नीम एक उपयोग अनेक

भारत भूमि में पैदा होने वाला लोक मंगलकारी एवं सर्व व्याधि निवारक बहुउपयोगी वृक्ष नीम भारत की ग्रामीण सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान बन चुका है। नीम ग्रामीण समाज में इस कदर रच बस गया है कि इसके बगैर हमारे नित्य प्रतिदिन के कार्य कल्पना के बाहर हैं ।

 

सामान्य विवरण

नीम 40 से 50 फीट ऊँचा शीतल छायादार वृक्ष है । नीम की छाल स्थूल, खुदरी तथा तिरछी लम्बी धारियों से युक्त होती है । इसकी छाल बाहर से भूरी परन्तु अन्दर से लाल रंग की होती है इसमें बसन्त ऋतु में सफेद छोटे-छोटे फूल मंजरी गुच्छों के रूप में खिलते हैं । इसके फल 1.5 से 1.7 सें.मी. लम्बे गोल अंडाकर होते हैं । पतझड़ में पत्तियाँ गिर जाती हैं । बसन्त में ताम्रलोहित पल्लव निकलते हैं ।

नीम के फल ग्रीष्म ऋतु के अन्त में वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पकते हैं । सामान्यतया एक पूर्ण विकसित नीम से 37 से 100 किग्रा. बीज प्राप्त होता है । एक किग्रा. बीज लगभग 2000 से 2900 तक की संख्या पाई जाती है । नीम के 100 किग्रा. पक फल में छिलका 23.8 प्रतिशत गूदा 47.5 प्रतिशत प्राप्त होता है तथा गिरी से 45 प्रतिशत तेल और 55 प्रतिशत खली प्राप्त होती है ।

 

रासायनिक विवरण

नीम में एजाडिरैक्टीन नामक रसायन पाया जाता है । इस रसायन में कीटनाशक व कवकनाशक गुण होता है । इसी का प्रयोग करके बाजार में अनेक कीटनाशी दवाइयां उपलब्ध हैं । नीम वृक्ष के उत्पाद का रासायनिक संगठन इस प्रकार है – निम्बान – 0.04 प्रतिशत, निम्बीनीन – 0.001 प्रतिशत, एजोडिरेक्टीन – 0.4 प्रतिशत, निम्बोसिटेरोल – 0.03 प्रतिशत, उड़नशील तेल – 0.02 प्रतिशत, टैनिन – 6.00 प्रतिशत ।

 

मनव स्वास्थ्य में नीम का उपयोग

ग्रामीण समाज के लोगों की दिन की शुरूआत नीम के दातुन से होती है । हमारे गांवों में जब किसी को त्वचा सम्बन्धी व्याधि होती है तो उसे नीम के पत्तों से स्नान कराते हैं । अगर किसी को फोड़ा-फुन्सी या घाव हो जाता है तो नीम के छाल को घिसकर लगाते हैं । कटने-फटने पर नीम के पत्ते को पीसकर लगाया जाता है । अगर किसी के पेट में कृमि या कीड़े पड़ जाते हैं तो नीम का सेवन करते हैं ।

 

सावधानियाँ

हमारा स्वदेशी कृषि तकनीक नीम पर ही आधारित है । फसलों को हानिकारक कीटों से बचाना हो या अनाज को भंडारित करना हो सबमें नीम ही सहायक होता है । कृषि के दृष्टिकोण से देखा जाये तो खेती-बाड़ी, भंडारण, पशुपालन आदि में नीम का व्यापक उपयोग है । फसल सुरक्षा की दृष्टिकोण से कीटों में वृद्धि नियंत्रकों को नियंत्रित करने के लिए नीम का प्रयोग किया जाता है । जैसे खाद्य अवरोधक के रूप में और अण्ड अवरोधक के रूप में ।

नीम के कारण हानिकारक कीटों में प्रजनन क्षमता अवरूद्ध हो जाती है । इसके प्रभाव से कीटों के लार्वा एवं वयस्क प्रतिकर्षित होकर भाग जाते हैं । इसके प्रभाव से वयस्क कीट बन्ध्य यादि नपुंसक हो जाते हैं । अतः उनमें वंशवृद्धि की क्षमता में कमी आ जाती है ।

 

अन्य उपयोग

बक्से में रखे कपड़ों को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए भी इसके पत्तों का प्रयोग होता है । इसी वजह से हमारे आदि ग्रन्थों में नीम को लोक मंगलकारी एवं सर्व व्याधि निवारक की संज्ञा दी गई है । यह एक जीवनोपयोगी वृक्ष है । ग्रामीण समाज में नीम का वृक्ष लगाने की परंपरा है इसका कारण यह है कि इसका वृक्ष वायु को शुद्ध रखता है ।

