ज्वार की खेती

परिचय एवं महत्व- ज्वार की खेती

चारा एवं धान्य दोनों फसलों के रूप में ज्वार व बाजरे का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ।

 

मृदा का चुनाव

ज्वार की अच्छी खेती के लिए जल निकास युक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है ।

खेत की तैयारी

2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए । बीज दर – 12-15 कि.ग्रा. बीज/हैक्टेयर पर्याप्त होता है । बीजोपचार के लिए कैप्टान/थीरम 2.5 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए ।

बीज का समय

खरीफ में जून महीने में कर लेनी चाहिए ।

बुआई की दूरी

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 से.मी. रखते हैं । प्रति हैक्टेयर 150000 पौधे रहने पर उत्पादन अच्छा मिलता है ।

बुआई की गहराई

बीज को 3-4 से.मी. गहरा बोना चाहिए ।

उर्वरक प्रबंधन

जातियां पोषक तत्व की मात्रा (कि.ग्रा./हे.) प्रयोग विधि
नत्रजन फास्फोरस पोटाश नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की मात्रा बुआई के समय नत्रजन की शेष मात्रा बुआई के 25-30 दिन बाद खडी फसल में दें |
1.देशी 50 30 25
2.संकर
सिंचित 100 50 40
असिंचित 60 40 30

सिंचाई एवं जल प्रबंधन

जल निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए । फसल में फूल आने के समय नमी न रहने पर सिंचाई करना आवश्यक होता है ।

खरपतवार प्रबंधन

खरपतवारों का प्रकोप सदैव फसल की प्रारंभिक अवस्था में रहता है । कर्षण क्रियाओं के द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए निकाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए । या रासायनिक दवा सीमाजीन या एट्रजीन (50%घुलनशील पाउडर ) की 0.75 सक्रिय तत्व 600 लीटर पानी के साथ प्रति हैक्टेयर में प्रयोग करना चाहिए । यदि फसल में चैड़ी पत्ती वाली खरपतवार ज्यादा हो तो 2-4 डी. 0.6 प्रति कि.ग्रा. सक्रिय तत्व तथा 600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 20-25 दिन पर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।

अन्तर्वर्ती फसलें

ज्वारी के साथ दलहनी फसलों जैसे सोयाबीन, अरहर, मूंग, उड़द को लगाना लाभदायक होता है ।

फसल चक्र

ज्वार-गेहूं/जौ/सरसों/चना/मटर/मसूर/आलू इत्यादि लिया जा सकता है ।

उपज

देशी प्रजातियों से 15-20 क्विंटल तथा संकर प्रजातियों से 35-40 क्विंटल दाना प्राप्त हो जाता है । साथ ही 100-150 क्विंटल सूखा चारा भी मिल जाता है ।

 

Source-

  • Krishi Vigyan Kendra,Sabour,Distt. Bhagalpur-ICAR
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