ग्रीन हाऊस में खेती का महत्व

ग्रीन हाऊस में खेती, कृषि की ऐसी परिक्षाकृत तकनीकी है जो पौधों की बढ़वार हेतु उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है । इस तकनीक द्वारा पौधों की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालने वाले कारक जैसे अधिक वर्षा , तापमान, सौर्य विकिरण, पाला, कीट, रोग आदि से पौधों को सुरक्षा प्रदान की जाती है और पौधों के समीप अच्छी बढ़वार एवं पैदावार हेतु उपयुक्त सूक्ष्म वातावरण का निर्माण करते हैं ।

 

ग्रीन हाऊस में खेती के प्रमुख लाभ

1.जैविक एवं अजीवित कारकों से फसल को सुरक्षा ।
2.भूमि एवं जल का बेहतर उपयोग ।
3.अधिकतम लाभ हेतु बेमौसमी फसल उत्पादन संभव ।
4. जैविक खेती का मजबूत आधार ।
5.कम क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन संभव ।
6. शहरों के आसपास के क्षेत्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी ।
7.खुले खेतों की अपेक्षा गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त होता है ।
8.ग्रामीण युवाओं हेतु स्वरोजगार की अधिक संभावनाएँ ।
9.स्थान विशेष में कुछ सब्जियों को ग्रीन हाऊस के अन्दर वर्ष-पर्यन्त उगाया जा सकता है ।
10. ग्रीन हाऊस में उगाई गई फसल उत्तम गुणवत्ता वाली होती है । फलतः अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है ।

 

ग्रीन हाऊस अथवा पाली हाऊस

इसकी संरचना पाॅलीथीन से बना हुआ अर्द्ध चन्द्राकार या झोपड़ीनुमा होता है, जिसके अन्दर नियंत्रित वातावरण में पौधों को उगाया जाता है तथा उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक जैसे सूर्य का प्रकाश, तापमान, आर्द्रता आदि विभिन्न कारकों पर नियंत्रण होता है । ठण्ड की अधिकता में जहाँ खुले वातावरण में फसल विशेष आसानी से प्राप्त नहीं की जा सकती, वहीं ग्रीन हाऊस में सफलतापूर्वक इसका उत्पादन किया जा सकता है । ग्रीन हाऊस में सूर्य के प्रकाश द्वारा विकिरण से प्राप्त ऊर्जा ग्रीन हाऊस के अन्दर संचित की जाती है, जिससे इसका सूक्ष्म वातावरण बदल जाता है । तापमान बढ़ने से अधिकतर फसलों का उत्पादन ग्रीन हाऊस के नियंत्रित वातावरण में संभव हो सकता है । इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में ग्रीन हाऊस में तापमान की अधिकता होने पर फैन एवं पेड अथवा सूक्ष्म फव्वारे एवं क्रास वेंटीलेशन के द्वारा तापमान को कम किया जा सकता है ।

 

स्थल का चुनाव

ग्रीन हाऊस के निर्माण के लिए स्थल का चुनाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। ग्रीन हाऊस के निर्माण के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए, जहाँ कम से कम लागत लगे । साथ ही आवश्यक सामग्री, जो ग्रीन हाऊस के निर्माण में सहायक हो, उसकी उपलब्धता नियमित और समय पर हो, ताकि इसके निर्माण और कार्य क्षमता में कम से कम बाधा आये ।

 

इस हेतु कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नानुसार हैं –

  •   ग्रीन हाऊस  के नजदीक कोई भवन या वृक्ष नहीं होना चाहिए, जो सूर्य के प्रकाश के मार्ग में बाधा उत्पन्न करे ।
  •   ग्रीन हाऊस शहर या मार्केट उत्पन्न करे ।
  •    ग्रीन हाऊस स्थल पर पर्याप्त ढलान होना चाहिए ताकि पानी की निकासी अच्छी तरह से हो सके ।
  •    स्वच्छ और साफ पानी ग्रीन हाऊस तक पहुंचाया जा सके ।

 

ग्रीन हाऊस का निर्माण

ग्रीन हाऊस निर्माण के उपयोग में लाए गए अवयवों एवं आई लागत के आधार पर इन्हें तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

