गन्ने के प्रमुख कीट इस प्रकार है:-
१.प्ररोह छिद्रक
लक्षण
1. प्ररोह छिद्रक का आक्रमण गन्ने में पोरियों के निर्माण से पूर्व तक ही होता है ।
2. इसकी सूड़ियां गन्ने के प्ररोह में जमीन के नीचे वाले भाग में एक या अधिक छिद्र बनाकर प्रवेश कर बढ़वार कर रहे उत्तकों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं जिसके फलस्वरूपमृत कलिका का निर्माण होता है ।
3. मृत कलिका को आसानी पूर्वक खींचा जा सकता है जिससे दुर्गन्ध आती है।
4. यह कीट मानसून से पूर्व (मार्च से जून माह तक) सक्रिय रहता है । इसका प्रकोप हल्की मिट्टी व सूखे की की दशा में अधिक होता है ।
5. यदि इस कीट का प्रकोप अंकुरण के समय में होता है तो मातृ प्ररोह के सूखने के फलस्वरूप खेत में पौधों की संख्या काफी कम हो जाती है ।
प्रबंधन
1. शरद ऋतु में बोई गयी गन्ना फसल में इसका प्रकोप कम होता है अतः देर से बुवाई नहीं करनी चाहिए ।
2. गन्ने की बिजाई के समय खूड़ में बिछाये गये गन्ने के बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफाॅस 20 ई0सी0 तरल कीटनाशी की 2 ली0 मात्रा 350-400 ली0 पानी में घोलकर हजारे की सहायता से गिराकर मिट्टी से ढक दें । अंकुरण की अवस्था में यदि इस कीट द्वारा 25 प्रतिशत से अधिक क्षति की आशंका हो तो क्लोरपायरीफाॅस 2 ली0 350-400 ली0 पानी के साथ पौधों की कतार के साथ मिट्टी पर पुनः डालें।
3. आक्रांत पौधों की मृत कलिका निकाल कर गोफ में पतले तार को डालकर अन्दर पड़ी सूड़ी को मारा जा सकता है ।
4. खेत को कभी सूखने न दें । बार-बार सिंचाई करें तथा पौधों पर हल्की मिट्टी चढ़ाने से सूड़ियों का प्रवेश कम हो जाता है ।
5. ठसके अण्डे परजीवी, ट्राइकोग्रामा किलोनिस की 20,000 संख्या प्रति एकड़ की दर से 4-6 बार दस दिनों के अन्तराल पर खेत में छोडें ।
6. ग्रैनुलासिस वाइरस के 109/ मि0ली0 की दर से बने घोल का छिड़काव गन्ने की बिजाई के 40, 50, 70 और 85 दिन बाद चार बार कर देने से सूड़ियाँ बीमार पड़कर मर जाती हैं ।
२.शीर्ष छिद्रक
लक्षण
1. इस कीट का प्रकोप गन्ने की कल्ला निकलने की अवस्था से पकने तक होता है । उत्तरी भारत में इसकी 5-6 पीढ़ियां पूरे वर्ष में होती है ।
2. इस कीट के प्रथम निर्मोक की सूड़ियां अण्डों से निकलकर पत्ती की मध्य नाड़ी में सफेद सुरंग बना कर प्रवेश करती हैं जो बाद में लाल रंग की हो जाती है । इसकी सूंड़ी गन्ने की मध्य गोब में लिपटी पत्तियों में छिद्रकर अन्दर प्रवेश करती है और जब पत्तियाँ खुलती हैं तो कतार में छर्रे से छिद्रित प्रतीत होती हैं ।
3. जब इस कीट का प्रकोप कल्ले निकलने की अवस्था में होता है तो गोब की मध्य कलिका सूख जाती है जिसे मृत कलिका कहते है जो खींचने पर आसानी से बाहर नहीं निकलती है ।
4. यदि इस कीट का प्रकोप गन्ना निर्माण के समय होता है तो बीच की गोब सूख जाती है, गन्ने की बढ़वार रुक जाती है, गोब के नीचे की आँखों मेें फुटाव हो जाता है और गोंब गुच्छेदार प्रतीत होती है जिसे श्बंची टाॅप श् कहते हैं ।
