परिचय
सब्जियों की खेती को उनके उगाने के उद्देश्य, विधि, प्रबंध व्यवस्था एवं व्यावसायिक स्तर के आधार पर विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है। गृह वाटिका में सब्जी उत्पादन का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है इसमें सब्जी उत्पादन का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि पूरे परिवार को साल भर ताजी शाक-सब्जी मिलती रहे। इसमें शाक-सब्जियों के अलावा फल-फूल आदि को भी उगाया जा सकता है। इसी कारण इसे परिवार आधारित रसोई उद्यान अर्थात गृह वाटिका या किचन गार्डन भी कहते है। इस प्रकार के सब्जी उत्पादन मे मुख्य ध्येय आर्थिक लाभ न होकर परिवार के पोषण स्तर को बढ़ाना तथा घर में ही ताजी शाक-सब्जी का उत्पादन करना होता है। इसके द्वारा आर्थिक लाभ भी कमाया जा सकता है।
सब्जियों का चयन परिवार के सदस्यों की इच्छा अनुसार किया जाता है। घर के चारों और खाली पड़ी भूमि में छोटी-छोटी क्यारियाँ बना ली जाती है। क्यारियो में फसल चक्र अपनाए जाते है तथा फल-फूल एवं शाक-सब्जी का उत्पादन किया जाता है।
गृह वाटिका लगाने के लाभ
- परिवार की आवश्यकतानुसार ताजी एवं स्वादिष्ट शाक-सब्जियाँ साल भर उपलब्ध होती रहती हैं।
- घर के चारों ओर खाली पड़ी हुई भूमि में सरलता से की जा सकती है।
- घरेलू कार्यो में प्रयुक्त हो चुके जल का पौधों की सिंचाई में सदुपयोग हो सकता है एवं घर के कूड़े-करकट का कम्पोस्ट खाद बना कर प्रयोग किया जा सकता है।
- सब्जी खरीदने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता बल्कि घर में ही ताजी, स्वादिष्ट शाक-सब्जियां नियमित रूप में मिलती रहती हैं।
- बाजार की तुलना में सस्ती एवं उत्तम गुणवत्ता वाली सब्जियां मिलती हैं।
- गृह वाटिका में उगी सब्जियों में जहरीली दवाइयांे एवं कीटनाशकों का प्रभाव नहीं होता है, जो कि बाजार से खरीदी हुई सब्जियों में हो सकता है।
- गृह वाटिका की सब्जियों में नकली रंग, रसायनों, एवं उन संक्रामक रोगों के जीवाणुओं की उपस्थिति का भय नहीं रहता जो बाजार से खरीदी गयी सब्जियों में हो सकता है।
- घर के बच्चों व युवाओं को भी यह कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।
- लकड़ी के डिब्बों, गमलों, बेकार टिनों एवं मकान की छतों पर सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
- कीमती कृषि औजारों की आवश्यकता नहीं होती है। घरेलू औजारों को प्रयोग में ला सकते हैं।
- इसे एक मन भावन शौक के रूप में अपनाया जा सकता है।
गृह वाटिका के लिये उचित स्थान
- गृह वाटिका का स्थान घर के निकट होना चाहिए।
- घर के आगे या पिछवाड़े की पहुँच से दूर व पूर्णतया खुला एवं सूर्य के प्रकाश की पर्याप्त पहुँच वाले स्थान का
चयन करना चाहिए। - गृह वाटिका के लिए दोमट मिट्टी जिसमें जीवांशों की अच्छी मात्रा हो, उपयुक्त रहती है।
- इसके अतिरिक्त सब्जियों को उगाने के लिए पर्याप्त सिंचाई देना भी आवश्यक होता है, अतः सिंचाई के लिए
जल की उपलब्धता भी होनी चाहिए।
गृह वाटिका में क्या-क्या उगाएँ
यदि आपके पास खुला प्लाट हो तो उगाने वाली सब्जियों की कोई सीमा नहीं है। फल वाले पेड़ जैसे पपीता, नींबू व अमरूद आदि भी शाक-सब्जियों के साथ-साथ उगाए जा सकते है। पर्याप्त खुला स्थान नहीं है| तो आप सीमित तरीके से गृह-वाटिका लगा सकते हैं जैसे टमाटर, मिर्च, सीताफल, करेला, मटर, मेथी, पालक, मूली, धनियाँ आदि।
गृह वाटिका में शाक-सब्जियों को तीन बार बोया जा सकता है, जो क्रमवार निम्नलिखित हैः-
खरीफ वाली सब्जियाँ:-इन्हें जून-जूलाई में बोया जा सकता है। इस समय भिंडी, लौकी, करेला, टिंडा, तोरई, बैंगन, टमाटर, ग्वार, लोबिया, मिर्ची, अरबी आदि सब्जियों की खेती की जा सकती है।
रबी वाली सब्जियाँ:-इन्हें सितंबर-अक्तूबर में उगाया जाता है। इस समय बैंगन, सरसों, मटर, प्याज, लहसुन, आलू, टमाटर, शलजम, फूलगोभी, बंदगोभी, चना आदि सब्जियों की खेती की जा सकती है।
जायद वाली सब्जियाँ:-इन्हें फरवरी-मार्च में उगाया जाता है। इस समय भिंडी, ककड़ी, खीरा, लौकी, तोरई, टिंडा, अरबी, तरबूज, मतीरा, खरबूजा, बैंगन आदि सब्जियों की खेती की जा सकती है।
गृह वाटिका लगाने के लिए भूमि की तैयारी
जिस स्थान पर गृह वाटिका लगानी हो वहाँ की मिट्टी में जल एवं वायु का प्रवाह अच्छा होना चाहिए। इसलिए गृह वाटिका लगाने से पहले भूमि को तैयार कर लेना महत्वपूर्ण है। मिट्टी जितनी भुरभुरी, कार्बनिक खाद एवं जीवांश तत्वों से भरपूर होगी, पैदावार भी उतनी ही अच्छी मिलेगी। यदि बड़े क्षेत्रफल में सब्जियों लगानी हो तो इसके लिए एक जुताई डिस्क हैरो तथा 2-3 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 1-1.5 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में अच्छी तरह मिलानी चाहिए।
घर में थोडे़ स्थान में सब्जियाँ उगाने के लिए फावड़ा या कस्सी का उपयोग कर मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा कर क्यारियाँ बना लेनी चाहिए तथा गोबर की खाद को क्यारियों में डाल कर मिश्रित कर लेना चाहिए। गमले तैयार करते समय भी कस्सी या खुरपी से मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी कर तथा गोबर की खाद मिलाकर गमले तैयार कर लेने चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक का अच्छी पैदावर प्राप्त करने में अत्यधिक महत्व है। इसके लिए आवश्यक है कि मिट्टी में कार्बनिक खाद का प्रयोग हो। खाद मिट्टी की दशा सुधारती है व पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति भी करती है। इसके लिए गृह-वाटिका के एक कोने में कम्पोस्ट खाद का निर्माण भी किया जा सकता है।
कम्पोस्ट बनाने की विधि
घर का कूड़ा-करकट, नाली का कचरा, मलमूत्र, भूसा, कागज की रद्दी आदि पदाथी के बैक्टीरिया एवं फँजाई द्वारा विघटन/सड़न से बना हुआ पदार्थ कम्पोस्ट कहलाता है। गृह-वाटिका के क्षेत्रफल के आधार पर एक 6 फुट लम्बा, 3 फुट चैड़ा एवं 3 फुट गहरा गड्ढा खोद लें। ऐसा करने से पोषक तत्वों के घुलकर बह जाने की क्षति को कम किया जा सकता है। गड्ढे को फलों एवं सब्जियों के छिलकों, सब्जियों के पत्तों एवं रसोई के कूड़े-करकट से भर देवें। 25 से 50 ग्राम यूरिया फैला दे और पानी का सतह पर छिड़काव कर दें। यदि गोबर आसानी से मिल जाए तो पौधों के अवशिष्ट के ऊपर 2.5 से 5.0 सेमी. मोटी गोबर की परत बिछा दें।
कम्पोस्ट गड्ढे में यूरिया मिलाने से दो उद्देश्य पूरे होते हैं। पहला ये जीवाणुओं के लिए ऊर्जा का कार्य करता है दूसरा यह जैवीय पदार्थो को जल्दी सड़ाकर खाद में सिर्फ नाइट्रोजन ही नहीं बल्कि फासफोरस और गंधक जैसे तत्वों की वृद्धि करता है। खाद को 2 महीने तक सड़ने देना चाहिए। गृह-वाटिका मे इस प्रकार 2-3 गड्ढे बना लेना चाहिए ताकि उनका बारी-बारी से प्रयोग किया जा सके। गृह वाटिका में क्यारी बनाकर शाक-सब्जियाँ उगाना
गृह वाटिका में क्यारी बनाकर शाक-सब्जियाँ उगाना
- फावड़े या खुरपी से 10-15 से.मी. मिट्टी खोद लें। अच्छी तरह सड़ी हुई खाद मिला दें। क्यारी को समतल बनायें और उसके चारों ओर बांध बना दें।
- उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करें।
- उचित समय एवं सही तरीके से बुवाई के लिए सब्जी की किस्म के आधार पर निम्नलिखित दो पद्धतियों में से एक चुनें।
गृह वाटिका में सब्जियाँ उगाने के लिए सब्जी की किस्म के आधार पर दो प्रकार से बुवाई की जा सकती है।
बीज द्वारा बुवाई
मूली, शलजम, मेथी, पालक, खीरा, करेला, लौकी, कद्दू, टिंडा, सेम, भिंडी आदि सब्जियों के बीज मिट्टी में सीधे ही बोये जाते हैं। बुवाई से पहले बीजों का थीरम या केपटान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर लेना अच्छा रहता है। अच्छी व जानी-मानी कृषि कंपनियों के बीज लेने पर सामान्यता बीज पहले से ही उपचारित होते हंै अतः उनका पुनः बीजोपचार करने की आवश्यकता नहीं होती है। बुवाई करने से पहले बताई गयी विधि द्वारा भूमि जुताई कर तैयार कर लेना चाहिए। खाद तथा उर्वरक की पहली खुराक सब्जी की किस्म के अनुसार निर्दिष्ट मात्रा में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में छिड़कर देनी चाहिए तथा इसके तुंरत बाद सिंचाई करनी चाहिए जिससे उर्वरक अच्छी तरह प्रभावी हो जाए। इसके बाद ही बुवाई करनी चाहिए।
