अन्य फसलों की भांति खुम्ब को कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े और सूत्रकृमि क्षति पहुँचाते हैं। सिएरिड मक्खी, फोरिड मक्खी, स्प्रिंग टेल्स, माईट और सूत्रकृमि खुम्ब की बीजाई से लेकर तुड़ाई तक किसी भी अवस्था में क्षति पहुँचाते हैं। इसके अतिरिक्त खुम्ब एक आंतरिक फसल होने के कारण उत्पादन कक्षों में सही मात्रा में नमी और तापमान रखने की आवश्यकता होती है जो कि खुम्ब के कीड़ो मकोड़े के प्रजनन के लिए उपयुक्त है। कम अवधि की फसल होने के कारण व फलनकाय में अवशेषित रसायन, अवशेष समस्या, कीटनाश्कों का खुलेआम प्रयोग वर्जित करती है। अतः खुम्ब उत्पादन में कीड़ो मकोड़े से बचने के लिए पहला कदम कीड़ों-मकोड़ों के प्रवेश को रोकना है। खुम्ब में निम्नलिखित कीड़े-मकोड़े आते हैं।
1) मक्खियाँ
खुम्ब में तीन प्रकार की मक्खियाँ नुकसान पहुँचाती है।
अ) सिएरिड मक्खी
ये खुम्ब की सर्वाधिक क्षतिकारक मक्खियां मानी जाती हैं तथा यह मच्छर के आकार की होती है। इन की दो जातियाँ लाईकोरियेला सोलेनाई तथा ला0 अरिपिला खुम्ब की फसल को क्षति पहुँचाती हैं। इन छोटी (3-4 मि0मि0) नैट के आकार की मक्खियों की लम्बी श्रृंगिकायें होती हैं। ये प्रायः पत्ती की खाद, जंगली कवकों तथा सड़ती हुई पादप-सामग्रीयों में रहती हैं और खुम्ब की खुश्बू से आकृषित हो कर उत्पादन कक्षों में पहुंच जाती हैं। इसके लार्वा, सफेद, पदरहित 1-5 मि0मि0 लम्बे मैगट होते हैं जिनमें काला चमकता हुआ मुडंक होता है। यदि इनका आक्रमण प्रारंभिक अवस्था में हो तो ये कवक जाल फैलाव में बाधा डालते हैं, जिसके फलस्वरूप उत्पादन बहुत कम हो जाता है। लार्वा खुम्ब की नवजात कलिकाओं तथा परिपक्व खुम्ब दोनों को क्षति ग्रस्त करते हैं और उन्हें भूरे रंग का एंव चिमडा बना देते हैं। लार्वा खुम्ब के तने की ऊतकों को खा कर उनमें सुंरगों का निर्माण कर देते हैं और कभी-कभी पूरे परिपक्व खुम्ब को ही खा लेते हैं। प्रौढ़ावस्था प्राप्त कर ये मक्खियाँ खुम्ब के कई प्रकार के रोगों, सूत्रकृमियों व बरूथियों के सवांहक का कार्य करती हैं। जब मशरूम कम्पोस्ट को चरम-ऊष्मानित करने के बाद ठंडा किया जाता है तब प्रौढ़ सिएरिड मक्खियाँ खाद की मीठी महक से आकृषित हो जाती हैं और खाद में प्रत्येक मादा मक्खी लगभग 100-140 अडें देती है। इन्हीं अडों से लार्वा पैदा होते हैं जो स्पाॅन विस्तार (कवक जाल फैलाव) की अवधि में फैलने वाले कवक जाल को नष्ट कर देते हैं। इन लार्वों से उत्पादन कक्षों में उपलब्ध तापमान के अनुसार 2-3 सप्ताह के भीतर प्रौढ़ मक्खियों की नई पीढ़ी पैदा हो जाती है।
ब) फोरिड मक्खी
मेगासीलिया हाल्टेरेटा तथा मे0 नाइग्रा फोरिड मक्खी की दो ऐसी जातियाँ है जो श्वेत बटन खुम्ब को अत्याधिक हानि पहुँचाती है। फोरिड एक छोटी (2-3 मि0मि0) कूबडयुक्त पीठ वाली मक्खी है। रंग भूरा-काला होता है और वे सिएरिड मक्खी से अधिक मजबूत होती है। इनके लार्वो का रंग सफेद होता है और यह पदरहित होते हैं। इनके मुडंक का सिरा नुकीला होता है। ये मक्खियां तेज एवं झटके वाली गति से इधर-उधर भागती है। मादा प्रौढ़ मक्खियां बढ़ते हुए खुम्बों के गिलों (गलफड़ों) पर या केसिंग मिश्रण की सतह पर अंडे देती हैं। लार्वा, खुम्बों के तनों में सुरंग बनाते हैं। ऐसा पाया जाता है कि प्रति 30 ग्राम खाद में 100 लार्वा की संख्या, खाद में कवक जाल को गहन क्षति पहुंचाने के लिए पर्याप्त होती है। मे0 हेल्रेटा की प्रौढ़ मक्खियाँ बढ़ते हुए आकर्षित होती हैं और खाद में एक मादा लगभग 50-60 अंडे देती है। ढींगरी खुम्ब में लार्वा गिलों के बीच रहकर खुम्ब को खाते है।
