नींबू वर्गीय फलों में सूक्ष्म तत्वों का अध्यधिक महत्त्व है। इसकी कमी से उपज प्रभावित होने के साथ पौधे सूखने भी लगते है। इन फसलों में सूक्ष्म तत्वों की कमी तथा उनके उपचार का विवरण इस प्रकार है-
ताँबा
ताँबे की न्यूनता से पीड़ित वृक्षों की पत्तियाँ गहरी हरी दिखाई देती हैं। साथ ही अधिकतर पत्तियाँ मुड़ जाती है। ये पत्तियाँ असामान्य रूप से बढ़े हुए प्ररोह पर पायी जाती हैं तथा इन पर अंग्रेजी के अक्षर ‘एस’ के आकार की झांईयाँ दिखती हैं। अधिक प्रभावित होने पर शिराओं के बीच का भाग पीला हो जाता है। छाल तथा तने से गोंदनुमा चिपचिपा स्राव निकलने लगता है। इस विकार के प्रबंधन के लिए 0.4 प्रतिशत (4 ग्रा./ली.) कॉपर सल्फेट का घोल चूना से उदासीन करने के 15 दिन के अंतर पर दो तीन बार प्रयोग करना चाहिए। तृतीया की जगह 0.2 प्रतिशत (2 ग्रा./ली.) कॉपर आक्सिक्लोराइट का प्रयोग भी किया जा सकता है।
लोहा
लोहा की कमी होने पर प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियाँ हल्की पीली हो जाती है जो उग्र अवस्था में गहरी पीली दिखाई देती हैं। इन पत्तियों में शिराओं का जाल हरा रहता है। इसके उपचार के लिए लोहे की किलेट का प्रयोग करें अथवा 0.4 से 0.8 प्रतिशत (4 से 8 ग्रा./ली.) फेरस सल्फेट के घोल का 2 से 3 बार छिड़काव करके भी पीलिया दूर किया जा सकता है।
बोरॉन
बोरॉन की कमी के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर प्रकट होते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ हल्के भूरे रंग की हो जाती हैं और मुड़ जाती है। पत्तियों में शिराएँ पीली एवं कॉर्क के सामान हो जाती है। पौधा कमजोर हो जाता है और उसमें सूखे के प्रति सहनशीलता कम हो जाती है तथा नमी की कमी की अवस्था में भी वह शीघ्र सूख जाता है। फल के छिलके के सफेद भाग में भूरे या काले धब्बे दिखाई देते हैं तथा वे रूखे हो जाते है। इस समस्या के निदान के लिए बोरिक अम्ल अथवा बोरेक्स का 0.1 प्रतिशत (1 ग्रा./ली.) की दर से छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त 8 से 10 कि.ग्रा. बोरेक्स प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाना भी लाभदायक पाया गया है।
मैंगनीज
इस तत्व की कमी की अवस्था में पाये जाने वाले पीले धब्बे जस्ते की कमी की भांति पूरी तरह पत्ती पर नहीं फैलते तथा पत्तियों का आकार ज्यादा छोटा नहीं होता। प्ररोह निकलते समय ये लक्षण अपेक्षाकृत कम उग्र होते हैं परन्तु पत्तियाँ बढ़ने पर मुड़ने लगती हैं और धब्बे गहरे लगते हैं। वृक्ष के छाया वाले भाग में लक्षण अधिक स्पष्ट होते हैं। इसके उपचार के लिए 0.4 से 0.6 प्रतिशत (4 से 6 ग्रा./ली.) मैंगनीज सल्फेट के घोल का 2 से 3 बार छिड़काव किया जा सकता है।
जस्ता
नींबू प्रजाति के फल वृक्षों में जस्ते की कमी के लक्षण केवल नई वृद्धि पर प्रकट होते हैं। इसकी कमी के कारण पत्तियाँ पीली हो जाती है। कम न्यूनता होने की दशा में पत्तियों तथा टहनियों का आकार अपेक्षाकृत कम घटता है परन्तु अधिक कमी होने पर पत्तियाँ बिल्कुल छोटी तथा टहनी की बढ़वार अत्यधिक कम हो जाती है। पत्तियाँ गुच्छे के रूप में लगी हुई दिखाई देती हैं। पौधे का धूप की ओर के भाग की अपेक्षा अधिक प्रभावित होता है। इस विकार के प्रबंधन के लिए 0.4 से 0.6 प्रतिशत (4 से 6 ग्रा./ली.) जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव करना लाभप्रद पाया गया है। जस्ते की अधिक कमी वाले क्षेत्रों में वर्ष में दो से तीन बार छिड़काव की आवश्यकता पड़ती है।
Source-
- hi.vikaspedia.in