जैविक पद्धति द्वारा अनार की खेती

भारत में इस समय 14.82 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल में बागवानी फसलें उगाई जाती हैं । जो देश के कुल क्षेत्रफल का 8.5 प्रतिशत है । राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में फलों की बागवानी 3.73 मिलियन हैक्टर में की जाती है एवं  इसका कुल उत्पादन 46.04 मिलियन टन है, जबकि सब्जियों की खेती 6.24 मिलियन हैक्टर में की जाती है एवं इसका कुल उत्पादन 93.92 मिलियन टन है, जो विश्व के कुल फल और सब्जी उत्पादन का क्रमशः 10 व 14 प्रतिशत है । फिर भी बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग/पोषण सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं के साथ एकरूपता स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि बागवानी फसलों के क्षेत्रफल में हर संभव विस्तार हो औसत उत्पादकता एंव उत्पाद की गुणवत्ता में भी वृद्धि हो ।

अनार का उपयोग अनेक प्रकार की दवाइयों एवं ताजा फल के रूप में किया जाता  है । अनार के 100 ग्राम खाने योग्य भाग से 63-78 कैलोरी ऊर्जा 0.05-1.6 ग्राम प्रोटीन, 15.4-19.6 कार्बोहाइड्रेट, 0.36-0.73 ग्राम लवण, 0.36मिग्रा. थियामीन विटामिन और 16-19 मिग्रा. विटामिन सी पाया जाता है । इसमें नमी की मात्रा 72-88 प्रतिशत तक पाई जाती है । अनार का शर्बत मन को प्रसन्न करने वाला प्यास गर्मी जलन और थकावट मिटाने वाला पाचक स्वादिष्ट, शक्ति और स्फूर्तिदायक होता है । यह शरीर में तरावट और शीतलता बनाए रखता है ।

अनार विशेष रूप से हृदय रोगियों के लिए बहुत अच्छा फल है । इसके सेवन से शरीर स्वस्थ व रोग मुक्त रहता है । अनार की जैविक खेती करने के लिए जैविक खेती क्यों आवश्यक है ? जैविक खेती क्या है ? जैविक खाद कैसे व कितनी मात्रा में डालें ? कीट व बीमारियों का नियन्त्रण कैसे करें ? किस मृदा में खेती करें ? आदि पहलुओं को जानना आवश्यक होता है ।

 

मृदा का चुनाव

यह फल हल्की मृदाओं में अधिक सफलतापूर्वक उगाया जाता है लेकिन फलों का उत्पादन कम होता है । अनार को भारत में लगभग 1200 हैक्टेयर भूमि में उगाया जाता है  इसके लिए गहरी दोमट, जल निकास युक्त भूमि उपयुक्त होती है । अनार का पौधा पाला को सहन कर सकता है । परन्तु 110 से. से कम तापमान पौधे के लिए हानि कारक होता है । अनार के पौधे  सूखे के प्रति सहनशील होते हैं । अनार का पौधा ऐसी जगह पर लगाना चाहिए जहां पर पानी के निकास का उचित प्रबंध हो ।

 

अनार की उन्नत किस्में

अनार की कई किस्में जैसे गणेश ढोलका, गणेश सेलेक्शन, मसकिट, जलोढ़ बेदाना, ज्योति, रूबी, मृदुला आदि किस्मों के फल खाने में स्वादिष्ट एवं अधिक उपज देते हैं । मध्यप्रदेश में गणेश किस्म का अनार ज्यादा लोकप्रिय है । क्योंकि इसके फल मध्यम आकार के तथा कोमल बीज वाले अधिक उपज देने वाले होते हैं । अनार की खेती करते समय यह अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि पौधा उन्नत किस्म का तथा जगह व क्षेत्र विशेष के हिसाब से उपयुक्त होना चाहिए । जिससे जैविक पद्धति द्वारा उगाये अनार की लाभदायक खेती की जा सके । अच्छी किस्म का फल पैदा करने से बाजार में मांग भी बढ़ती है साथ ही साथ जैविक पद्धति से पैदा किये गये फल की कीमत भी अच्छे मिल जाती है ।

 