सब्जियों के बीजों की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिये तथा कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की बीच उचित स्थान छोड़ना चाहिये। फैलने वाले पौधो के लिए कतार से कतार की दूरी अधिक रहती है ताकि पौधे को बढ़ने के लिए उचित स्थान मिल सके। विभिन्न सब्जियों में पौधे से पौधे की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी अलग-अलग होती है अतः इसको ध्यान में रखते हुए बुवाई करनी चाहिए। उर्वरक की दो अन्य खुराकें 1 महीने बाद तथा अगली खुराक समान्यतया अगले 1-1.5 महीने बाद फूल आने के समय दी जाती है। इसके बाद ऋतु एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सब्जियों को पहले 40-50 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है अतः समय-समय पर कस्सी द्वारा निराई-गुड़ाई करते रहें। बीजों को पंक्तियों में बोने से सब्जी पक जाने के बाद काटने की सुविधा रहती है। सब्जियों की उचित समय पर तोड़ाई कर लेनी चाहिए।
रोपाई द्वारा
कुछ सब्जियों जैसे टमाटर, फूलगोभी, मिर्च, बैंगन, प्याज, पोदीना आदि फसले सीधे बीज द्वारा बुवाई न करके बीज उगने के बाद उस पौधे की रोपाई करने से अधिक बढ़ती है। इसलिए ऐसी फसल के लिए बीज, उचित रूप से किए जाते है।
नर्सरी तैयार करने की विधि
रोपाई करने के लिए पौधे तैयार करने के लिए नर्सरी बनाने हेतु 4-5 बार गुड़ाई करके मिट्टी को अच्छी प्रकार से भुरभुरा बना लेना चाहिये और गोबर की खाद आदि उचित मात्रा में मिला है। इसके पश्चात् बीजों को सब्जी की किस्म के आधार पर निश्चित दूरी में बो देना चाहिए। बीजों को 1.5 से.मी. से अधिक गहराई में नहीं बोना चाहिए अन्यथा अंकुरण होने में समस्या आती है और बीज देर से अंकुरित होते हैं। बीज बोते समय एक मुट्ठी भर डीएपी एवं बीज उगने के 5-6 दिन बाद यूरिया 2 मुट्ठी भर प्रति 10 वर्ग मीटर में लगाने से पौधों की बढ़वार अच्छी रहती है। बीज को क्यारियों में बोने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बुवाई के 1-2 हफ्ते में बीज अंकुरित हो जाते है और 1 महीने में रोपाई के लिए तैयार हो जाते है।
रोपाई करना
रोपाई करने के 1-2 दिन पहले सिंचाई देनी चाहिए इससे मिट्टी नम हो जाती है और पौधों की जड़े आसानी से बिना अधिक नुकसान के मिट्टी से बाहर निकल आती है। पौधों की रोपाई करने से पहले खेत/क्यारियाँ/थाले तैयार कर लेने चाहिए। इसके लिए पहले बताई गयी विधि के अनुसार जुताई करके तथा उर्वरक डाल कर मिट्टी को तैयार कर लेना चाहिए। उर्वरक की पहली खुराक सब्जी की किस्म के अनुसार निर्दिष्ट मात्रा में रोपाई के पहले मिट्टी में छिड़ककर दे देनी चाहिए तथा इसके तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए जिससे उर्वरक अच्छी तरह प्रभावी हो जायें। इसके 1-2 दिन बाद पौधों की रोपाई करनी चाहिए।
रोपाई करने के लिए 15-20 से.मी. ऊँची व 1.25 मीटर चैड़ी तथा आवश्यकतानुसार लम्बी क्यारियाँ बना ली जाती है। दो क्यारियों के बीच 30 से.मी. चैड़ी नाली छोड़ देते है, जिससे कि निराई-गुड़ाई व पानी की निकासी में आसानी रहती है। पौधों को शाम के समय रोपना चाहिए तथा रोपने के बाद हल्की सिंचाई देनी चाहिए। सब्जियों के पहले 40-50 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है अतः समय-समय पर खुरपी द्वारा निराई गुड़ाई करते रहें। उर्वरक की दो अन्य खुराकें 1 महीने बाद तथा अगली खुराक समान्यता अगले 1-1.5 महीने बाद फूल आने के समय दी जाती है। इसके अतिरिक्त ऋतु एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
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स्रोत-
- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर