सब्जियों में अधिक उत्पादकता हेतु जल संरक्षण तकनीकें

अधिकतम जल उपयोग क्षमता के लिए उन्नत तकनीकें

1. ड्रिप या टपक सिंचाई

भविष्य में जल कमी की समस्या को देखते हुए इस बहुमूल्य उत्पादन कारक के सही उपयोग की आवश्यकता है। टपक सिंचाई या बूँद-बूँद सिंचाई इसके निदान हेतु सबसे उपयुक्त माध्यम है। भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सब्जियों एवं फलों की सिंचाई ड्रिप के माध्यम से होती है, जबकि पूरे देश में इसकी क्षमता 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सब्जी की सिंचाई करने की है। इस विधि में पानी की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है एवं पानी के अधिकतम उपयोग क्षमता को इस विधि से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें बूँद-बूँद करके पानी प्रत्येक पौधे की जड़ों के पास ड्रिपर के माध्यम से दिया जाता है।

इस विधि में पानी कम अन्तराल पर लेकिन कम मात्रा में दिया जाता है। मृदा जल नमी को हमेशा लगभग क्षेत्र क्षमता पर बरकरार रखा जाता है जो कि सब्जी उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त नमी स्तर होता हैं। ड्रिप सिंचाई से लगभग 25-70 प्रतिशत पानी बचाया जा सकता है जो मृदा, जलवायु, फसल इत्यादि पर निर्भर करता है।

ड्रिप पद्धति से 85-90 प्रतिशत तक जल उपयोग दक्षता हासिल की जा सकती है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में किये गये प्रयोगों में टमाटर, खीरा, भिण्डी एवं ब्रोकली में ड्रिप सिंचाई के प्रयोग से क्रमशः 55-62 प्रतिशत, 34 प्रतिशत, 31 प्रतिशत एवं 38 प्रतिशत तक जल की बचत दर्ज की गई है। ड्रिप सिंचाई के साथ प्लास्टिक पलवार का प्रयोग करने से 15-35 प्रतिशत तक अतिरिक्त जल की बचत के साथ जल प्रयोग की दक्षता में काफी सुधार हुआ।

 

2.छिड़काव या फौव्वारे द्वारा सिंचाई

इस विधि में पानी फौव्वारे के रूप में वर्षा जल की तरह भूमि पर गिराया जाता है। पानी सूक्ष्म छिद्र या नाजल के माध्यम से उपयुक्त दबाव देकर फौव्वारे के रूप में गिराया जाता है। इस विधि का प्रयोग मुख्यतः सभी फसलों एवं सभी प्रकार की मृदा के लिए किया जा सकता है परन्तु यह विधि बलुईए बलुई दोमट एवं असमान भौगोलिक क्षेत्र के लिए ज्यादा उपयोगी होती है। भारी मिट्टी जिनका अन्तःशरण दर 4 मिमीध्घंटा से कम होए के लिए यह विधि लाभकारी नहीं होती। यह विधि उथली जड़वाली एवं जल के प्रति सहिष्णु फसलें जैसे मटर, पालक एवं सब्जियों की पौधशाला के लिए बहुत लाभकारी होती है।

छिड़काव विधि से सिंचाई करके शरद ऋतु में आलू, मटर आदि को पाले के प्रभाव से बचाया जा सकता है। छिड़काव द्वारा सिंचाई में घुलनशील उर्वरकों, कीटनाशकों, फफूँदनाशकों एवं खरपतवारनाशी आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग हवा चलने की दशा में सीमित हो जाता है, क्योंकि इससे पानी का एक समान वितरण सुनिश्चत नहीं किया जा सकता है।

 

मटर की फसल में फौव्वारा विधि से सिंचाई

3. ऊँची उठी हुई क्यारियों में सब्जियों को लगाना

इस विधि का विकास विगत दो दशकों में किया गया है। इस विधि में सब्जियों को ऊँची उठी हुई चैड़ी क्यारियों (75-100 सेमी.) में दोनों किनारों पर लगाई जाती है और पानी क्यारी के दोनों तरफ कूड़ के माध्यम से दिया जाता है जैसा कि निचे चित्र में दर्शाया गया है। चूँकि सिंचाई सिर्फ कूड़ के द्वारा की जाती हैं इसलिए लगभग 50 प्रतिशत भाग हमेशा सूखा बना रहता है। इस विधि से सब्जियों में सिंचाई करने से निम्नलिखित लाभ है-

1. जल बचत (लगभग 25-35 प्रतिशत)

2. जड़ क्षेत्र में उचित वायु एवं जल का अनुपात जो कि जड़ों के विकास के लिए उपयुक्त होता है

3. अन्तःसस्य क्रियाओं एवं दवाओं आदि के प्रयोग में आसानी

4. जलभराव की समस्या नहीं होती है

5. कीड़ों एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है

6. उत्पादन समतल क्यारियों की अपेक्षा 15-25 प्रतिशत अधिक एवं उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी होती है।