खाद एवं उर्वरक

जैविक खेती के उपयोग में अपने वाली कुछ मुख्य कार्बनिक खादें जैसे-गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, फसल अवशेष, सड़ी-गली जंगलों की पत्तियां, हरी खाद, गोबर गैस प्लांट से निकली स्लरी व राॅक फास्फोट आदि का कार्बनिक खाद के रूप में जैविक खेती के लिए प्रयोग किया जाता है । कम्पोस्ट या गोबर एवं फसल अवशेषों से बनाई गई खाद, जैसे वर्मीकम्पोस्ट, फास्फोकम्पोस्ट आदि का उपयोग जैविक खेती में किया जाता है । इन खादों का उत्पादन किसान अपने ही संसाधनों से या आसपास के प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से कर सकता है ।

सामान्यतः कार्बनिक खादों में पौधों की आवश्यकता के अनुरूप तत्वों की मात्रा कम होती है (तालिका-1) वैज्ञानिक विधियों के उपयोग से कम्पोस्ट या कार्बनिक खादों में तत्वों की मात्रा में बढ़ोत्तरी संभव है । वर्मीकम्पोस्ट एक अत्यन्त उपयोगी खाद है जिसमें केंचुओं के माध्यम से कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया को कम समय में पूरा करके एक उत्तम खाद का निर्माण किया जाता है ।

अनार की जैविक खेती में अनार की पौध रोपण के समय से ही कार्बनिक खादों का इस्तेमाल करना चाहिए । गड्ढे में पौध रोपण से लेकर बढ़ने तक जैविक खादों का ही प्रयोग करें । इसके लिए एक साल पुराने पौधे को गड्ढे में रोपण के पहले गड्ढे को एक भाग कार्बनिक खाद, एक भाग बालू और एक भाग मिट्टी (1:1:1) तीनों को अच्छी तरह से मिलाकर भर दिया जाता है । साथ ही दीमक से बचने के लिए गड्ढे में 250 ग्राम की दर से नीम की खली को मिला दिया जाता है । इसके बाद अनार का पौधा लगा दिया जाता है । जब पौधे एक साल के हों तो कार्बनिक खादों को पोषण क्षमता के अनुसार डालना चाहिए ।

अनार के एक साल के पौधे को 150 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फास्फोरस व 50 ग्राम पोटाश देना चाहिए । जैविक खेती में इन तत्वों को कार्बनिक स्त्रोतों से देना चाहिए । अनार के पौधों को उनकी पोषक तत्वों की आवश्यकतानुसार प्रति वर्ष नाइट्रोजन की मात्रा 100 ग्राम के हिसाब से तब तक बढ़ाते रहें जब तक की 500 ग्राम न हो जाये । फास्फोरस और पोटाश की मात्रा भी हर साल 50 ग्राम के हिसाब से तब तक बढ़ाते रहें तक कि कि 250 ग्राम न हो जाये । इस प्रकार फल देने वाले पौधे पांच साल या उसके बाद उर्वरक की मात्रा को जैविक खादों से देना चाहिए ।

गोबर की 100 कि.ग्रा. अच्छी सड़ी हुई खाद जिसमें करीब 50 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस 300 ग्राम पोटाश होता है प्रति पौधे की दर से डालना चाहिए । नाइट्रोजन की मात्रा 60 प्रतिशत (300ग्रा.) तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा फूल आने के चार से पांच सप्ताह पहले और बाकी 40 प्रतिशत नाइट्रोजन (200 ग्राम) फल लगने के समय दें । साधारणतयाः गर्मी में 20 से 25 दिन के अन्तराल पर और सर्दियों में 1.5 से 2 महिने के अंतराल पर सिंचाई करें । वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है । लेकिन फल लगने के बाद नियमित रूप से सिंचाई करें नहीं तो फल पकने पर फटने की संभावना रहती है ।

तालिका 1. कम्पोेस्ट तथा अन्य जैविक खादों में पोषक तत्वों की उपलब्धता ।

पोषक तत्वों की मात्रा(%)
खादें नत्रजन फास्फोरस पोटाश
गोबर की खाद 0.5-1.0 0.4-0.5 0.7-1.0
कम्पोस्ट 0.8-1.5 0.5-0.8 1.0-1.2
वर्मीकम्पोस्ट 1.5-2.0 1.5-2.0 1.2-1.6
फास्फोकम्पोस्ट 1.0-1.5 2.5-4.0 1.0-1.5
बायोगैस सलरी 2.0-2.5 1.0-2.0 0.6-1.0

 

अनार के पेड़ में कांट-छांट

अनार में छंटाई का बहुत महत्व है । अनार में निम्न प्रकार से कटाई-छटाई की जा सकती है ।

 

कई तनों वाला पौधा

इसमें अनार के पौधों में तीन से चार तने छोड़कर बाकी टहनियों को काट दिया जाता है । इस प्रकार सीधे हुए वृक्ष में प्रकाश अच्छी तरह से पहुंचता है जिस से फल की पैदावार भी अधिक होती है ।

 

एक तना वाला पौधा

एक तने को छोड़कर बाकी सभी टहनियों को काट दिया जाता है । यह क्रिया पौध रोपण के समय से चालू करते हैं । इसमें मुख्य तने को एक मीटर की ऊंचाई तक शाखाओं का विकास होने दिया जाता है, जिसमें से चार-पांच शाखाओं को सभी तरफ धरातल से 60-70 सेंमी. ऊंचाई पर फैलने दिया जाता है । तीन साल में इस विधि द्वारा पौधे को सही आकार दिया जाता है ।

 

फूल, फल एवं उपज

एक परिपक्व अनार का पौधा वर्ष भर फूलता-फलता है परन्तु उपयुक्त अवधि के दौरान ही अधिक उपज मिलती है । यदि गर्मी के मौसम में 60 दिनों तना में पानी देना बन्द कर दें और जड़ों को खोल दें, फिर खाद और पानी का प्रयोग किया जाए तो इस विधि द्वारा फूल जून-जुलाई (मृग बहार) में आना प्रारंभ हो जाते हैं । फरवरी-मार्च में जो फूल आते हैं उसे अंबे बहार और सितम्बर-अक्टूबर में जो फूल आते हैं उसे हस्तबहार कहते हैं । विभिन्न उम्र के पौधों की उपज भिन्न होती है ।

अनार की उपज मृदा के प्रकार, जलवायु परिस्थिति एवं कर्षण क्रियाओं की व्यवस्था पर निर्भर करती हैं । फिर भी अच्छी तरह से विकसित 10 वर्ष पुराने पौधों से 100 से 120 फल (10-12 कि.ग्रा.) प्रति पौधे का उत्पादन होता है । अनार का पौधा रोपण के एक साल बाद से ही फल देने लगता है, शुरू में एक या दो साल के पौधे से फल नहीं लेने चाहिए ताकि पौधे का विकास अच्छी तरह हो जाये । इसके लिए पौधे के फूल आने के बाद उसे तोड़ दिया जाना चाहिए ।

 

फसल की सुरक्षा

१. टनार की मक्खी

यह उग्र रूप से पूरे भारत में पाई जाती है । यह फूल आने की अवस्था में नुक्सान करना प्रारंभ कर देती हैं । मादा मक्खी फूल के कैल्किस और छोटे फलों पर अण्डे देती हैं । विकसित फलों में अण्डों से निकला लार्वा (सूंडी) छेद करती है और अंदर घुस कर खाती है । इस तरह से छतिग्रस्त फलों में बैक्टेरिया, कवक आदि का संक्रमण हो जाता है । तथा फल सड़ने लगते हैं और वे गिर जाते हैं ।

२.इन्डरबिला

ये कीड़े अनार के वृक्षों की छाल में छेद कर घुस जाते हैं और अंदर खाते रहते हैं । वृक्ष कमजोर हो जाते हैं और उसमें फल नहीं लगते हैं ।

३.फ्रूट राॅट

इस रोग से प्रभावित सभी फलों में पीले या काले धब्बे दिखाई देते हैं । संक्रमित फल उपयोग के लायक नहीं रहते हैं । यह रोग वर्षा ऋतु में अधिक फैलता है ।

 

