ई.एम. तकनीक में अनेक प्रकार के मित्र सूक्ष्म जीवों का मिश्रण विभिन्न क्रिया कलापों जैसे कृषि में फसल बढ़वार हेतु, कम्पोस्ट बनाने हेतु, जल उपचार इत्यादि हेतु प्रयोग किया जाता है । यह तकनीक सर्वप्रथम जापान में क्यूसेई नैचुरल फार्मिंग इंस्टीट्यूट द्वारा वर्ष 1980 में विकसित की गई थी । इस तकनीक को विकसित करने का मुख्य ध्यये था विभिन्न सूक्ष्म जीवों को मिलाकर एक ऐसे जैविक उत्पाद का निर्माण जिससे मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जा सके, मृदा जन्य बीमारियों की रोकथाम की जा सके, भूमि में विद्यमान जैव अवशिष्ट को जल्दी सड़ाया जा सके और फसलों की रासायनिक खादों पर निर्भरता कम की जा सके ।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नवम्बर 1989 में थाईलैंड देश में इस तकनीक पर एक अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी आयोजित की गई, जिसके अंतर्गत श्एशिया पैसिफिक नैचुरल एग्रीकल्चर नेटवर्कश् की स्थापना की गई । यह नेटवर्क अब इस तकनीक आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है
ई.एम. क्या है ?
ई.एम. का मतलब है इफेक्टिव माइक्रोओरगेनिज्मस या प्रभावी सूक्ष्मजीवी । यह प्रकृति में उपलब्ध अनेक प्रकार के प्रभावी मित्र सूक्ष्मजीवों का मिश्रण है । इस सूक्ष्म जीवों में प्रमुख है नत्रजन स्थिरीकारक, फास्फेट घोलक, प्रकाश संश्लेषीय जीवाणु, लेक्टिक एसिड जीवाणु, यीस्ट, पौध बढ़वार उत्प्रेरक जीवाणु तथा अन्य कई प्रकार के फफूंद व एक्टिनोमाइसिटीज । इस मिश्रण में हर जीवाणु का अपना एक विशिष्ट स्थान है, जो विभिन्न तत्व चक्रों को सुचारू रूप से चलाने, मृदा उर्वरता में सुधार, मृदा स्वास्य में सुधार तथा पौध संरक्षण में सहायता करते हैं|
ई.एम. जैव उर्वरकों से अलग कैसे है ?
हालांकि एस तकनीक में जैव उर्वरकों में प्रयोग किए जाने वाले सभी जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है, वहीं ई.एम. में एक या एक ही प्रकार के जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है, वहीं ई.एम. में एक ही उत्पाद में अनेक प्रकार के विभिन्न क्रिया कलाप करने वाले जीवाणु होते हैं । जैव उर्वरकों के प्रत्येक 1 ग्राम में एक ही प्रकार के जीवाणु लगभग 1-10 करोड़ जीवाणु प्रतिग्राम की मात्रा में होते हैं, जब कि ई.एम. में अनेक प्रकार के जीवाणु कुल मिलाकर 1 करोड़ प्रतिग्राम की मात्रा में होते हैं ।
ई.एम. के प्रयोग से लाभ
- इससे उपचार करने पर अंकुरण में सुधार होता है, पौधे जल्दी निकलते हैं तथा पौधों में फूल व फल जल्दी आते हैं और फल व दाने जल्दी पकते हैं ।
- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में वृद्धि होती है ।
- कीट प्रकोप सहने की क्षमता बढ़ जाती है ।
- मिट्टी के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है ।
- एक – दूसरे पर आधारित जीवन प्रक्रिया के कारण मिट्टी में सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म जन्तुओं की अच्छी बढ़वार होती है । ई.एम. के प्रयोग से वैम फफूंद का जड़ों पर फैलाव बढ़ता है । पौधों की जल व पोषण प्राप्त करने की क्षमता बढ़ जाती है ।
- जैव अवशिष्ट के तीव्र सड़न में सहायक है । फसल अवशिष्ट को ई.एम. से उपचारित कर सीधे प्रयोग करने से कम्पोस्ट प्रयोग करने जितना फायदा होता है तथा कम्पोस्ट बनाने की आवश्यकता नहीं रहती है ।
- ई.एम. के प्रयोग से मिट्टी में केंचुओं व अन्य मित्र जीवों की संख्या बढ़ती है और मिट्टी स्वस्थ भुरभुरी बनती है
क्या ई.एम. का प्रयोग बार – बार करना जरूरी है ?
यदि एक ही खेत में इस तकनीक का प्रयोग लगातार कुछ वर्षों तक किया जाए तो ये सभी जीवाणु मिट्टी में अच्छी प्रकार स्थापित हो जाते हैं और धीरे – धीरे व उस मृदा वातावरण के अभिन्न अंग बन जाते हैं और अपने आप बढ़ने लगते हैं । ऐसी अवस्था में ई.एम. के बार – बार उपयोग की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
ई.एम. प्रयोग विधि:-
कृषि में ई.एम. प्रयोग में चार बिन्दु हैं:
- ई.एम. प्राप्ति – बाजार में उपलब्ध है ।
- ई.एम. का द्वितीयक घोल तैयार करना ।
- इसके द्वितीयक घोल को पानी में मिलाकर स्प्रे घोल बनाना ।
- मिट्टी व पौधों पर ई.एम. घोल का स्प्रे ।
ई.एम. द्वितीयक घोल तैयार करना
आवश्यकतानुसार तथा कहां किस प्रकार उपयोग करना है के अनुरूप ई.एम. बनाने के अलग – अलग नुस्खे हैं । कभी – कभी तो एक ही नुस्खा भी अलग – अलग 2 स्थानों पर फसल एवं पर्यावरण के अनुरूप अलग – अलग 2 तरह से बनाया जाता है । कुछ लोकप्रिय नुस्खों का विवरण यहां दिया जा रहा है । ध्यान रहे इसके सभी नुस्खों में प्रयुक्त पानी या तो वर्षाजल होना चाहिए या ताजा ट्यूबवेल जल । नल के पानी का प्रयोग वर्जित है ।
1. नुस्खा क्र. 1:
यह नुस्खा बीज उपचार, मिट्टी उपचार या फसलों पर सीधे स्प्रे रूप में प्रयोग हेतु बनाये जाता है ।
- लगभग 100 लीटर पानी में 5 किलो गुड़ घोलें ।
- इसमें 5 लीटर ई.एम. द्रव मिलाएं ।
- अच्छी प्रकार मिलाकर किसी प्लास्टिक की कैन या ड्रम में भरकर सील कर दें ।
- 7 दिन पश्चात् इस घोल को 1:1000 के अनुपात में पानी में मिलाकर मिट्टी या फसल पर स्प्रे करें । बीज उपचार हेतु बीजों को इस घोल में कुछ समय तक डुबोकर रखें ।
2. नुस्खा क्र. 5:
यह नुस्खा नाशीजीवों के नियंत्रण के लिए बनाया जाता है ।
- 600 मि.ली. पानी में 100 ग्राम गुड़ घोलें ।
- इस घोल में 100 मि.ली. सिरका, 100 मि.ली. ब्रांडी या देशी शराब व 100 मि.ली. ई.एम. द्रव मिलाएं ।
- घोल को प्लास्टिक कैन में भरकर सील कर दें ।
- घोल की घातकता बढ़ाने के लिए इसमें लहसुन की कुछ कलियां तथा हरी मिर्च को कुचल सकते हैं ।
- 5 – 10 दिन तक सड़ने दें ।
- प्रतिदिन ढक्कन खोलकर गैस निकालते रहें ।
- 10 दिन में कीटनाशी तैयार हो जाएगा । इसे लगभग 3 माह तक प्रयोग कर सकते हैं ।
- इस कीटनाशी का 1:1000 के अनुपात में पानी मिलाकर पौधों एवं फसलों पर स्प्रे करें ।
3. ई.एम. पौध अरक:
इस नुस्खे में ताजा हरे पौधों को ई.एम. के साथ सड़ाकर उनका अरक प्राप्त किया जाता है
- 2 – 3 किलो हरे पौधे/घास/पत्तियां इत्यादि को कुचलकर पेस्ट बनायें|
- इस पेस्ट को 14 लीटर पानी में डालें ।
स्रोत-
- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ,जबलपुर,मध्य प्रदेश