स) सेसिड मक्खी
सेसिड की प्रौढ़ मक्खियाँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि आँखों से शायद ही दिखती हैं। इन्हें इनके छोटे लार्वों की सहायता से पहचाना जा सकता है, जो पदरहित एवं सफेद अथवा नांरगी रंग के होते हैं। इनका मुंडक स्पष्ट नहीं होता, यद्यपि उनके मुंडक के स्थान पर दो ‘ढृक-बिन्दू’ मौजूद होते है जो इसे एक्स का आकार देते हैं। सेसिड मक्खी की प्रजनन-क्षमता बहुत तीव्र है जिसके फलस्वरूप यह उत्पादन को भारी हानि पहुँचाते हैं। इसके लार्वा, कवक जाल, तने के बाहरी भाग तथा तने एवं गलफंडों की संधि-स्थल का भक्षण करते हैं। खुम्बों में लार्वो की उपस्थिति तथा बाद में जीवाणु सक्रंमण के कारण खुम्ब भूरे एवं बदरंग हो जाते हैं और उनमें छोटे-छोटे स्रावी दाग पैदा हो जाते हैं।
प्रबन्धन और रोकथाम
खुम्ब की मक्खियों के नियन्त्रण एवं कुशल प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित उपायों की अनुसंशा की जाती है।
1. अग्रिम नियन्त्रण विधियां
अ) साफ-सफाई
खुम्ब उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। खुम्ब उत्पादन में साफ-सफाई खाद बनाने से पहले ही शुरू हो जाती है। खाद बनाने के प्रांगण में खाद बनाने के 24 घण्टे पूर्व 2 प्रतिशत फार्मेलीन का छिड़काव करना चाहिए। खाद प्रांगण की साफ-सफाई,कीड़ो मकोड़े का नियन्त्रण करता है। पास्चुरीकरण कीड़ो मकोड़े की सभी अवस्थाओं को नियंत्रित करता है।
ब)दरवाजे और खिड़कियों में जाली लगाना
खुम्ब की मक्ख्यिां बढ़ते हुए कवक जाल की महक की ओर आकर्षित होती हैं। खुम्ब उत्पादन के समय ये मक्खियां उत्पादन कक्षों में प्रवेश करती हैं और बीजित कम्पोस्ट और खुम्ब क्यारियों में प्रजनन करती हैं। छोटे आकार के कारण ये मक्खियां साधारण जाली से आसानी से आ और जा सकती हैं। इसलिए इन मक्खियों केप्रवेश को रोकना और भी जरूरी हो जाता है। दरवाजों और रोशनदानों को 35-40 मेश/से0मी0 आकार केनाईलोन या तार की जाली लगाने से इन मक्खियों के प्रवेश को रोका जा सकता है।
स)जहर आर्कषण
यदि उत्पादन के समय, मक्खियां हो तो इनको अन्य विधियों द्वारा भी नियन्त्रित किया जा सकता है। बैगोन कीटनाशक को पानी में 1:10 के अनुपात में मिलाकर और उसमें थोड़ी सी चीनी डालकर उत्पादन कक्षों में रखने पर मक्खियों को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित किया जा सकता है।
द)चिपचिपी पट्टियां
कमरे की दीवार में जीरो वाट का पीले रंग का बल्ब लगा दें। बल्ब के नीचे पाॅलीथीन की शीट में चिपचिपा पदार्थ लगाकर मक्खियों का नियन्त्रण किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा मक्ख्यिों को उत्पादन कक्षों में प्रकट होने का समय व संख्या के बारे में पता लगाया जा सकता है।
2. उपचार के तरीके
a)बीजाई के 7 दिन बाद, क्यारियों में 0.01 प्रतिषत मैलाथियाॅन कीटनाषक घोल का छिड़काव करें
