परिचय
परवल सब्जी की फसलो में आता है, इसकी खेती बहुवर्षीय की जाती हैI इसे ज्यादातर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है|लेकिन असम, ओडिसा, मध्य प्रदेश , महाराष्ट्रा एवं गुजरात के कुछ भागो में इसकी खेती की जाती हैI इसके साथ ही बिहार की दियार भूमि तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के रैनफेड क्षेत्र में अत्याधिक खेती की जाती हैI इसमे विटामिन ए एवं सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है|
जलवायु
परवल को गर्म और आर्द्र जल वायु कि आवश्यकता होती है औसत वार्षिक वर्षा 100-150 से.मी,तक होती है ।
भूमि का चुनाव
परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती हैI इसको ठन्डे क्षेत्रो में न के बराबर उगाया जाता है किन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी गई है चूँकि इसकी लताएँ पानी के रुकाव को सहन नही कर पाती है अत: उचे स्थानों पर जहाँ जल निकास कि उचित व्यवस्था हो वहीँ पर इसकी खेती करनी चाहिए ।
भूमि की तैयारी
यदि इसे उची जमीन में लगाना है तो 3 जुताइयाँ देशी हल से करके उसके बाद पाटा लगा देना चाहिए 1.5 मी.पौधे से पौधे की दुरी रखकर 30*30*30 से.मी.गहरा गड्डा खोद लेना चाहिए अत: मिटटी में 5 किलो ग्राम गोबर कि खाद मिलाकर भर देना चाहिए ।
प्रजातियां
परवल में दो प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है, प्रथम क्षेत्रीय प्रजातियां जैसे की बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्यानी, निरिया, संतोखिया एवं सोपारी सफेदा आदि है द्धितीय उन्नतशील प्रजातियां जैसे की एफ. पी.1, एफ. पी.3, एफ. पी.4, एच. पी.1, एच. पी.3, एच. पी.4 एवं एच. पी.5 है इसके साथ ही छोटा हिली, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4 तथा चेस्क सिलेक्शन 1 एवं 2 इसके साथ ही चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 तथा स्वर्ण अलौकिक , स्वर्ण रेखा तथा संकोलिया आदि है|
नवीनतम किस्में
1.नरेंद्र परवल 260
2.नरेंद्र परवल 307
3.नरेंद्र परवल601
4.नरेंद्र परवल 604
बुवाई /पौध रोपण
परवल का उत्पादन जड़ो जिसे की सकर कहते है या कटिंग के द्वारा रोपाई की जाती हैI कटिंग द्वारा प्रोपोगेसन या रोपाई आसानी से जल्दी की जा सकती है इसके द्वारा फसल जल्दी तैयार हो जाती हैIपरवल में कटिंग या जड़ो की संख्या रोपाई के अनुसार रोपाई की दूरी पर जैसे एक मीटर गुणे डेढ़ मीटर दूरी पर 4500 से 5000 तथा एक मीटर गुणे दो मीटर की दूरी पर 3500 से 4000 कटिंग या टुकड़े प्रति हेक्टेयर लगते है|
कटिंग या टुकड़ो की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर तथा 8 से 10 गांठो वाले टुकड़े रखते है तथा गड्ढो या नालियो की मेड़ों पर 8 से 10 सेंटीमीटर तथा समतल भूमि पर 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर गाड़ते हैI मादा अवं नर का अनुपात 10:1 का कटिंग में रखते हैI परवल की बुवाई साल में दो बार कि जाती है तथा जून के दुसरे पखवाड़े में और अगस्त के दुसरे पखवाड़े में । नदियों के किनारे परवल की रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह में की जाती है ।
आर्गनिक खाद
परवल की अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि में बुवाई या रोपाई से पहले गोबर की सड़ी हुई खाद २० से 30 टन 50 किलो और 50किलो अरंडी कि खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर एक हेक्टेयर भूमि में समान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर बुवाई करें ।
जब फसल 25 से 30 दिन की हो जाए तब 15 ली. गौमूत्र में 5 किलो नीम, 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती सड़ा कर २०० लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर तर-बतर कर छिडकाव करें दूसरा -तीसरा छिडकाव हर 15 से 20 दिन के अंतर से करना चाहिए ।
सिंचाई
कटिंग या जड़ो की रोपाई के बाद नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए यदि आवश्यकता पड़े तो 8 से 10 दिन के अंदर पहली सिंचाई करनी चाहिएI लेकिन जाड़ो के दिनों में 15 से 20 दिन बाद तथा गर्मियों में 10 से 12 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है इसके साथ ही वर्षा ऋतू में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिएI
खरपतवार नियंत्रण
ठण्ड समाप्त होने के समय पौधों कि जड़ों के समीप की भूमि में निराई-गुड़ाई करके मिटटी पोली कर देनी चाहिए चूँकि लताएँ ऊपर की ओर फैलती जाती है इसलिए खरपतवार अधिक प्रभावशाली नहीं होते है ।
कीट नियंत्रण
परवल कि फसल को बहुत से कीड़े मकोड़े सताते है किन्तु फल की मक्खी और और फली भ्रंग विशेष रूप से हानी पहुंचाते है ।
फल की मक्खी
मक्खी फलों में छिद्र करती है और उनमे अंडे देती है जिसके कारण फल सड़ जाते है कभी-कभी यह मक्खी फूलों को भी हानी पहुंचाती है ।
रोकथाम
२० लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें
फली भ्रंग
यह धूसर रंग का गुबरैला होता है जो पत्तियों में छेद करके उन्हें हानी पहुंचता है ।
रोकथाम
२० लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें
चूर्णी फफूंदी
यह रोग एक प्रकार कि फफूंदी के कारण लगता है जिसके कारण पत्तियों और तनों पर आते के समान फफूंद जम जाती है और पत्तियां पिली व मुरझाकर मर जाती है ।
रोकथाम
२० लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें|
कटाई /तुड़ाई
परवल की अधिक पैदावार के लिए इसकी बेलों की छटाई करनी पड़ती है अब हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा है बेलों कि छटाई कब की जाए ? इसकी छटाई करने का उपयुक्त समय पहले साल की फसल लेकर नवम्बर -दिसंबर में २०-३० से.मी.कि बेल छोड़कर सारी बेल काट देनी चाहिए क्योंकि इस समय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है तने के पास ३० से.मी.स्थान छोड़कर फावड़े से पुरे खेत की गुड़ाई कर लेनी चाहिए इस बेलोंका फुटाव कम हो जाता है जिनसे लताएं निकलती है और उनमे मार्च में फल लगने शुरू हो जाते है|
Source-
- kisanhelp.in