उचित चारागाह प्रबंधन हेतु सेवण को बिना नुकसान पहुंचाए अधिकतम चारा उपयोग करना जरूरी है । चारे का उपयोग दो प्रकार से किया जा सकता है (1) घास की कटाई कर जानवरों को खिलाना व (2) पशुओं द्वारा चराई ।
घास की कटाई
जनवरों को यदि हरा चारा काटकर खिलाना है तो गुणवत्ता युक्त चारे के लिए पुष्पन की अवस्था उत्तम है । यदि भूमि में नमी बाधक नहीं हो तो सेवण में लगातार कल्ले निकलते रहते हैं । लगभग 50 प्रतिशत कल्लों में पुष्पन होने पर कटाई करें, यद्यपि पुष्पन भी भूमि में नमी, वर्षा की मात्रा, पौधों की उम्र, अंतराशस्य क्रियाएँ, आदि पर निर्भर करता है । पहले के वर्षों में स्थापित पौधों में यह स्थिति कम वर्षा होने पर 20 दिन में तथा सामान्य वर्षा होने पर यह स्थिति 30-35 दिन में आती है ।
साधारणतया एक कटाई से दूसरी कटाई के बीच 35-40 दिन का समय होता है । कम वर्षा वाले वर्ष में जब कोई भी फसल चारे के लिए उपलब्ध नहीं होती तब सेवण के स्थापित चारागाह से तीन सप्ताह में आर्थिक उपज ली जा सकती है । सेवण में कोई पोषण बाधक तत्व न होने के कारण कभी भी चारे को काटकर जानवरों को खिलाया जा सकता हे । यद्यपि कम पैदावार के कारण घास कटाई की लागत ज्यादा आती है, परन्तु अच्छी तरह से स्थापित व उचित प्रबंधन की दशा में चारागाह से अधिक उपज ली जा सकती है । औसत वर्षा की स्थिति में दो-तीन कटाई व अच्छी वर्षा होने पर कटाई प्रति वर्ष ली जा सकती है । घास की कटाई जमीन से 10-15 से.मी. की ऊँचाई पर की जाती है ।
अगर हरे चारे की पैदावार अधिक हो तो इसका कुछ हिस्सा सुखा लेना चाहिए जो चारे की कमी के समय में पशुओं को खिलाना चाहिए । सेवण को जब भी भूमि में उचित नमी मिलती है फूटान शुरू हो जाती है, क्योंकि यह एक प्रकाश से अप्रभावित घास हैं । शीत ऋतु व वर्षा होने पर भी इसकी बढ़वार होती है । हालाँकि उस समय वानस्पतिक वृद्धि कम होती है व पुष्पन ज्यादा होता है । भूमि में नमी कम होने पर राइजोम्स सुषुप्तावस्था में चले जाते हैं । उचित कटाई से सेवण का चारागाह दशकों तक आर्थिक पैदावार देता है ।
पशुओं द्वारा चराई
पशुओं को चारागाह में चराकर भी सेवण का उपयोग किया जा सकता है । चारागाह की स्थापना के प्रथम वर्ष चराई की अनुशंसा नहीं की जाती । वहन क्षमता, जो कि शुष्क क्षेत्र के अच्छे चरागाहों के लिए 25-30 प्रौढ़ पशु इकाई प्रति 100 हेक्टेयर तक वर्ष भर के लिए होती है के अनुसार चराई करानी चाहिए । चराई कम पैदावार वाले चारागाह के लिए कटाई की लागत बचाती है । चराई से पशुओं के खुरों से जमीन खुल जाती है व जमीन में जल शोषण बढ़ता है और चारागाह की उम्र भी बढ़ती है । जानकवरों का गोबर जमीन का उपजाऊपर बढ़ाता है । अत्यधिक व अवैध चराई से चारागाह का उत्पादन कम हो जाता है व अवांछित वार्षिक खरपतवार उग जाते हैं, जो चारागाह की उत्पादकता को प्रभावित करते हैं ।