हानिकारक कीटों, मच्छरों को दूर भगाता है । नीम का गोंद, छाल, व पत्ते सभी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह औषधीय गुणों से परिपूर्ण है । इसके सूखे पत्तों को जलाकर पशुशाला को मच्छर व कीट रोधी बनाया जाता है । घरों से मच्छर भगाने के लिए नीम के पत्तों को जलाया जाता है । इसके विभिन्न भागों से चर्म रोग, परजीवी रोग, गर्भ निरोधक, मलेरिया, चेचक, दमा आदि की दवा तथा सर्प बिच्छू आदि के विषैले प्रभाव को कम करने की दवा भी बनायी जाती है । नीम के तेल एवं खली का प्रयोग कीटनाशक एवं मृदाशोधक जैविक खाद के रूप में किया जाता है ।

 

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन में उपयोग

आई.पी.एम. यानि एकीकृत नाशीजीव जीव प्रबंधन में नीम का बहुत योगदान है । एकीकृत नाशीजीव जीव प्रबंधन में यह एक वरदान है क्योंकि इसमें इसका प्रयोग सर्वथा निरापद एवं अत्यन्त प्रभावी है ।

 

पोषक तत्व के रूप में उपयोग

नीम की खली में ये 5 से 8 प्रतिशत तथा नाइट्रोजन तथा अधिक मात्रा में पोटेशियम मिलता है । जिसका उपयोग मृदा सुधारक के रूप में किया जाता है । इससे नाइट्रोजन का सूक्ष्मीकरण होता है । फलस्वरूप नाइट्रोजन गैस के रूप में नष्ट नहीं होता है । नीम की खली का प्रयोग करने से मृदा में उपस्थित रोगजनित कीटाणु, जीवाणु नष्ट हो जाते हैं तथा कार्बनिक तत्वों की बढ़ोत्तरी के कारण मृदा शोधक सूक्ष्म जीवाणुओं में सक्रियता आ जाती है ।

आलू में उपयोग

आलू की फसल में नीम खली के प्रयोग से ब्लैक स्कार्फ रोग का नियन्त्रण होता है ।

 