b) फसल में इनका प्रकोप हो तो डाईक्लोरोवोस (न्यूवान) कीटनाषक का 0.1 प्रतिषत घोल का छिड़काव बैगों, पेटियों, दीवारों और फर्श पर करें।
c) उत्पादन के समय मक्खियों के प्रकोप को रोकने के लिए दीवारों पर 0.02 प्रतिशत डेसिज कीटनाशक का छिड़काव करें। छिड़काव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि एक ही कीटनाशक का बार-2 छिड़काव न हो।
d) पूरा उत्पादन लेने के बाद, खाद को कक्ष से दूर गड्ढ़े में फेंक कर 10 से0मी0 मोटी मिट्टी की परत से दबा दें।
e) डाईफलूबेनजूरोन (0.01:) का छिड़काव बैगों में करें।
2) स्प्रिंग टेल्स
स्प्रिंग टेल्स लगभग 2.85 मि0मी0 लम्बा एक सूक्ष्म कीड़ा है जिनके शरीर के दोनों किनारों पर हल्की बैगंनी रंग की पट्टियाँ होती हैं। इनके शरीर का रंग मटमैला होता है। इन कीड़ों के पंख नहीं होते हैं व छेड़ने पर उछलते हैं।
नुकसान
ये खुम्ब के कवक जाल को खाते हैं जिससे खुम्ब कलिकाओं की बढ़ोत्तरी रूक जाती है तथा खुम्ब के ऊपर छोटे-छोटे गड्ढ़े बना देते हैं। ये कीड़े बटन खुम्ब से ज्यादा क्षति ढिगंरी खुम्ब को पहुंचाते हैं और तने के आधार पर इकट्ठे हो कर कवक जाल को खाना शुरू कर देते हैं, फलस्वरूप ढिंगरी खुम्ब की बढ़त रूक जाती है और मुरझाई हुई लगती है तथा ढींगरी मंे छेद ही छेद कर देते हैं।
प्रबन्धन
1. उत्पादन कक्ष व आसपास की जगह की सफाई रखें।
2. फसल फर्श से थोड़ा ऊपर लगाएं।
3. कम्पोस्ट का पास्चुरीकरण ठीक से करें।
4. प्रभावित स्थान को मैलाथियाॅन की 0.05 प्रतिषत घोल से उपचारित करें।
3) बीटल
यह एक छोटा सा कीड़ा है जिसका शरीर दो पंख खोलों से ढका रहता है, जिसके कारण शरीर लगभग एक गोल आकार ग्रहण कर लेता है। यह प्रायः भूरे या काले रंग के होते हैं।
नुकसान
ये कीड़े प्रायः ढिगंरी खुम्ब को ही नुकसान पहुंचाते हैं। सूंड़ियाँ और प्रौढ़ कीड़ा, दोनों ही ढिंगरी खुम्ब को खाते हैं जिससे ढिंगरी खुम्ब में कई आकार के छेद हो जाते हैं व गिलों (गलफड़ों) में मैल भर जाता है। क्षतिग्रस्त ढिंगरी खुम्ब कुछ दिनों में बिल्कुल खत्म हो जाता है।
रोकथाम
1. ढिंगरी खुम्ब की तुड़ाई उचित अवस्था में करें।
2. दरवाजे और खिड़कियों में जाली लगाए व दरवाजे के नीचे खाली जगह को बन्द कर दें।
3. उत्पादन कक्ष के आसपास ब्लीचिंग पाऊडर का छिड़काव करें।
4) खुम्ब के बरूथी (माईट)
बरूथी एक सूक्ष्म जीव है तथा इसकी कई प्रजातियां खुम्ब को क्षति पहुंचाती हैं। खुम्ब की बरूथियों का प्रमुख स्त्रोत खाद व केंसिग मिश्रण तैयार करने में प्रयुक्त कच्चा माल होता है। बरूथी कवक जाल को खाते हैं और खुम्ब के तनों और टोपियों पर धब्बे या छिद्र बना देते हैं। कुछ बरूथी, केंसिग मिश्रण के नीचे फैल रहे कवक जाल को खाते हैं। कभी-कभी यह खुम्ब के जड़ को खाना शुरू कर देते हैं जिससे तने का निचला हिस्सा हल्का लाल या भूरा हो जाता है।
रोकथाम
1. खाद व केंसिग मिश्रण का सही पास्चुरीकरण करें।
2. उत्पादन कक्ष की छत, फर्श और दीवारों को डाईकोफोल 0.1 प्रतिशत घोल से उपचारित करें।
3. खाली उत्पादन कक्ष में 250-300 ग्राम गन्दक जलाएं।
4. फसल लगाते समय अगर प्रकोप हो तो खाद पर डाईजीनाॅन 20 ई0सी0 नामक दवा की 1.5-2.0 मि0ली0
मात्रा 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