चारागाह में पशुओं को चराने हेतु तीन प्रकार की चराई पद्धतियाँ, लगातार चराई, परिवर्तित चराई तथा स्थगित चराई हैं । इनमें परिवर्तित तथा स्थगित चराई पद्धतियाँ सबसे उपयुक्त हैं । इस तरह की चराई करने से चारागाह को लम्बे समय तक पैदावार हेतु टिकाऊ रखा जा सकता है । चारागाह स्थापना के वर्ष घास की कटाई करना ही उचित रहता है । आगे के वर्षों में चारागाह की चराई घास की फूटान के 30-35 दिन बाद करानी चाहिए तथा दूसरी चराई प्रथम चराई के 35-40 दिन बाद करानी चाहिए । अगर घास सूख भी जाती है तो भी शुष्क चरागाहों की चराई करवाकर सम्पूर्ण पैदावार का उपयोग किया जा सकता है । जुलाई 2011 में केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर के केन्द्रीय अनुसंधान प्रक्षेत्र पर पहले से स्थापित सेवण घास, प्रभावी वर्षा के दसवें दि नही चराई हेतु उपयुक्त हो गई तथा ग्यारहवें दिन भेड़-बकरियों द्वारा चराई गई ।
चारा उत्पादन
सेवण की जल उपयोग क्षमता, प्रबंधन के साथ-साथ वर्षा की मात्रा व अन्य जलवायु कारकों से प्रभावित होती है, जो 10 से 20 किलोग्राम शुष्क पदार्थ प्रति मिमी प्रति वर्ष हो सकती है । चारागाह का उत्पादन भूमि की दशा, जलवायु, पौधों की उम्र व प्रबंधन से प्रभावित होता है । केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में स्थापित सेवण घास के प्रथम व द्वितीय वर्ष में बीज इकट्ठा करने के बाद क्रमशः 22.6 व 50.8 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष मिला । एक अन्य प्रयोग में स्थापना के छठे वर्ष 14 विभिन्न जिनोटाइप्स से औसतन 30.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा प्राप्त हुआ । कुछ जिनोटाइप्स से 40-42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा प्राप्त हुआ ।
सेवण के विभिन्न जिनोटाइप्स की चारा उपज, पौधों की ऊँचाई व कल्लों की संख्या
विविध जीनोटाइप्स | पौधों की ऊचाई(सेमी.) | कल्लों की संख्या (प्रति पौधा) | हरा चारा (कि./है.) | शुष्क चारा (कि./है.) |
काजरी 317 | 68.0 | 34.3 | 92.92 | 38.71 |
काजरी 319 | 74.1 | 33.9 | 80.11 | 40.07 |
काजरी 351 | 73.3 | 33.8 | 73.80 | 31.41 |
काजरी 20-5 | 58.7 | 31.8 | 52.31 | 21.43 |
काजरी 20-11 | 60.2 | 37.9 | 56.19 | 23.83 |
काजरी 30-5 | 67.4 | 38.2 | 76.47 | 33.79 |
काजरी 30-7 | 81.8 | 41.1 | 85.75 | 42.34 |
काजरी 40-4 | 74.9 | 40.3 | 59.47 | 26.38 |
काजरी 20-9 | 72.1 | 42.6 | 47.97 | 22.32 |
काजरी 20-4 | 71.3 | 41.3 | 61.14 | 26.74 |
काजरी 1857 | 75.2 | 41.5 | 63.86 | 28.99 |
काजरी 1952 | 72.7 | 47.2 | 73.55 | 31.11 |
काजरी 1831 | 71.1 | 38.4 | 51.81 | 24.39 |
काजरी 1846 | 84.5 | 45.5 | 97.47 | 42.06 |
सेवण घास में औसतन 100-120 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हो सकता है, जिससे 35-40 क्विंटल शुष्क पदार्थ मिलता है । अच्छे चारागाह से उचित प्रंधन करने पर 75 सेे 100 क्विंटल शुष्क पदार्थ प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त किया जा सकता है ।
चारागाह का रखरखाव