1 .अल्प लागत:

जिसमें फसलों के लिए वर्षा, धूप एवं लू से सुरक्षा हेतु व्यवस्था की जाती है । इसके अन्तर्गत नेचुरली वेंटीलेटेड ग्रीन हाऊस आते हैं जिनका निर्माण ळप् पाईप अथवा बाँस या लकड़ी द्वारा भी किया जा सकता है । इसमें लगभग 9 माह (अगस्त-अप्रैल) तक फसल उत्पादन किया जाना संभव है । उपयोग की गई सामग्री के अनुसार इसकी लागत रूपये350/वर्ग मीटर से लेकर रूपये 935/वर्ग मीटर तक होती है ।

2. मध्यम लागत:

जिसमें संरचना की आन्तरिक जलवायु का तापमान फसलों की आवश्यकतानुसार कम व अधिक करने संबंधी (कूलिंग पैड सिस्टम) का समावेश किया जाता है । इसमें उच्च लागत वाली फसलों को वर्ष भर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है । उपयोग की गई सामग्री के अनुसार इसकी लागत रूपये 1000/वर्ग मीटर से लेकर रूपये 1450/वर्ग मीटर तक होती है ।

3.उच्च लागत:

यह ग्रीन हाऊस आधुनिकतम तकनीक से सुसज्जित एवं कम्प्यूटर नियंत्रण प्रणाली द्वारा संचालित, जिसमें फसल उत्पादन को प्रभावित करने वाले प्रत्येक कारकों जैसे – प्रकाश, तापमान, आर्द्रता एवं कार्बनडायआॅक्साइड आदि का नियंत्रण संभव होता है । इस प्रकार का अच्छा व उपयुक्त ग्रीन हाऊस बनवाने पर लगभग रूपये 3000/वर्ग मीटर के हिसाब से खर्च आता है ।

 

ग्रीन हाऊस निर्माण के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ

इसके निर्माण में दिशा की भी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है । इसके निर्माण के समय की गई छोटी त्रुटि भी भविष्य में इसके उद्देश्यों की पूर्ति में बाधक हो सकती है । अतः ग्रीन हाऊस निर्माण के समय निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है ।

  • इसका निर्माण पूर्व-पश्चिम दिशा में ज्यादा लाभप्रद होगा बजाय उत्तर-दक्षिण के, क्योंकि पूर्व-पश्चिम दिशा में ठण्ड के समय प्रकाश का आवागमन ज्यादा समय के लिए होता है, जो कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में सहायक होती है ।
  • इसके निर्माण में हवा की रोकथाम के लिए वायु, अवरोधक वृक्षों को इस प्रकार लगाया जाए ताकि प्रकाश के मार्ग में बाधा उत्पन्न न हो और संरचना को भी तेज हवा से बचाया जा सके ।
  • ग्रीन हाऊस के निर्माण में ळप् पाईप, क्लास-2 (नीली पट्टी) जिसकी मोटाई कम से कम 2 मि.मी. हो, का चयन करें ।
  • निर्माण के दौरान लगने वाले सभी नट/बोल्ट ळप् होना अनिवार्य है ।
  • ग्रीन हाऊस के फ्रेम पर लगने वाली प्लास्टिक एवं जाली एल्यूमिनियम प्रोफाईल और जिगजैग स्प्रिंग लाॅक द्वारा लगाना चाहिए ।
  • नेचुरली वेटीलेटेड ग्रीन हाऊस में वायु आवागमन हेतु प्रयुक्त होने वाली जाली 40 मेश आकार की तथा पराबैगनी अवरोधी होना चाहिए ।
  • इसके अन्दर धूप की सघनता को कम करने हेतु थर्मल अथवा सफेद रंग की 50: वाली छायादार जाली होना चाहिए ।
  • ग्रीन हाऊस में प्रवेश हेतु दो दरवाजों को प्रावधान होना चाहिए ।
  • इसके निर्माण के दौरान स्कर्टवाल का प्रावधान निचले क्षेत्रों में ग्रीन हाऊस के अन्दर जल भराव से सुरक्षा प्रदान करता है ।
  • ग्रीन हाऊस की फिटिंग के दौरान नट/बोल्ट का प्रयोग होना चाहिए । इसमें फिटिंग हेतु वेल्डिंग नहीं होना चाहिए ।
  • इसकी छत से पानी नीचे लाने हेतु प्रयुक्त किये जाने वाला गटर 1 मि.मी. मोटाई का, 500 मि.ली. चैड़ा एवं बिना जोड़ वाला होना चाहिए ।
  • नेचुरली वेंटीलेटेड छोटे ग्रीन हाऊस ( 300 वर्ग मी. ) केन्द्र की ऊँचाई 4.0 मी. एवं बड़े ग्रीन हाऊस ( 500 वर्ग मी. एवं अधिक ) की 6.5 मी. होना चाहिए ।
  •    आंशिक रूप  से वातानुकूलित ग्रीन हाऊस की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम (4.0-4.5) होना चाहिए ।नोट: भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा ग्रीन हाऊस हेतु उपलब्ध मानक है –

