धान में पाए जाने वाले खरपतवार एवं प्रबन्ध

धान की खेती वर्षा ऋतु में की जाती है। इस समय वायुमण्डल में पर्याप्त नमी एवं तापमान की उपस्थिति से खरपतवारों का जमाव एवं विकास अधिक होता है। इसलिए धान के खेत में विभिन्न प्रकार के जलीय एवं वार्षिक चौड़ी पत्ती वाले एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार उगते हैं जो कई तरह से फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।

 

धान में खरपतवारों से होने वाले नुकसान

इसकी फसल में खरपतवार की उपस्थिति के कारण न केवल उपज में कमी आती है, बल्कि फसल के गुण में कमी, कीड़े-मकोड़ों एवम् फसल के रोग व्याधियों में वृद्धि, सिंचाई में बाधावरोध के साथ ही मानव स्वास्थ्य से सम्बन्धित कई समस्याएँ भी पैदा होती हैं। खरपतवारों के कारण होने वाली फसल की क्षति में खरपतवार की किस्म, सघनता, जीवनकाल, प्रतिस्पर्द्धा का समय, धान की उगाई गई प्रजाति, बोने का समय, पौधों एवम् कतारों की आपसी दूरी, मृदा का उर्वरता स्तर, सिंचाई जल-प्रबन्ध एवम् खरपतवार की प्रजाति का पादप विषाक्त प्रभाव का प्रमुख योगदान होता है। इस तरह खरपतवार काफी नुकसान पहुँचाते हैं।

 

धान में पाये जाने वाले घास कुल के खरपतवार

धान में घासकुल के कई खरपतवार पाये जाते हैं। जिनमें मुख्य रूप से जंगली सांवा, सवईं घास, जंगली कोदो, बांसी घास, दूब घास, मकड़ा आदि पाये जाते हैं।

 

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार

चौड़ी पत्ती में मुख्य रूप से कनकौवा, कांटेदार चौलाई, पत्थरचट्टा, भंगरैया, महकुआ आदि खरपतवार पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त मोथा (भादा) की कई प्रजातियां पाई जाती हैं।

 

प्रबन्धन 

खरपतवारों का प्रबन्धन समय, धन, मानव श्रम, संसाधनों की उपलब्धता एवं क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार निर्धारण करके किया जाता है।

 

निराई गुड़ाई द्वारा प्रबंधन

धान के खेत में रोपाई के 20 दिन बाद एवं 40 दिन बाद हाथ एवं खुरपी की सहायता से होने वाले खरपतवारों को निकाल देने से काफी नियंत्रण हो जाता है।

 

यन्त्र द्वारा प्रबंधन

धान में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए अब कई प्रकार के मानव चालित, शक्ति चालित यंत्र विकसित हो गये हैं। जिनके द्वारा भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। जिनमें मुख्य रूप से पैडी वीडर एवं कोनोवीडर प्रमुख हैं। जिनका प्रयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।

 

रसायनों द्वारा प्रबंधन

रोपाई वाले धान में घास जाति एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु ब्यूटाक्लोर 5 प्रतिशत ग्रेन्यूल 30 से 40 किग्रा. प्रति हेक्टेयर अथवा बेन्थियोकार्ब 10 प्रतिशत ग्रेन्यूल 15 किग्रा. या बेन्थियोकार्ब 50 ईसी. की 3 लीटर मात्रा या पेण्डी मैथालीन 30 ई.सी. की 3.3. लीटर मात्रा या एनिलोफास 30 ई.सी. की 1.65 लीटर प्रति हेक्टेयर का रोपाई के 3-4 दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिए।

ब्यूटाक्लोर का प्रयोग 3-4 सेमी. पानी में किया जाता है एवं बेन्थियोकार्ब का प्रयोग अच्छी नमी की स्थिति में ही करना लाभकारी होता है। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु 2-4-डी सोडियम साल्ट का 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। इसका प्रयोग धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद और सीधी बुआई के 20 दिन बाद करना चाहिए। रसायनों द्वारा खरपतवारों की रोकथाम के लिए यह अति आवश्यक है कि दानेदार रसायनों का प्रयोग करते समय खेत में 4-5 सेमी. पानी भरा होना चाहिए।

 

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