उचित प्रबंधन की स्थिति में चारागाह दशकों तक चारे की पैदावार देता रहता है । अगर उचित देखभाल न की जाए तो कम उपजाऊ झाड़ियाँ, वार्षिक घासें व खरपतवार अनियंत्रित तरीके से उगकर सेवण की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं । सेवण के चारागाह से प्रतिवर्ष उचित समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए । जमीन की उचित भौतिक दशा बनाए रखने के लिए अंतराशस्य क्रियाएं अवश्य करें । चारागाह में भूमि व जल संरक्षण का भी समुचित प्रबंधन होना चाहिए ।
उचित समय पर उचित विधि से चराई करने से चारागाह की उत्पादकता टिकाऊ बनी रहती है । चराई के बाद यदि तने बचे हुए हों तो उनकी कटाई अवश्य करें । यदि चराई न की जा सके तो, फूल आने पर कटाई करें । अवैध चराई व कटाई को न होने दें । चारे की अधिकता की स्थिति में इसे सुखाकर ’हे’ बनाकर चारे की कमी के समय के लिए संरक्षित करना चाहिए ।
चारे की गुणवत्ता
सेवाण घास का चारा उच्च गुणवत्ता वाला होता है व यह शुष्क क्षेत्र के सभी पशुओं द्वारा बहुत पसंद किया जाता है । छोटे जानवर जैसे भेड़, बकरी आदि इसको पुष्पन के समय बहुत पसंद करते हैं । सेवण घास की ’हे’ में अंजन घास की ’हे’ के समान ही अपरिष्कृत प्रोटीन व इथर एक्सट्रेक्ट होता है, कार्बनिक पदार्थ, अपरिष्कृत रेशा, अम्ल डिट्रजेन्ट रेशा ( ।क्थ्), सेलुलोस व लिगनिन ज्यादा होते हैं । जब चारागाह का उचित प्रबंधन किया जाए व पर्याप्त नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश मिलें तो शुष्क पदार्थ में अपरिष्कृत प्रोटीन 15 प्रतिशत तक पहुंच जाती है ।
बालें निकलते समय सेवण के चारे का रासायनिक संघटन
घास की जाति | का.प. | अ.प्रो. | ई.ई. | अ.रे. | एन.एफ.ई. | ए.डी.एफ. | सेलुलोज | लिगनिन |
सेवण | 91.14 | 9.94 | 1.84 | 39.23 | 40.13 | 48.31 | 40.39 | 7.92 |
अंजन घास | 90.35 | 9.35 | 1.86 | 43.94 | 42.26 | 35.12 | 7.14 |
आर्थिक लाभ
सेवण चारागाह स्थापना की लागत 4000-5000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें बाड़ लगाने का खर्च सम्मिलित नहीं है । स्थापित चारागाह से चारा उत्पादन की लागत उपरोक्त राशि से कम ही आती है । चारागाह लगाने के द्वितीय वर्ष से उत्पादन की लागत 3000-4000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है । वर्षा की मात्रा व वितरण के अनुसार चारे का मूूल्य घटता-बढ़ता रहता है । औसत मूल्य 300 से 350 रुपये प्रति क्विंटल सूखा चारा मिलता है । एक हेक्टेयर चारागाह से 5000 से 7000 रुपये शुद्ध लाभ प्रति वर्ष लिया जा सकता है । इसके साथ-साथ चारागाह से प्रत्यच व अप्रत्यक्ष लाभ जैसे भूमि का कटने से रुकना, भूमि में कार्बनिक पदार्थ बढ़ने से उपजाऊपन बढ़ना, जैव विविधता का संरक्षण, ग्रामीणों को रोजगार, दुगध उद्योग का विकास, मरुस्थलीकरण का रुकना इत्यादि बहुत ज्यादा हैं । वनचारागाह पद्धति में वृक्षों से चारे के साथ-साथ जलाऊ लकड़ी भी मिलती है ।
चारा संरक्षण व भंडारण
अच्छे वर्षा वाले वर्ष का अधिक उत्पादन व मानसून ऋतु के उत्पादन को चारे की कमी के समय व जब हरा चारा उपलब्ध न हो उस समय के लिए संरक्षित किया जा सकता है । उचित संग्रहण पर सेवण का चारा 8-10 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है । राजस्थान में चारा भण्डारण की प्रचलित विधि है ।
’हे’ बनाना
