फसलों में गंधक का महत्व

नाइट्रोजन, फास्फोरस व पौटेशियम के साथ अब गंधक भी पौधों के लिए आवश्यक चैथा प्रमुख पोषक तत्व माना जाता है । यह  प्रमुख द्वितीयक पादप पोषक तत्वों में से एक है । एक औसत फसल द्वारा मिट्टी से फाॅस्फोरस के बराबर गंधक अवशोषित की जाती है । सन्तुलित उर्वरकों के उपयोग में इसका  का स्थान भी महत्वपूर्ण है । पौधों के शुष्क पदार्थ में यह  0.2 से 0.5 प्रतिशत  पाया जाता है ।

फसलों में वृद्धि के समय 0.2 से 0.4 प्रतिशत गंधक इष्टतम मानी गई है । फसलों में इसकी आवश्यकता फसल की किस्म, चाही गई उपज एवं मृदा से प्राप्त होने वाली इसकी उपलब्धता पर निर्भर करती है । यूरिया, डाइअमोनियम फाॅस्फेट ( डीएपी ) जैसे उर्वरकों के बढ़ते हुए प्रचलन के कारण इसके आकस्मिक स्त्रोत का योगदान क्रमशः कम होता जा रहा है । वर्तमान में गंधक उर्वरकों की आवश्यकता निश्चित रूप से बढ़ेगी, क्योंकि जिन मृदाओं में वर्तमान समय में यह  पर्याप्त मात्रा में है उनसे फसलोत्पादन, किस्मों की बुआई, बहुफसली प्रणाली द्वारा गंधक का शोषण मृदा में तेजी से हो रहा है । परीक्षणों ने सिद्ध कर दिया है कि 40 से अधिक फसलों मे इसके प्रयोग से उपज में सार्थक वृद्धि पाई गई ।

ऐसी मृदाओं में संतुलित उर्वरक मतलब नाइट्रोजन +फाॅस्फोरस + पोटेशियम +गंधक का उपयोग करना चाहिए । औसतन एक टन (1000 कि.ग्रा. ) दाना पैदा करने में अनाज की फसल 3-4 कि.ग्रा. दलहन 8 कि.ग्रा. गंधक ग्रहण करती है । परीक्षणों ने सिद्ध कर दिया है कि 40 से अधिक फसलों में इसके  प्रयोग से उपज में सार्थक वृद्धि पाई गई । यदि गंधकयुक्त उर्वरकों का उपयोग नहीं बढ़ाया गया तो भविष्य में खाद्य आवश्यकता की बढ़ोत्तरी के साथ इसकी कमी का विस्तार एवं गहनता भी बढ़ती रहेगी एवं उत्पादन दिनों-दिन कम होता जाएगा ।

फसलों के लिए यह क्यों आवश्यक है ?

फसलों में गंधक कार्बनिक तथा अकार्बनिक दोनों ही रूपों में पाया जाता है । मिथीयोनीन तथा सिस्टोन जैसे गंधकयुक्त अमीनों के निर्माण हेतु यह अति आवश्यक है । अधिकांश फसलों में यह अमीनों अम्ल की मात्रा तथा प्रोटीन के प्रतिशत को भी बढ़ाने में सहायक होता है । सरसों के तेल में पायी जाने वाली ग्लूकोसाइड में भी यह उपस्थित रहता है । गंधक पर्णहरित लवक के निर्माण में योगदान देता है । जिसके कारण पत्तियाँ हरी होती है तथा पौधों के लिए भोजन का निर्माण हो पाता है । तिलहनी फसलों में इसके प्रयोग से तेल की मात्रा बढ़ जाती है । दलहनी फसलों में इसके प्रयोग से इन फसलों के पौधों की जड़ों में अधिक गांठे बन जाती है जिनमें उपस्थित राइजोबियम नामक जीवाणु वायुमण्डल से अधिक नाइट्रोजन लेकर फसलों को उपलब्ध करवाती है ।

 

ग्ंधक की कमी वाली मृदाएं

वैसे तो इसकी कमी कहीं भी हो सकती है पर कुछ मृदाओं में इसकी अधिक कमी की संभावना हो सकती है यथा
1.   मिट्टी में बालू की मात्रा अधिक हो ।
2.    कार्बनिक पदार्थों की कमी हो ।
3.   सघन कृषि की जाती हो ।
4.  गंधकरहित उर्वरकों के प्रयोग की जाने वाली मृदाएं ।

