परिचय
भारत में कृन्तकों की अठारह प्रजातियां ( चूहे, गिलहरियां ) कृषि बागवानी, पशु और मनुष्य के निवास स्थानों और ग्रामीण तथा शहरी भंडारण सुविधाओं में नाशीजीव है । इनका निवास स्थान, फैलाव, बहुलता और आर्थिक सार्थकता विभिन्न फसलों, मौसमों और देश के भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग हैं । चूहों की विभिन्न प्रजातियों में बैंडीकोटा में मालेसिस नामी और सिंचित मृदाओं के साथ-साथ घरों व गोदामों में कृषि का सबसे अधिक प्रबल और व्यापक नाशीजीव हैं । शुष्क भूमि कृषि में टटेरा इंडिका और मेरीओनस हरिएनी प्रबल नाशीजीव चूहे हैं । कुछ प्रजातियां जैसे रैट्स मेलटाडा, मस गसकुलस और मस बूडुगा आर्व और शुष्क दोनों भूमियों पर होते हैं |
नुकसान की प्रकृति और सीमा
गन्ना को नुकसान पहुंचाने वाली चूहे की प्रबल प्रजातियां बैडिकोटा बेंगलेसिस, रैटरा मेलराडा, टटेरा इंडिका और मस मसकुलस हैं । ये रोपाई के लगभग 90 दिनों के बाद गन्ने को नुक्सान पहुंचाना शुरू कर देते हैं और नुक्सान फसल की आयु के साथ बढ़ता रहता है । नुक्सान मुख्य रूप से गन्ने की निचली पोरियों की छाल को कुतरने और विशेष रूप से बैंडिकोटा, बेंगलेसिस के अधिक खननकारी गतिविधि द्वारा बिलों की खुदाई से होता है । यदि गन्नों को उचित ढंग से लपेटा या बांधा न गया हो तो जड़ों को कुतरने व बिल खोदने से जमीन खोखली होने के कारण सिंचाई करते समय या हवा चलने से फसल गिर सकती है । प्रायः गिरने पर फसल और पेड़ी फसलों को ज्यादा नुक्सान होता है ।
चूहों द्वारा 8.6 प्रतिशत से 12.1 प्रतिशत आंशिक नुक्सान होना आंका गया है जो अधिकतक निचली पोरियों तक सीमित रहता है । नुक्सान किये गये गन्नों में स्वस्थ गन्नों की तुलना में लगभग 31.5 प्रतिशत कम वनज व 24.5 प्रतिशत कम चीनी होती है । अन्य फसलों की तुलना में गन्ने के खेत चूहों की अधिक संख्या को आश्रय देते हैं क्योंकि ये खेत उन्हें बिल बनाने, खाने और प्रजनन क्रियाकलापों के लिए बिना बाधा के निवास स्थान प्रदान करते हैं, यहां इनको परभक्षी से भी सुरक्षा मिलती है और साल भर अधिक ऊर्जा देने वाला खाद्य प्रचुर मात्रा में मिलता है । चूहों की आवासी जनसंख्या के अलावा आस पास के खेतों में जुताई, कटाई व अधिक जल से सिंचाई या वर्षा से उत्पन्न व्यवधान के कारण अप्रवासी चूहे गन्ने के खेत में बार-बार पलायन करते हैं जिससे प्रायः गन्ने के खेत में इनकी संख्या बढ़ जाती है ।
नियंत्रण के उपाय
भौगोलिक और जलवायुवीय घटकों, फसल उत्पादन प्रणालियो व कटाई के बाद भंडारण, नाशीजीव प्रजातियों की जैविक विशेषता तथा चूहों द्वारा पैदा की गई समस्याओं की प्रकृति और सीमा, एवं लोगों की ग्रहण क्षमता व सामाजिक आर्थिक स्थिति आदि में विभिन्नता होने के कारण कोई एक रणनीति या नियंत्रण का तरीका विभिन्न परिस्थितियों में संभव या उपयुक्त नहीं है । उपलब्ध प्रबंधन के विकल्पों को दो मूलभूत पद्धतियों में वर्गीकृत किया जा सकता है । गैर – घातक या निवारक और घातक न्यूनीकरण । गैर – घातक या निवारक उपायों में पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और जैविक तरीके शामिल हैं, जो ज्यादा समय तक प्रभाव डालते हैं । फिर भी घातक एप्रोच, विशेष रूप से कृन्तकनाशी का प्रयोग और पकड़ना, जो समस्या का तत्काल समाधान प्रदान करते हैं, को चूहों से लड़ने के लिए अक्सर ज्यादा व्यवहारिक, किफायती और प्रभावकारी तरीका समझा जाता है ।
पर्यावरणीय और सांस्कृतिक तरीके