चरे की उचित उपलब्धता होने पर, इसका कुछ हिस्सा ’हे’ (हरा चारा सुखाकर) के रूप में चारे की कमी के समय के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए । ’हे’ बनाने के लिए घास को काटकर, सुखाकर 85-90 प्रतिशत शुष्क पदार्थ की अवस्था में संग्रहित किया जाता है । उच्च गुणवत्ता की ’हे’ हरे रंग की, पत्तीदार और लचीली व किण्वन रहित होनी चाहिए । उचित अवस्था में काटी गई व संग्रहण के समय 20 प्रतिशत या इससे कम नमी की अवस्था वाली घास से तैयार की कई ’हे’ जानवरों के लिए उत्तम होती है । शुष्क क्षेत्रों में चारा साधारणतया सूखी अवस्था में काटा जाता है जब ज्यादातर पत्तियाँ गिर जाती हैं, जिससे उसकी गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है ।
’हे’ बनाने के लिए घास को दिन के समय काटना चाहिए, जब ओस पूरी तरह से सूख जाए । कटाई के समय जमीन गीली नहीं होनी चाहिए अन्यथा घास समान रूप से नहीं सूखेगी । ’हे’ बनाने के लिए घास की कटाई लगभग 50 प्रतिशत कल्लों में बालें निकलते समय करें । कटाई के बाद घास को ज्यादा समय धूप में नहीं रखना चाहिए । सुखाते समय ध्यान रहे कि पत्तियाँ अलग न हों । पत्तियों व केरोटिन के बचाव हेतु सुखाने का कार्य सुबह के समय ही करना उचित रहता है ।
जब वर्षा होने वाली हो तो चारे को त्रिपाल आधार या कम ऊँचाई की बाड़ पर भी सुखाया जा सकता है । त्रिपद आधार 5 से.मी. मोटे, 2-3 मीटर लम्बे मजबूत लकड़ी के डंडों या धातु की छड़ से बनाए जाते हैं । एक त्रिपद पर 250-300 किलोग्राम ताजा चारा आ जाता है । जल्दी सुखने के लिए चारे को जल्दी ही जमीन से उठा लेना चाहिए । ’हे’ के संग्रहण के लिए किसी खास संरचना के संग्रहक की आवश्यकता नहीं होती । ’हे’ को छायादार जगह पर ढेर बनाकर रखा जा सकता है, जहाँ जमीन से ’हे’ से सम्पर्क न हो । इस प्रकार से संग्रहित ’हे’ को आवश्यकतानुसार जानवरों को खिलाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है ।
बीज उत्पादन
अधिक पशु घनत्व व जलवायु की विषमता के कारण थार मरुस्थल में प्राकृतिक चराई भूमि की दशा अच्छी नहीं है । पशु व भूमि विकास से जुड़े लोगों एवं संस्थाओं द्वारा इस क्षेत्र की चराई भूमि के विकास की आवश्यकता महसूस की जाती रही है । इस कार्य के लिए उच्च गुणवत्ता के बीजों की आवश्यकता पड़ती है जो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाते । यद्यपि सेवण को वानस्पतिक प्रजनन द्वारा भी लगाया जा सकता है, लेकिन वे भी चारागाह लगाने के स्थान पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाती । बड़े क्षेत्र में वानस्पतिक प्रजनन द्वारा चारागाह लगाना महंगा पड़ता है व कठिन होता है । इस विधि से चारागाह लगाने हेतु पानी की सनिश्चितता भी आवश्यक है ।
अतः बड़े क्षेत्र में चारागाह लगाने के लिए सीधे बीज द्वारा चारागाह लगाना ही एक उचित समाधान है । सेवण घास के बीज की माँग की तुलना में उपलब्धता बहुत कम है । एक अनुमान के अनुसार सेवण के बीज की वर्तमान आवश्यकता लगभग 600 मैट्रिक टन है जो वर्ष 2015 तक 622 मैट्रिक टन हो जायेगी । केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में सेवण घास के बीजों का उत्पादन किया जाता है जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है ।
