोज़लों को इस्तेमाल करके फसल-विनाशी-प्रतिघातकी रसायन को किसी विशेष लक्ष्य बिन्दु पर डालना होता है।
● प्रयोग में आने वाली दवाओं की मात्रा भूमि क्षेत्र के आधार पर मापी जाती है, चाहे स्प्रे पूरे क्षेत्र पर न किया जाए। निर्देशित स्प्रे हेतु खोखले शंकुनुमा नोज़ल उत्तम होते हैं। कीटनाशक व फफूंदनाशक दवाओं की स्प्रे के प्रयुक्त होती है। स्प्रे करते समय बूम को इधर-उधर न हिलाएं। अकेले नोज़ल वाली बूम को एक सिरे से दूसरे सिरे तक लहराकर किसी शाकनाशी का छिड़काव करने पर पूरे खेत में कई स्थानों पर कहीं ज्यादा और कहीं कम दवा का प्रयोग हो जाता है। कुल मिलाकर स्प्रे उचित प्रतीत होता है लेकिन पूरे खेत में स्प्रे एकसार न होकर कहीं ज्यादा तो कहीं कम हो जाता है।स्प्रे यंत्रों की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित तीन कारक हैं: (क) गति, (ख) नोज़ल क्षमता एवं (ग) दबाव। शाकनाशी प्रयोग पर गति का प्रभाव, जब बूम से निकास एक जैसा रहे तो स्प्रे यन्त्र द्वारा डाला गया शाकनाशी चलने की गति के विपरीत अनुपात में होता है। जैसे-जैसे गति बढ़ती है शाकनाशी प्रयोग घटता जाता है।
● नोज़ल क्षमता का शाकनाशी निकास पर प्रभाव एक जैसे दबाव व गति पर, नोज़ल क्षमता का शाकनाशी निकास से सीधा अनुपात होता है। नोज़ल से निकास इसकी बढ़ती क्षमता के साथ-साथ बढ़ता है। एक निश्चित दबाव पर नोज़ल की विशेष निकास दर होती है। निकास दर दबाव के अनुसार बढ़ती और घटती है।
● जब हवा न चलती हो तभी स्प्रे करना उचित है। हवा से स्प्रे की बूंदें उड़ जाती हैं। ये बूंदें साथ के खेतों में लगी फसलों व सम्पर्क में आने वाले मनुष्य या पशुओं को नुकसान पंहुचा सकती हैं। स्प्रे की छोटी बूंदें विशेषतः ज्यादा छिटकती हैं। स्प्रे करते समय ज्यादा दबाव पर बहुसंख्य छोटी बूंदें बनती हैं।
● स्प्रे-धारा के छिटकाव के मुख्य कारण मे
(क) बूंदों का आकार: छोटी बूंदें अक्सर ज्यादा उछलकर दूर तक चली जाती हैं। छोटे नोज़ल में ज्यादा दबाव रखने पर स्प्रे की बूंदें अधिक छोटी निकलती हैं।
(ख) स्प्रे नोक की ऊंचाई: स्प्रे की ऊंचाई ज्यादा रखने से हवा द्वारा छोटी बूंदों को लक्ष्य से दूर करने की सम्भावना बढ़ जाती है।
(ग) हवा की गति तेज होने से बूंदों का छिटकाव भी बढ़ जाता है अतः जब हवा की गति तेज हो
तो बड़े नोज़ल से कम दबाव रखकर स्प्रे करना चाहिए। (घ) तापमान: ज्यादा तापमान (250 सेल्सियस) कम आर्द्रता पर छोटी बूंदें बनाने में सहायक होता है जो वाष्पीकरण के कारण ज्यादा दूर तक उड़ जाती है।
स्रोत-
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद