खुम्ब बीज (स्पाॅन)

साधारणतः फसल उगाने हेतु बीज की आवश्यकता होती है। कई प्रकार के पौधो में बीज की जगह उनके अन्य हिस्से जैसे तना, गांठ आदि का प्रयोग किया जाता है। खुम्ब के बीजाणु (स्पोर) बनते तो हैं मगर सभी प्रकार के बीजाणु फल यानि बेसिडियोकार्प बनाने में सक्षम नहीं होते हैं। खुम्ब उगाने हेतु वानस्पतिक प्रर्वधन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। सर्वप्रथम शु़द्ध कवक जाल (माईसीलियम) संर्वधन बनाया जाता है और फिर उसे उबले हुए गेहूं, बाजरा, ज्वार, राई आदि के बीजों पर उगाया जाता है (चित्र)। इस प्रकार से तैयार किये गये संर्वधन को ही खुम्ब बीज या स्पाॅन के नाम से जाना जाता है।

सफल खुम्ब उत्पादन, शुद्ध कवक जाल जो कि अधिक पैदावार देने में सक्षम, लज्जतदार, सफेद रंग और बीमारियों एवं कीडो से रहित हो, पर निर्भर करता है। खुम्ब के कवक जाल को फल (बेसिडियोकार्प) से कीटाणु रहित अवस्था में कृत्रिम माध्यम पर उगाने, उसका शुद्धिकरण एवं संरक्षण करने हेतु कीटाणुरहित प्रयोगशाला एवं तकनीकी जानकारी का होना अत्यन्त आवश्यक हैं। इसलिए सभी किसान व मशरूम उत्पादक कवक जाल या खुम्ब बीज को अपने घर पर तैयार नहीं कर सकते तथा खुम्ब बीज (स्पाॅन) प्राप्त करने हेतु उन्हें सरकारी या गैर-सरकारी खुम्ब बीज उत्पादक संस्थाओं से मद्द लेनी पड़ती है।

 

खुम्ब के स्पाॅन को देखकर खुम्ब की गुणवत्ता को पूर्णतः परखा नहीं जा सकता इसलिए किसानों व मशरूम उत्पादकों को अच्छी व विश्वसनीय संस्थाओं से ही स्पाॅन खरीदना चाहिए।

खुम्ब कवक जाल संर्वधन बनाना शुद्ध संर्वधन बनाने के लिए सबसे पहले कवक जाल के विकास के लिए उचित कृत्रिम माध्यम को तैयार किया जाता है। इस कार्य के लिए कई प्रकार के माध्यम अत्यन्त सुगम हैं। जिनमें से कुछ माध्यमों के बनाने की विधि निम्नलिखित है:-

 

क) पोटेटो डैक्सट्रोस अगर माध्यम

आलू                              =   200 ग्राम
अगर अगर पाऊडर       =  20 ग्राम
डैक्सट्रोस                       = 20 ग्राम
शुद्ध पानी                      = एक लीटर

इस विधिनुसार 250 ग्राम आलू को धोकर, छिलका उतार कर, छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। करीब 200 ग्राम आलू को तोलकर आधे लीटर पानी में 15 मिनट तक उबाला जाता है। इसी प्रकार एक दूसरे बर्तन में आधे लीटर उबलते पानी में अगर अगर पाऊडर एवं डैक्सट्रोस मिलाया जाता है। आलू के अर्क को छान कर इस मिश्रण मे मिलाकर पानी की मात्रा को एक लीटर कर लिया जाता है। तत्पश्चात ओटोक्लैव में 15-20 मिनट तक 1210 सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है। इस प्रकार से तैयार कृत्रिम माध्यम पर खुम्ब कवक जाल संवर्धन बनाया जाता है।

 

ख) माल्ट अर्क माध्यम

माल्ट                                      = 25 ग्राम
अगर अगर पाऊडर                = 20 ग्राम
शुद्ध पानी                                  = 1 लीटर

उबलते हुए पानी में माल्ट के अर्क को पांच मिनट तक उबाला जाता है। अगर अगर पाऊडर को काँच की छड़ी से हिलाते हुए मिश्रण में मिला दिया जाता है। तत्पश्चात इस माध्यम को परखनलियों में लगभग 10-15 मि0ली0 प्रति परखनली के हिसाब से और फ्लास्कों में आधे हिस्से तक भर कर रूई का ढक्कन बनाकर बन्द कर दिया जाता है। इन परखनलियों एवं फ्लास्कों को ओटोक्लेव में डालकर 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दवाब उबलते हुए पानी में माल्ट के अर्क को पांच मिनट तक उबाला जाता है।

अगर पाऊडर को काँच की छड़ी से हिलाते हुए मिश्रण में मिला दिया जाता है। तत्पश्चात इस माध्यम को परखनलियों में लगभग 10-15 मि0ली0 प्रति परखनली के हिसाब से और फ्लास्कों में आधे हिस्से तक भर कर रूई का ढक्कन बनाकर बन्द कर दिया जाता है। इन परखनलियों एवं फ्लास्कों को ओटोक्लेव में डालकर 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दवाब पर 15-20 मिनट के लिए रखकर जीवाणु रहित किया जाता है। इस प्रकार परखनलियां एवं फ्लास्क संर्वधन बनाने के लिए तैयार की जाती हैं।

 

ग) खाद (कम्पोस्ट) अर्क माध्यम

कम्पोस्ट खाद                      =150 ग्राम
अगर अगर पाऊडर             = 20 ग्राम
शुद्ध पानी                              = 1 लीटर

 

खाद को दो लीटर पानी में तब तक उबाला जाता है, जब तक पानी उड़कर एक लीटर रह जाये। तत्पश्चात इस खाद के अर्क को बारीक कपड़े से छान लिया जाता है। इस अर्क को दोबारा उबालकर अगर अगर पाऊडर, कांच की छड़ी की मदद से धीरे-धीरे मिला लिया जाता है। इस माध्यम को परखनलियों एवं फ्लास्कों में डालकर ओटोक्लेव में रखकर निर्जीवीकृत किया जाता है। इन कृत्रिम माध्यमों के अलावा अन्य कई कृत्रिम माध्यमों का चयन किया गया है इनमें से प्रमुख है गेहूं अर्क माध्यम (गेहूं का अर्क – 32 ग्राम, अगर अगर पाऊडर – 20 ग्राम, शुद्ध पानी – एक लीटर), चावल छिलका अर्क (चावल छिलका – 200 ग्राम, जीलेटिन – 20 ग्राम, शुद्ध पानी – एक लीटर) आदि। इन माध्यमों को भी खाद के अर्क जैसे पानी में उबाल कर जीवाणुरहित करने के पश्चात कवक जाल बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

 

शुद्ध कवक जाल संवर्धन विधियां

अ) उत्तक संवर्धन (टिशू कल्चर)

शुद्ध कवक जाल उगाने के लिए वानस्पतिक प्रर्वधन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से बीज बनाने के लिए खुम्ब की टोपी को 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराईड से जीवाणु रहित किया जाता है। तने एवं टोपी के बीच (गले) से वानस्पतिक हिस्से को लेकर कृत्रिम माध्यम में पैट्रीप्लेट्स में 250 सेल्सियस पर उष्मायित्र (बी.ओ.ड़ी.) में 4-5 दिन के लिए रख दिया जाता है। तत्पश्चात किनारे पर उगते हुए कवक जाल को सावधानी से किटाणु-रहित प्रयोगशाला में परखनलियों में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इन परखनलियों को रूई के ढक्कन से बन्द करके उष्मायित्र में 250 सेल्सियस तापक्रम पर लगभग 14 से 18 दिन तक रखा जाता है। इस बीच कवक जाल के बारीक रेशे पूरी तरह से फैल जाते हैं। इसे ही उत्तक संवर्धन कहते हैं।

ब) बीजाणु संवर्धन (स्पोर कल्चर)