फलों का फटना

अनार के फलों का फटना एक सामान्य विकृति है । इससे फलों पर फंगस (फफूंद) और जीवाणु का आक्रमण बढ़ता है । यह विकृति मुख्य रूप से दो कारणों से उत्पन्न होती है । बोरान की कमी व अनियमित सिंचाई या अनियमित वर्षा होने पर अनार के फल फटने लगते हैं । मृग बहार के फलों में यह समस्या अन्य मौसम की तुलना में अधिक होती है ।
टनार के फलों एवं पौधों को कीटों एवं बीमारियों से रोक थाम के लिए नीमेक्स व माइक्रोप्लेक्स का घोल 0.15 प्रतिशत बाजार में मिलता है । यदि 500 मि.ली. नीमेक्स व माइक्रोप्लेक्स को 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधों में फूल आने के समय से ही छिड़काव 15 दिन के अन्तराल में किया जाये तो कीटों एवं बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और अच्छी पैदावार मिल सकती है ।

 

परिपक्वता माप

जब फल का छिलका लाल रंग का हो जाए तक फल की तुड़ाई करनी चाहिए । रस की अम्लता 1-85प्रतिशत के नीचे होनी चाहिए । इन बातों को ध्यान में रखकर फल की तुड़ाई करनी चाहिए ।

 

गुणवत्ता मानक

बड़े फल घाव, दरारों, रगड़ सड़न से मुक्त होने चाहिए । छिलके का रंग लाल एवं चिकनापन लिए हुए होना चाहिए । स्वाद जो कि मिठास/अम्ल के अनुपात पर निर्भर करता है, विभिन्न किस्मों के साथ भिन्न-भिन्न होता है । घुलनशील ठोस तत्वों की मात्रा 15 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए । टेनिन मात्रा 0.30 प्रतिशत के नीचे होनी चाहिए । विटामिन्स की मात्रा अच्छी होनी चाहिए । साथ ही साथ कुल शर्करा का प्रतिशत अधिक होना चाहिए ।

 

जैविक खादों का फलों की संख्या एवं उपज पर प्रभाव

भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान में विगत 5 वर्षो से किये गये शोध कार्यों के परिणाम में देखा गया है कि जैविक पद्धति से अनार की खेती करने से प्रति पौधा फलों की संख्या रसायन प्रयोग की तुलना में कम पाई गई लेकिन फलों के औसत भार एवं उपज जैविक खादों एवं समन्वित पौध पोषण पद्धति में ज्यादा पाई गई । इसी तरह अन्य जैविक खादों जैसे फास्फोकम्पोस्ट व वर्मीकम्पोस्ट में फलों की पैदावार करीब करीब बराबर पाई गई ।

खादें फल संख्या/ पौधा फलों का ओसत भार(ग्राम) उपज(किलो/पौधा)
बिना खाद के 31 151 4.7
केंचुआ खाद 40 178 7.1
फास्फोकम्पोस्ट खाद 40 184 7.3
गोबर खाद 39 186 7.2
रासायनिक खाद 44 155 6.9
रासायनिक (50%)+
गोबर खाद (50%) 42 186 7.8

 

फलों की गुणवत्ता पर प्रभाव

जैविक पद्धति द्वारा उगाए गए अनार के फलों की गुणवत्ता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है । फलों में रस की मात्रा, कुल घुलनशील ठोस पदार्थ, शर्करा कैरोटीनोयड एवं विटामिन सी की मात्रा रसायन व नियंत्रण की अपेक्षा अधिक पाई गई । जैविक खाद व समन्वित पोषण प्रबंधन पद्धति में इन अपवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा करीब-करीब बराबर पाई गई । यदि सब जैविक खादों में मौजूद विटामिन्स, हार्मोंस एन्जाइम की क्रियाशीलता व सभी आवश्यक पोषक तत्व की उपलब्धता की वजह से पाई गई, जो फलों की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है जबकि रसायन व नियंत्रण पद्धति से उगाए फलों में ऐसा नहीं पाया गया ।

रस व शर्करा का प्रतिशत गोबर खाद द्वारा उगाये गए पौधों के फलों में अधिक पाया गया जबकि कुल घुलनशील ठोस पदार्थ, कैरोटीनोयड व विटामिन्स सी की मात्रा समन्वित पोषक प्रबंधन पद्धति द्वारा उगाये पौधों के फलों में अधिक पाया गया । यदि जैविक पद्धति से अनार की खेती की जाये तो निश्चित है अधिक आय के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाला फल प्राप्त होगा ।

 

स्रोत-

  • भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान
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