पौधे का परिचय
श्रेणी (Category) : सगंधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : क्य्म्बोपोगों लेक्सुसोसुस नीस
सामान्य नाम : नीबू घास
पौधे की जानकारी
उपयोग
इससे प्राप्त तेल का उपयोग मुख्य रूप से साबुन, केश तेल, इत्र और औषधि के रूप में किया जाता है।
तेल का उपयोग शराब तथा चटनी को स्वादिष्ट बनाने में भी किया जाता है।
भूमि संरक्षण में भी नीबू घास का उपयोग किया जाता है।
इसके तेल में रोग–प्रतिरोधक गुण होते है।
तेल का उपयोग सिरदर्द, दाँत दर्द, सर्दी-जुखाम में किया जाता है।
उपयोगी भाग
पत्तियाँ
रासायिनक घटक
नीबू तेल के मुख्य सक्रिय घटक सिट्राल ए, सिट्राल बी, म्यर्सने एल्फा और वीटा पिनेने, वीटा फेलनिड्रेने है।
उत्पादन क्षमता
350 – 400 कि.ग्रा./हेक्टेयर
उत्पति और वितरण
यह मूल रूप से भारत में पाया जाने वाला पौधा है। यह एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के उष्ण तथा समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी पत्तियो में एक मधुर तीक्षण गंध होती है। वर्तमान में इसकी विधिवत एंव व्यवसायिक खेती म.प्र., केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आसाम, पश्चिम बंगाल, उ.प्र. एवं महाराष्ट रा़ज्यो में हो रही है। म.प्र. की जलवायु भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
वितरण
नीबू घास की पत्तियो से तेल प्राप्त किया जाता है। इसे चाइना घास भी कहा जाता है। इस पौधे को इससे प्राप्त तेल के लिए उगाया जाता है। भारत विश्व व्यापार में नीबू घास का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है। परन्तु कुछ समय से इसमें कमी आ गई है।
वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत
कुल
पोऐसी
आर्डर
पोऐलेस
प्रजातियां
क्य्म्बोपोगों फलेक्सुसोसुस नीस.
सी. पेंडुलस
सी. सीट्रेट
सी. कसीनस
वितरण
नीबू घास की पत्तियो से तेल प्राप्त किया जाता है। इसे चाइना घास भी कहा जाता है। इस पौधे को इससे प्राप्त तेल के लिए उगाया जाता है। भारत विश्व व्यापार में नीबू घास का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है। परन्तु कुछ समय से इसमें कमी आ गई है।
आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप
स्वरूप
यह रेशेदार और फैलावदार घास होती है।
यह तना रहित या छोटे तने वाली घास है।
पत्तिंया
पत्तियाँ रेखीय, लगभग 125 से.मी. लम्बी और 1.7 से.मी. चौड़ी होती है।
फूल
पुष्प गुच्छ बहुत विशाल लटके हुए, नरम भूरे से हरे रंग के होते है जिन पर जामुनी रंग की आभा बिखरी होती है।
पौधे में फूल सितम्बर से नम्बवर माह में आते है।
परिपक्व ऊँचाई
नीबू घास पौधे की ऊँचाई 1-3 मी. तक होती है।
किस्में/संकर
१.सुगंधी (ओ डी-19)
विशेषताएँ (Features)
यह किस्म ए.एम.पी.आर.एस. ओड़ाकल्ली केरल द्दारा विकसित की गई है।
यह किस्म लाल रंग की होती है और मिट्टी और जलवायु की एक विस्तृत श्रंखला के लिए अनुकूलित है।
यह किस्म 1-1.75 मी. की ऊचाई तक बढ़ती है।
इसकी उपज 80–199 कि.ग्रा./हेक्टेयर तेल के साथ 80 – 88% सिट्राल होता है।
२.प्रगति
विशेषताएँ (Features)
यह किस्म सीमेप लखनऊ द्दारा विकसित की गई।
इस किस्म में पत्तियाँ लंबी तथा जामुनी आवरण की होती है।
यह किस्म मुख्य रूप से उत्तर भारत के मैदान और समशीतोष्ण तथा उष्ण कटिंबधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
इस किस्म में 0.63% तेल प्राप्त होता है जिसमें 86% उपज सिट्राल होता है।
३.प्रमान
विशेषताएँ (Features)