सभी बीजाणु खुम्ब की टोपी बनाने में सक्षम नहीं होते क्योंकि टोपी बनाने के लिए जरूरी गुणसूत्र अलग-अलग बीजाणुओं में उपस्थित होते हैं इसलिए एक बीजाणु के कवक जाल से खुम्ब बीज नहीं बनाया जाता। अनेक बीजाणुओं के मिश्रण से बनाये गये बीज को फसल उगाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। इस विधि से बीजाणु संवर्धन तैयार करने के लिए खुम्ब की टोपी में झिल्ली से ढ़के हुए पत्तेदार गलफडों में अंसख्य बीजाणु होते हैं जो कि टोपी की परिपक्वता की अवस्था में झिल्ली फटने पर नीचे गिर जाते हैं।

प्रयोगाशाला में इन बीजाणुओं को जीवाणु रहित कागज या पैट्रीप्लेट में इकठ्ठा किया जाता है। इस स्पोर प्रिन्ट (बीजाणु छाप) को पांच-दस मि0ली0 पानी में घोलकर उचित माध्यम में मिलाया जाता है। बीजाणु वाले इस माध्यम को निर्जमीकृत पेट्रीप्लेटों में 250 सेल्सियस पर उष्मायित्र में 4-5 दिन रखा जाता है। तत्पश्चात तेजी से उगते हुए कवक जाल के छोटे से टुकड़े को माध्यम के साथ सावधानी पूर्वक परखनलियों में स्थानान्तरित कर 250 सेल्सियस पर 15-20 दिनों तक उष्मायित्र में उगाया जाता है। इस विधि को बहुबीजाणु संवर्धन या मल्टी स्पोर कल्चर के नाम से जाना जाता है।

 

खुम्ब बीज (स्पाॅन) तैयार करना

खुम्ब के बीज को तैयार करने के लिए अनेक प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, बाजरा, ज्वार, राई आदि या लकड़ी के बुरादे आदि का प्रयोग किया जाता है। प्रायः खुम्ब का बीज गेहूं के दानों पर बनाया जाता है। गेहूं के दानों को पहले साफ किया जाता है फिर टूटे-फूटे दानों को बाहर निकाल दिया जाता है। गेहूं से दुगनी मात्रा में पानी डालकर 15-25 मिनट तक (जब तक दाने आधे पक जाएं पर फटें नहीं) उबाला जाता है इसके पश्चात जाली पर दानों को पलट लिया जाता है, जिससे अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाये।

इन उबले दानों को साफ कपड़े पर छाया में 4-6 घण्टे तक सुखाया जाता है। इसके पश्चात इन दानों में 2 प्रतिशत जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) तथा 0.5 प्रतिशत मारवल पाऊडर (कैल्शियम कार्बोनेट) अच्छे से मिला देते हैं। यदि 100 किलोग्राम सूखा गेहूं उबालने के लिए रखा है तो इसमें 2 किलोग्राम जिप्सम व आधा किलोग्राम कैल्शियम कार्बोनेट मिलाना चाहिए। इन रसायनों को मिलाने से न केवल गेहूं के दानों की अम्लीयता व क्षारीयता ठीक रहेगी अपितु यह दानों को आपस में जुड़ने से भी रोकेगें।

अब इन दानों को ग्लूकोज या दूध की बोतल में लगभग 300 ग्राम प्रति बोतल के हिसाब से भर कर पानी न सोखने वाली रूई के ढक्कन से बन्द कर दिया जाता है। अब इन बोतलों को 22 पौंड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ओटोक्लेव में 1) से 2 घण्टे के लिए रखा जाता है इसके पश्चात इन बोतलों को ओटोक्लेव से निकाल कर ठण्डा होने के लिए रख दिया जाता है। बोतलों का तापमान सामान्य हो जाने पर ही इन बोतलों का प्रयोग मास्टर संवर्धन बनाने के लिए किया जाता है।

अब परखनलियों में पहले से तैयार शुद्ध कवक जाल संर्वधन को निवेशन सुई की सहायता से माध्यम के साथ इन बोतलों में डाल देते हैं। इन बोतलों को इस प्रकार से हिलाया जाता है कि कवक जाल गेहूं के दानों में दब जाये। अब इन बोतलों को 250 सेल्सियस पर उष्मायित्र में रखा जाता है। 5-7 दिन बाद इन बोतलों को इस प्रकार हिलाया जाता है कि उगता हुआ कवक जाल अधिक से अधिक दानों से सम्र्पक स्थापित कर ले। बोतलों को हिलाकर पुनः उष्मायित्र में रख दिया जाता है। लगभग तीन सप्ताह में मास्टर संर्वधन (मास्टर स्पाॅन) तैयार हो जाता है।

