भारतवर्ष में विविध प्रकार का मौसम व बहुतायत में विभिन्न प्रकार के कृषि व्यर्थ उपलब्ध है तथा सस्ती मानवक्षमता आसानी से मिल जाती है। इसीलिये यहां पर शीतोष्ण, उपोष्ण तथा उष्ण सभी प्रकार की खुम्ब पैदा की जा सकती है। ऐसा अनुमान है कि भारतवर्ष में प्रतिवर्ष लगभग 600 मिलियन टन कृषि व्यर्थ उत्पन्न होते हैं। इसका एक प्रतिशत भी यदि खुम्ब उत्पादन के लिये प्रयोग किया जा सके तो भारतवर्ष एक प्रमुख खुम्ब उत्पादक देश बन सकता है।
भारतवर्ष में खुम्ब उत्पादन यद्यपि 1960 के दशक में शुरू हो गया था परन्तु इसे अपेक्षित गति 1990 के दशक में मिली जब यहां विदेशी कंपनियों की सहकार्यता में बड़ी-बड़ी योजनाएं आई। इन योजनाओं से खुम्ब उत्पादन वर्ष 1985 में 4000 टन से बढ़ कर 1995 में 30,000 टन प्रतिवर्ष हो गया था। वर्तमान में भारत में खुम्ब की पैदावार 1,20,000 टन प्रतिवर्ष है। इसमें 80 प्रतिषत भाग बटन खुम्ब का है तथा शेष अन्य खुम्बों का उत्पादन है जबकि भारतवर्ष में इन शेष खुम्बों को उगाने के अवसर बटन खुम्ब से अधिक हैं और आशा है कि आने वाले वर्षों में समशीतोष्ण एवं उष्ण खुम्बों की पैदावार बढ़ेगी।
बटन खुम्ब
यह खुम्ब आज भी स्वदेशी व विदेशी बाजारों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसका उत्पादन देश में बड़ी-बड़ी योजनाओं में, मध्यम आकार की इकाईयों तथा मौसमी इकाईयों में किया जा रहा है। शुरू में बड़ी-बड़ी योजनाओं के कार्यावयन में कच्चे माल की गुणवत्ता, पराली पर बनाई गई खाद की गुणवत्ता बनाए रखने में समस्या, केसिंग मिट्टी (पीटमाॅस) के आयात में अत्याधिक व्यय आदि समस्याएं आई। फलस्वरूप इन योजनाओं में उत्पादन में गिरावट आई व कई बार सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाने के कारण खुम्ब उत्पादन लागत बहुत अधिक आता था।
बिजली आदि की मंहगी दरों ने इस उत्पादन लागत को और अधिक बढ़ा दिया। विदेशी बाजारों में चीन द्वारा सस्ते मूल्य पर खुम्ब दी जा रही थी। इन सब कारणों से सभी खुम्ब निर्यात करने वाली इकाईयों को नुकसान हुआ। पिछले कुछ वर्षों से मध्यम आकार की इकाईयां पूर्णतयाः स्वदेशी तकनीक द्वारा शुरू की गई जिससे ये इकाईयां आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो गई। इनमें अधिकतर इकाईयां बड़े शहरों के नजदीक लगाई गई। उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व पंजाब में सर्दियों में खुम्बों को मौसमी तौर पर उगाया जाता है जो खुम्ब स्थानीय बाजारों व कैनिंग में प्रयोग होती हैं।
परन्तु इन मौसमी इकाईयों में उत्पादन कीड़ों-मकोड़ों व बीमारियों के कारण घटता-बढ़ता रहता है। खुम्ब के मौसमी उत्पादन के लिये सहकारिता द्वारा खुम्ब की उत्तम खाद बनाने के लिये व खुम्ब के बीज के उत्पादन के लिये इकाईयां लगाई जा सकती है, इसके अतिरिक्त खुम्ब का सहकारी विक्रय न केवल खुम्ब उत्पादन में वृद्धि करेगा अपितु आय को भी बढ़ाएगा। वर्तमान में बटन खुम्ब मुख्यता हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू व कर्नाटक में उगाई जाती है।
शिटाके खुम्ब
शिटाके खुम्ब विश्व की दूसरे नम्बर की खुम्ब है जो विश्व उत्पादन का 25% है। आने वाले वर्षों में इसकी मांग काफी बढ़ने वाली है। इसका मुख्य कारण इसके पौष्टिक गुणों के साथ-साथ औषधिय गुण हैं। भारत में इसकी पैदावार नहीं के बराबर है परन्तु यहाँ इसकी सम्भावनाएं हैं। इसे लकड़ी के बुरादे पर 18-240 सेल्सियस तापमान पर पैदा किया जा सकता है|
आयस्टर खुम्ब
ढिंगरी या आयस्टर खुम्ब (प्लूरोटस) सर्वाधिक लोकप्रिय शीतोष्ण एवं उपोष्ण प्रजाति है और विश्व खुम्ब उत्पादन में इसका बटन खुम्ब के बाद तृतीय स्थान है। भारत में इसका उत्पादन निम्नलिखित कारणों से अनुकूल है।
1. इसे विभिन्न प्रकार के कृषि अवशेषों पर उगाया जा सकता है।
2. इसे विभिन्न प्रकार के तापमान पर उगाया जा सकता है।
3. इसकी उत्पादन क्षमता भोज्य पदार्थ के अनुपात में 100 प्रतिशत तक है।
4. इसमें बीमारियों व स्पर्धात्मक फफूंद द्वारा नुक्सान की संभावना कम है।
5. इसकी वृद्धि बहुत तेज है और उत्पादन विधि आसान है।
6. इसकी उत्पादन लागत काफी कम है।
7. यह ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती हैं व बेरोजगारों के लिये रोजगार का साधन बन सकती है। इसकी खेती किसी भी स्तर पर की जा सकती है।
8. इसका संसाधन विशेषतया सुखाना बहुत आसान है।
पुआल पर उगने वाली खुम्ब (वाॅल्वेरियेला)
इसकी सर्वाधिक खेती उड़ीसा में होती है। यह खुम्ब दक्षिणी-पूर्वी और पूर्वी एशियाई देशों में अभी भी सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह एक उष्ण प्रजाति है। इस खुम्ब को 400 सेल्सियस तापमान तक उगाया जा सकता है। इसका स्वाद उत्तम है तथा जीवन चक्र छोटा है। इस खुम्ब की तुड़ाई बटन या अण्डाकार स्थिति में होनी चाहिए। इसे उगाने के लिये चावल की पराली में मुर्गी की खाद व बिनौले (रूई के बीज) के छिल्के डालकर पास्चुरीकृत माध्यम में अच्छी पैदावार मिलती है। तुड़ाई के बाद जल्द खराब होना इसकी मुख्य समस्या है।
दूधिया खुम्ब (कैलोसाइबी इन्डिका)
यह उष्ण क्षेत्रों में उगाने के लिये खुम्ब की एक नई प्रजाति है। तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश व कर्नाटक राज्यों में इस खुम्ब की खेती बहुत लोकप्रिय है। चावल की पराली पर उगने वाली खुम्ब के बाद यह दूसरी खुम्ब है जो उष्ण वातावरण में पैदा होती है। इसका रंग आकर्षक-दूधिया सफेद व रखने पर गुणवत्ता का बना रहना इसके मुख्य गुण हैं। यह कई प्रकार के कृषि व्यर्थ पदार्थों पर 25-350 सेल्सियस तापमान पर आसानी से उग जाती है। आयस्टर खुम्ब के समान, इसकी फसल उगाने के लिये प्रयोग किये गये माध्यम (कृषि अवशेष) के अनुपात में अच्छी पैदावार मिलती है (80-100 प्रतिशत)। यह खुम्ब अचार व चटनी बनाने के लिये भी उत्तम है।
कनचपड़ा खुम्ब (आॅरिकुलेरिया)
बटन, शिटाके व आयस्टर खुम्ब के बाद विश्व मंे यह सबसे लोकप्रिय खुम्ब है। यह एक सम-शीतोष्ण खुम्ब है और विश्व की चीनी जनसंख्या में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसे पेट की खराबी में दवा के तौर पर भी उपयोग किया जा सकता है। यह लकड़ी के लट्ठों पर, लकड़ी के बुरादे पर, रूई कारखानों की व्यर्थ पर तथा चावल अथवा गेहूं के भूसे पर आसानी से उगाई जा सकती है। इसे 90 प्रतिशत आर्द्रता से भी अधिक होने पर भी आसानी से उगाया जा सकता है।
औषधीय रिशी खुम्ब (गैनोडर्मा ल्यूसीडम)
यह विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय औषधिय खुम्ब है निदेशालय में इस खुम्ब को नियंत्रित वातावरण में लकड़ी के बुरादे पर उगाने की तकनीक उपलब्ध है। इसके उत्पादन के लिये गर्म (30-350 सेल्सियस) व आर्द्र (90-95 प्रतिशत आर्द्रता) वातावरण अति उपयुक्त है।
खुम्ब उत्पादन व्यवसाय के फायदे
आज के युग की तीन समस्यायें हैंः उत्तम भोजन, सेहत व वातावरण। खुम्ब की खेती इन तीनों का हल है। देश में खुम्ब उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिए। खुम्ब उत्पादन एक घर के भीतर करने योग्य कृषि कार्य प्रणाली है और इसे अन्य फसलों के समान उपजाऊ भूमि की आवश्यकता नहीं होती। अतः यह छोटे किसानों व भूमिहीनों के लिए उपयुक्त व्यवसाय है। इसकी जैव परिवर्तन क्षमता अधिक होती है और उगने के लिये प्रयोग किये जा रहे पदार्थ (कृषि अवशेष) के अनुपात में खुम्ब उत्पादन अच्छा मिलता है। खुम्ब उत्पादन के उपरान्त शेष बचे व्यर्थ जो स्पेंट कम्पोस्ट के नाम से जाना जाता है, को खाद में बदलने के बाद खेतों में प्रयोग किया जा सकता है। खुम्ब उत्पादन बेराजगारों के लिए रोजगार का एक अच्छा साधन है।
स्रोत-
- खुम्ब अनुसंधान निदेशालय