राष्ट्र की समृद्वि व विकास केवल अत्याधिक कृषि व औद्योगिक उत्पादन पर निर्भर न होकर बचत व वास्तविक आय को बढाने के उपयुक्त नये नये तरीके, प्रणालियां व साधनों की खोज अति महत्वपूर्ण है। पैदा की जाने वाली फसलों में कौेन सी फसल अत्यधिक लाभदायक है। फार्म पर पाली जाने वाली गायों, भैंस, मुर्गियों, में कोैन सी नस्लें अधिकतम आय वाली हैं। फसलों के रोगों की रोकथाम करने के लिए कौन सी दवा, खाद की लागत बहुत कम है। किन किन खेती करने की तकनीकियों से कम खर्च करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
प्रत्येक कृषक का उद्देश्य अपने फार्म से अधिक उत्पादन करना ही नही अपितु कम उत्पादन व्यय करके आय को बढ़ाना है। इसी उद्देश्य की प्र्ति के लिए विभिन्न आर्थिक कृषि सिद्वान्तों का प्रयोग करके फार्म उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ उत्पादन लागत को घटाने के लिए भिन्न-भिन्न तरीके निम्न प्रकार से है।
किसान दो तरीके से प्रक्षेत्र की आय को बढ़ा सकता है
उत्पादन को बढ़ाकर
फार्म पर अनेक उद्योग धन्घे होते है जिनमें प्रत्येक की अलग-2 सफलता पर ही कुल फार्म की सफलता निर्भर करती है। अधिक उत्पादन तथा आय कैसे बढ़ायें उत्पादन व्यय कैसे कम करें। इन दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निम्न तीन बातों पर ध्यान देना चाहिए|
a). भाव
b). उत्पादन व्यय प्रति इकाई उपज
c). उपज प्रति हेक्टेयर
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से भाव, उत्पादन-व्यय तथा उपज प्रति एकड़ की अनुकूलता व प्रतिकूलता पर
ही कृषि, कृषक व देश का भाग्य निर्भर करता हैं।
उत्पादन लागत को कम करके
कुल लागत या चल या अस्थिर लागत + अचल या स्थिर लागत
अस्थिर या अपरिवर्तनशील लागत
इससे अभिप्राय उस व्यय से है जोकि उत्पादन बढ़ने अथवा घटने के साथ साथ बढ़ता अथवा घटता है। अर्थात यदि फार्म पर उत्पादन न होगा तो अस्थिर लागत भी शून्य होगी।
उदाहरणतः श्रमिक, बीज, खाद दवाईयों, सिंचाई खर्च, परिवहन एवं विपणन चल पूजी पर ब्याज आदि।
स्थिर अथवा अपरिवतशील लागत
इससे तात्पर्य उस व्यय से है जो कि उत्पादन घटने, बढ़ने अथवा बिल्कुल भी उत्पादन न होने से सर्वत्र अप्रभावित रहता है। उदाहरणतः बीमा, विमूल्यन, लगान, ब्याज, स्थाई श्रम, पशुओ का जीवन निर्वाह आदि लागत उसे कहते है जिसे कुछ प्राप्त करने के लिए खर्च किया जाता है। उदाहरण के तौर पर टैक्स, बीमा, घसरा, लगान, ब्याज, स्थाई श्रम व पशुओं का जीवन-निर्वाह व्यय आदि।
इन दो लागतों के अतिरिक्त पांच और लागतें होती है जिनका जन्म अप्रत्यक्ष रुप से इन्ही दो लागतों के द्वारा होता है ये निम्नलिखत है
1.कुल लागत
2. औसत लागत
3. औसत-स्थिर लागत
4. औसत-अस्थिर लागत
5. अतिरिक्त या सीमांन्त लागत
उत्पादन लागत प्रति हेक्टेयर व प्रति कुंन्तल या प्रति किलो प्रति हेक्टेयर लागत या कुल लागत-सह उत्पादन की कीमत/फसल का क्षेत्रफल हेक्टेयर में प्रति कुंन्तल उत्पादन लागत या कुल लागत-सह उत्पादन की कीमत/मुख्य उत्पादन कुंन्तल में फार्म के संसाधनो में निम्न प्रकार विमूल्यन होता है। विमूल्यन के कुल चार्ज को विभिन्न फसलों के कुल क्षेत्रफल से गुणा करके निकालना चाहिये और जो फसल जितने महीने की है उतने से गुणा कर उस फसल की लागत में जोड देना चाहिए।
चल पूंजी पर ब्याज
इसको बैंक रेट पर फसल के आधे समय के लिए गणना की जाती है। अपनी जमीन का किराया: यह प्रचलित रेट या उत्पाद का 1/6 लगाया जाता हैे।
जोखिम खेती में जोखिम दो प्रकार के होते है
1.व्यवसाय जोखिम
जलवायु, बीमारियों तथा कीमतो के घटने बढ़ने से होती है।
2. फाइनेसिंयल जोखिम
कब और कहाॅ से धन का इंतजाम करना चाहिए। धन देने वाले की जोखिम उसका मुख्य धन, ब्याज तथा अन्य देनदारियां है।
अनिश्चितता
यह निम्न प्रकार की होती हैे
a)साधनों की – भूमि, श्रम एवं पूजी की उपलब्धता
b) उत्पादन – उत्पादन में उतार चढ़ाव के ज्ञान में कमी से गुजरना पड़ता है
c) तकनीकी – किसान को कृषि तकनीकी का ताजा ज्ञान होना चाहिये
d) संस्थागत – यह भूमि के लगान की शर्तों व ऋण देने वाली संस्थाओं एवं किसानों के दृष्टिकोण पर निर्भर करता हैे
निर्णय कैसे लें
निर्णय लेते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। हमेशा एक से ज्यादा फसल उगाना चाहिये साथ ही दूसरे व्यवसाय जैसे पशुपालनए मधुमक्खी पालनए बकरीपालन आदि करने से जोखिम कम होता है तथा लाभ ज्यादा होता है।
लचीलापन
फार्म की योजना बनाते समय योजना में लचीलापन रहना चाहिए जिससे जरूरत पड़ने पर तुरन्त बदलाव किया जा सके।
तरलता
कुछ ऐसे श्रोत्र होने चाहिये कि जरूरत पड़ने पर तुरन्त पैसा मिल सके जिससे यदि कोई कारक खाद या बीज खरीदने पर बचत की जा सके।
1.केेिपटल राशनिंग: सभी लाभकारी योजनाओ में खर्च करने के लिये ऋण लिया जा सकता है। लाभकारी व्यवसायों को क्रमवद्ध करना चाहिये जिससे ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सकें।
2. बीमा:यह जोखिम को कम करता हैे तथा किसान का साहस बढ़ाता है।
3. ऐसे फसल व व्यवसाय चुनने चाहिये जिसके उत्पादन व उत्पाद की कीमतों में उतार चढ़ाव कम हो।
अभी तक किये गये अनुसंधानों से निम्नलिखित तकनीकियां लाभकारी पायी गई है जिनके द्वारा फसल का उत्पादन व्यय कम करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।
तकनीकियों से लाभ
1. शून्य कर्षण
हरियाणा के कैथल, करनाल, कुरूक्षेत्र, पानीपत एवं यमुनानगर तथा उत्तराखण्ड के उघमसिंह नगर जिलो में किसानो के आर्थिक अध्ययन से पता चला है कि शून्य कर्षण में 10-11 घन्टे प्रति हेक्टेयर समय तथा 4500 से 5500 रू तक की बचत होती है। इसके के साथ साथ 40 से 45 लीटर डीजल की बचत होती है। कुल करीब रू 3000 प्रति हे0 से ज्यादा लाभ प्राप्त हुआ। कृषि प्रणाली अनुसंधान निदेशालय मोदीपुरम मेरठ 2003-04 में किये गये एक अध्ययन के अनुसार गेंहू की शून्य कर्षण तकनीक के अन्तर्गत बुआई करने से सिंचाई की मात्रा में करीब एक चैथाई की बचत की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त डीजल की प्रति हे0 खपत में 60 लीटर, प्रचालन लागत में 35.4 प्रतिशत तथा बीज की मात्रा में 6.8 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है। इसके अलावा खरपतवार की मात्रा में 20 प्रतिशत की कमी तथा जमाव करीब तीन दिन पहले हो जाता है क्योंकि इस तकनीक में खेत की तैयारी का समय 9.6 प्रतिशत बच जाता है तथा उर्वरक एवं बीज उचित स्थान एवं गहराई पर पड़ते है। परन्तु लाभ होते हुऐ भी किसान इस तकनीक को नहीं अपना रहे है उसके