 

बीजाई हेतु उपयुक्त बीज बनाना

बीजाई के लिए बीज बनाने हेतु गेहूं उबालने से लेकर रसायन मिलाने तक की प्रक्रिया मास्टर स्पाॅन के समान ही होती है। परन्तु कांच की बोतलों की जगह पोलीप्रोपाईलीन के लिफाफों का प्रयोग किया जाता हैं। इन लिफाफों में सुविधानुसार 250, 500 या 1000 ग्राम बीज भर दिया जाता है। बीज लिफाफे की क्षमतानुसार  ही भरा जाता है। गेहूं भरते समय लिफाफों का विशेष ध्यान रखा जाता है कि लिफाफे लगभग आधे खाली रहे। इन लिफाफों पर मोटे प्लास्टिक की छल्ले जिनकी तृज्या आधा इंच के लगभग होती है, में पिरोह लिए जाते हैं और लिफाफे के खुले सिरे को बाहर की तरफ पलट लिया जाता है, जिससे लिफाफे का मुंह निश्चित आकार ले लेता है।

अब पानी न सोखने वाली रूई के ढक्कन (प्लग) से लिफाफे के मुंह को बन्द कर दिया जाता है। इन लिफाफों को रसायन में मिले गेहूं के साथ 22 पौड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ओटोक्लेव में 2 घण्टे तक जीवाणु रहित किया जाता है। इन लिफाफों के ठण्डा होने पर निजर्मीकृत निवेशन कमरे में लेमिनार फ्लो की उपस्थिति में ले जाया जाता है।

पहले से बनाये मास्टर संवर्धन की बोतल को खोलकर कांच की छड़ी से मास्टर संवर्धन के दानों को अलग-अलग किया जाता है। इसमें से कुछ दाने प्रत्येक पोलीप्रोपाईलीन के लिफाफों में डाल दिया जाता है। इन लिफाफों को भी मास्टर की बोतलों की तरह 250 सेल्सियस के तापमान पर उष्मायित्र में 2-3 सप्ताह के लिए रखा जाता है। इस प्रकार तैयार बीज बीजाई के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। शुद्ध संर्वधन को श्वेत पतले रेशमी तन्तुओं के रूप में पहचाना जाता है। जिन बोतलों या लिफाफों में अन्य रंग जैसे पीला, हरा, काला, गुलाबी, भूरा रंग का कवक जाल फैलता दिखाई दे उन्हें निकाल देना चाहिए।

 

बीज का भण्डारण तथा परिवहन

जहाँ तक हो सके ताजे बीज को ही प्रयोग में लाना चाहिए। यदि अधिक मात्रा में बीज का उत्पादन व्यवसायिक तौर पर करना हो तो बीज को 4-60 सेल्सियस पर 4-6 माह तक रखा जा सकता है। संग्रहण अथवा भण्डारण करते समय खुम्ब के बीज को 250 सेल्सियस या इससे अधिक तापमान पर कभी भी नहीं रखना चाहिए। जहाँ तक हो सके परिवहन के दौरान बीज को प्रशीतित गाड़ी में ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना चाहिए।

यदि बीज की मात्रा कम हो या प्रशीतित गाड़ी उपलब्ध न हो तो स्पाॅन का परिवहन शाम को या रात्रि के समय करना चाहिए। क्योंकि रात के समय तापमान सहज ही कम हो जाता है। कोशिश करनी चाहिए कि परिवहन के तुरन्त बाद ही खुम्ब की बीजाई पहले से तैयार खाद में कर देनी चाहिए। एक बार भण्डार किये गये बीज को परिवहन उपरान्त पुनः भण्डारण के लिए नहीं रखना चाहिए। यदि अधिक मात्रा में खुम्ब बीज का परिवहन करना हो तो हवादार डिब्बों या बोरो का प्रयोग करना चाहिए।

 

स्रोत-

  • खुम्ब अनुसंधान निदेषालय
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