प्रबंधन
1. शीर्ष छिद्रक के प्रथम तथा द्वितीय पीढ़ी की सूड़ियों का नियंत्रण परमावश्यक है ।
2. अप्रैल माह के अन्त में या मई माह के प्रथम सप्ताह में गन्ने की खड़ी फसल के जड़ क्षेत्र पर रैनेक्सीपायर 20 ई0सी0 तरल कीटनाशी की 150 मि0ली0 मात्रा 400 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें या कार्बोफ्यूराॅन 3 प्रतिशत दानेदार कीटनाशी की 13 कि0ग्रा0 मात्रा/एकड़ की दी से पौधों के आसपास डाल कर सिंचाई करें ।
3. शीर्ष छिद्रक द्वारा गन्ने की पत्तियों पर दिये गये अण्डे समूहों को साप्ताहिक अन्तराल पर एकत्रित करें । इन अण्डों में पल रहे परजीवी को संरक्षण प्रदान करने के लिए 60 मेश के नायलान थैले में रखकर खेत में 4-6 स्थानों पर लटका दें जिससे अण्डों सेे निकलकर परजीवी पुनः खेत में चले जायें ।
4. जल भराव की स्थिति में शीर्ष छिद्रक का प्रकोप बढ़ता है अतः जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें ।
5. इस कीट के अण्ड परजीवी, ट्राइकोग्रामा जापोनिकम के 2 ट्राइको कार्ड/एकड़ की दर से जुलाई से अगस्त तक दस दिन के अन्तराल पर गन्ने की पत्तियों पर लगायें ।
3.स्तम्भ छिद्रक
लक्षण
1. स्तम्भ छिद्रक का आक्रमण मानसून के साथ जुलाई माह से शुरू होकर गन्ना बनने तथा इसकी कटाई तक चलता रहता है
2. इसकी प्रथम एवं द्वितीय निर्मोक की सूड़ियां पत्तियों को खाती हैं तथा तीसरे निर्मोक की सूड़ियां गन्ने मे छेद बनाकर अन्दर प्रवेश करती हैं ।
3. स्तम्भ छिद्रक की सूड़ियां गन्ने के किसी भाग में प्रवेश कर सकती हैं तथा एक गन्ने में कई सूड़ियां पायी जाती हैं ।
4. गन्ने की पोरियों से पत्तियों को हटाने पर इसके द्वारा बनाए गये छिद्र दिखाई देते हैं ।
प्रबंधन
1. स्तम्भ छिद्रक का रासायनिक नियंत्रण इसके क्षति के स्वाभाव तथा गन्ने की अवस्था को ध्यान में रखते हुए कठिन है ।
2. नत्रजन उर्वरकों का अन्धाधुंध प्रयोग, जल भराव, गन्ने का गिरना, जल प्ररोह तथा खेत के आसपास इसके अतिरिक्त भोजन, जाॅनसन घास का होना इस कीट के लिए अनुकूलता प्रदान करते हैं।
3. इसके प्रकोप को कम करने के लिए जल निकास की उचित व्यवस्था जलीय प्ररोहों का उन्मूलन तथा बीज फसल को छोडकर अन्य गन्नों से पत्तियाँ उतार देने पर कम हो जाता है ।
4. इसके परजीवी कोटेशिया लंैविप्स की 800 संख्या/एकड़ की दर से जुलाई से नवम्बर माह तक साप्ताहिक अन्तराल पर खेत में छोडें ।
4.सफेद गिडांर
लक्षण
1. इसकी गिंडारें गन्ने के जड़ तन्त्र तथा जमीन की सतह के नीचे वाले भाग को जुलाई से सितम्बर माह तक खाते रहते हैं ।
2. ठसके द्वारा जड़ जन्त्र के क्षतिग्रस्त हो जाने पर पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं जो इस कीट द्वारा की गई क्षति को दर्शाती हैं । कुछ समय के बाद प्रभावित पौधे खेत में गिर जाते हैं ।
3. इसका शुरूआती आक्रमण खेत में कहीं-कहीं तथा बाद में पूरे खेत में हो जाता है ।
प्रबंधन