उष्ण क्षेत्र की अन्य घासों की तरह सेवण की बीज उत्पादकता कम होती है । सेवण के बीज, पुष्पक्रम (बाल) में ऊपरी दिशा से पकना शुरू होते हैं व पकने के उपरान्त जल्दी ही जमीन पर गिर जाते हैं । अतः पकने के क्रम से बीजों को इकट्ठा करना बहुत ही श्रम वाला कार्य है व बीज इकट्ठा करने की लागत ज्यादा रहती है ।
इससे सभी बीजों को इकट्ठा करना मुश्किल होता है व बीज उत्पादन कम होता है । यद्यपि इस विधि से इकट्ठे किए गए बीजों का अंकुरण अन्य विधियों की तुलना में अधिक होता है । अतः केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में बीज इकट्ठा करने की नई विधियाँ विकसित की गई हैं ।
बीज इकट्ठा करने की उचित विधियाँ
पकने के अनुसार बालों से बीजों को इकट्ठा करने पर श्रम ज्यादा लगता है व बीजों के गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है । बीज पकने के बाद जल्दी ही जमीन पर गिर जाते हैं । कुछ लोग जमीन पर गिरे हुए बीजों को भी इकट्ठा करते हैं ।
इस तरह से इकट्ठा बीजों में यह जरूरी नहीं कि उनमें दानें हों । जमीन पर गिरे हुए बीजों के दाने चीटियों व पक्षियों द्वारा खाये हो सकते हैं । इस तरह से इकट्ठे किए हुए बीज की भौतिक शुद्धता बनाए रखना असंभव है । अच्छे गुणवत्तायुक्त बीजों की शुद्धता 80 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए । इसलिए गुणवत्तायुक्त बीजों का उत्पादन एवं इकट्ठे करने के लिए कुछ नई तकनीकों का विकास किया गया है । बीजों को, पकने के अनुसार बालों से इकट्ठा करने के लिए बालों को निकलने के 20 दिन बाद काटा जाता है तथा रुपान्तरित विधि से बीजों को इकट्ठा करते हैं ।
अ. बालों को निकलने के 20 दिन बाद काटना
बाल निकलने के बीस दिन बाद काटना, 15, 25 व 30 दिन की बालों से उचित पाया गया । बीस दिन की बालों में प्रति बाल उगने योग्य दाने 25 दिन की बालों से अधिक पाए गए । बीज दिन की बालों का रंग ऊपर से नीचे की तरफ हरे से सफेद-पीला हो जाता है व बीज गिरने शुरू हो जाते हैं । बीज की अधिक उपज के लिए 25 दिनों तक की बालों को काटा जा सकता है । बालें काटने के बाद पहले छाया में सुखा लेते हैं व बाद में धूप में सुखाते हैं तथा थे्रसिंग कर बीजों को अलग-अलग कर लेते हैं । इस तरह से इकट्ठे किए गए बीजों की भौतिक शुद्धता एवं गुणवत्ता अधिक होती है ।
ब. रुपान्तरित विधि
बालों को ऊपर के 1-2 बीजों के पकने की अवस्था के समय काटना भी उचित विधि पाया गया है । इस विधि में जब बाल के ऊपर 1-2 बीज पक जाते हैं तब पूरी बाल काट ली जाती है । इसके बाद छाया में, फिर धूप में सुखाकर बीजों की थे्रसिंग कर ली जाती है । इस विधि में श्रम की बचत होती है, लागत कम लगती है व बीज जमीन पर नहीं गिरते जिससे ज्यादा से ज्यादा बीज की प्राप्ति होती है ।