1.ले-आऊट डिजाइन एवं निर्माण      :  IS 14462:1997
2. नियंत्रक प्रणाली                            : IS 14485:1998
3. आवरण फिल्म                             : IS 18827:2009

 

फसलों का चयन

ग्रीन हाऊस के अन्दर फसलों का चयन करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है । इसके अन्दर उच्च गुणवत्ता की सब्जी एवं फूलों की खेती करनी चाहिए, जिससे कम क्षेत्र में अधिक एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सके । सब्जी फसलों के अन्तर्गत टमाटर, रंगीन शिमला मिर्च, खीरा आदि फसलें लगाई जा सकती हैं । इसी प्रकार फूलों की फसलों में गुलाब, कारनेशन, एन्थूरियम, जरबेरा आदि को लगाया जा सकता है । इसी प्रकार इससे उच्च गुणवत्तायुक्त सब्जी पौधा उत्पादन तथा फल प्रवर्धन एवं उत्पादन का कार्य भी किया जा सकता है ।

 

उपयुक्त फसल चक्र

फसल अवधि/महावर फसल चक्र  
  रोपाई तोड़ाई
टमाटर वर्ष भर फसल उत्पादन सम्भव
हरी एवं रंगीन शिमला मिर्च अगस्त-सितम्बर मार्च-अप्रैल
पालक 2 फसल अप्रैल-मई जुलाई- अगस्त
खीरा-फूल गोभी/पत्तेदार सब्जी नवम्बर-दिसम्बर मार्च-अप्रैल
खरबूज/तरबूज फरवरी- मार्च जून
फूल-जरबेरा, कारनेशन आदि वर्ष भर

 

स्ंरक्षित खेती में ध्यान देने योग्य बातें –

1.   हमेशा बेमौसमी फसल उत्पादन का चयन करें ।
2.   बाजार भाव के अनुसार फसल चक्र अपनायें ।
3.  अधिकतम पौध सघनता अपनाएं ।
4.   वर्ष में एक बार सोर्योकरण द्वारा मृदा उपचार करें, जिससे रोग एवं कीट की रोकथाम की जा सके ।
5.   भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने हेतु रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक उर्वरकों का आवश्यक रूप से उपयोग करें ।
6.   लम्बवत् एवं क्षैतिज स्थान का पूर्ण रूप से उपयोग करें ।
7.   संरक्षित खेती हेतु केवल अनुशंसित फसल प्रभेदों का ही चयन करें ।

इस प्रकार कृषक इन संरक्षित कृषि तकनीकी को अपनाकर उच्च गुणवत्ता वाली फसल उत्पादित करके शहरों में उपलब्ध उच्च बाजार में बेंचकर निश्चित तौर पर अधिक लाभ कमा सकते हैं । यही नहीं लगातार बदलते जलवायु परिवर्तन तथा कृषि योग्य भूमि व कृषि हेतु उपलब्ध जल पर औद्योगिकरण व शहरीकरण के कारण लगातार बढ़ते दबाव के परिपेक्ष में भी इस प्रकार की तकनीकी की आवश्यकता व इसका महत्व और बढ़ जाता है ।

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर     
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