एक साफ-सुथरा पर्यावरण, विशेष रूप से जंगली वनस्पतियों या खरपतवारों को हटाना, कृन्तकों को एक क्षेत्र में स्थापित होने से हतोत्साहित करता है । मशीनीकरण खेती भी फसल के खेत की सीमाओं पर जंगली वनस्पतियों और बेकार पड़ी जमीन को कम करती है जो अन्यथा कृन्तकों को प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान, आवास और वैकल्पिक खाद्य प्रदान करते हैं । बैडिकोट चूहे आमतौर पर मेड़ों और पानी के नालों/नालियों के मिट्टी के तटबंधों पर बड़े पैमाने पर बिल बनाते हैं । बिल बनाने के लिए ये ऊँचे और मोेटे मेड़ों को प्राथमिकता देते हैं और मेड़ों की मोटाई और ऊँचाई में कमी उन्हें हतोत्साहित करती है ।
कुछ निश्चित सांस्कृतिक क्रियाएं अर्थात कृषि पद्धितियां भी चूहों के विस्तार और उनके फसलों के नुक्सान पर प्रभाव डालती हैं । खेतों के चारों तरफ खाली भूमि की गहरी जुताई करने से चूहों के बिलों को नष्ट कर उन्हें भगाया जा सकता है । लम्बी अवधी की फसल होने के कारण गन्ने के खेतों में आस-पास जैसे धान के खेतों में कृषि क्रियाओं के कारण निरंतर अप्रवासी कृन्तक/चूहों के आगमन का खतरा बना रहता है ।
सूरजमुखी जैसी फसलों के साथ धान का फसल चक्र इनके खाद्य चक्र को तोड़ सकता है और गन्ने के खेत में पलायन को कम करता है । चूँकि चूहे नीचे पड़ी फसल को ज्यादा नुकसान करते हैं, खड़ी फसल को लपेटना व बांधना, हवा की सघनता के अनुसार सिंचाई और न गिरने वाली किस्मों का उपयोग जैसी तकनीकों को अपनाकर चूहों से होने वाले नुक्सान को अप्रत्यक्ष रूप से रोकने में सहायता मिलती है । गन्ने में ऐसी किस्मों को अधिक नुक्सान होता है जिनका तना पतला, छाल नर्म, रेशा कम व गिरने की प्रवृत्ति हो । इसके विपरीत मोटे तने, कठोर छाल, ज्यादा रेशा और न गिरने की प्रवृत्ति वाली किस्मों में कम नुक्सान होता है ।
यांत्रिक तरीके
यांत्रिक तकनीकें जैसे कि शिकार करना, मारना और पकड़ना में अक्सर अधिक श्रम शामिल होता है और ये बड़े क्षेत्रों में कम व्यावहारिक होती है । फिर भी नियंत्रण में अच्छी सफलता पाने के लिए इन्हें रासायनिक तकनीकों के साथ समेकित किया जा सकता है। बैंडिकोट चूहों को फसलों के बीच की अवधि में खेतों में हल चलाकर बिलों को नष्ट करके, सिंचाई पानी से बिलों को भरकर और खुदाई करके या गाय के गोबर के कंडों या चावल की भूसी को जलाकर बिलों में धुंआ करके भगाया जा सकता है एक पुरानी आम प्रक्रिया में खेतों और परिसरों में चूहे पकड़ने में दो मूलभूत तरीके हैं पिंजरे में मारना और पिंजरे में जीवित पकड़ना ।
आमतौर पर मारने के लिए प्रयुक्त पिंजरे हैं तंजोर धनुष पिंजरा, लकड़ी का स्नैप पिंजरा, उरंग या तीर पिंजरा और कमर तोड़ स्प्रिंग लोडेड स्नैप लकड़ी या लोहे के दांतों वाला पिंजरा । जीवित पकड़ने के लिए प्राचीन तरह के गड्डे बनाकर या मटका पिंजरा, स्पिंरग लोडेड शटर के साथ मोड़ने योग्य लोहे के चादर के बक्सों के अलग-अलग रूप व आकार के अद्भुत पिंजरों का प्रयोग किया जाता है ।
रासायनिक तरीके
कृन्तकनाशियों का उपयोग कृषि, ग्रामीण और शहरी पर्यावरणों में कृन्तकों के नियंत्रण के लिए सबसे अधिक प्रयुक्त तरीका है । उनकी प्रभावकारिता एक उचित यौगिक के चयन, उसकी संरचना व उपयोग करने के तरीके एवं समय पर निर्भर करती है । भारत में मुख्यतः प्रयोग/अनुमोदित कृन्तकनाशियों में तीव्र कृन्तकनाशी जैसे जिंक फाॅस्फाइड व एल्युमीनियम फाॅस्फाइड और थक्कारोधी रसायन जैसे वारफारिन, रेकुमिन व ब्रोमाडीओलोन प्रमुख है । खेत के सक्रिय बिलों को जानने के लिए एक दिन पहले बिलों में मिट्टी भरना या धुँआ करना उपयोगी होगा । जिंक फाॅस्फाइड एक तीव्र कृन्तकनाशी है इसलिए चूहे मारने के लिए इसकी एक खुराक पर्याप्त है ।