7. यह विधि कतारों में बोयी जाने वाली फसलें जैसे सब्जियाँ और अन्तः फसली तथा मल्च आदि प्रयोग के लिए बहुत उपयुक्त होती है।

8. क्यारियों में लगाई सब्जियों में यदि मल्च (पलवार) भीलगा दिया जाय तो लगभग 50 प्रतिशत पानी की बचत के साथ-साथ उत्पादन एवं गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी देखी गयी है।

 

4. आंशिक जड़-क्षेत्र में सिंचाई या एकान्तर कूड़ सिंचाई

आंशिक जड़-क्षेत्र में सिंचाई एक तरह की नियंत्रित परन्तु कम मात्रा में सिंचाई विधि है। इससे उपज में कमी आये बिना जल प्रयोग में कमी की जाती है। यह दो तरह से की जा सकती है, (1) स्थिर एकान्तर कूड़ सिंचाई, (2) चक्रिय एकान्तर कूड़ सिंचाई। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में हुए प्रयोगों में पाया गया कि चक्रिय एकान्तर कूड़ सिंचाई से प्राप्त टमाटर की उपज अच्छी तरह कूड़ द्वारा सिंचित टमाटर की उपज के समतुल्य पाया गया, इसके अतिरिक्त इस तकनीक से 27 प्रतिशत तक जल की बचत हुई। इसमें काली प्लास्टिक के पलवार का प्रयोग करने जल प्रयोग की दक्षता अधिकतम (16.04 कुन्तल उपज प्रति मिमी जल) हुई एवं 54 प्रतिशत जल की भी बचत हुई, जबकि एकान्तर कूड़ सिंचाई मात्र से ही दोनों तरफ कूड़ द्वारा सिंचाई की तुलना में लगभग 39 प्रतिशत पानी की बचत दर्ज की गई।

 

5. मल्च या पलवार का प्रयोग

ड्रिप, स्प्रिंकलर एवं ऊँची उठी हुई क्यारियों के अलावा मल्च या पलवार का प्रयोग सब्जियों के लिए बहुत लाभप्रद है। पलवार मृदा के उपरी सतह से वाष्पीकरण द्वारा होने वालीे नमीं का ह्रास एवं सतह अपवाह (रन-आफ) को कम करता है। इससे मृदा में जल धारण क्षमता बढ़तीे है एवं मृदा नमीं ज्यादा समय के लिए संरक्षित रहती है साथ ही साथ पौधों में बेहतर पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता बढ़तीे है। पलवार मृदा तापमान को नियंत्रित करता है इससे जड़ों का विकास अच्छा होता है।

पलवार जल वाष्पीकरण की दर को 15-50 प्रतिशत तक कम कर देता है। सब्जियों के लिए कार्बनिक तथा प्लास्टिक मल्च दोनों ही प्रभावशाली पाये गये है। कार्बनिक मल्च जैसे सूखी घासें, फसलों के भूसा या पुआल, आदि का प्रयोग विशेषकर ग्रीष्मकालीन सब्जियों में उत्पादन एवं जल की बचत के लिहाज से बहुत उपयोगी आँका गया है। इसी प्रकार प्लास्टिक मल्च, विशेषकर काली पालीथीन का प्रयोग टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, मिर्च एवं कद्दूवर्गीय सब्जियों में प्रभावशाली असर डालता है। इन पलवारों के प्रयोग से सब्जियों में 30-50 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है।

पालीथीन अथवा प्लास्टिक पलवार का प्रयोग ज्यादातर ड्रिप सिंचाई विधि के साथ किया जाता है जो कि अधिक लाभकारी होता है। सब्जी उत्पादन हेतु ज्यादातर काली एवं पारदर्शी प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। प्लास्टिक पलवार की मोटाई 0.012 से 0.031 मिलीमीटर या 25 से 40 माइक्रान तक होती है। टमाटर पर किये गये अध्ययन के अनुसार, काली एवं पारदर्शी प्लास्टिक पलवार से लगभग 11-15 प्रतिशत तक जल की बचत हुई परन्तु जब काली प्लास्टिक के प्रयोग, ऊँची उठी क्यारियों एवं ड्रिप सिंचाई हेतु किया गया तब परंपरागित सिंचाई की तुलना में 50 से 66 प्रतिशत तक जल की बचत दर्ज की गयी।

कार्बनिक पलवार जैसे पुआल, सूखी घास, पौध अवशेष इत्यादि गर्मियों की सब्जियों के लिए काफी प्रभावकारी, पलवार हैं। बसंत-ग्रीष्म ऋतु में भिण्डी में मटर के पुआल का पलवार 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से लगभग 30 प्रतिशत तक जल की बचत हुई। इसी तरह टमाटर में धान के पुआल का पलवार अकेले (7.5 टन/है.) या कूड़ सिंचित उठी क्यारियों में प्रयोग करने से समतल क्यारियों में पौध रोपण की तुलना में क्रमशः 15 एवं 49 प्रतिशत तक जल की बचत हुई।

स्रोत-

  •   भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान

 

Show Buttons
Hide Buttons