(क) टमाटर की उन्नत किसमें
१.पूसा रोहिणी
विमोचन वर्षः 2005 (एस.वी.आर.सी., दिल्ली)
अनुमोदित क्षेत्रः दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
औसत उपजः 412 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंः परिमित पौध, फल लाल, लाल, चिकना, मध्यम आकार (70 गा्र .), माट छिलक (0.6 से. मी.), लम्बी अवधि तक टिकाऊ, बाजार उत्तम तथा सदुर क्षेत्रों तक भजन एवं पसस्करण के लिए उपयुक्त, पकन की अवधि 120 दिन।
(ख) टमाटर की संकर किस्में
१.पूसा हाइब्रिड 1
विमोचन वर्षः 1994 (एस.वी.आर.सी., दिल्ली)
अनुमोदित क्षेत्रः दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
औसत उपजः 300-330 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंः परिमित पौधे, गोलाकार मध्यम एवं चिकने फल, मोटी फलभित्ति, 28-30 सें.ग्रे. वाले रात के तापमान पर भी परिपक्वन, लम्बी दूरी के परिवहन के लिए उपयुक्त।
२.पूसा संकर 2
विमोचन वर्षः 1996 (सी.वी.आर.सी.)
अनुमोदित क्षेत्रःजम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश, बिहार, पज ाब, राजस्थान, गज रात, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश एव महाराष्ट्र
औसत उपजः 550 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंः परिमित पौधे, फल लाल, गोल, चिकना, ठोस मध्यम आकार, सुदूर क्षेत्रों तक भेजने के लिए उपयुक्त, मार्च अंत से मई अंत तक उपलब्ध, सूत्रकृमि प्रतिरोधी|
३.पूसा संकर 4
विमोचन वर्षः 1997 (सी.वी.आर.सी.)
अनुमोदित क्षेत्रः मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र
औसत उपजः 550 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंः परिमित पौधे, फल मध्यम आकार, गोल, बंधे, पीलापन लिए हुए, समान रूप से पकने वाला, सुदूर क्षेत्रों तक भेजने के लिए उत्तम, जड़गांठ सूत्रकृमि के प्रति प्रतिरोधी।
४.पूसा संकर 8
विमोचन वर्षः 2001 (सी.वी.आर.सी.)
अनुमोदित क्षेत्रः पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखण्ड
औसत उपजः 430-450 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंः परिमित पौधे, फल गोल मध्यम आकार (75-80 ग्रा.), समान रूप से पकने वाला, सुदूर क्षेत्रों तक भेजने के लिए उत्तम।
५.पूसा दिव्या
विमोचन वर्षः 1997 (एस.वी.आर.सी., दिल्ली)
अनुमोदित क्षेत्रः क्षेत्र – 4 व मध्य पर्वतीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त
औसत उपजः 350-450 कुन्तल प्रति हेक्टेयर (सब्जी के लिए)
विशेषताएंः इसके पौधे लम्बे, 105-170 से.मी. के साथ अधिक शाखाओं वाले होते हैं। कच्चे फल हरे और 3-5 के गुच्छों में लगते हैं। पकने पर फल का छिलका मोटा, गोल से अण्डाकार, गहरे लाल रंग के होते हैं। पहली तुड़ाई रोपण के 70-90 दिनों में होती है।
Source-
- Indian Agricultural Research Institute