परिचय
गैलार्डिया पुष्प को नवरंगा के नाम से भी जाना जाता है | इसके पुष्प पीले, नारंगी, लाल तंबिया मिश्रित गहरे तंबिया आदि विभिन्न आकर्षक रंगों में आते है| जो बहुत ही लुभावने होते है इसलिये इसकी मांग बाज़ार में अच्छी रहती है | खासतोर पर जब ग्रीष्मकाल में अन्य व्यावसायिक पुष्पों की उपलव्हता लगभग नगण्य सी होती है | तब मात्र यही एक ऐसा पुष्प है जिसकी बाज़ार में उपलब्धता प्रचुर मात्रा में रहती है बजार में पुष्पों से पुष्प उत्पादक अच्छा लाभ प्राप्त करते है | यदि इसे ग्रीष्मकालीन फूलो का राजा कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी |
इसकी पुष्प माला, गुलदस्ता ,गृह सज्जा , सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों में भी विभिन्न तरह उपयोग में लाये जाते है | नवरंगा कम्पोजिटी कुल का सदस्य है | जिसका मूल उत्पत्ति स्थान अमेरिका है | सम्पूर्ण भारत वर्ष में इसकी व्यावसायिक कृषि ,सरलतापूर्वक तथा विभिन्न मौसमो में की जा सकती है मध्यप्रदेश में भी कई स्थानों पर किसान इसके फूलो की खेती कर रहे है एवं अभी इसके विस्तार की प्रचुर सम्भावना है |
जलवायु
इसकी पुष्प कृषि शीतोष्ण तथा उष्ण जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है |
भूमि चयन व तैयारी
इसे विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है | किन्तु बलुई दोमट भूमि जिसमे जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो अधिक उपयुक्त होती है | भूमि चयन के पश्चात दो बार अच्छी जुताई कर भुरभुरी व समतल बनावे |
गैलार्डिया के किस्मे
इसमें प्रमुखत: दो समूह होते है :
१.गैलार्डिया पीक्टा
इसके फल बड़े व एकल होते है | अत: इनका व्यावसायिक महत्व कम होता है |
प्रमुख किस्मे: इन्डियन चीफ , पीक्टा मिश्रित आदि |
२.गैलार्डिया लोरिन्जीयाना
इनके फल दोहरे होते है यह व्यावसायिक उपयोग के लिये उपयुक्त है |
प्रमुख किस्मे
सनशाईन , गेरी डबल मिक्स, डबल टेट्रा किस्म | गैलार्डिया की अन्य किस्म गैलार्डिया ग्रेनडोफ्लोरा प्रजापति गाल्बिन व्यावसायिक उत्पादन हेतु बहुत प्रसिद्ध है | इसके फूल पीले-नारंगी एवं लाल होते है | इसके फूल का बाज़ार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान है |
बीज बोने का समय व तरीका
इसके बीज को दिसम्बर-जनवरी एवं मार्च-अप्रैल में बों दें एवं क्यारियों को भूमि से थोड़ा ऊँचा बनाये एवं अच्छी गुड़ाई-निदाई करके मिटटी को भुरभुरा बनाकर तथा किसी पतली लकड़ी की सहायता से हल्की लाइन खींचे | आमतौर पर क्यारी का आकार 3 मीटर x 1 मीटर रखे तथा बीज 5 से.मी. गहरा बोकर उसे अच्छी तरह मिटटी से ढके | बीज को कतार में बोने से निदाई में आसानी होती है | बुवाई पश्चात सूखी घास को बिछाकर हल्की सिंचाई करें | जब अंकुरण हो जावे तो सूखी घास हटा दें क्यारी बनाते समय गोबर की पकी खाद अच्छी तरह भूमि में मिलाये |
बीज की मात्रा
करीब 1.5-2.0 किलो बीज प्रति हेक्टेयर हेतु पर्याप्त होता है |
खाद की मात्रा एवं देने का तरीका
गोबर की अच्छी पकी खाद 250-300 क्विंटल मात्रा को प्रति हेक्टेयर भूमि में खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह मिलाये |
पौध रोपण एवं दूरी
बीज को क्यारियों में बोने के करीब 5-6 सप्ताह में पौधे मुख्य खेत में लगाने हेतु तैयार हो जाते है| अच्छी तरह तैयार खेत में पौधों को कतार से कतार तथा पौधे से पौधा 45 से.मी.x 45 से.मी. की दूरी पर लगाये| पौधों को क्यारी से निकालने से पहले अच्छी तरह सिंचाई करे , ताकि पौधों को उखाड़ते समय जड़ो को क्षति न हो| पौधों को सायंकाल लगाये तथा इसके पश्चात अच्छी तरह खेत में सिंचाई करे |
सिंचाई
आमतौर पर गैलार्डिया को पानी की आवश्यकता होती है | समान्यत: पानी सप्ताह में एक बार देना चाहिए किन्तु भूमि के प्रकार व मौसम के अनुसार यह अन्तर कम ज्यादा किया जाता है | वर्षाकालीन फसल को पानी के ठहराव से हानि होती है | अतः जल निकास की समुचित व्यवस्था करना चाहिये यदि ग्रीष्म फसल में सिंचाई की भरपूर व्यवस्था की जाये तो फूल अधिक संख्या में प्राप्त होते है |
पुष्प तुड़ाई एवं उपज
गैलार्डिया के फूल बीज बोने के करीब 105-120 दिन में तोड़ने हेतु तैयार हो जाते है | इसमें एक ही पौधे पर अधिक संख्या में फूल खिलते है | अतः प्रतिदिन प्रात: काल फूल तोडना चाहिए | इन्हें टिकाऊ बनाये रखने हेतु यदि इन्हें गीले कपडे में अथवा थोड़ी-थोड़ी देर में पानी सींचते रहे ताकि फूल खराब ना हो पाये | फूल की उपज भी काफी अच्छी प्राप्त होती है | साधारणत: करीब 250 क्विंटल / हेक्टेयर तक मौसमानुसार तक प्राप्त होती है |
पौध संरक्षण
गैलार्डिया की रोग
आमतौर पर गैलार्डिया में कीट व्याधि का प्रकोप कम होता है | कुछ प्रमुख व्याधि निम्नलिखित है –
१.कंडवा रोग
गोलाकार हलके भूरे धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते है जो बाद में गहरे होकर नीचे की पत्तियों पर दिखाई देते है जिसके है | जिसके परिणामस्वरूप पत्ती को निंदरोग होता है तथा पत्ती सिकुड़ जाती है |
नियंत्रण
ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट करे तथा फसलचक्र अपनाना चाहिए | बोडो मिश्रण 1 प्रतिशत के घोल का छिडकाव रोग के लक्षण दिखने पर तुरन्त करे |
2. लीफ स्पॉट
गोलाकार से अंडाकार सफ़ेद से हल्के भूरे धब्बे के साथ ही काले या हल्के भूरे किनारे पर 2-12 मि.मी. आकार के धब्बे दिखाई पड़ते है |
नियंत्रण
बेबिस्टन की 1 ग्राम की मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे |
गैलार्डिया की कीट
कीट हेतु डायमेथियोट 30 ई.सी. दवा की 1 मिली लीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे |
Source-
- Jawaharlal Nehru Krishi VishwaVidyalaya.