तोरिया ‘‘कैच क्राप’’ के रूप में खरीफ एवं रबी के मध्य में बोई जाती है। इसकी खेती करके अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है।
खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयां देशी हल कल्टीवेटर/हैरो से करके पाटा देकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए।
तोरिया की किस्में
टी-9, भवानी, पी.टी.-303, पी.टी.-30 (तराई हेतु)
बीज की मात्रा
तोरिया (लाही) का बीज 4 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बीज शोधन
बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें।
बुवाई का समय
तोरिया की बुवाई सितम्बर में की जानी चाहिए। गेहूं की फसल लेने के लिए तोरिया (लाही) बुवाई सितम्बर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए। भवानी प्रजाति की बुवाई सितम्बर के दूसरे पखवारे में ही करें।
उर्वरक की मात्रा
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परिक्षण के बाद करना चाहिए। यदि मिट्टी परिक्षण सम्भव न हो सके तो –
(1) असिंचित दशा में 50 किग्रा. नाइट्रोजन तथा 30 किग्रा. फास्फेट तथा 30 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
(2) सिंचित क्षेत्रों में 80-100 किग्रा. नाइट्रोजन तथा 50 किग्रा. फास्फेट एवं 50 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
फास्फेट का प्रयोग एस.एस.पी.(सिंगिल सुपर फास्फेट) के रूप में अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि इससे 12 प्रतिशत गन्धक की पूर्ति हो जाती है। गंधक की पूर्ति हेतु 200 किग्रा. जिप्सम का प्रयोग अवश्य करें तथा 40 कुन्तल प्रति हे. की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई देशी हल से करना लाभदायक होता है एवं बुवाई 30 सेमी. की दूरी पर 3-4 सेमी. की गहराई पर कतारों में करना चाहिए एवं पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिए।
निराई-गुड़ाई
घने पौधों को बुवाई के 15 दिन के अन्दर निकालकर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी. कर देना चाहिए तथा खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई भी साथ कर देनी चाहिए। यदि खरपतवार ज्यादा हो तो पेन्डीमेथलीन 30 ई.सी. का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद तथा जमाव से पहले छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई
फूल निकलने से पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति तोरिया/लाही विशेष संवेदनशील है अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना आवश्यक है। उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
फसल सुरक्षा
कीट-रोग एवं उपचार
१.झुलसा रोग
इस रोग में पत्तियों तथा फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं, जिसमें गोल-गोल छल्ले केवल पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इनके उपचार के लिए मैंकोजेब 75 प्रतिशत 2 किग्रा. प्रति हेक्टेयर या कापर आक्सीक्लोराइड 80 प्रतिशत 3 किग्राप्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।
२.आरा मक्खी
यह काले चमकदार रंग की घरेलू मक्खी से आकार में छोटी 4-5 मिमी. लम्बी मक्खी होती है। मादा मक्खी का अंडरोपक आरी के आकार के होने के कारण ही इसे आरा मक्खी कहते हैं। इस कीट की सूडियाॅ काले स्लेटी रंग की होती है। ये पत्तियों को किनारों से अथवा विभिन्न आकार के छेद बनाती हुई बहुत तेजी से खाती हैं। भयंकर प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।
३.बालदार सूॅडी
यह पीले अथवा नारंगी रंग की काले सिर वाली सूॅड़ी होती है। इसका पूरा शरीर घने काले बालों से ढका होता है। इसकी सूड़ियां ही फसल को नुकसान पहुॅचाती हैं। यह प्रारंभ में झुण्ड में तथा बाद में एकलरूप में पौधों की कोमल पत्तियों को खाकर नुकसान पहुॅचाती हैं। आरा मक्खी एवं बालदार सूॅड़ी के उपचार के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 किग्रा. या मैलाथियान 50 ई.सी. 1.5 लीटर या डी.डी.वी.पी. 76 एस. एल. 0.5 लीटर 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कटाई-मड़ाई
जब फलियां 75 प्रतिशत सुनहरे रंग की हो जायें फसल को काटकर, सुखा लेना चाहिए तत्पश्चात् मड़ाई करके बीज को अलग कर लें देर से कटाई करने से बीजों के झड़ने की आशंका रहती है बीज को अच्छी तरह सुखा कर ही भण्डारण करें जिससे इसका कुप्रभाव दानों पर न पड़ें।
स्रोत-
- कृषि विभाग ,उत्तर प्रदेश