1. इस कीट के प्रौढ़ जो भृंग होते हैं, गर्मीं की प्रथम वर्षा के साथ जमीन के नीचे से निकलकर गन्ना फसल के आस-पास पाये जाने वाले पेड़ पौधों पर ऊड़कर चले जाते हैं तथा उनकी पत्तियों को रातभर खाते हैं, फिर सूर्योदय से पूर्व खेत में जमीन के नीचे जाकर अण्डे देते हैं । रात्रि के समय बांस के हुक लगे डंडे से पेड़ की डालियों को हिलाकर उपस्थित प्रौढ़ों को जमीन पर गिराकर एकत्रित कर कीटनाशी मिश्रित जल में डुबोकर मार दें । इस काम को अभियान के रूप् में एक सप्ताह लगातार करना चाहिए ।
2. इसके प्रौढ़ों को मारने हेतु आसपास के पेड़ों पर मानोक्रोटोफास 36 प्रतिशत तरल या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत तरल कीटनाशी की 1 मि0ली0 मात्रा/ली0 पानी में घोल बनाकर बीज टुकड़ों पर छिड़काव कर भृंगों को नियंत्रित किया जा सकता है ।
3. खेत में कम से कम 48 घण्टे तक जल भराव करना, गन्ने की बिजाई से पूर्व खेत की मिट्टी पलट हल से कई बार जुताई करने से खेत में उपस्थित इस कीट के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के ऊपर आ जाने से पक्षियों द्वारा खाकर इनकी संख्या घट जाती है ।
4. इस कीट से प्रभावित खेत में धान-गन्ने का फसल चक्र अपनाएं ।
5. दाने दार कीटनाशी क्विनालफाॅस 5 जी की 8 कि0ग्रा0 मात्रा/एकड़ की दर से प्रभावित खेत में डालकर सिंचाई करने से सूड़ियों की गतिविधि को कम किया जा सकता है ।
5.जड़ छिद्रक
लक्षण
1. जड़ छिद्रक की सूंडी गन्ने के जड़ क्षेत्र में अवस्थित भाग में प्रवेश करती है । फसल की शुरूआती अवस्था मंे इसके क्षति के फलस्वरूप मृत कलिका का निर्माण होता है जो खींचने पर आसानी से बाहर नहीं आता है ।
2. इसके द्वारा गन्ना फसल को जुलाई माह के बाद से काफी नुकसान होता है । गन्ने की पत्तियों का किनारा ऊपर से नीचे की ओर पीला होना इस कीट द्वारा की गयी क्षति की विशेष पहचान है ।
3. गन्ने को उखाड़कर निरीक्षण करने पर जड़ भाग में प्रवेश छिद्र तथा सूंड़ी भी पाई जाती है ।
प्रबंधन
1. गन्ने की बिजाई के समय खूड़ों में डाले गये बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफाॅस 20 ई0सी0 की 2 ली0 मात्रा/एकड़ की दर से 350-400 ली0 पानी में घोल बनाकर हजारे की सहायता से प्रयोग करें ।
2. गन्ने के खेत को सूखने न दें लगातार सिंचाई करते रहें ।
3. बिजाई के 90 दिनांे बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देने से इसका प्रकोप कम होता है ।
4. यदि इस कीट का प्रकोप हो तो क्लोरपायरीफाॅस की 2 ली0 मात्रा /एकड़ की दर से 350-400 ली0 पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ पर हजारे की सहायता से मई एवं अगस्त माह में अवश्य करने से इसका सफलतम नियंत्रण सम्भव है ।
5. ठस कीट से ग्रस्त पौधों को समय-समय पर जमीन की सतह के नीचे से काटकर निकालते रहने पर प्रकोप कम हो जाता है
6. इसके अण्ड परजीवी ट्रायकोग्रामा किलोनिस की 20,000 संख्या /एकड़ की दर से साप्ताहिक अन्तराल पर खेत में छोडे|
Source-
- गन्ना प्रजनन संस्थान