निम्नलिखित कारण हैे
- यह हल्की भूमि में उपयुक्त नहीं है।
- शून्य कर्षण मशीन समय से उपलब्ध नहीं होना।
- बीज की मात्रा की सही गणना न होना।
- कुछ किसानो का मानना है कि इसका अंकुरण कम होता है तथा खतपतवार ज्यादा होते है।
2.फसल पद्वतियां अपनाकर
विभिन्न प्रकार की फसल प्रणाली जैसे गन्ना-पेडी-गेहूॅं, धान-आलू-सूरजमुखी, धान-आलू-गेहूॅ, व मक्का-आलू-प्याज इत्यादि फसल क्रमो को अपनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन व अधिक लाभ कमा सकते है।
3. हरी खाद बनाना
रबी की फसल काटने व खरीफ की फसल बोने के मध्य काफी समय खेत खाली पड़े रहते है। अतः इस बीच के समय में हम हरी खाद लेकर अगली फसल की रसायनिक खाद की पूर्ति के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते है। जिससे उत्पादन में वृद्वि की जा सकती है।
4. लेजर लैण्ड लैवलर से खेतों को समतल करना
खेत का समतल होना भी आवश्यक होता है अन्यथा असमतल खेत में सभी जगह सिचाई का पानी भी नहीं पहॅुचता है। जिससे जगह-जगह नमी की कमी हो जाती है और बीज का अंकुरण व पौधों की भौतिक वृद्वि वाधित होती है। इसके निदान हेतु आधुनिक यंत्र लेजर लैण्ड लैवलर से खेत को समतल कराना चाहिए। एक अध्ययन में पाया गया है कि लेजर संचाालित जमीन समतलीेरण यंत्र से समतल किये गये खेतों में बिना समतल की तुलना में प्रत्येक सिचाई के दौरान करीब 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है साथ ही साथ सपाट बुआई के मुकाबले पतली तथा हल्की उठी हुई ऐसी क्यारियों, जिनके दोनो तरफ सिचाई नालियां हों, बुआई करने से कुल सिचाई की मात्रा में लगभग 20 प्रतिशत की कमी आ जाती है। इस प्रकार लेजर लैंड लेवलर से समतल करने से प्राकृतिक सम्पदा (पानी) की बचत होगी और उत्पादन में भी वृद्वि होगी।
5. संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना
प्रायः यह देखा गया है कि फसल को उर्वरकों की जरूरत न होते हुए भी किसान उसमें उर्वरक डालता रहता है। जिससे उत्पादन व्यय बढ़ जाता है और फसल की भौतिक वृद्वि भी अधिक हो जाती है। जिसके फलस्वरूप फसल गिर जाती है। इसका मुख्य नुकसान यह होता है कि फसल में या तो दाना पड़ता ही नहीं है और यदि दाना पड़ता भी है तो उसका आकार छोटा रह जाता है। जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अतः मिट्टी की जांच कराकर व फसल की मांग के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। इससे उत्पादन भी अधिक होगा और उत्पादन लागत कम आयेगी।
6. मुख्य फसल में अन्त
