पश्चिमी राजस्थान में चूहों की विध्वंसक गतिविधियां बाजरा, मूंग, मोठ, मूंगफली, जीरा, टमाटर, मिर्च, गेहूं, सरसों आदि प्रमुख फसलों में 5 से 15 प्रतिशत तक हानि पहुंचाती हैं । ये फसलें काट कर जब खलिहानों में आती हैं तो चूहे वहां भी पहुंच जाते हैं । वहां फसल को खाते भी हैं और बिलों में भी उठा कर ले जाते हैं । उपज के खलिहान से गोदाम तथा मण्डी तक पहुंचने तक चूहे इनका पीछा नहीं छोड़ते हैं । भण्डारण एवं आवासीय क्षेत्रों में भी चूहों का उत्पात सदैव बना रहता है ।
अक्सर देखा गया है कि किसान खेतों में चूहों की उपस्थिति को अनदेखा कर देता है और नतीजा यह होता है कि चूहों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती रहती है और फसल पकते समय ऐसी स्थिति आ जाती है जब उनका नुकसान रोकने के सारे उपाय विफल रहते हैं । इसलिए चूहों की समस्या से निपटने के लिए उचित समय पर कार्यवाही करना अत्यन्त आवश्यक है ।
चूहे नुकसान क्यों करते हैं ?
इसके दो प्रमुख कारण हैं । प्रथम चूहों के अग्रिम एक जोड़ी दांत, जो कि नुकीले एवं लम्बे होते हैं, जीवन भर बढ़ते रहते हैं और इनकी लम्बाई एक वर्ष में करीब 12 से.मी. हो जाती है । यदि चूहे इनकी बढ़त को नहीं रोकें तो चूहों के मुंह बन्द हो जाएंगें और इन्हें भूखों मरना पड़ेगा । अतः पेट भर खाने के बाद भी चूहे इन दांतों की लम्बाई को न्यूनतम रखने के लिए इनकी घिसाई करते रहते हैं तथा संपर्क में आने वाली प्रत्येक वस्तु को काट डालते हैं चाहे वह फसल हो अथवा अन्य कोई वस्तु हो । इस तरह चूहे खाते कम हैं परन्तु बिगाड़ा अधिक करते हैं । दूसरा, यह सदैव बहुत अधिक संख्या में उपस्थित होते हैं, क्योंकि इनकी प्रजनन क्षमता बहुत अधिक होती है । एक जोड़ा साल में 800 से 1200 चूहे पैदा करने की क्षमता रखता है ।
चूहों की प्रमुख हानिकारक प्रजातियाँ
पश्चिमी राजस्थान में चूहों की लगभग 18 प्रजातियाँ पाई जाती हैं इनमें से खेतों-खलिहानों, चारागाहों में मुख्यतः 4-5 प्रजातियों के चूहे हानिकारक हैं, जैसे मरु जरबिल या भूरा चूहा, भारतीय जरबिल ( बडी रतोल ) रोम युक्त पैरों वाला जरबिल ( छोटी रतोल ), नर्म रोयें वाला मैदानी चूहा, गिलहरी इत्यादि । रिहायशी क्षेत्रों व गोदामों में इनकी 2 प्रजातियाँ जैसे घरेलू चूहा व घरेलू चुहिया हानि पहुंचाते हैं ।
खेतों में चूहा नियंत्रण के उपाय
चूहा नियंत्रण दो प्रकार से किया जा सकता है । प्रथम विधि के अंतर्गत चूहों के आवासीय स्थलों को हटाकर इनका नियंत्रण किया जाता है । यह पाया गया है कि चूहे मेढ़ों पर बिल बनाकर रहते हैं इसलिए खेतों में मेढ़ों की ऊँचाई तथा चैड़ाई यथा संभव कम रखनी चाहिए, जिससे चूहे उस पर बिल ना बना सकें । इसी प्रकार खरपतवार तथा पिछली फसल का कचरा चूहों को आकर्षित करता है व इसमें चूहे ना केवल सुरक्षित रहते हैं, बल्कि मुख्य फसल तैयार होने तक उस पर जीवन यापन भी करते हैं । इसलिए खरपतवार नियंत्रण कर स्वच्छ खेती करने से चूहों की संख्या में कमी की जा सकती है|
दूसरी विधि है चूहेनाशी विष के प्रयोग की । यह चूहा नियंत्रण की सबसे कारगर विधि है जो कि सभी फसलों में अपनाई जा सकती है । फसल में चूहानाशी विष द्वारा नियंत्रण कार्यक्रम कम से कम दो बार करना चाहिए, प्रथम बार फसल बुवाई से पूर्व तथा पुनः फसल पकते समय व आवश्यकतानुसार । आमतौर पर चूहे शंकालु प्रकृति के होते हैं इसलिए चूहा नाशी विष आसानी से नहीं खाते हैं । इसलिए विष को निश्चित मात्रा में खाद्य पदार्थ या खाद्यान्नों को मिला कर चुग्गा बनाना पड़ता है ।
विष चुग्गा बनाने व प्रयोग की विधि
जिंक फाॅस्फाइड
जिंक फाॅस्फाइड एक अत्यन्त तेज असरकारक जहर होने की वजह से इसकी ग्राह्यता व नियंत्रण कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए विष चुग्गे से पहले चूहों को सादा चुग्गा खिलाया जाता है । एक किलो ग्राम सादा चुग्गा बनाने के लिए एक किलो ग्राम अनाज ( बाजरा/गेहूं ) में 20 ग्राम खाने का तेल ( मूंगफली/सरसो/तिल ) मिलाकर चुपड़ लें । इन चुग्गों को चूहों के ताजे बिलों में ( 10-15 ग्राम प्रति बिल की दर से ) डाल देना चाहिए । ताजा बिलों की पहचान के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम खेत में व आसपास मौजूद सभी बिलों को बन्द करें । अगले दिन जितने बिल खुले मिलें, उन्हें ताजा बिल कहा जाता है ।