यह किस्म भी सीमेप लखनऊ दारा विकसित की गई है।
इसकी पत्तियाँ सीधी व मध्यम आकार की होती है।
इसकी उपज 227 कि.ग्रा./हेक्टेयर तेल के साथ 82% सिट्राल होता है।
४.आर.आर.एल.- 16
विशेषताएँ (Features)
यह किस्म आर.आर.एल. जम्मू द्दारा विकसित की गई है। इसलिए इसे जम्मू नीबू घास भी कहते है।
इससे 100 – 110 कि.ग्रा./हेक्टेयर तेल प्राप्त होता है।
इससे प्राप्त तेल मे सिट्राल तत्व की मात्रा 80% होती है।
५.सी पी के २५
विशेषताएँ (Features)
यह किस्म भी आर.आर.एल जम्मू द्दारा विकसित की गई है।
इससे 350 – 400 कि.ग्रा./हेक्टयर तेल प्राप्त होता है।
इससे प्राप्त तेल मे सिट्राल तत्व की मात्रा 80 – 85% होती है।
बुवाई का समय
जलवायु
उष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु इसकी पैदावार के लिए उपयुक्त होती है।
जहाँ जलवायु गर्म तथा आर्द्र होती है, पर्यात धूप पड़ती है, वर्षा 200-250 से.मी. तक होती है वे क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त होते है।
इसकी खेती के लिए 100C से 400 C तक के तापमान की जरूरत पड़ती है।
भूमि
इसकी फसल सभी प्रकार की भूमियों के उपयुक्त होती है।
सभी प्रकार की भूमियों में उपजाऊ दोमट से लेकर अनुपजाऊ लेटराईट भूमि में इसकी खेती की जा सकती है।
रेतीली दोमट और लाल मिट्टी में खाद की मात्रा मिलाकर खेती करना चाहिए।
चूनेदार और जल भराव वाले क्षेत्र खेती के लिए अनुपयुक्त होते है।
मौसम के महीना
सिंचित दशा में सर्वाधिक उपयुक्त समय फरवरी से मार्च का होता है।
असिंचित दशा में उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त होता है।
बुवाई-विधि
भूमि की तैयारी
दो बार जुताई करके भूमि तैयार करना चाहिए।
आखिरी जुताई के समय 5% लिन्डेन पाउडर 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर से दीमक के हमले से बचाने के लिए मिट्टी में मिलाना चाहिए।
क्यारियों की चौड़ाई 1 से 1.5 मी. रखना चाहिए और क्यारियों के बीच की दूरी 50 से.मी. और लंबाई सुविधाजनक होना चाहिए।
बीजों द्दारा अंकुरण के लिए 60X45 से.मी. और स्लिप द्दारा अंकुरण के लिए 90X60 से.मी. की दूरी को प्राथमिकता दी जाती है।
फसल पद्धति विवरण
बीजो द्दारा बुवाई समतल और छतनुमा मैदानों में की जाती है।
खेत में 20 से 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर की बीजों की आवश्यकता होती है।
बुवाई के पहिले बीजों को नदी की सूखी रेत के साथ 1:3 के अनुपात में मिलाना चाहिए ताकि बीज समान रूप से वितरित हो सके।
पौधशाला प्रंबधन
नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation)
पौधे के रोपण के लिए 1 हेक्टयर खेत के क्षेत्र की आवश्यकता होती है।
खेत में क्यारियाँ अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए तथा क्यारियो की चौड़ाई 1:1.5 तथा सुविधा जनक लंबाई की होना चाहिए।
3 से 4 कि.ग्रा./हेक्टयर बीजो की आवश्यकता होती है।
बीजो को क्यारियों मे अच्छी तरह से फैलाकार मिट्टी से ढ़क दिया जाता है।
सिंचाई नियमित रूप से की जानी चाहिए।
नर्सरी में बुबाई के लिए अप्रैल – मई माह सर्वश्रेष्ठ माने जाते है।
कीट प्रबंधन
१.क्लोबिया बिपुन्कटाता (स्पिनडल बग )
नियंत्रण
इस कीट को नियंत्रित करने के लिए मेलाथिआन (0.2%) का छिड़काव करना चाहिए।
रोग प्रबंधन
१.(लिटिल लीफ )
पहचान करना-लक्षण
यह रोग फँफूद के कारण होता है।
यह रोग बीज की उपज कम कर देता है।
कारणात्मक जीव (Causal-Organisms)
२.बलेंसिया स्किएरोतिक (पट) होहेल
नियंत्रण