फसलों की बुवाई करना: यदि कृषक की जोत छोटी है तो वह मुख्य फसल जैसे सरसों, गेहॅूं व गन्ना के साथ बीच में अन्तः फसलो के रूप में जैसे मसूर, चना, मटर के रूप में लेकर अपने परिवार की दाल व सब्जी की पूर्ति कर सकता है। साथ ही साथ मुख्य फसल की पैदावार अच्छी होती है। इस पद्वति से उत्पादन भी अधिक होता है।
7. स्ट्रिप टिल ड्रिल विधि से फसलो की बुआई करना
इस मशीन से बुआई करने से दोहरा लाभ होता है (1) खेत की तैयारी में जो ऊर्जा व पैसा का खर्चा कम लगता है दूसरे समय से फसल की बुवाई हो जाती है। अतः इसका प्रयोग करके भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
8. बैड प्लांटिंग से बुआई करना
इस विधि में बैड प्लान्टिंग रबी व खरीफ सीजन में बुवाई करके खाद व बीज की बचत की जा सकती है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सिंचाई में एक तिहाई पानी की बचत हो जाती है।
9. स्प्रिरिकलर सिस्टन व ड्रिप विधि से सिचाई करना
इन दोनो विधियों से सिंचाई करने से पानी की काफी बचत हो जाती है साथ ही साथ भूमि में हर समय नमी बनी रहती है। जिससे फसल अच्छी तरह पकती है परिणामस्वरूप उत्पादन अधिक होता है। साथ ही साथ प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहण होने से बचा जा सकता है।
10. कृषि विविधीकरण
जिस फार्म पर किसी एक व्यवसाय या वस्तु से आय पूरे फार्म की आय का 50 प्रतिशत से कम होती है उस फार्म को बहुप्रकारीय फार्म कहते है। इस फार्म पर कृषि करने की क्रिया को बहुप्रकारीय खेती कहते है बहुप्रकारीय खेती को सामान्य खेती भी कहा जाता है। इस प्रकार के फार्मों पर कृषक विभिन्न प्रकार के साधनों पर निर्भर रहता है।
बहुप्रकार खेती
बहुप्रकार खेती के लाभ
बहुप्रकार खेती के निम्नलिखित लाभ होते है
● फार्म पर कार्यो का वितरण पूरे वर्ष समान रुप से रहता है।
● मृदा उर्वरता कर सुरक्षा फसलों के हेर फेर से सम्भव होती है।
● मिश्रित फसलों का बोना, भूमि पर अनुकूल फसलों का उगाना।
● फार्म के यन्त्रों का आर्थिक दृष्टि से ठीक-ठीक प्रयोग करना होता है।
● जेखिम कम हो जाती है।
● फार्म पर आय शीघ्रतापूर्वक और क्रम में हो जाती है।
● विभिन्न आय के साधनों के परिणामस्वरुप फार्म पर पूजीं नियोजन निर्भयता पूर्वक किया जा सकता है।
● बाजार भावों के उतार चढ़ाव बहुप्रकारीय खेती को अपेक्षाकृत कम प्रभावित करते है।
● नये सिरे से खेती करने वाले मनुष्य के लिए यह उत्तम प्रणाली है।
बहुप्रकार खेती से हानियां
बहुप्रकार खेती के निम्नलिखित हानियां होतीे है
● फार्म पर अधिक क्षमता व शक्ति वाली मशीन रखना असम्भव हो जाता है।
● फार्म के सभी कार्य यन्त्रों द्धारा नही किये जा सकते।
● फार्म पर विभिन्न प्रकृति के अधिक कार्य होने के कारण छोटी-छोटी चोरियों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
● बाजार से क्रय विक्रय कम क्षमता से होते है।
● किसान को अवकाश कम मिलता है।
बहुप्रकार खेती की जरूरतें
● यातायात की पर्याप्त सुविधाएं चाहिएं।
● श्रमिकों की आवश्यकता वर्ष भर आवश्यक है।
● किसान के पास पर्याप्त पूजीं होनी चाहिए।
● कृषक में एक सफल व्यापारी की क्षमता होनी चाहिए।
स्रोत-
- कृषि प्रणाली अनुसंधान परियोजना निदेशालय