टमाटर का संकर बीज उत्पादन / Hybrid Seed Production in Tomato

संकर बीज उत्पादन तकनीकी

बुवाई

टमाटर के बीजों की बुवाई 15 अक्तूबर तक पूरी हो जानी चाहिए। बुवाई के 25-30 दिनों के बाद 4-5 पत्तियों आने की स्थिति परपौध प्रतिरोपण के लिए तैयार होती है। प्रत्येक चार मादा पौधों के लिए एक नर पौधा के रोपण अनुपात की सिफारिश की जाती है।

 

अन्तराल

कार्यों की सुविधा और अन्य पौधों से होने वाली छाया से बचने के लिए नर वंशक्रमों को विभिन्न खंडों में रोपित किया जाता है, नर और मादा वंशक्रमों की 25-30 दिन पुराने पौधों को मेंड़ों (उठी हुई क्यारियां) पर रोपित किया जाता है। मेंड़ों की आपसी दूरी 90 सें.मी. होती है। अधिकतम फूल उत्पादन के लिए पौधे से पौधे की दूरी 60 सें.मी. पर्याप्त है।

 

बंध्यकरण क्रियाविधि

मादा फूल का नर वंशक्रम से परागकण द्वारा परागण किया जाना चाहिए। स्वतः परागण को रोकने के लिए मादा वंशक्रमों द्वारा पराग को छोड़ने से पहले, उनकी फूल की कलियों से पुंकेसर को हटा देने की प्रक्रिया को बंध्यकरण कहते हैं। बंध्यकरण बुवाई के लगभग 55-65 दिनों बाद जबकि रात्रि का तापमान 12 डिग्री सें.ग्रे. से अधिक हो, तब किया जाता है। चुनी हुई कलियों को जबरदस्ती खोलने के लिए नुकीली चिमटियों का प्रयोग किया जाता है।

परागकण जिनका कि प्रयोग वर्तिकाग्र (स्टिगमा) के आसपास शंकु प्रकार की संरचना बनाने के लिए किया जाता है, उन्हें बाएं हाथ में फूल की कली को पकड़ते हुए हटाया जाता है और दाएं हाथ में चिमटियों के द्वारा कोन को लम्बाई में बांटते हुए चिमटियों की सहायता से उन्हें दूर-दूर किया जाता है। तुड़ाईके समय स्व-परागित फलों में से हाइब्रिड फलों को पहचानने के लिए दलपुंज (कोरोला) और कैलिक्स (बाह्य दल पुंज) को काटें। बंध्यकरण सामान्यतः शाम के समय किया जाता है। उत्तर भारत में सामान्यतः बंध्यकरण और परागण करने का सही समय 15 जनवरी से 15 मार्च के बीच में है।

 

पराग संग्रहण

पराग संग्रहण का उत्तम समय देर शाम को होता है। एंथर शंकुओं को फूलों से हटाया जाता है और उन्हें उपयुक्त डिब्बों में जैसे कि पैट्री डिश या कागज के लिफाफों में डाल दिया जाता है। एंथर शंकुओं को पूरी रात 100 वाॅट के लैम्प के 30 सें.मी. नीचे रखते हुए सुखाया जाता है। परागों को धूप में भी सुखाया जा सकता है। सुखाए गए एंथर कोनों को एक कप में लिया जाता है, जिसके ऊपर महीन जाली का ढक्कन होता है। कप को लगभग 10-20 बार हिलाएं, जिससे कि पराग ढक्कन म ें इकट्ठे हो जाएं। पराग को एक दिन के लिए मध्यम तापमान पर रखा जा सकता है।

 

परागण

बध्यकृत  फूलो का  सामान्यतया अगल  दिन सुबह परागण किया जाता है। वर्तिकाग्र (स्टिगमा) को पराग के डिब्बे में डुबोया जाता है या पराग में तर्जनी को डुबोकर उसके सिरे से स्टिगमा को छुआ जाता है। सफल परागण को एक सप्ताह के भीतर आसानी से देखा जा सकता है जिसका पता फल के बड़े होने से लगता है। संकर प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद मादा पौधों सेकोई भी  गैर-संकरित फूल तो उन्हें हटाया जाता है जिससे कि कटाई से पहले स्व-परागित बीजों से संदूषण के अवसर को कम किया जा सके।

 

कटाई

औसतन 50 या उससे अधिक फलों को मध्यम फल वाले मादा पैतृक पौधे पर रखा जाता है। परागण के लगभग 50-60 दिनों के बाद टमाटर के फल पकने शुरू होते हैं, परन्तु तापक्रम कम रहने पर और अधिक समय लग सकता है। फलों की बुवाई जब करें, तब फल पूरे पके हों और लाल रंग के हों। फलों को गैर धातुओं के डिब्बों में, जैसे किपाॅलीथीन के लिफाफे, प्लास्टिक की बाल्टियों या क्रेटों में इकट्ठा किया जाता है।

 

बीज निकालना

पके हुए फलों को हाथों द्वारा कुचला जाता है। कुचले हुए फलों के थैलों को प्लास्टिक के बड़े कंटेनरों में किण्वन के लिए और बीजों के आसपास लगे हुए गूदे को अलग करने के लिए रखा जाता है। किण्वन का समय (16-24 घंटे) कमरे के एम्बिएन्ट तापक्रम पर निर्भर करता है। बीज को पानी से भरे प्लास्टिक के खुले कंटेनर में धोया जाता है और बीज से चिपके हुए गूदे और छिलके को अलग होकर तैरने के लिए उसे हिलाया जाता है। कंटेनर को एक तरफ झुकाकर तैर रही सामग्री को हटाया जाता है, और यह सुनिश्चित किया जाता है, कि बीज कंटेनर के तले पर ही रहें। धोने की इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं और हर बार कंटेनर में ताजा पानी भर लें और ऐसा तब तक करें जब तक कि गूदा और जेली पूरी तरह हट नहीं जाती तथा तले पर बिल्कुल साफ बीज नहीं आ जाते।

 

बीज सुखाना

सुखाने का यह कार्य छाया में किया जाना चाहिए। बीजों को प्रतिदिन 2-3 बार हिलाएं, जिससे कि बीज समरूप सूख जाएं। इन प्रक्रियाओं के द्वारा बीजों में वांछित 6-8 प्रतिशत तक की नमी मात्रा आजाएगी।

 

बीज उपज

प्रति 100 वर्ग मीटर से 3-3.5 कि.ग्रा. हाइब्रिड बीजों की उपज प्राप्त हो सकती है, जिसका कि बाजार मूल्य लगभग  20 हजार प्रति कि.ग्रा होताहै।

 

 

Source-

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान

 

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