जामुन की खेती / Jamun cultivation

जामुन के उपयोग

1. जामुन का अर्क मधुमेह, रक्त शर्करा को कम करने में बहुत उपयोगी होता है।
2. फूल उत्तर भारत में शहद के प्रमुख स्त्रोत के रूप में उपयोग किये जाते है।
3. फल में रोग प्रतिरोधी गुण पाये जाते है और बहुत से रोगो के इलाज में दवा तैयार करने में उपयोग किये जाते है।
4. फलों का उपयोग जेली, मुरब्बा, संरक्षित खाद्य पदार्थ, शरवत और शराब बनाने में भी किया जाता है।
5. बीजों का उपयोग मधुमेह में एक प्रभावी दवा के लिए किया जाता है।
6. ताजे फलों का उपयोग खाने के लिए किया जाता है।
7. कच्चे फल के रस का उपयोग सिरका बनाने में किया जाता है।
8. छाल का उपयोग रंगाई और चमड़े के शोधन किया जाता है।

उपयोगी भाग

संपूर्ण वृक्ष

रासायिनक घटक

जामुन के फल में ग्लूकोज, फ्रक्टोस, खनिज, प्रोटीन और कैलोरी पाई जाती है। फलों के बीज में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स पाया जाता हैं।

उत्पादन क्षमता 

 80 – 100 कि.ग्रा. / वृक्ष / वर्ष

उत्पति और वितरण 

यह मूल रूप से भारत, पाकिस्तान और इंडोनेशिया का पौधा है। यह संपूर्ण भारत में पाया जाता है। इसके अलावा इसकी खेती व्यापक रूप से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया सहित फिलीपींस, म्यानमार और अफ्गानिस्तान में की जाती है|


वितरण

जामुन मूल रूप से भारत का पौधा है। यह वृक्ष ऊँचा और सदाबहार होता है। इसलिए इसे एक छायादार वृक्ष या हवादार वृक्ष के रूप में उगाया जाता है। हालांकि इसके फलों को सभी के द्दारा पसंद किया जाता है और उच्च दामों में बेचा जाता है तो भी यह वृक्ष एक बगीचे के पेड़ के रूप में अभी तक नहीं उगाया जाता है। लवणीय, क्षारीय, आर्द्र जलभराव वाले क्षेत्रों में इसे उगाया जा सकता है। नहरो और नदियो के किनारे की मृदा संरक्षण के लिए भी यह वृक्ष उपयुक्त होता है।

 

कुल 
मायर्टेऐसी
आर्डर 
 मायर्टलेस
प्रजातियां 
एस. कुमिनी

वितरण

जामुन मूल रूप से भारत का पौधा है। यह वृक्ष ऊँचा और सदाबहार होता है। इसलिए इसे एक छायादार वृक्ष या हवादार वृक्ष के रूप में उगाया जाता है। हालांकि इसके फलों को सभी के द्दारा पसंद किया जाता है और उच्च दामों में बेचा जाता है तो भी यह वृक्ष एक बगीचे के पेड़ के रूप में अभी तक नहीं उगाया जाता है। लवणीय, क्षारीय, आर्द्र जलभराव वाले क्षेत्रों में इसे उगाया जा सकता है। नहरो और नदियो के किनारे की मृदा संरक्षण के लिए भी यह वृक्ष उपयुक्त होता है।

 

 

स्वरूप
यह एक विशाल और अधिक शाखाओं वाला वृक्ष है।
वृक्ष की छाल भूरे रंग की, अधिक चिकनी और लगभग 2.5 से.मी. मोटी होती है।
पत्तिंया 
पत्तियाँ गुच्छो में 10 से 15 से.मी. लंबाई की और 4 से 6 से.मी. चौड़ाई की होती है।
पत्तियाँ आयताकार, कुछ भाले के समान नुकीली, कठोर, ऊपरी सतह पर चमक के साथ चिकनी होती है।

फूल
फूल सुगंधित, पीले, छोटे और लगभग 5 मिमी व्यास के होते हैं।
फूल मार्च – अप्रैल माह में खिलते हैं।

फल
फल अण्डाकार और प्रारंभिक दिनों में हरे रंग के होते है किन्तु परिपक्व होने पर गहरे लाल – काले रंग में बदल जाते है।
फल मीठे, हल्के खट्टे और कसौले स्वाद के होते है और खाने पर जीभ का रंग बैंगनी कर देते है।
फल जून – जुलाई माह में आते है।

बीज
बीज आयताकार और 1–1.5 से.मी. लंबे होते है।
परिपक्व ऊँचाई 
यह वृक्ष 30 मी. की औसतन ऊँचाई प्राप्त करता है।

किस्म

नाम 
राजा जामुन

विशेषताएँ (Features)
इस किस्म में फल आकार में बड़े, आयताकार और गहरे बैंगनी रंग के होते है।

 

जलवायु
1 जामुन एक सख्त वृक्ष है। इसे प्रतिकूल जलवायु में ऊगाया जा सकता है।
2. यह उष्णकटिबंधीय और सपोष्ण कटिबंधीय दोनों जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है।
3.फूल और फल आने के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
4.युवा पौधे पाले के प्रति संवदेनशील होते है।

भूमि 
1. इसे विभिन्न प्रकार की चूनेदार, लवणीय और दलदली मिट्टी में लगाया जा सकता है।
2.गहरी दोमट मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
3.इसे बहुत भारी और हल्की रेतीली मिट्टी में नही ऊगाया जा सकता है।

मौसम के महीना
बुवाई जून – जुलाई माह में की जाती है।

 

भूमि की तैयारी 
 अंकुरित पौधो के लिए 10 मी. की दूरी पर 1 X 1 X 1 मी. आकार के गड्ढे खोदे जाते है।
 गड्ढ़ो को मानसून के पहले या वसंत ऋतु में ही खोद लेना चाहिए।
 गड्ढ़ो को मिट्टी और अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद को 3 : 1 के अनुपात में मिलाकर भरना चाहिए।
 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 100-150 पौधों की आवश्यकता होती है।


फसल पद्धति विवरण

 ताजे बीजों को 25 X 15 से.मी. की दूरी पर और 4-5 से.मी. की गहराई में बोया जा सकता है।
 बीजो को वाविस्टिन से उपचारित किया जाता है।
 बीजो का अंकुरण बुवाई के 10 -15 दिनों बाद प्रारंभ होता है।
 अंकुरित पौधे अगले मानसून में प्रतिरोपण के लिए तैयार हो जाते है।

 

 

 कीट प्रबंधन (Insects Management)

1. डाईलेरोडेस डयूजेनिया (सफेद मक्खी )

क्षति पहुंचना :
 यह कीट भारत के सभी भागो में वृक्षों को नुकसान पहुँचाता है।
 कभी – कभी जामुन के फलों में मक्खी के हमले की वजह से कीड़े लग जाते है।
नियंत्रण :
 बगीचे में स्वच्छता को बरकरार रखते हुये इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
 प्रभावित फलों को उठाकार मिट्टी में गड़ा देना चाहिए।



2. केरिया सब्टिलिस (लीफ ईटिंग केटरपिलर)

क्षति पहुंचना :
 यह कीट संपूर्ण पौधो को नुकसान पहुँचाता है।
 यह कीट पत्तियों पर हमला करता है जिससे वृक्ष पत्ती रहित हो जाता है।
नियंत्रण :
 500 ली पानी में 625 मिली रोजर मिलाकर छिड़काव करने से इसे नियंत्रित किया जा सकता हैं।

 

रोग प्रबंधन (Disease Management)

1. पर्ण चित्ती
पहचान करना-लक्षण :
 प्रभावित पत्तियों में हल्के भूरे या लाल भूरे रंग के बिखरे हुये धब्बे दिखाई देते है।
कारणात्मक जीव (Causal-Organisms) :
ग्लोमेरेला सिंगुलाटा
नियंत्रण :
 0.02% डाइथेन Z – 75 के छिड़काव द्दारा इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