सेवण में इस विधि की क्षमता का आंकलन करने हेतु वर्ष 2002 से 2004 में एक अध्ययन किया गया, जिसमें दानों का औसत अंकुरण 37.0 से 53.0 प्रतिशत व बीजों का अंकुरण 15.0 से 38.8 प्रतिशत के मध्य पाया गया । बालों की लम्बाई 8.4 से 10.5 से.मी., प्रति बाल बीज संख्या 17.6 से 19.8 एवं प्रति बाल दानों की संख्या 12.3 से 24.4 दर्ज की गई । इन आंकड़ों से यह सिद्ध होता है किइस विधि से सेवण घास में गुणवत्तायुक्त बीज प्राप्त किया जा सकता है ।
सेवण के बीज इकट्ठा करने की रुपान्तरित विधि में बालों के लक्षण व बीजों का अंकुरण (बीज इकट्ठा करने के 2 महीने बाद )
बालों की कटाई का समय | बालों की लम्बाई (सें.मी.) | बीज/बाल | दानें/ बाल | 1000 बीजों का वजन(ग्राम) | 1000 दानों का वजन(ग्राम) | बीज अंकुरण(%) | दानों का अंकुरण(%) |
नवम्बर 2002 | 8.4 | 17.6 | 13.9 | 7.14 | 1.30 | 15.0 | 37.0 |
मार्च 2003 | 10.5 | 19.8 | 18.2 | 6.68 | 1.18 | 15.3 | 38.5 |
अक्तूबर 2003 | 8.7 | 19.2 | 12.3 | 7.65 | 1.39 | 38.8 | 53.3 |
मार्च 2004 | 9.2 | 19.2 | 24.4 | 8.02 | 1.32 | 25.0 | 42.3 |
औसत | 9.2 | 19.0 | 17.2 | 7.37 | 1.30 | 23.7 | 42.8 |
बीज उत्पादकता
सेवण में बीज उत्पादकता बहुत से कारकों से प्रभावित होती है । औसत उत्पादनकता 10 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है । एक प्रयोग में हमने 337 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष तक बीज उत्पादन लिया है, जो कि बहुत अच्छी उपज है । बीज इकट्ठा करने के लिए अगस्त से नवम्बर महीने का समय उचित है, परन्तु मार्च-अप्रैल में भी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है । भूमि में यदि उचित नमी हो, पौधों की उम्र बहुत ज्यादा न हो, पौधों की उचित कटाई की गई हो व भूमि में पर्याप्त वायु संचार हो तो बीजों की पैदावार अधिक होती है । पुराने चारागाह में बीज की उत्पादकता कम होती है ।
अतः इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए घासों को मानसून से पहले काट लेना चाहिए तथा मानसून की प्रभावी वर्षा के बाद ट्रेक्टर या कस्सी से गुड़ाई करनी चाहिए एवं 20 किलोग्राम नत्रजन का जमीन पर छिड़काव करना चाहिए । घास की वृद्धि अधिक होने पर बढ़वार के 30-35 दिन बाद कटाई कर लेनी चाहिए और फिर बीजों की पैदावार के लिए छोड़ देना चाहिए । इस तरह से कल्लों की वृद्धि लगभग एक साथ होती है व बालें समान रूप से निकलती है । इस तरह से कल्लों की वृद्धि लगभग एक साथ होती है व बालें समान रूप से निकलती हैं । उचित समय पर बालें काटकर, सुखाकर एवं थे्रसिंग कर अधिक पैदावार ली जा सकती है । बीज उत्पादन के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 100 से.मी., 75 व 50 से.मी. से उचित पाई गई है ।
पंक्तियों की दूरी व उर्वरकों की मात्रा से साथ सेवण घास के विभिन्न लक्षण ( वर्ष 2000-2004 का औसत )
उपचार | पौधों की ऊंचाई (सेमी) | शुष्क पदार्थ उपज किविन्टल/है. | बीज उपज (किलो/है.) |
पंक्तियों की दूरी (सेमी) | |||
50 | 117.6 | 56.3 | 25.2 |
75 | 124.8 | 52.4 | 28.5 |
100 | 123.5 | 54.7 | 31.1 |
उर्वरकों की मात्रा(किग्रा/है.) | |||
20 N + 40 P2O5 | 120.3 | 51.6 | 28.1 |
40 N + 40 P2O5 | 121.9 | 55.8 | 25.9 |
