उत्तर भारत में प्रचलित गन्ने की प्रमुख प्रजातियाँ

गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र, करनाल ने अपनी स्थापना वर्ष 1932 से उत्तर भारत के लिये कई उन्नंत किस्मों का विकास किया। जिनमे को.क. .26, को.क. 32, को.क. 41, को.1328, को. 6618, को. 7717, को. 89003, को. 98014, को. 0118, को. 0124, को. 0237, को. 0238, को.05009, को. 05011 एवं 06034 आदि प्रमुख किस्मे हैं। नव विकसित किस्म को. 0238 पुरे उत्तर भारत में लोकप्रियता हासिल कर रही हैं। वर्तमान में लगभग 5,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती हो रही हैं। किस्म को. 05011, को.शा. 8436 का स्थान लेने की क्षमता रखती है।

गन्ने की कुल पैदावार में लगभग 50 से 60% योगदान अकेले अच्छी किस्म का होता हैं बाकि अच्छे फसल प्रबंधन पर निर्भर करता हैं। क्षेत्रफल की दृष्टी से उत्तर भारत 60% क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हैं। जहा पर पुरानी किस्मो के प्रचलन के कारण गन्ना उत्पादकता व चीनी परता अपेक्षाकृत कम हैं। हाल में गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र, करनाल द्वारा इस क्षेत्र के लिए कई उन्नत किस्मे जारी की परन्तु इन किस्मो की जानकारी व इनके पहचान गुणों की अल्प जानकारी होने के कारण किसानो को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। बहुत सारी अवर्णीय किस्मे इन किस्मो के नाम पर प्रसारित हो जाती हैं।

एक से अधिक प्रजातियों के एक ही वाहन में परिवहन व बिजाई के दौरान श्रमिकों की गलतियों के कारण प्रायः विभिन्न प्रजातियों के बीज में आपस में मिलावट हो जाती है। कई बार किसान भाई गन्ने का बीज किसी प्रमाणित संस्था से न खरीदकर ऐसे व्यक्ति या संस्था से खरीद लेते है जिनको किस्म का सही नाम नही पता होता, इसलिए किसान भाईयों को किस्म के सही पहचान हेतू उनके प्रमुख गुण-लक्षणों के बारे में जानकारी होना अति आवश्यक है इस लेख में उत्तर भारत में प्रचलित प्रमुख किस्मों की पहचान संबंधी तथा गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र-करनाल द्वारा विकसित प्रमुख गन्ना किस्मों की जानकारी दी गई है।

 

गन्ने की प्रजातियाँ

1. को. 89003 (को. 7314 ग को. 775)

यह एक अधिक शर्करा व अधिक उपज देने वाली अगेती किस्म है, जिसका गन्ना लम्बा, मध्यम मोटाई का हरापन लिये हुए बैगनी रंग का होता है। इसका गन्ना नर्म छाल का है, जो चूसने के लिये उपयुक्त होता है। इस प्रजाति का गुड हल्के सुनहरे रंग का ए1 क्वालिटी का होता है, हरियाणा राज्य की तीन चीनी मिलों जैसे करनाल सहकारी चीनी मिल, पानीपत सहकारी चीनी मिल, हैफेड़ चीनी मिल, असंध में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है। यह किस्म अब लाल सड़न रोग से ग्रसित हो गई है तथा कही-कही कंडुआ रोग के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं। यह किस्म प्रमुख कीटों जैसे कंसुआ व चोटी बेधक के प्रति मध्यम प्रतिरोधी एवं तना बेधक के प्रति संवेदनशील है। सूखा व जल भराव के प्रति भी यह किस्म संवेदनशील है। इसकी औसत उपज 65-80 टन/हेक्टेयर तथा शर्करा की मात्रा 18.45 प्रतिशत है।

 

2.को. 98014 (करण-1)

यह गन्ने की अगेती किस्म है, जिसका विकास को. 8316 ग को. 8213 क्रॉस से किया गया है। केंद्रीय किस्म रिलीज समिति द्वारा इसे वर्ष 2007 में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान तथा पश्चिमी एवं केंद्रीय उत्तरप्रदेश) के लिये जारी किया गया। यह एक लम्बी व सीधी बढ़ने वाली किस्म है, जिसकी पोरिया बेलनाकार, मध्यम पतली मोटाई की, पीले हरे रंग की होती है। यह काँटों व दरार रहित किस्म है। इसका आलिन्द लम्बा भालाकार होता है। तथा पत्तियां संकरी, धनुषाकार होती है। इसका पत्ती खोल पोरियों से सख्ती से चिपका रहता है।

