नाडेप कम्पोस्ट का तरीका महाराष्ट्र के एक प्रगतिशील कृषक नारारायण राव पान्डरी ( नाडेप ) ने विकसित किया है । यह विधि कम्पोस्ट को जमीन की सतह पर ढांचा बनाकर उसमें फसल अवशेष मिट्टी, गोबर के सहयोग से बनायी जाती है तथा मात्रा 100 किग्रा. गोबर से 3000 किग्रा. कम्पोस्ट खाद 90-100 दिन में प्राप्त होती है ।
नाडेप कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया
आवश्यक सामग्री
ढांचा बनाने में लगने वाली सामग्री पकी हुई ईंटें – 700 से 1000, सीमेंट – 20 किग्रा., मोरंग – 100 किग्रा., एवं बालू – 150 किग्रा. टांका भरने में लगने वाली सामग्री: गोबर – 100 किग्रा., सूखा फसल अवशेष – 800 किग्रा., हरा फसल अवशेष – 600 किग्रा., तालाब की सूखी छनी मिट्टी – 1500-2000 किग्रा., साफ पानी – 2000 लीटर
ढांचा (टांका) निर्माण
समतल जमीन पर 10 फिट लम्बा, 6 फिट चैड़ा, 3 फिट ऊंचा कुल 180 घनफिट का आयताकार जालीदार ढांचा जिसमें ऊपर की दो लाइनें तथा नीचे की 2 ईंट की लाइनों को छोड़कर बीच की अन्य लाइनों में एक के बाद एक छोड़कर 6 से 7 इंच का जालीदार छेद बनाया जाता है जिससे जालीदार ढांचा तैयार हो जाता है ।
ढांचा (टांका) की भराई
सर्वप्रथम 15 किग्रा. गोबर, 15 किग्रा. मिट्टी, 20 लीटर पानी का पेस्ट बनाकर ढांचे की दीवार के चारों तरफ लेप कर देते हैं तथा सबसे नीचे 6 इंच मोटी सूखे पदार्थों की पर्त बिछा देते हैं उसके ऊपर 4 से 5 इंच हरे पदार्थों की पर्त बिछाकर ऊपर 150 लीटर पानी में 7 से 8 किग्रा. गोबर घोलकर सूखे हरे पदार्थ को छिड़क-छिड़क कर गीला करते हैं। इसके बाद ऊपर से छनी हुई मिट्टी की 1 इंच मोटी परत बिछाकर बराबर कर लेते हैं । इस तरह एक पर्त तैयार हो जाती है । इस पर्त को 10 से 12 बार दोहराने से पूरा ढांचा भर जाता है ।
अंत में बचे हुए गोबर एवं मिट्टी पानी को एक साथ मिलाकर ऊपर से संकुआकर लेप कर देते हैं । जो 15-20 दिन बाद लगभग 1 फिट ढांचे में नीचे दब जाता है और उसके ऊपर दरारें फट जाती हैं । इन दरारों को गोबर, मिट्टी, पानी के मिश्रण से बन्द कर देना चाहिए
कम्पोस्ट उत्पादन एवं प्रयोग विधि
90 से 100 दिन बाद अच्छी सड़ी हुई कम्पोस्ट तैयार हो जाती है । इस समय ढांचे में से कम्पोस्ट निकाल लेना चाहिए । एक बार में लगभग 30 कुन्टल कम्पोस्ट प्राप्त होती है । प्राप्त कम्पोस्ट को उचित स्थान पर भण्डारण कर आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए ।
प्रयोग विधि
3.5 से 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से बुआई या रोपाई से 15 दिन पहले खेत में फैलाकर तुरन्त जुताई कर मिट्टी में मिला देना चाहिए ।
नाडेप कम्पोस्ट के प्रयोग में सावधानियाँ
- ढांचे की भराई एक बार में एक से दो दिन में अवश्य पूर्ण कर लेनी चाहिए ।
- ढांचे ऐसे स्थान पर बनाया जाए जहाँ पर पानी का भराव न होता हो ।
- यदि नाडेप के ऊपरी सतह पर दरारें फट जाये ंतो उनको गोबर और मिट्टी के पेस्ट से भर देना चाहिए ।
- कम्पोस्ट निकालते समय ऊपर की अधसड़ी साकग्री को अलग रखकर दूसरी भराई में पुनः प्रयोग कर लेनी चाहिए ।
- निकाले गये कम्पोस्ट को छायादार स्थान पर संग्रहित करना चाहिए ।
- ढांचे में नमी बनाये रखने के लिए कभी-कभी ऊपर से पानी छिड़कते रहना चाहिए ।
- कम्पोस्ट की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए 1.5 किग्रा जिप्सम, 1.5 किग्रा. राक फाॅस्फेट, 1 किग्रा. यूरिया का मिश्रण बनाकर प्रत्येक सतह में मिलाना चाहिए ।
- टांका भरने के 60-70 दिन बाद राइजोबियम, पी.एस.बी. तथा एजेटोबैक्टर का कल्चर मिश्रण बनाकर छेदों के द्वारा अन्दर डाल देना चाहिए ।
नाडेप कम्पोस्ट से लाभ
- नाडेप कम्पोस्ट में 0.5 से 1.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.5 से 0.9 प्रतिशत फाॅस्फोरस तथा 1.2 से 1.4 प्रतिशत तक पोटाश तथा पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं।
- इस प्रक्रिया में 1 किग्रा. गोबर से 90 से 100 दिन में 30 किग्रा. कम्पोस्ट खाद मिल जाती है ।
- इस विधि में गाँव में ही मिल जाने वाली सामग्रियों का प्रयोग करके कम्पोस्ट बनायी जा सकती है।
- यह विधि गाँव में स्वच्छता बढ़ाती है तथा अप्रदूषणकारी विधि है जो कूड़ा कचरा, खरपतवार, जलकुम्भी आदि को लाभदायक रूप् में परिवर्तित करती है ।
- इस विधि द्वारा एक वर्ष में तीन से चार बार भराई करके 10 से 12 हजार रूपये मूल्य की खाद प्राप्त कर उर्वरक पर होने वाला व्यय बचाया जा सकता है
source-
- कृषि विभाग उत्तर प्रदेश