60 N + 40 P2O5 | 123.6 | 56.0 | 30.8 |
सेवण का चारा उत्पादन एवं उपयोगिता से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम
1. किसानों के लिए
- सेवण आधारित चारागाह का विकास एवं पशुपालन
- कृषि फसलों की आय सेवण चारा उत्पादन
- सेवण आधारित कृषि वनचारागाह पद्धति की स्थापना एवं रखरखाव
- सेवण चारागाह में कटाई एवं चराई प्रबंधन
- सेवण के बीज उत्पादन एवं रखरखाव
- सेवण घास संरक्षण एवं प्रबंधन
2. स्रकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं हेतु
- व्यवसायिक चारागाह का विकास, प्रबंधन एवं पशुपालन
- समुदायों द्वारा सीपीआर पर चारागाहों का विकास रखरखाव एवं प्रबंधन
- सेवण आधारित भूमि का विकास, जल एवं मिट्टी प्रबंधनऽ
- संयुक्त वन – प्रबंधन में सेवण आधारित उत्पादन एवं प्रबंधन
- सेवण आधारित चारा संरक्षण एवं प्रबंधन
- सेवण घास बैंक की स्थापना
- सेवण बीजों का उत्पादन एवं रखरखाव
3.शोध कार्य हेतु
- सेवण के चारागाहों के विकास एवं प्रबंधन हेतु टिकाऊ तकनीक का विकास करना
- सेवण घास के जनन द्रव्यों का संरक्षण एवं इकट्ठा करना एवं अधिक उत्पादकता वाली किस्मों का विकास करना
- सेवण आधारित समुदायों की सहभागिता से चारा बैंक का विकास
- सेवण आधारित पशुओं का प्रबंधन
- सेवण आधारित पशु आहार तैयार करना
सेवण घास की स्थापना हेतु सारणीबद्ध कृषि क्रियाएं व अनुकूल दशाएं ।
क्रम संख्या | कारक | अनुकूल दशा/क्रिया |
1. | भूमि | बलुई व दोमट बलुई |
2. | वार्षिक वर्षा | 100-500 मिमी |
3. | चारागाह सुरक्षा | 1.25 मीटर गहरी व 1.5 मीटर चौड़ी खाई युक्त मेड |
4. | खेत की तैयारी | 1 से 2 जुताई |
5. | बुआई का समय | जुलाई का महीना सर्वोत्तम |
6. | बीज दर | 6-7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर |
7. | बुआई विधि | (अ).छिडकवा विधि-बीज द्वारा (ब).बीजों को पंक्तियों में बोना (स).पौध द्वारा (द).राइजोम्स (rooted slips) द्वारा |
8. | अन्तराल | पौधा से पौधा – 75 सेमी, पंक्ति से पंक्ति – 75 से 100 सेमी |
9. | बीज गहराई | उथली बुआई, बीजों पर कम से कम मिट्टी |
10. | खरपतवार निकलना व अन्तराश्स्य | दो बार |
11. | खाद व उर्वरक | 40 किलोग्राम नत्रजन व 20 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर |
12. | चारा उपज | दो कटाई से 100-120 किविन्टल हरा व 35-40 किविन्टल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर |
13. | चारा गुणवत्ता | उचित समय पर कटाई/चराई से 7-14% अपरिष्कृत प्रोटीन मिलती है | |
14. | चारागाह उपयोग | प्रथम वर्ष चारे की कटाई करें | कटाई/चराई पुष्पन के समय (एक कटाई से दूसरी कटाई के बीच 35-40 दिन का अन्तराल)| चराई नियंत्रण विधि से कराये | |
15. | चारा संग्रहण | चारे की अधिकता की स्थिति में ‘हे’ बनाकर चारे का संग्रहण करें | |
16. | चारा उपज | औसत 10-40 किलोग्राम / प्रति हेक्टेयर |
17. | बीज गुणवत्ता | अंकुरण – 25-30%, भौतिक शुद्धता 80% |
18. | चारागाह की उम्र | 10 वर्ष से ज्यादा | |
स्रोत-
- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर – 342 003 ,राजस्थान