गर्मी के महीनो में इस किस्म में पत्तियों का सूखना सामान्य बात है। इसका पत्ती खोल हल्का पीलापन लिए हरे रंग का होता है। अधिक रेशा होने के कारण इस किस्म में कीटों, जंगली सूअरों का आक्रमण कम होता है। इसकी उपज 70-100 टन/हेक्टेयर तक ली जा सकती है। यह किस्म गन्ने की लाल सडन व कंडुआ रोग के प्रति क्रमशः मध्यम प्रतिरोधी व प्रतिरोधी है। कंसुआ व तना बेधक कीट के प्रति प्रतिरोधी एवं चोटी बेधक के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। सूखा व जलमग्नता के प्रति सहनशील है।

 

3 .को. 0118 (करण-2)

उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के लिये इस होनहार अगेती किस्म को वर्ष 2009 में जारी किया गया। यह को. 8347 ग को. 86011 क्रॉस की संततियों से चयनित प्रजाति है। यह एक अधिक उपज एवं अधिक चीनी युक्त लम्बी बढ़वार व मध्यम मोटाई की बैंगनी हरी प्रति शंकुकार पोरीयों वाली किस्म है, इसके पत्तिखोल पर सघन कांटे होते हैं। इसके दोनों आलिन्द भालाकार होते हैं, जिनमें बाहय आलिन्द छोटा व आन्तरिक आलिन्द लम्बा होता है। इसकी पत्तियां सीधी व उपर से मुड़ी हुई होती है, यह प्रजाति दरार एवं मज्जा रहित है। इसकी आखें छोटी, अण्डाकार होती है। सूखे एवं जलमग्न परिस्थितियों में इसकी उपज प्रचलित मानक किस्मों की तुलना में अधिक होती है।

इस किस्म में कम नत्रजन की आवश्यकता होती है। कोजा. 64 की तुलना में यह किस्म 15 प्रतिशत अधिक गन्ना, 15 प्रतिशत अधिक चीनी पैदावार तथा 3.7 प्रतिशत अधिक शर्करा देती है। इसकी उपज क्षमता लगभग 80 से 90 टन/हेक्टेयर तथा शर्करा की मात्रा 18.45 प्रतिशत है। सूखे एवं जलमग्न परिस्थितियों में इसकी उपज प्रचलित मानक किस्मों की तुलना में अधिक होती है। यह किस्म लाल सडन व कंडुआ के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं। प्रमुख कीटों जैसे कंसुआ के प्रति कम से कम संवेदनशील व तना बेधक एवं चोटी बेधक के प्रति मध्यम संवेदनशील होती हैं।

 

4. को. 0238 (करण-4)

इस अगेती किस्म को कोलख. 8102 ग को. 775 क्रॉस द्वारा तैयार किया गया है। अधिक गन्ना एवं चीनी उपज वाली इस किस्म को केंद्रीय किस्म रिलीज समिति ने इसे वर्ष 2009 में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के लिये जारी किया।यह एक लम्बी बढ़ने वाली, मध्यम से अधिक मोटाई की बेलनाकार लम्बी पोरियों वाली किस्म है, जिसका पत्ती खोल परिपक्व होने पर स्वतः गिर जाता है। इसकी बढ़वार बहुत तेजी से होती है। गर्मी में पत्तियों का सूखना इसमें सामान्य बात है। यह एक बिना कांटो वाली किस्म है जिसके गन्ने धूसर भूरे/हरे रंग के होते है। इसकी आँखें गोल व छोटी होती है। पोरियों में खांचा कम गहरा होता है।

सूखे, जलमग्नता एवं लवणीय परिस्तिथियों के लिये भी यह उपयुक्त किस्म है। यह किस्म गन्ने की प्रमुख बिमारियों जैसे लाल सडन व कंडुआ के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। यह प्रमुख कीटों जैसे कंसुआ के प्रति कम संवेदनशील व तना बेधक के प्रति मध्यम प्रतिरोधी एवं चोटी बेधक के प्रति संवेदनशील होती है। सर्दी में कटाई करने पर भी अच्छा फुटाव होने के कारण इसकी पेड़ी फसल अच्छी होती है। चोटी बेधक का प्रबंधन इस किस्म के लिये आवश्यक है। इस किस्म को कम नत्रजन की आवश्यकता होती है। इससे 80-100 टन/हेक्टेयर गन्ना उपज प्राप्त की जा सकती है।

 

5 को. 05009 (करण 10)

इस अगेती किस्म को को. 8353 ग को. 62198 क्रॉस द्वारा तैयार किया गया है। इसे केंद्रीय किस्म रिलीज समिति द्वारा वर्ष 2013 में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान तथा पश्चिमी एवं केंद्रीय उत्तर प्रदेश) के लिये जारी किया। इस किस्म के गन्ने लम्बे व मध्यम मोटाई के होते हैं। इसकी पोरियां बेलनाकार व हल्के बैगनी रंग की दरार रहित होती हैं। इसके कर्ण भालाकार होते हैं तथा पत्राधार पर बहुत हल्के झडने वाले कांटे पाये जाते हैं। इसकी आंखें गोल से अण्डाकार पंख युक्त होती हैं। सामान्यतः गन्ने की पोरियां नही फटती है, मज्जा (पिथ), आंख खांचा व आंख कुशन नही होते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ पौरियों में दरार मिल सकती है।