खाद

 प्रारंभिक स्थिति में 20-25 कि.ग्रा. अच्छी तरह से सड़ी हुई FYM या कम्पोसेट खाद को प्रति पौधे प्रति वर्ष मिला कर देना चाहिए।
 परिपक्व वृक्षों के लिए यही खुराक बढ़ाते हुये 50-60 कि.ग्रा./पौधे/वर्ष दी जानी चाहिए।
 जैविक खाद देने का यही समय फूल आने से पहले का होता है।
 बढ़ते हुये वृक्षों को 500 ग्रा. नत्रजन, 600 ग्रा. फासफोरस और 300 ग्रा. पोटाश प्रति वर्ष देना चाहिए।


सिंचाई प्रबंधन

 खाद के बाद तुरंत बाद सिंचाई की जानी चाहिए।
 युवा पौधों के बेहतर विकास के लिए 6-8 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
 विकसित वृक्षो में अच्छी फल, कलियो के लिए सिंतबर से अक्टूबर माह में और फलों के विकास के लिए मई से जून माह मे सिंचाई की जानी चाहिए।
 समान्यत: 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
 लंबे समय तक सूखे की स्थिति फलो के लिए हानिकारक होती है।


घसपात नियंत्रण प्रबंधन

 पौधे के आधार से उगने वाले अन्य पौधो को समय पर हटा देना चाहिए और बगीचे को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।

संरक्षित-खेती (Protected-Cultivation)

कटाई (Harvesting)

तुडाई, फसल कटाई का समय

 जामुन के फलों की प्रतिदिन तुड़ाई की जाती है।
 फलो के पकने के बाद तुरंत तुड़ाई करना चाहिए क्योकि परिपक्व अवस्था में फल वृक्ष पर नहीं रह सकते है।
 पके फलो की मुख्य पहचान है कि वे गहरे बैगनी या काले रंग के हो जाते है।
 तुड़ाई के लिए कंधे पर कपास के थैले लेकर पेड़ पर चढ़ते है।
 पके हुये फलों को हाथ से तोड़ा जाता है और सभी मामलों में सावधानी बरती जाती है ताकि फलों को संभावित नुकसान से रोका जा सके।

 

 

सफाई

कटाई के बाद फलो से लगे हुए डंठलो को अलग कर फलों को साफ किया जाता है।


धुलाई

फलों की धुलाई साफ पानी से की जाती है़।


आसवन (Distillation)

आसवन द्वारा इसका प्रयोग शराब बनाने में किया जाता है।


निष्कर्षण (Extraction)

गूदे को निकालकर बीजों को अलग किया जाता है।


किण्वन (Fermentation)

यह प्रक्रिया सिरका तैयार करने के लिए की जाती है।


श्रेणीकरण-छटाई (Grading)

छटाई का कोई मानक पैमाना नहीं हैं।


पैकिंग (Packing)

फलों को पहले छिद्रित पालीथीन थैलों में पैक करके पत्तियों से ढ़का जाता है ताकि पकड़ते समय छोटा या कोई भी नुकसान न हो।
फलों को समान्य बांस की टोकरियों में पैक किया जाता है और स्थानीय बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है।


भडांरण (Storage)

1. जामुन के फल बहुत जल्दी खराब होते है और इन्हे समान्य परिस्थतियो में लगभग 2-3 दिन के लिए रखा जा सकता है ।
2. जामुन के फलों को कम तापमान में 3 हफ्ते तक रखा जा सकता है।


परिवहन

1. सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
2. दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्बारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
3. परिवहन के दौरन चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।

अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions)

1.जामुन सिरका

2.जामुन कैप्सूल

3. जामुन चूर्ण

4. जामुन जेम

5. जामुन जेली

6. जामुन शरबत
Source-
  • jnkvv-aromedicinalplants.in
Show Buttons
Hide Buttons