चंदन की खेती / Sandalwood plantation

पौधे का परिचय

श्रेणी (Category) : सगंधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : वृक्ष
वैज्ञानिक नाम : संतालुम एल्बम एल
सामान्य नाम : चंदन

 

पौधे की जानकारी

उपयोग

चंदन का उपयोग इत्र और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में आधारीय गुण के रूप में किया जाता है।
चंदन धूप और बुखार के प्रभाव को दूर करता है और ताजी अनुभूति प्रदान करता है।
चंदन का काढ़ा मूत्र रोग के दोष को कम करने में दिया जाता है।
अर्ध सर पीड़ा में चंदन का पेस्ट या तेल नाक में लगाकर आराम प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
चंदन की लकड़ी का पेस्ट जलन होने पर, फोड़े में और त्वचा संबंधी रोगों में किया जाता है।
इसके अलावा नक्काशी में इसका उपयोग किया जाता है।

उपयोगी भाग

बीज
जड़
तेल

उत्पति और वितरण

यह मूल रुप से भारत में पाये जाने वाला पौधा है। भारत के शुष्क क्षेत्रों विंध्य पर्वतमाला से लेकर दक्षिण क्षेत्र विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में में पाया जाता है। इसके अलावा यह इंडोनेशिया, मलेशिया के हिस्सों, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी पाया जाता है।

वितरण

चंदन वृक्ष सन्तालेऐसी कुल का वृक्ष है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी शाखायें लटकती हुई होती है।

 

वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत

कुल

सन्तालेऐसी

आर्डर

सन्तालालेस

प्रजातियां

एस. एल्बम

वितरण

चंदन वृक्ष सन्तालेऐसी कुल का वृक्ष है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी शाखायें लटकती हुई होती है।

 

आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप

स्वरूप

यह एक छोटा, सीधा, अरोमिल और सदाबहार वृक्ष है जो काफी बड़े समूहो में होता है।
परिधि 2.4 मीटर की होती है।

पत्तिंया

पत्तियाँ एक दूसरे की ओर पतली, 3.5 से 4 से.मी चौडी, 8 से.मी तक लंबी अण्डाकार और गहरे हरे रंग की होती है।

फूल

फूल नियमित और छोटी कक्षा में होते है।
सहपत्र समान्यत: छोटे होते है।
पुंकेसर 4 से 5 की संख्या में होते है।

फल

फल गोलाकार, 1.25 से.मी. व्यास के और परिपक्व होने पर काले रंग के होते है।

बीज

बीज गोलाकार होते है।

परिपक्व ऊँचाई

यह वृक्ष 16 से 18 मी. की ऊँचाई तक बढ़ सकता है।

 

बुवाई का समय

जलवायु

यह वृक्ष समुद्र सतह से 600 से 1050 मीटर की ऊँचाई पर बहुत अच्छी तरह पनपता है।
जहाँ वर्षा 60 से 160 से.मी के बीच होती है वे क्षेत्र चंदन के लिए महत्वपूर्ण होते है।
120 – 300C के बीच का तापमान इसके विकास के लिए उपयुक्त होता है।

भूमि

चंदन वृक्ष मुख्य रूप से लाल दोमट मिट्टी, रूपांतरित चट्टानों मुख्य शैलो में ऊगता है।
ये वृक्ष उथले, चट्रटानी मैदान और पथरीली या बजरी मिट्टी, चूनेदार मिट्टी सहन कर सकते है।
इसे काली मिट्टी पर नहीं उगाया जा सकता है।
खनिज और नमी युक्त मिट्टी जैसे कि जलोढ़ मिट्टी में इसका विकास कम होता है।
कम खनिज युक्त मिट्टी में चंदन के तेल की उपज बेहतर होती है।
किसी भी प्रकार की जल सघनता को यह वृक्ष सहन नहीं करता है।

 

बुवाई-विधि

भूमि की तैयारी

अप्रैल – मई के महीने में तैयार की जाती है।
बुवाई से पहले एक गहरी जुताई की आवश्यकता होती है।
2-3 बार जोतकर मिट्टी क्षमता को बढ़ाया जाता है।
क्यारियों के बीच 30-40 से.मी. की दूरी होना चाहिए।

 

फसल पद्धति विवरण

प्राकृतिक पुनर्जनन

चंदन का वृक्षों को अधिकांशत: प्राकृतिक वनो से ही प्राप्त किया जाता है। हांलाकि ये निजी क्षेत्रों में लगाये गए बागानों और पेड़ो से भी छोटी मात्रा से भी प्राप्त होते है।
इसका प्रजनन पक्षियों द्वारा बिखराये गये बीजों से और गुल्म से भी होता है।
जंगलो में मानसून के तुरंत बाद अंकुरण होता है परन्तु अत्याधिक खरपतवार की वजह से अंकुरित पौधे मर जाते है।

कृत्रिम पुनर्जनन

बुबाई की सबसे पसंदीदा विधि बीजों द्दारा है।
प्रसंस्करण बीज के लिए बीज जनवरी – मार्च के दौरान एकत्र किये जाते है।
मानसून की पहली बौछार के तुरंत बाद चंदन के बीजों को चयनित जगह में बोया जाता है।
बीज अंकुरण के लिए बुवाई के बाद 40-90 दिनों का समय लेते है।

 

पौधशाला प्रंबधन

नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation) 

कुछ क्षेत्रों में जहाँ चंदन के पेड़ो को छोटे पैमाने में उगाया जाता है वहाँ पर नर्सरी लगाई जाती है और उन्हे मुख्य खेत में प्रत्यारोपित किया जाता है।
इसके लिए अक्टूबर माह में एकत्रित फलों से ताजे बीज एकत्रित किये जाते है और अच्छी तरह तैयार नर्सरी क्यारियों में बोया जाता है।
गिबरेलिक अम्ल का प्रयोग प्रसप्ति अवस्था को कम करने में प्रभावी होता है और इससे अंकुरण शीघ्र और एक समान बना रहता है।
जब अंकुरित पौधे 25-50 से.मी. की ऊँचाई के हो जाते है और नीचे का भाग गहरा हो जाता है तब प्रतिरोपण के लिए अनुकूल समय होता है।

रोपाई की विधि

अंकुरित पौधों को मई से अक्टूबर माह में 2.5 से 4 मी दूरी पर प्रतिरोपित किया जाता है।

 

चंदन के रोग प्रबंधन

१.कील

पहचान करना-लक्षण

यह रोग संक्रमित शाखाओ की पत्तियो के आकार और गाठो की लंबाई को गंभीर रूप से कम कर देता है।
इससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और अंत में लाल हो जाता है। बाद में पत्तियाँ मर जाती है।

नियंत्रण

इस रोग में ट्रेट्रासाइक्लिन्स का उपयोग प्रभावशाली होता हैं।

उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती

खाद

इसे अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।
फसल वृद्धि के दौरान साप्ताहिक खाद की आवश्यकता होती है।

सिंचाई प्रबंधन

मानसून में वृक्ष तेजी से बढ़ते है परन्तु गर्मियों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सिंचाई की आवश्यकता वर्ष भर नहीं होती है परन्तु मानसून के बाद दिसम्बर से मई माह तक सिंचाई की जाती है।
ड्रिप विधि से या माइक्रो स्प्रिंक्लिर द्दारा या प्रभाह सिंचाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सिंचाई मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता और मौसम पर निर्भर करती है।

घसपात नियंत्रण प्रबंधन

निंदाई प्रथम वर्ष में की जाती है। यदि आवश्यक हो तो दूसरी वर्ष भी की जाती है।

 

चंदन की कटाई

तुडाई, फसल कटाई का समय
चंदन की रसदार लकड़ी और सूखी लकड़ी दोनो का सीमाकंन अलग – अलग होता है। जड़े भी सुगंधित होती है।
इसलिए चंदन के वृक्ष को जड़ से उखाडा जाता है न कि काटा जाता है।
जब वृक्ष लगभग 20 साल पुराना हो जाता है तब लकड़ी प्राप्त होती है और जीवन पर्यन्त प्राप्त होती है।
जब वृक्ष 30 से 69 वर्षो का हो जाता है और परिधि 40-60 से.मी. की हो जाती है तब लकड़ी अच्छी प्राप्त होती है।
जिस पेड़ की परिधि 60 से.मी. या उससे अधिक होती है उसकी कटाई मानसून के पहले करना चाहिए।
जड़ से उखाडने के बाद पेड़ को टुकड़ो में काटा जाता है और डिपो में रसदार (कीमती) लकड़ी को अलग किया जाता है।

 

फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन

आसवन (Distillation) 

चंदन तेल के उत्पादन के लिए भाप आसवन विधि प्रयोग की जाती है।
एक मोटर चालित कुल्हाडी द्दारा चंदन को छोटे – छोटे टुकडो में विभाजित किया जाता है और फिर एक तेजी से घूर्णन डिस्क जिस पर 6 चाकू लगे होते है। उसमें चंदन के टुकड़ो को डाला जाता है।
पानी आसवन विधि जो कि छोटे उत्पादन इकाइयों में उपयोग की जाती है। इसमें चंदन पाउडर को एक ताँबे के बर्तन में 48 घंटो के लिए भिगोया जाता है और फिर खुली आग में गर्म किया जाता है।

निष्कर्षण (Extraction) 

निष्कर्षण के लिए साल्वेंट विधि का प्रयोग किया जाता है।

परिवहन

सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचाता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।

अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) 

चंदन तेल
चंदन पाउडर
चंदन साबुन
चंदन इत्र

 

Source-

  • jnkvv-aromedicinalplants.in

One thought on “चंदन की खेती / Sandalwood plantation

  1. बीज कहाँ से मिलेगा ये किसी ने नहीं बताया जी ?

Comments are closed.

Show Buttons
Hide Buttons