भारत में प्याज का कुल उत्पादन 16.30 लाख टन (2012-13) और कुल 0.95 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल हैं। प्याज मुख्य रूप से रबी की फसल है और कुछ राज्यों में यह खरीफ के मौसम में भी बोई जाती है। प्याज के कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत रबी, 20 प्रतिशत खरीफ और 30 प्रतिशत देर खरीफ मौसम में होता है। महाराष्ट्र सबसे अधिक प्याज का उत्पादन करने वाला राज्य है और खरीफ प्याज का 90 प्रतिशत उत्पादन करता है, साथ ही अन्य राज्यों में रबी की मांग को पूरा करता है।
उत्तर भारत में प्रमुख फसल रबी के मौसम में उगाई जाती है, जिसको अप्रैल से मई में काटा जाता है । खरीफ के मौसम में प्याज की पैदावार केवल 15-20 टन/है. है, जबकि रबी के मौसम यह 25-35 टन/है. है। अक्टूबर से मार्च के दौरान प्याज की आपूर्ति के लिए खरीफ प्याज उत्पादक राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। बुवाई अथवा रोपाई विधि से प्याज उत्पादन खरीफ सीजन में आम हो गया है।
प्याज की उत्पादकता खरीफ के मौसम में कम है, लेकिन काफी सुधार किया जा सकता है। किसानों की बेहतर वार्षिक आय की दृष्टि से खरीफ प्याज की खेती धान की तुलना में अधिक फायदेमंद है। उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए खरीफ प्याज की सफल खेती के लिए उत्पादन की नई तकनीकियों के विकास के उद्देश्य से खरीफ प्याज पर परिक्षण जल प्रौद्योगिकी केन्द्र पर वर्ष 2011 और 2012 में किया गया।
खेत की तैयारी, बुवाई एवं सिंचाई प्रणाली का फैलाव
प्याज की जड़ें ज्यादा से ज्यादा 15 सें.मी. की गहराई तक जाती हैं। खेत में चैड़ी क्यारियों को बनाया जाता हैं। एक क्यारी की चैड़ाई और ऊंचाई क्रमशः 90 सें.मी. और 15 सें.मी. होनी चाहिए और प्रत्येक क्यारी के बाद जल निकासी के लिए 30 सें.मी. चैड़ी नाली बनाते हैं।
उत्तर भारत में, बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त के अंतिम सप्ताह तक है। देश के अन्य भागों में भी अगस्त रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय है। प्याज में पंक्ति से पंक्ति दूरी 15 से..मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखते हैं। लेकिन ड्रिप सिंचाई में जहाँ लेटरल पाइपों का प्रयोग सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, प्याज की कई पंक्तियों को प्रति लेटरल बोया जा सकता है। इससे पानी और उर्वरक की बचत के अलावा लेटरल पाइपों की लागत की भी बचत होगी।
प्याज (किस्म-एन 53) की दो पंक्तियों की दूरी 10 सें.मी. तथा पौधों से पौधों से दूरी 7.5 सें.मी. रखी गई। जब फसल की बुवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह के दौरान, दो लेटरल
पाइपों के बीच की दूरी 1.2 मीटर रखी गई और 10 पंक्तियों को बोया गया।
खाद एवं उर्वरक (फर्टीगेशन)
प्याज की फसल में पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ति के लिए 160 कि.ग्रानाइट्रोजन, 115 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 95 कि.ग्रा./है. पोटेशियम दिया। यूरिया, पोटाश, सिंगल सुपर फॉस्फेट , (एस.एस.पी.) ,मोनो पोटेशियम फॉस्फेट क्रमशः, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम की आपूर्ति करने के लिए इस्तेमाल किया गया। तीस प्रतिशत नाइट्रोजन, 60 प्रतिशत फॉस्फोरस और 40 प्रतिशत पोटेशियम फसल की बुवाई के समय देना चाहिए। फॉस्फोरस की प्राथमिक खुराक को एस.एस.पी. उर्वरक के रूप में और शेष 40 प्रतिशत एमके.पी. उर्वरक के रूप में फर्टिगेशन से दिया गया। फर्टिगेशन बुवाई के 21 दिनों के बाद शुरू किया गया और फसल के अन्तिम 15 दिन पहले बंद करदिया गया। फसल की शेष अवधि 68 दिनों में फर्टिगेशन सिंचाई के साथ साप्ताहिक अन्तराल पर करें। फसल चक्र में कुल 8 बार फर्टिगेशन किया गया। उर्वरक का घोल बनाने लिए 200 लीटर क्षमता की एक प्लास्टिक टंकी की जरूरत है।
फसल की सिंचाई के पानी की आवश्यकता
खरीफ प्याज की फसल अवधि 90-100 दिनों की होती है। इसके फसल चक्र को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। प्रथम अवस्था 15 दिन, द्वितीय अवस्था 45 दिन, तृतीय अवस्था 20 दिन और अन्तिम अवस्था 10 दिन की है और पूर्ण अवस्था में क्रमशः 2.5, 3, 3.5 एवं 2.9 ली./वर्ग मी. पानी की आवश्यकता होती है।
प्याज की पैदावार
प्याज की उपज 90 दिन के बाद 30.55 टन प्रति हेक्टेयर में पाई गई तथा पारंपरिक सतही सिंचाई से 16-20 टन प्रति हेक्टेयर खरीफ उपज पायी गयी। लगभग 34.8 प्रतिशत पानी की बचत और 53.7 प्रतिशत उपज में बढ़त ड्रिप फर्टिगेशन प्रौद्योगिकी में पाई गई।
प्रौद्योगिकी क्षमता
खरीफ प्याज के 1 टन उत्पादन करने के लिये पोषक तत्वों की आवश्यकता का अनुमान लगाया गया है। पारम्पारिक सतही सिंचाईं में पोषक तत्वों की आवश्यकता ड्रिप फर्टिगेशन की तुलना में दोगुनी है। उत्पादन पर बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव से 50 प्रतिशत से अधिक उर्वरकों की बचत ड्रिप में की जा सकती है। यह तकनीक किसानों के खेत में पानी की बचत के साथ-साथ उर्वरकों की बचत के लिए अपार संभावना रखती है। खरीफ प्याज पूरे देश में अक्टूबर से जनवरी तक आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
धान की फसल में प्याज की तुलना में लगभग 3 गुना ज्यादा पानी लगता है ।धान में पानी की आवश्कता 1200 मि.मी. है, जबकि प्याज के लिए पानी कीआवश्यकता 300 मि.मी. है। प्याज केवल 2ः क्षेत्रफल में धान की तुलना मेंखरीफ मौसम में लगाया जाता है। यदि धान के 25 प्रतिशत क्षेत्र मेंविविधीकरण के अंतर्गत खरीफ प्याज में लाया जा सके तो 50,000 मिलियनक्युबिक मीटर पानी की बचत की संभावना है। दिनों-दिन कम होते भूजलऔर बढती हुई उर्वरकों की समस्या को हल करने के लिए धान की जगहखरीफ मौसम में प्याज एक अच्छी वैकल्पिक फसल हो सकती है|
Source-
- iari.res.in