सादा चुग्गा डालने के 1-2 दिन बाद उन्हीं बिलों में विष चुग्गा डालना चाहिए। विष चुग्गा बनाने के लिए ऊपर वर्णित विधि के अनुसार पहले सादा चुग्गा तैयार कर लें तथा उसमें निश्चित मात्रा में जिंक फाॅस्फाइड पाउडर ( 20 ग्राम प्रति कि.ग्रा. सादा चुग्गा ) बुरक कर अच्छी तरह से मिलाना चाहिए ताकि विष पाउडर खाद्यान्न की तेलीय सतह पर एक जैसा चिपक जाये । इस चुग्गे की 6 से 8 ग्राम मात्रा प्रति बिल की दर से चूहों के ताजे बिलों में खूब अंद तक ढकेल देना चाहिए । इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि जहरीले दाने बिलों के बाहर नहीं बिखरें बरना इनसे अन्य पशु-पक्षी या वन्य जीव को हानि पहुंच सकती है । अगले दिन सूर्योदय से पहले खेत में घूम कर मृत चूहों को इकट्ठा कर लें और उन्हें जमीन में गहरा दबा दें ।
जिंक फाॅस्फाइड चुग्गा देने के बाद भी कुछ चूहे (लगभग 20-25 प्रतिशत) नहीं मर पाते । ऐसी परिस्थिति में जिंक फाॅस्फाइड का प्रयोग पुनः सफल नहीं रहता है, क्योंकि दूसरी बार इस चुग्गे को चूहे छूते तक नहीं हैं । जिंक फाॅस्फाइड चुग्गा देने के 4-5 दिन बाद बचे हुए चूहों के नियंत्रण के लिए ब्रोमेडियोलोन नामक विष चुग्गे को प्रयोग में लेना चाहिए ।
ब्रोमेडियोलोन
इसके लिए पहले क्षेत्र के सभी बिलों को पुनः बंद करें और दूसरे दिन खुले बिलों में ब्रोमेडियोलोन नामक दवा का चुग्गा 15-20 ग्राम प्रति बिल की दर से डालें । ब्रोमेडियोलोन विष का एक किलो ग्राम ताजा चुग्गा बनाने के लिए एक किलो ग्राम अनाज में 20 ग्राम खाने का तेल ( मूंगफली/सरसों/तिल ) चुपड़ कर 20 ग्राम ब्रोमेडियोलोन विष सान्द्र पाउडर ( 0.25:) अच्छी तरह से मिलाना चाहिए ।
इस प्रकार जिंक फाॅस्फाइड तथा ब्रोमेडियोलोन के क्रमवार प्रयोग से खेतों में चूहों को प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है और फसलों को चूहों से बचाया जा सकता है ।
जहां तक हो सके चूहा नियंत्रण का कार्य छोटे क्षेत्र में या एक दो खेतों में न करके बहुत बड़े क्षेत्र में सामूहिक रूप से करना चाहिए । इससे चूहों की खेतों में वापस घुसपैठ की गति बहुत कम हो जायेगी । अगर सिर्फ छोटे क्षेत्र में या एक दो खेतों के चूहे ही नियंत्रित किए तो इससे कोई फायदा नहीं होगा बल्कि नुकसान ही होगा, क्योंकि पड़ोस के खेतों से चूहे वापस उन्हीं खेतों में घुसपैठ शुरू कर देंगे व आपकी मेहनत बेकार हो जायेगी इस लिए बेहतर यही होगा कि पूरा गांव मिलकर काफी बड़े क्षेत्र में चूहा नियंत्रण अभियान छेड़ें |
चूहा नाशी विष के प्रयोग के समय सावधानियाँ
- चूहानाशी विष तथा विष चुग्गा ताले बंद अलमारी में रखें ताकि बच्चों की पहुंच से दूर रहे ।
- विष चुग्गा खुली जगह अथवा हवादार हमरे में ही बनाना चाहिए ।
- चुग्गा बिनाने एवं बिलों में डालने हेतु प्रयोग में लाये गये बर्तन लकड़ी की छड़ी अथवा पत्तों आदि को नष्ट कर देना चाहिए |
- खाली हुए डिब्बों को नष्ट करके जमीन में दबा देना चाहिए । पशु, पक्षियों, मुर्गियों तथा अन्य वन्य जीवों को ध्यान में रखते हुए विष चुग्गा सिर्फ बिलों के अन्दर गहराई में डालना चाहिए ।
- विष चुग्गा प्रयोग करने वाले व्यक्तियों के हाथों में किसी प्रकार का घाव नहीं होना चाहिए । कार्य समाप्त होने के बाद हाथ साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए ।
- नियंत्रण कार्यक्रम के बाद सभी मरे चूहों को एकत्रित करके जमीन में गहरा दबा देना चाहिए, क्योकि इन्हें खा कर कुत्ते, बिल्ली, चील-कौवे तथा अन्य परभक्षी अकारण ही मर सकते हैं ।
स्रोत-
- निदेशक, केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर- 342 003