नीम की खेती / Neem plantation

पौधे का परिचय

श्रेणी (Category) : औषधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : वृक्ष
वैज्ञानिक नाम : एज़दिराचता – इंडिका
सामान्य नाम : नीम

पौधे की जानकारी

उपयोग 

1. सूखे फूलों का उपयोग टानिक, उत्तेजक और भूखे बढ़ाने के रूप में किया जाता है।
2. फूल अपच और सामान्य दुर्बलता के कुछ मामलो में भी उपयोगी होते है ।
3. फूलों से प्राप्त तेल त्वचा के रोगो में उपयोगी होता है ।
4. तेल शरीर की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। यह फोड़े और अल्सर के लिए भी एक सक्रिय उपचार है।
5. तेल का उपयोग मसूड़ो से खून आने पर, पायरिया और अस्थमा के इलाज में किया जाता है।
6. पत्तियाँ मूत्राशय की कई बीमारियों से संबंधित रोगो के ईलाज में उपयोग की जाती है।
7. छाल का उपयोग बुखार, मतली, उल्टी, त्वचा रोग, बिच्छू और सर्प के काटने में किया जाता है।
8. पशु चिकित्सा सर्जरी में तेल घावों के लिए प्रयोग किया जाता है।
9.अनेक औषधीयों जैसे रासायनिक घोल, मलहम और औषधीय सौन्दर्य प्रसाधन जैसे क्रीम, लोशन, साबुन, शैम्पू, दंतमंजन के निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है।

 

उपयोगी भाग 

संपूर्ण वृक्ष

 

रासायिनक घटक 

पत्तियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा और फास्फोरस जैसे खनिज, प्रोटीन, विटामिन ए, कच्चे फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, वसा और एल्कोइड्स शामिल होते है। बीजों में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस पाया जाता है।

 

उत्पति और वितरण 

नीम की उत्पति मूल रूप से वर्मा में हुई है। यह शिवालिक, ढ़क्कन और दक्षिण भारत के अन्य भागों में भी पाया जाता है। उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अण्डमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यानमार, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, थाईलैंड, सूडान, नाइजर, फिजी, मध्य और दक्षिण अमेरिका यह बहुयायत में पाया जाता है। भारत में सभी जगह इसकी खेती की जाती है। भारत में शिवालिक पर्वत, आंध्रप्रदेश के शुष्क जंगलो, तमिलनाडु और कर्नाटक में यह प्राकृतिक रूप से उगता है।

 

वितरण 

नीम एक सबसे अधिक मूल्यवान वृक्ष है। इसे समान्यत: नीम पेड़, मार्गोसा पेड़, भारतीय वकाहन, सफेद देवदार, स्वर्ग पेड़ के नाम से भी जाना जाता है। नीम का पेड़ अनेक कारणों से कृषि, औधोगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में उपयोगी है क्योंकि इसके विभिन्न उपयोग जैसे जलाऊ लकड़ी इमारती लकड़ी, दवा और कीट विज्ञानी में है। नीम का पेड़ सड़क के किनारे छायादार पेड़ के रूप में भी लगाया जाता है। यह पेड़ वन रोपण के लिए अनुकूल होता है।

 

वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत

कुल 

मेलीऐसी

आर्डर

स्पेन्डलेस

प्रजातियां 

अजडिराचता इंडिका

वितरण 

नीम एक सबसे अधिक मूल्यवान वृक्ष है। इसे समान्यत: नीम पेड़, मार्गोसा पेड़, भारतीय वकाहन, सफेद देवदार, स्वर्ग पेड़ के नाम से भी जाना जाता है। नीम का पेड़ अनेक कारणों से कृषि, औधोगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में उपयोगी है क्योंकि इसके विभिन्न उपयोग जैसे जलाऊ लकड़ी इमारती लकड़ी, दवा और कीट विज्ञानी में है। नीम का पेड़ सड़क के किनारे छायादार पेड़ के रूप में भी लगाया जाता है। यह पेड़ वन रोपण के लिए अनुकूल होता है।

 

आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप

स्वरूप 

1. यह विशाल अरोमिल वृक्ष है।
2.शाखाएँ विस्तृत रूप से फैलती है और एक अंडाकार मुकुट के रूप में होती है।
3. तने की परिधि 1.8 से 2.7 मी. तक होती है।
4. तने की छाल की मोटाई 1.2 से.मी. होती है।
5. तना बाहर गहरे भूरे रंग का और अंदर लाल रंग का होता है।

पत्तिंया 

1.पत्तियाँ एकान्तर क्रम में होती हैं।
2.पत्रक 9 से 13 की संख्या में लगभग एक – दूसरे के सामने और 2.5 से 7.5 से.मी. लंबे होते हैं।
3.पत्रक विषम संख्यक के साथ आयताकार भाले के आकार के होते हैं।

फूल 

 फूल सफेद रंग के, शहद के समान गंध के साथ रेशेदार होते है।

फल 

 फल आयताकार, 1.25 से 1.75 से.मी. लंबे, चिकने हरे-पीले रंग के होते है और परिपक्व होने पर एक या कभी – कभी दो कोशिका के होते है।

