भारत में 1955 में सिर्फ 2000 मीट्रिक टन कीटनाशक उपयोग होते थे वहीं अब 8300 मीट्रिक टन कीटनाशक प्रयोग होने लगा है । वातावरण को प्रदूषित करने में इन कीटनाशकोें का प्रमुख हाथ है । विभिन्न सब्जियों, फलों व पशु चारों से इनके अवशेष मनुष्यों व पशुओं में चले जाते हैं जो घातक प्रभाव छोड़ते हैं । अतः वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता इस बात की है कि पौध संरक्षण में देशी उपायों को भी काम मे लिया जाये ।
मटका खाद
15 कि.ग्रा. ताजा गोबर, देशी गाय का 15 लीटर ताजा गौ मूत्र तथा 15 लीटर पानी मिट्टी के घड़े में घोल लें । इसमें 250 ग्राम गुड़ मिला देवें । घड़े को टाट व मिट्टी से पेक कर दें । 5-7 दिन बाद इस घोल में 250 लीटर पानी मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर दें । यह छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करें व इसे 7 दिन बाद दोहरायें । सामान्य सब्जियों व फसलों में 3-4 बार व लम्बी अवधि की फसलें जैसे गन्ना, केला आदि में 8 बार छिड़कें ।
गौ-मूत्र
3 से 10 लीटर गौ-मूत्र व एक किलो नीम की पत्तियाँ ताँबे के बर्तन में 15 दिन गलने दें, फिर उबालकर आधा रहने पर ठण्डा करें व 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें ।
छाछ
देशी गाय की 10-15 दिन पुरानी खट्टी छांछ 100-150 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें । इससे चना, अरहर में सुण्डी व सब्जियों में कीटों का नियंत्रण होता है । इसके अतिरिक्त 10 लीटर छांछ को एक मटके में एक माह तक रखें । बाद में इसमें आधा किलो गेहूँ का आटा मिलायें । इस मिश्रण को पतला करके चने की इल्ली के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें । चने को बुवाई पूर्व 4 घण्टे छांछ में भिगोकर उपचारित करें । इससे उकठा रोग का नियंत्रण होता है ।
- एक किलो तम्बाकू की पत्तियों को दस लीटर पानी में आधा घण्टे तक उबालकर या ठण्डे पानी में एक दिन भिगोकर तथा छानकर काढ़ा तैयार कर लें । इस काढ़े को 30 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से हरा तैला व चैंपा का नियंत्रण होता है ।
- एक किलो तम्बाकू को दो प्रतिशत चूने के पानी में दिन भर भिगोकर रखने के बाद छानकर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से सफेद मक्खी व अन्य रस चूसक कीटों का नियंत्रण होता है ।
नीम
मृदा में बुवाई पूर्व 20 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से मूंगफली में सफेद लट व गन्ने में दीमक की रोकथाम होती है ।
- टमाटर की पौध को खेत में रोपण से पूर्व नीम की खली के पानी में बने घोल में डुबोने से सूत्र कृमि प्रकोप कम होता है ।
- 5 लीटर पानी में 1 किलो नीम की खली को एक सप्ताह तक भिगो दें तथा बीच-बीच में हिलाते रहें । इसे छानकर 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने पर पत्ती छेदक व पत्ती सरंगक कीटों से रक्षा होती है ।
- एक किलो निम्बोली पावडर प्रति क्विंटल मूंग, चना, मटर व अन्य दालों में मिलाकर रखने से 6 से 12 महीने तक भण्डारण कीटों से सुरक्षा होती है ।
- निम्बोली को मटके में डालकर पानी भर दें तथा इसे एक महीने के लिए ढक दें । इस घोल को पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से रसचूसक कीटों का नियंत्रण होता है ।
सीताफल
- सीताफल के बीजों, पत्तियों व जड़ों के चूर्ण में कीटनाशक गुण पाये जाते हैं । दो किलो सीताफल के बीज का अर्क बनाकर 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें । इससे टमाटर की इल्ली, मिर्च का हरा तैला, भिण्डी के जैसिड, मोयला व चने की इल्ली का प्रभावी नियंत्रण होता है ।
- 2 से 5 किलो लहसुन की कलियों की लुगधी बनाकर 500 लीटर पानी में मिलायें । इसे सूती कपड़े से छानकर छिड़काव करें । इससे जिन फसलों पर इल्ली का प्रकोप हो वे मर जायेंगी या निष्क्रिय हो जायेंगी ।
- 3 किलो लहसुन व 100 किलो मिट्टी का तेल को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव से रसचूसक कीट जैसे चैंपा, सफेद मक्खी, जैसिड, हरा तैला का प्रभावी नियंत्रण होता है ।
स्रोत-
- ओम प्रकाश कुन्द्रा, संपादक सी.एन.एफ. ,भोपाल
धान की रोपाई किये 20 दिन हुआ है।तना छेदक का लक्षण दिख रहा है।
धान के तना छेदक नियंत्रण के लिए क्या करू ?
तना छेदक नियंत्रण:-
जैविक विधियाँ- इस कीट की रोकथाम के लिए प्रति हेक्ट. 20 से 25 फेरोमोनट्रेप लगायें| ट्राईकोग्रामा अंडा परजीवी 50000 प्रति हेक्ट. 10 दिन के अंतराल में 6 बार बांस की खूँटियों में बाँध कर खेत में लगावे|
रासायनिक नियंत्रण:-
1 मोठ प्रति वर्ग मी. या 5 प्रतिशत डेड हार्ट होने पर दानेदार कीटनाशकों में कार्बोफ्यूरान 3 जी – 30 कि. ग्रा. प्रति हेक्ट. या फिपरोनिल 0.3 गी का प्रयोग करें अथवा छिडकाव के लिए निम्न में से किसी एक रसायन को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्ट. की दर से छिडकाव करना चाहिए-कार्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत -500 से 600 मि. ली. या क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी.- 1.5 लीटर या क्युनॉलफॉस 25 ई.सी.- 1.5 लीटर या ट्राईजोफॉस 40 ई. सी.-1.25 लीटर का प्रयोग करें|