नीम का उर्वरक, कीटनाशी एवं रोगनाशी आदि के रूप में विभिन्न उपयोग

  •  उर्वरक के रूप में खली का प्रयोग करने से भूमि के अन्दर पाये जाने वाले सभी प्रकार के कीट जैसे दीमक, कटुआ, सफेद गिडार, आम की गुजिया, टिड्डे आदि नष्ट हो जाते हैं । इससे फसल स्वस्थ रहती है कीटों से फसलों की सुरक्षा भी होती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि नीम की खली का प्रयोग अनेक फसलों के रोग-नियन्त्रण में भी प्रभावी पाया गया है ।
  • इसकी पत्ती 5 किग्रा. 10 लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक यह ढाई लीटर ना रह जाये । अब इस ढाई लीटर नीमयुक्त पानी में 100 लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ धान की फसल पर छिड़काव करें । इस छिड़काव से धान का गंधी कीट, हरा फुदका, भूरा फुदका, रस चूसने वाले कीटों से धान की फसल को बचाया जा सकता है । इसके इसी घोल से बैंगन के तना छेदक एवं फलछेदक कीट से बचाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त टमाटर में फलीछेदक कीट का भी नियंत्रण किया जाता है । नीम की पत्तियों के अर्क से कपास, सब्जी तथा दलहनी बीजों का उपचार करने से बीज जनित रोगों का नियंत्रण होता है ।
  •  इसका तेल दुर्गन्धयुक्त एवं उसमें कडुवापन होने के कारण सभी फसलों एवं पौधों के पत्ती, फूल अथवा फल पर कीड़ों को विकर्सित करता है । इसका तेल 1-2 लीटर की मात्रा प्रति एकड़ छिड़काव करने से काटने, चबाने एवं रस चूसने वाले कीड़े नष्ट हो जाते हैं । तथा कीटों के अंडों से बच्चे भी नहीं निकल पाते ।
  • नीम तेल के 2 प्रतिशत घोल का प्रयोग कर चुर्णित आसिता यानि पाउडरी रोग का नियंत्रण कुछ हद तक किया जा सकता है । नीम के 0.5 प्रतिशत घोल का प्रयोग कद्दूवर्गीय फसलों में 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें । इससे कद्दूवर्गीय फसलों में रोग-नियन्त्रण के साथ ही साथ 50 से 70 प्रतिशत तक फसल वृद्धि भी होती है ।
  • ढाई किग्रा. नीम का बुरादा ढाई से तीन किग्रा. लहसुन तथा 250 से 300 ग्राम खाने वाला तम्बाकू इन तीनों का पेस्ट बना लें इस पेस्ट में दो लीटर गोमूत्र या मिट्टी का तेल मिलाकर धान या गेहूँ की फसल पर छिड़काव करें । इस छिड़काव से सभी हानिकारक कीट व रोगों का प्रभावी ढंग से नियंत्रण होता है ।
  • पंच किग्रा. निम्बौली रातभर के लिए शाम को भिगो दें । इस निम्बौली को सुबह उबाल लें और गाढ़ा पेस्ट बना लें । इस पेस्ट में 100 लीटर पानी मिला कर घोल बना लें और प्रति एकड़ की दर से फसलों पर छिड़काव करें । सभी फसल, सब्जी तथा बागों में कीट-नियन्त्रण के लिए यह एक उपयुक्त कीटनाशी है ।
  • 5 किग्रा. नीम के सूखे बीजों को साफ करके उसके छिलके हो हटाकर नीम की गिरी निकाल लें । इसकी गिरी को पीस कर पाउडर बना लें । इस पाउडर को दस लीटर पानी में डालकर रात भर रखें । इस घोल को सुबह किसी लकड़ी के डंडे से हिलाकर मिलायें तथा महीन कपड़े से छान लें । इस घोल में 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर फिर 150 से 200 लीटर पानी में मिलायें । यह एक उपयुक्त कीटनाशी है जो कि एक एकड़ की फसल के छिड़काव हेतु पर्याप्त है ।
  • 25 से 30 किग्रा. नीम की ताजी पत्तियाँ ले लें इन पत्तियों को रातभर पानी में भिगो दें । सुबह इन्हें पीसकर पत्तियों का सत बना लें । अब इसमें 100 ग्रा. कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर 150 लीटर पानी मिला कर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें । यह भी एक उपयुक्त कीटनाशी है ।
  •  10 किग्रा. नीम की खली ले लें । इसे रात भर पानी में भिगो दें । सुबह इस घोल में 100 लीटर पानी और 100 ग्राम कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलाकर फसलों पर छिड़काव करें । एक एकड़ क्षेत्रफल की फसल के लिए यह एक उपयुक्त कीट नाशी है ।
  •  एक लीटर इसका तेल ले लें । इसमें 100 ग्रा. कपड़ा धोने वाला पाउडर मिलायें तथा 100 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करें । एक एकड़ क्षेत्रफल की फसल के लिए यह एक पर्याप्त कीटनाशी है ।
  •  अन्न भंडारण के लिए प्रयोग किए जाने वाले जूट के बोरों को 10 प्रतिशत नीम गिरी के घोल में 15 मिनट तक बोरों को डुबायें और इन्हें छाया में अच्छी तरह सुखाकर अन्न भंडारण करें तथा बचे घोल को अन्न भंडारण वाले स्थान पर छिड़काव करें इससे भंडारित अनाज कीटों से सुरक्षित रहेगा ।
  •  पादप विषाणु सूत्रकृमि एवं कवक के दुष्प्रभाव से फसल को बचाया जा सकता है । इसके प्रयोग से गन्धी, तनाछेदक, जैसिडस, फुदके, हेलियोथिस, सफेद मक्खी, माहूं, फलीवेधक, तम्बाकू सूड़ी आदि कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है ।

 

नीम के विभिन्न रूपों के उपयोग में सावधानियाँ

नीमयुक्त कीटनाशी के छिड़काव में सावधानी बरतनी चाहिए । छिड़काव प्रातःकाल या देर शाम को करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं । सर्दियों में 10 दिन बाद तथा वर्षा ऋतु में दो तीन दिनों में छिड़काव की सलाह दी जाती है । छिड़काव इस प्रकार करें कि पत्तियों के निचले सिरों पर भी नीमकीटनाशी पहुंचे । अधिक गाढ़े घोल की अपेक्षा हल्के घोल का कम दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें । नीमयुक्त कीटनाशी का प्रयोग यथाशीघ्र कर लेना चाहिए ।

इस प्रकार देखा जाए तो नीम वास्तव में औषधीय दृष्टिकोण से, व्यापारिक दृष्टिकोण से, वातावरण के परिष्करण के लिए, फसलों को रोग कीटों से बचाने के लिए आदि हर प्रकार से मानव जीवन के हितार्थ सर्वथा लाभकारी है । आज आवश्यकता इस बात की है कि अधिक से अधिक नीम के वृक्षों का रोपण करके इस गुणों का अधिक से अधिक फायदा उठाकर, पर्यावरण सुरक्षित रखकर पौधों को रोगों कीटों से बचाया जाए तथा इसके विविध उपयोग का लाभ उठाया जाए ।

 

 

स्रोत-

  • कृषि विभाग,उत्तरप्रदेश
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