बीज 

बीज अंडे के जैसे सफेद और दीर्घवृत्तीय होते है।

परिपक्व ऊँचाई 

 यह वृक्ष 7 से 20 मी की ऊँचाई तक सीधा बढ़ता है।

 

बुवाई का समय

जलवायु 

वृक्ष उच्च तापमान और 50 से 100 मी. ऊँचाई के साथ कम वर्षा और इतनी कम कि प्रति वर्ष 130 मिमी की वर्षा और सूखे की स्थिति को सहन कर सकता है।
जहाँ पर वर्षा 480 से 1000 मि.मी. के बीच होती है और अधिकतम तापमान 48oC तक होता है, वहाँ पर यह बहुत अच्छी तरह से पनपता है।

 

भूमि 

नीम पोषक तत्वों की कमी वाली मिट्टी में भी बढ सकता है।
यह वृक्ष नम सूखी पथरीले मटियार या उथली मिट्टी में अच्छे से पनपता है।
मिट्टी का pH मान 10 से होना चाहिए।

 

बुवाई-विधि

भूमि की तैयारी 

 खेत को अनेक बार जोतकर और हल चलाकर अच्छी तरह तैयार करना चाहिए।

फसल पद्धति विवरण 

  नीम को आमतौर पर बीजों द्दारा लगाया जाता है।

कलम द्दारा

इसे कलम द्दारा भी आसानी से लगाया जा सकता है।

 12-13 महीने पुरानी नर्सरी के पौधो से कलमों को तैयार किया जाता है।

रोपाई (Transplanting) 

 सीधी बुवाई आसान होती है और इसे छिद्ररोपण, छिटका विधि कतारो में वुबाई द्दारा किया जा सकता है जो खेत की स्थितियों पर निर्भर करती है।

 

पौधशाला प्रंबधन

नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation) 

1.जून से अगस्त माह के बीच बीजो को एकत्रित किया जाता है।
2.तुरंत या संग्रहित करने के 2-3 सप्ताह के भीतर बीजों को बो देना चाहिए।
3. बीजों को डिपल्ड किया जाता है।
4. नर्सरी की पक्तियों को 15 से.मी. की दूरी में बनाया जाता है।
5. क्यारियों की बुवाई के बाद सिंचाई की जाती है।

 

रोपाई की विधि 

1 अंकुरित पौधे जब 2 महीने से 1 वर्ष तक पुराने हो जाते है तब उन्हें रोपित किया जाता है।
2.जब अंकुरित पौधों की ऊँचाई 7-10 से.मी. हो जाती है तब प्रतिरोपण बेहतर होता है।
3. नर्सरी को वास्केट और पाँलीथीन बैग में भी लगाया जा सकता है।

 

कीट प्रबंधन

1.हेलोपेलटिस एटोनी (टी मासकिटो बग )

क्षति पहुंचना

 यह कीट नीम के पेड़ो को क्षति पहुँचाता है।

नियंत्रण

 0.01-0.2% डाईमेथोएट के छिड़काव द्दारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
एन्डोसल्फान या फोआलोन या मोनोक्रोटोफास 2 मि.ली./ली. पानी के साथ शाम के समय छिड़कना उपयुक्त होता है।

 

उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती

खाद 

 इसे अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।
फसल वृध्दि के दौरन सप्ताहिक उर्वरक की मात्रा देना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन 

 इस वृक्ष को कम सिंचाई की जरुरत होती है।
जहाँ वर्षा 450 से 1200 मिमी होती है वहाँ यह स्वाभाविक रूप से बढ़ता है।
जहाँ वर्षा 200 से 250 मिमी भी होती है, वहाँ भी इसे सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है।

घसपात नियंत्रण प्रबंधन 

 सिंचाई के कुछ दिनों के बाद निंदाई करना चाहिए।
मिट्टी में झाड़ियों को अलग कर देना चाहिए।
वर्ष में 1 या 2 बार निंदाई की आवश्यकता होती है।

कटाई

तुडाई, फसल कटाई का समय 

 फरवरी – मार्च के दौरान वृक्षों की पत्तियाँ गिर जाती हैं।
फल जून – जुलाई माह में परिपक्व हो जाते है।
परिपक्व होने पर उन्हे तोड़ा जा सकता है।
भारत में इसकी फसल और मानसून साथ – साथ आते है जिससे इसे सुखाना मुश्किल होती है।

फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन

सुखाना 

फलों को छाया में सुखाया जाता है।
सुखाने के लिए छोटी सुखाने वाली ट्रे का उपयोग किया जाता है।

पैकिंग (Packing) 

 इसे वायुरोधी थैलो या टीन के डिब्बों में पैक किया जाना चाहिए।

भडांरण (Storage) 

शुष्क स्थानों मे संग्रहीत किया जाना चाहिए।
गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है।
शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।

परिवहन 

सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचाता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लारियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।

अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) 

१.नीम फेस पैक
२.नीम तेल
३.नीम शैम्पू
४.नीम टूथपेस्ट
५.नीम साबुन
६.नीम पाऊडर
७.नीम अगरबत्ती और क्वाइल्स

 

 

Source-

  • jnkvv-aromedicinalplants.in

 

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