5. फसल लेने के बाद खाद को उत्पादन कक्ष से दूर गड्ढ़ों में फेंक दें व ऊपर 10 सें0मी0 मोटी मिट्टी की
परत चढ़ा दें।
5) खुम्ब के सूत्रकृमि
सूत्रकृमियों का प्रकोप फसल में किसी भी समय हो सकता है। सूत्रकृमि सूक्ष्म जीव है। खुम्ब का कवक जाल
इन सूत्रकृमियों का मुख्य आहार है। सूत्रकृमि खुम्ब का प्रमुख परजीवी है जिसका खुम्ब उत्पादन के समय प्रवेश
पूरी फसल को नष्ट कर देता है। खुम्ब में प्रायः तीन प्रकार के सूत्रकृमि आते हैंः
1. कवक जाल को खाने वाले सूत्रकृमि (परजीवी)
2. खाद और केंसिग मिश्रण को खाने वाले सूत्रकृमि (मृतभक्षी)
3. परभक्षी सूत्रकृमि
1. परजीवी सूत्रकृमि
इन सूत्रकृमियों के मुंह में सुई जैसी संरचना स्टाईलेट होती है जिसकी सहायता से ये कवक जाल मंे छेद करके कवक का रस चूसते हैं। फलस्वरूप कवक जाल धीरे-2 खत्म हो जाता है। इन सूत्रकृमियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है (50-100 गुणा/सप्ताह)। इस कारण कुछ ही सूत्रकृमियों का प्रवेश कुछ दिनों में पूरी फसल को नष्ट कर देता है।
2. मृतभक्षी सूत्रकृमि
यह सूत्रकृमि क्षतिग्रस्त बैगों में भारी संख्या में पाये जाते हैं। इन सूत्रकृमियों मंे स्टाईलेट नहीं होता जिसके कारण यह खुम्ब को प्रत्यक्ष रूप से क्षति नहीं पहुंचा पाते। परन्तु यह सूत्रकृमि बैगों में गन्दगी फैलाते हैं व यह अपने शरीर पर हानिकारक जीवाणुओं का वाहन करते हैं।
3. परभक्षी सूत्रकृमि
यह सूत्रकृमि बहुत कम संख्या में पाए जाते हैं जो परजीवी सूत्रकृमियों और कीड़ों-मकोड़ों के अंडे व बरूथीयों को खाते हैं।
सूत्रकृमियों का स्रोत
इनका प्रमुख स्रोत अपास्चुरीकृत कम्पोस्ट व केंसिग मिश्रण होता है। इसके अतिरिक्त, यह खुम्ब उत्पादन में प्रयोग में लाए जाने वाले उपकरणों से भी फैलते हैं। खुम्ब की मक्खियां भी सूत्रकृमि वाहक का काम करते हैं।
सूत्रकृमि क्षति के लक्षण
1. कवक जाल का धीरे-धीरे व धब्बों में फैलना।
2. खाद की सतह का धसना।
3. बढ़ते कवक जाल के सफेद रंग का धीरे-धीरे भूरा होना।
4. खुम्ब का कम और देर से उत्पादन होना।
5. खुम्ब कलिकाओं का भूरा होना।
6. उत्पादन में गिरावट।
7. पूरी फसल का असफल होना।
रोकथाम
1. साफ-सफाई का ध्यान रखें।
2. कम्पोस्ट बनाने की फर्श, बीजाई करने एवं कम्पोस्ट बनाने में उपयोग में लाये जाने वाले सभी उपकरणों को
2 प्रतिशत फार्मेलीन के घोल से धो लें।
3. बीजाई से 24 घण्टे पूर्व उत्पादन कक्ष व उसमें बने चैखटों पर 2 प्रतिशत फार्मेलीन का छिड़काव करें।
4. उत्पादन कक्ष प्रवेश द्वार पर 1-1.5 ईंच गहरा पाँव पोश बना कर उस में 2 प्रतिशत फार्मेलीन का घोल भरें तथा जूते डुबो कर ही कक्ष में प्रवेश करें।
5. कम्पोस्ट और केंसिग मिट्टी का सही ढंग से पास्चुरीकरण करें।
6. छिड़काव में उपयुक्त होने वाला पानी स्वच्छ हो।
7. लम्बी विधि से खाद तैयार करने पर चैथी पलटाई के समय 0.2: कर्बोफ्यिूरान मिलायें।
8. श्वेत बटन खुम्ब-ढिंगरी खुम्ब फसल चक्र अपनायें।
9. खुम्ब की मक्खियों का नियन्त्रण करें।
10. फसल लेने के बाद, पेटियों को 700 सेल्सियस तापमान पर 8-12 घंटे तक अति ऊष्मानित करें।
11. पूरा उत्पादन लेने के बाद, खाद को उत्पादन कक्ष से दूर गड्ढ़े में डाल कर मिट्टी से ढक दें।
स्रोत-
- खुम्ब अनुसंधान निदेशलय