चूहों के नियंत्रण के लिए अनाज प्रलोभन ( गेहूं का दलिया, चीनी का चूरा व मूंफाली के तेल का 96:2:2 अनुपात में मिश्रण ) जिसमें 2 प्रतिशत जिंक फाॅस्फाइड हो की सिफारिश की जाती है । प्रलोभन उपयोगी हो इसके लिए चूहों द्वारा इसे पसंद किया जाना जरूरी है । इसे जांचने के लिए प्रलोभन रखने से पूर्व सक्रिय बिलों के पास बिना विष वाला अनाज मिश्रण रखते हैं ताकि खेत के चूहे नए भोजन के प्रति ढल जायें । तीसरे दिन 10 ग्राम जिंक फाॅस्फाइड युक्त प्रलोभन चूहों के नियंत्रण के लिए बिलों के पास रखते हैं ।
यदि चूहे प्रलोभन को पसंद नहीं करते हो तो अनाज को या उसकी संरचना का बदल कर रखना चाहिए एवं दो उपचारों के मध्य पर्याप्त अन्तराल रखना चाहिए । नमीयुक्त भूमि में बिलों का एल्युमीनियम फाॅस्फाइड द्वारा धूमन प्राय प्रभावी होता है । लेकिन इसका महत्व विषैले दुष्प्रभाव उपयोग के खर्चे एवं बैडिकोटा बेगालेंसिस चूहों के प्रति कम प्रभावी होने के कारण सीमित हो जाता है ।
भारत में कृन्तक नियंत्रण के लिए दीर्घकालीन कृन्तकनाशी वारफेरिन दूसरा प्रमुख प्रयोग किया जाने वाला रसायन है । जिंक फाॅस्फाइड के विपरीत वारफेरिन एक थक्का रोधी जहर है एवं यह गैर-लक्षित जीवों के प्रति कम विषैला है । फिर भी वारफेरिन ( 0.025 प्रतिशत ) प्रलोभन से वांछनीय परिणाम प्राप्त करने में लगभग 5-7 दिन का समय लग जाता है । चूंकि यह कई खुराक वाल कृन्तकनाशी है इसलिए इसके उपयोग से कृन्तक नियंत्रण की लागत बढ़ जाती है ।
लम्बे समय तक बिना विष के अनाज रखने की जरूरत एकल खुराक वाले तीव्र कृन्तकनाशी जैसे जिंक फाॅस्फाइड की अति विषैली प्रवृत्ति एवं चूहों में इसके प्रति प्रतिरोधिता विकसित होने की संभावना दीर्घकालीन कृन्तकनाशी जैसे वारफेरिन की अनेक खुराक रखने जैसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए दूसरी पीढ़ी के थक्का रोधी कृन्तकनाशी जैसे ब्रोमेडीयोओलोन का उपयोग अब बड़े पैमाने पर चूहों को नियंत्रण के लिए किया जाता है । ब्रोमेडीयोओलोन ( 0.005 प्रतिशत ) प्रलोभन तीव्र और दीर्घकालीन कृन्तकनाशीयों दोनों के अच्छे गुण लिए हुए हैं । चूंकि यह एकल खुराक वाला थक्का रोधी विष है एवं गैर-लक्षित जीवों के प्रति कम विषैला है । ब्रोमेडीयोलोन युक्त प्रलोभन एल्युमीनियम फाॅस्फाइड की तुलना में अप्रवासी जनसंख्या के नियंत्रण के ज्यादा उपयुक्त है ।
सिफारिशों का पैकेज
एक समेकित पद्धति जिसमें निम्नलिखित तरीके सम्मिलित हो, आवासी एवं अप्रवासी दोनों प्रकार के चूहों की जनसंख्या का लम्बे समय तक रोकथाम व प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए सहायक होगी ।
1. ज्ंगली वनस्पति एवं खरपतवारों को हटाना ।
2. मेंढ की मोटाई व ऊँचाई को कम करना ।
3. खेतों के चारों तरफ खाली जमीन गहरी जुताई करना ।
4. पास वाले धान के खेतों में सूरजमुखी का फसल चक्र अपनाना ताकि चूहों का गन्ने के खेत में पलायन रूक सके ।
5. खड़ी फसल को लपेटना और बांधना ।
6. उपयुक्त साधनों का उपयोग करके चूहों को पकड़ना ।
7. एल्युमीनियम फाॅस्फाइड की गोलियों से बिलों का धूम्रीकरण करना ।
8. प्रलोभनों का उपयोग ( जिंक फाॅस्फाइड/ब्रोमेडीयोलोन )
स्रोत-
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कोयम्बत्तूर