इस रोग के रोगथाम के लिए डायथेन M – 45 और डायथेन Z – 78 3 ग्रा./ली. की दर से 15 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
कारणात्मक जीव (Causal-Organisms)
३.फ्यूसेरीयम ईक्यूसेटी
नियंत्रण
इस रोग के रोगथाम के लिए डायथेन M – 45 और डायथेन Z – 78 3 ग्रा./ली. की दर से 15 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
४.राइजोक्टोनिया सोलानी
नियंत्रण
इस रोग के रोगथाम के लिए डायथेन M – 45 और डायथेन Z – 78 3 ग्रा./ली. की दर से 15 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
५.(ग्रे ब्लाईट)
कारणात्मक जीव (Causal-Organisms)
पेस्तलोतिओसिस मग्निफेरए
नियंत्रण
इस रोग के रोगथाम के लिए डायथेन M – 45 और डायथेन Z – 78 3 ग्रा./ली. की दर से 15 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद
रोपाई के पहले खेत में 15 टन/हेक्टेयर की दर से खाद देना चाहिए।
उर्वरक के बिना भी इस फसल की पैदावार की जा सकती है।
अधिक उत्पादन के लिए 75:30:30 कि.ग्रा./ हेक्टेयर के अनुपात में N:P:K देना चाहिए।
खेत की तैयारी के समय रोपाई के पहले नत्रजन की आधी खुराक, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी खुराक दी जाती है और पहली कटाई के बाद नत्रजन की शेष खुराक देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
इस फसल को सिंचाई की आवश्यकता नही होता है परन्तु अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई करना चाहिए।
प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करनी चाहिए।
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में एक महीने तक एक दिन के अतंराल से सिंचाई करनी चाहिए।
सिंचाई से फसल की कटाई ज्यादा बार की जा सकती है तथा साथ ही तेल की मात्रा में भी वृध्दि हो सकती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन
प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार की निंदाई आवश्यक होती है।
समान्यत: वर्ष में 2:3 बार निंदाई की आवश्यकता होती है ।
खरपतवार से रक्षा के लिए 1.5 कि.ग्रा/हेक्टयर की दर से ड्योरान या आक्सीफ्लूरोफेन का प्रयोग करना चाहिए।
कटाई
तुडाई, फसल कटाई का समय
बुवाई के लगभग 100 दिन पश्चात् फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
कटाई के लिए उपयुक्त समय मई का होता है जो जनवरी तक चलता है।
पहले वर्ष में लगभग 3-4 कटाई की जा सकती है।
जमीन से 10:15 से.मी. की ऊँचाई से फसल की कटाई करनी चाहिए।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
आसवन (Distillation)
आसवन से पहले नीबू घास को छोटे-छोटे टुकड़ो मे काट लेना चाहिए।
नीबू घास को छोटे-छोटे टुकड़ो में काटने के बाद तुरंत आसवन के लिए भेजना चाहिए अन्यथा नीबू घास में उपस्थित तेल वाष्प बनकर उड़ जाएगा।
आसवित करने से पहले काटी गई नीबू घास को सोडियम क्लोराइड के घोल में 24 घंटे तक डुबोकर रखने से सिट्राल की मात्रा को बढाया जा सकता है।
भडांरण (Storage)
नीबू घास को शुष्क वातावर में रखना चाहिए जिसमे सीमित हवा का बहाव होता रहें।
कटी हुई नीबू घास को उचित मात्रा में तेल की प्राप्ति के लिए अधिकतम 96 घटों तक छायादार जगह में रखा जा सकता है।
अधिक समय तक भंडारित करने से तेल की मात्रा में कमी आती है।
परिवहन
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नही होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
• नींबू तेल
• नींबू लोशन
Source-
- jnkvv-aromedicinalplants.in