 

6. को. 0124 (करण-5)

यह एक मध्यम देर से पकने वाली किस्म है जिसे को. 89003 के खुले परागण से प्राप्त संततियों से चयन किया गया हैं। केंद्रीय किस्म रिलीज समिति द्वारा इसे वर्ष 2010 में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के लिये जारी किया है। यह एक मध्यम देर से पकने वाली, मध्यम मोटाई की पीले रंग की बेलनाकार पोरियों वाली किस्म है, जिसकी आँख समचतुर्भुजाकार, आलिन्द भालाकार तथा आँख प्रसीता कम गहरी होती है। इसका पत्ती खोल कांटे रहित एवं गन्ने से चिपका रहता तथा पोरीया दरार रहित होती है एवं मज्जा अनुपस्थित होती है। यह लाल सडन व कंडुवा के प्रति मध्यम प्रतिरोधी, कंसुआ के प्रति कम संवेदक तथा चोटी व गन्ना बेधक के प्रति मध्यम संवेदी होती है। इसकी सिफारिश अधिक उपजाऊ भूमी के लिये की जाती है।

 

7 .को. 05011 (करण-9)

केंद्रीय किस्म रिलीज समिति द्वारा वर्ष 2012 में जारी की गयी यह गन्ना किस्म कोशा. 8436 ग को. 89003 क्रॉस की पौध से चुनकर निकाली गयी है। यह एक मध्यम देरी से पकने वाली किस्म है जिसे उत्तर पश्चिमी क्षेत्र (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान तथा पश्चिमी एवं केंद्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु अनुमोदित किया है। यह एक मध्यम देरी से पकने वाली किस्म है यह सीधी खड़ी रहने वाली न गिरने वाली किस्म है। इसके गन्ने मध्यम लम्बे, मध्यम मोटाई के हरापन लिये बैगनी रंग के होते है तथा पोरिया बेलनाकार व दरार रहित होती है। इसकी आँख गोलाकार, आँख प्रसीता व आँख कुशन अनुपस्थित होते है। पत्ती खोल पर हल्के कांटे होते हैं।

 

8.को. 0237 (करण-8)

यह एक ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है, जिसे को. 93016 के खुले परागण से प्राप्त संततियों से चुना गया है। केंद्रीय किस्म रिलीज समिति ने इसे वर्ष 2012 में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान तथा पश्चिमी एवं केंद्रीय उत्तरप्रदेश) में उत्पादन हेतु अनुमोदित किया है। यह एक ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है। इस किस्म के गन्ने लम्बे, मध्यम मोटाई के पीले रंग के होते है।

इसकी पोरियां बेलनाकार व दरार रहित होती है। इसकी पत्तियां धनुषाकार, हल्के हरे रंग की होती है तथा पत्ती खोल अर्ध सख्ती से पोरियों के साथ चिपका रहता है। आँख अंडाकार होती है, तथा आँख के नीचे कलिकाधार (कुशन) पाया जाता है। इसके पत्राधार पर भाले के आकार का छोटा आलिन्द होता है। इसके पत्ती खोल पर कांटे नहीं होते है। इससे हल्के पीले रंग का ए1 गुणवत्ता का गुड बनता है। यह किस्म लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है। इसकी उपज क्षमता लगभग 70 से 75 टन/हेक्टेयर तथा शर्करा की मात्रा 18.78 प्रतिशत है।

 

9 .कोशा. 8436

इस किस्म का गन्ना मध्यम लम्बाई का होता है इसकी जिभिका त्रिकोणाकार, पत्तियां सीधी व चैड़ी, पौरियां छोटे आकार की मोटी व बेलनाकार होती है, आँखे गोल व आँख का शिरा वृद्धि छल्ले से नीचे होता है। इसका गलकंबल हल्के बैंगनी रंग का होता है।

 

10. कोशा. 767

इस किस्म का कर्ण आलिन्द व जिभिका की आकृति त्रिकोणाकार होती है। पत्ती खोल पर हल्के कांटे पाए जाते हैं। इसकी पत्तियां धनुषाकार, तना बेलनाकार व पोरियां पीले हरे रंग की होती है। इस किस्म में पोरियों पर गजदंत लाइने दिखाई देती है। इसकी आँखे अंडाकार, वृद्धि दरार उपस्थित होती है। वृद्धि छल्ले कभी-कभी उभरे हुए होते हैं।

 

Source-

  • गन्ना प्रजनन संस्थान

 

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