ग्वार सूखा रोधी गुणों वाली महत्वपूर्ण फसल है । यह दाना, सब्जी एवं हरी खाद के लिए उगाई जाती है । इसके दाने में 30 से 33 प्रतिशत गोंद पाया जाता है । राजस्थान देश में ग्वार का मुख्य उत्पादक राज्य है । राज्य में लगभग 29 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में ग्वार उगाई जाती है । राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में यह लगभग 27 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है । लेकिन इसकी औसत उपज बहुत कम (395 किग्रा./हैक्टेयर) है । निम्न उन्नत विधियों के प्रयोग से औसत उपज में 50 से 60 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है
ग्वार की उन्नत किस्में
किस्म | पकने की अवधि (दिनों में) | औसत उपज (कु./है.) | विशेषताएं |
आर.जी.सी.- 936 | 80-90 | 8-10 | अधिक शाखायें तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशीलता |
आर.जी.एम.- 112 | 80-95 | 9-10 | बैक्टीरियल ब्लाइट सहन करने की क्षमता |
आर.जी.सी.- 1003 | 85-95 | 8-12 | गोंद की मात्रा 29 से 32 प्रतिशत |
आर.जी.सी.- 1017 | 90-100 | 10-12 | पौधे अधिक शाखाओं वाले तथा प्रोटीन की मात्रा 29-33 प्रतिशत |
भूमि एवं उसकी तैयारी
ग्वार की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है लेकिन दोमट व बलुई दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है । भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था तथा उसका पी.एच.मान. 7 से 8.5 तक होना चाहिए । ग्वार के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करने के बाद एक हैरो से क्रौस जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए । इसके उपरान्त एक कल्टीवेटर से जुताई करना पर्याप्त रहता है ।
बीज एवं बुवाई
ग्वार की बुवाई सामान्यतः वर्षा आने पर 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए । एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 15 किलो बीज पर्याप्त रहता है । ग्वार की बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से.मी. से 50 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. पर करनी चाहिए ।
खाद एवं उर्वरक
ग्वार दलहनी फसल होने के कारण नाइट्रोजन की कुछ आपूर्ति वातावरण की नाइट्रोजन को जड़ों में उपस्थित गाँठों द्वारा एकत्र करके की जाती है । लेकिन फसल की प्रारम्भिक अवस्था में पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 40 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है । सम्पूर्ण नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की मात्रा बुवाई के समय खेत में डाल देनी चाहिए । इसके अतितिक्त ग्वार के बीज को बुवाई से पहले राइजोवियम कल्चर की 600 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी व 250 ग्राम गुड़ के घोल में 15 कि.ग्रा. बीज को उपचारित कर छाया में सुखा कर बोना लाभदायक रहता है । खेत की तैयारी के समय 5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद 2-3 वर्ष में एक बार अवश्य प्रयोग करनी चाहिए । खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए ।
सिंचाई
यदि बुवाई के पश्चात् अच्छी वर्षा न हो तो जहाँ सिंचाई की सुविधा हो वहाँ पर 20-25 दिन के अन्तराल पर कम से कम 3 सिंचाई देनी चाहिए । सूखे की स्थिति में ग्वार की बुवाई के 25 व 45 दिन बाद 0.10 प्रतिशत थायोयूरिया के घोल का छिड़काव करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है ।
खरपतवार नियंत्रण
ग्वार की फसल उगने के समय से ही अनेक प्रकार के खरपतवार जैसे चन्दलिया, सफेद फूली, बुई, कांटी, मंची, लोलरू, मोंथा, सोनेला इत्यादि फसल को हानि पहुॅचाते हैं । खरपतवारों के नियंत्रण हेतु फसल की बुवाई के 2 दिन पश्चात् तक पैन्डीमेथालीन (स्टोम्प) खरपतवार नाशी की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से खेत में छिड़काव कर देना चाहिए । इसके उपरान्त जब फसल 25-30 दिन की हो जाए तो एक बार कस्सी से गुड़ाई कर देनी चाहिए । यदि मजदूरों की समस्या हो तो इमेजीथाइपर (परसूट) की 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 20-25 दिन बाद छिड़काव कर देना चाहिए ।
ग्वार में पादप संरक्षण
१.छीमक
दीमक फसल के पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं । बुवाई से पहले अन्तिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपाइरीफोस पाउडर 20 से 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलानी चाहिये । बोने के समय बीज को क्लोरोपाइरीफोस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा से प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए ।
२.कातरा
इस कीट की लट प्रारम्भिक अवस्था में फसल के पौधों को खा कर नुकसान पहँुचाती हैं इसके नियंत्रण के लिए खेत के आस पास सफाई रहनी चाहिए तथा खेत मे प्रकोप होने पर मिथाइल पैराथियोन या क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या कार्वोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण की 20 से 25 किग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकनी चाहिए ।
३.मोयला
यह कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूस कर फसल को हानि पहुँचाता है । इसके नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफोस या इमीडाक्लोप्रीड कीटनाशी की आधा लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए ।
४.सफेद मक्खी एवं हरा तेला
इन कीटों के नियंत्रण के लिए ट्राइजोफोस या मैलाथियोन की एक लीटर मात्रा को पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।
५.बैक्टीरियल ब्लाइट
यह ग्वार की बहुत हानिकार बीमारी है । इस बीमारी के कारण पत्ती के ऊपर गोल आकार के धब्बे बनते है । इस बीमारी के नियंत्रण हेतु रोग रोधी किस्मों को उगाना चाहिए । बीज को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से प्रति किला बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए । बीज को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से प्रति किलो किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए । इसके पश्चात् फसल में बुवाई के 40-45 दिन बाद 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर 2-3 छिड़काव करने चाहिए ।
६.छाछिया रोग
इस रोग के कारण पौधों के ऊपर सफेद रंग के पाउडर का आवरण बन जाता है इस रोग के नियंत्रण हेतु 25 किग्रा. गन्धक चूर्ण या एक लीटर केराथेन को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए ।
७.जड़ गलन
यह बीमारी भूमि में पैदा हुई फफूँद के कारण फैलती है । इस बीमारी के कारण पौधे अचानक मर जाते हैं । तथा समूहों में पौधों की संख्या कम हो जाती है । इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीज को 3 ग्राम थाइरम या मेन्कोजेब की 2.50 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए ।
फसल चक्र
सामान्यतः ग्वार शुष्क क्षेत्र में मिश्रित खेती के रूप में अधिक उगाई जाती है केवल ग्वार उगाने के लिए उचित फसल चक्र जैसे ग्वार-बाजरा असिंचित क्षेत्रों के लिए तथा ग्वार-गेहूं सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है ।
बीज उत्पादन
ग्वार के बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत का चुनाव करना चाहिए जिसमें पिछले वर्ष ग्वार की खेती न की गई हो तथा खेत के चारों तरफ ग्वार की फसल नहीं उगाई जा रही हो । ग्वार के लिए पृथक्करण दूरी कम से कम 10 मीटर होनी चाहिए । खेत की अच्छी प्रकार से तैयारी करनी चाहिए तथा प्रमाणित व उपचारित बीज बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिए । समय समय पर खेत से दूसरी किस्म के पौधे, खरपतवार एवं बीमारियों से ग्रसित पौधे निकाल देना चाहिए । कीड़े एवं बीमारियों की रोकथाम के लिए उचित उपचार करना चाहिए तथा फसल अच्छी प्रकार से पकने के पश्चात कटाई करनी चाहिए ।
कटाई करते समय खेत के चारों तरफ लगभग 10 मीटर फसल छोड़कर बीज के लिए लाटे को काटकर अलग इकट्ठा करके अच्छी प्रकार से सुखा कर थ्रैसर द्वारा दाना निकाल लेना चाहिए । अच्छी प्रकार से ग्रेडिंग कर मोटे आकार के दाने अलग कर उनको सुखाना चाहिए तथा नमी 8 से 9 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए । बीज को उपचारित कर लोहे की टंकियों में भरकर अच्छी प्रकार से बंद कर देना चाहिए । इस बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है ।
कटाई एवं गहाई
ग्वार के पौधे जब भूरे रंग के पड़ने लगे तथा फलियां सूखने लगें तो दंराती की मदद से कटाई कर लेनी चाहिए तथा दाना भूसे से अलग कर साफ कर लेना चाहिए ।
उपज एवं शुद्ध लाभ
उन्नत तकनीकियों द्वारा ग्वार की खेती करने पर औसतन 8-10 कुन्टल दाना एवं 12-14 कुन्टल प्राप्त हो जाता है । एक हैक्टेयर ग्वार उत्पादन के लिए लगभग 18 से 20 हजार रूपये की लागत आती है । यदि ग्वार का बाजार मूल्य रूपये 120 प्रति किलो हो तो किसान ग्वार की खेती द्वारा रूपये 70 से 75 हजार प्रति हैक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।
स्रोत-
- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधार संस्थान,राजस्थान