फसलों में गंधक की कमी के लक्षण

इसकी कमी होने पर नई पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है । यद्यपि पत्तियों का पीलापन नाइट्रोजन की कमी से भी होता है पर नाइट्रोजन देने पर पत्तियों का पीलापन नहीं रूके तो समझ लेना चाहिए कि मिट्टी में इसकी कमी है । दलहनी फसलों में इसकी कमी से पौधों की जड़ों में कम गाठें बनती है ।

 

गंधक युक्त उर्वरक

बाजार में कई गंधकयुक्त उर्वरक उपलब्ध हैं, जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश के साथ-साथ यह भी मिट्टी को मिल जाती है । तथा इसको अलग से देने की जरूरत नहीं पड़ती है ।

अमोनियम सल्फेट तथा अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट जैसे उर्वरकों में नाइट्रोजन के साथ गंधक भी होता है । सिंगल सुपर फास्फेट में फास्फोरस के साथ गंधक भी पाया जाता है । इसी प्रकार पोटेशियम सल्फेट तथा म्युरेट आॅफ पोटाश के द्वारा पोटाश के साथ यह भी भूमि को मिल जाता है । अमोनियम फास्फेट सल्फेट में नाइट्रोजन फास्फोरस के साथ-साथ गंधक भी रहता है । कैल्शियम सल्फेट जिसे जिप्सम के नाम से भी जाना जाता है, इसके अतिरिक्त फास्फो-जिप्सम, जिंक सल्फेट व फेरिक सल्फेट द्वारा भी इसकी पूर्ति की जा सकती है ।

गंधक का प्रयोग कब व कैसे करें ?

गंधकयुक्त उर्वरकों का प्रयोग बुआई से पूर्व अंतिम जुताई के समय ही कर देना चाहिए । इसकी अनुमोदित मात्रा को एक बार में ही मिट्टी में मिला देना चाहिए, पर कुछ फसलों में पूरी मात्रा को एक साथ देने के बजाय इसकी कुल मात्रा को दो तीन बार में बाँट कर प्रयोग में लाया जाए जैसे मूंगफली में इसकी मात्रा का 75 प्रतिशत बुआई के समय तथा 25 प्रतिशत मात्रा फूल आते समय देने का सुझाव दिया जाता है ।

फसलों में आवश्यकता

अधिकांश फसलों के लिए इसकी 10-40 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से आवश्यकता पड़ती है । अनाज वाली फसलों की अपेक्षा तिलहनी व चारे वाली फसलों में इसकी अधिक आवश्यकता होती है ।

फसल वर्ग कि.ग्रा. गंधक/हे. फसलें
अनाज वाली फसलें 25-40 गेहूं, मक्का,धान
दलहन 10-40 चना, मसूर, मूंग, उरद
तिलहन 20-40 मूंगफली, सरसों, सूरजमुखी
कंद वाली फसलें 25-60 आलू
चाय 20 चाय
काफी 12-26 काफी
चारे वाली फसलें 25-50 घास, बाजरा, दलहनी फसलें

गंधकधारी उर्वरकों से प्राप्त  मात्रा

विस्तार कार्यकर्ताओं व किसान भाइयों को यह जानना चाहिए कि वांछित गंधक देने के लिए कितना गंधक उर्वरक देना चाहिए । निम्न सारणी में 5, 10 या 20 किलोग्राम गंधक की पूर्ति हेतु कितना उर्वरक डालना पडे़गा यह दर्शाया गया है ।

क्र. सं. उर्वरक का नाम (प्रतिशत गंधक) 5 कि.ग्रा. गंधक 10 कि.ग्रा. गंधक 20 कि.ग्रा. गंधक
1. सिंगल सुपर फास्फेट (12%) 42 83 167
2. अमोनिया सल्फेट (24%) 21 42 83
3. पोटेशियम सल्फेट (18%) 28 56 111
4. जिप्सम (13%) 38 77 154
5. पाइराइट्स (16%) 31 62 125
6. तत्वीय गंधक (90%) 5.5 11 22

ठस तरह 20 कि.ग्रा. गंधक डालने के लिए 167 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फाॅस्फेट या 154 कि.ग्रा. जिप्सम की आवश्यकता पड़ेगी ।
अन्य पोषक तत्वों के अलावा गंधक भी फसल उत्पादन में वृद्धि एवं बाजार में उच्च मूल्य प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इसके लिए मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं, विस्तार कार्यकर्ताओं और प्रशिक्षण केन्द्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है । अतः मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं एवं विस्तार कार्यकर्ताओं से प्राप्त जानकारी का उचित उपयोग करना चाहिए ।

 

 

स्रोत-

  • केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ,जोधपुर-342 003
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