ग्रीन हाउस खीरे में समेकित नाशीजीव प्रबंधन

हरितगृह खीरे के प्रमुख नाशीजीव

१.कुटकी: (कारणिक जीव – टेट्रानायकस अर्टिकी)

पत्तियों पर छोटे भूरे अथवा पीले धब्बे पड़ते हैं व गंभीर संक्रमण में पत्तियां रंगहीन हो जाती हैं तथा पौधों का रंग मटमैला अथवा भूरा दिखने लगता है । जब इनकी जनसंख्या ज्यादा बढ़ जाती है तब ये पौधों पर विशेषकर पत्तियों के नीचे सिल्क के बहुुत छोटे धागे अथवा मोटी बुनी हुई पट्टी उत्पन्न करते हैं । पत्तियां झुलसकर पकने से पहले ही गिर जाती हैं ।

 

२.सफेद मक्खी: (कारणिक जीव-बेमीसीया टेबैसाई)

पत्तियों झड़ने लगती हैं, पत्तियों की आंतरिक शिरा में पीलापन आ जाता है तथा पौधे की बढ़वार अवरुद्ध हो जाती है । वयस्कों में अनेक पादप विषाणुओं के संचरण की क्षमता होती है ।

 

३.एफिड अथवा चेंपा: (कारणिक जीव-एफिस/माइक्रोसायफम प्रजाति)

एफिड के कारण पत्तियां घुंघराली, घुमावदार हो जाती हैं और फल का रूप आकार बिगड जाता है । अधिकांश एफिड मीठा मधुरस भी छोड़ते हैं जिससे काली कज्जली फफूंदी की बढ़वार होती है । एफिड के गंभीर संक्रमण से पत्तियां पीली और कभी-कभी मुरझा भी जाती हैं जब कि फलों की कलियां और फल वित हो जाते हैं ।

 

४.थ्रिप्स: (कारणिक जीव-सिर्टोथ्रिप्स डाॅरसैलिस)

इन थ्रिप्स के शरीर पर धारियां होती हैं । इसके कारण पत्तियों पर सफेद अथवा भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । पत्ती दाग तथा काले मल के धब्बे सामान्य लक्षण हैं जिससे पंखुड़ियों का रंग बिगड़ जाता है व पत्तियां टेड़ी-मेड़ी हो जाती हैं ।

 

५.लीफ माइनर: (कारणिक जीव-लीरियोमायजा प्रजाति)

टेढ़े-मेढ़े तरीके से मुलायम पत्तियों में लार्वा घुमावदार सुरंग और पत्तियों पर स्क्रैप क्लोरोफिल से बने वाइंडिंग टैªल के परिणम स्वरूप पत्ती पटल में विति पैदा करता है जिससे बढ़वार अवरुद्ध हो जाती है । सवंमित पत्तियां सूखकर कुम्हला जाती हैं ।

 

६.क्लेदगलन (डैम्पिंग आॅफ)

(कारणिक जीव-पाइथियम किस्म, राइजोक्टोनिआ सोलेनी)
मृदा सतह के नीचे बीज संक्रमित तथा सड़ सकते हैं (प्रकटन से पूर्व) अधिक पानी देेने, जड़ों तक कम हवा पहुंच पाने के कारण फसल कमजोर होकर अंततः लिबलिबी हो जाती है ।

 

७.फ्यूजेरियम मुरझान: (कारणिक जीव-फ्यूजेरियम आॅक्सीस्पोरम एफ. किस्म कुकूमेरीनम)

किसी भी समय फसल पर फफूंदी के संक्रमण से पौधे में पीलापन आकर वह गिर जाती हैं । पत्ती मुरझान, संवहनी प्रणाली में अवरुद्ध विकास एवं भूरापन इस फफूंदी के संक्रमण के अन्य लक्षण हैं ।

 

८.चूर्णिल आसिता: (कारणिक जीव-एरीसाइफी सिकोरेसियेरम/स्फरोथीका फ्यूलीजिनीया)

लक्षण मटमैले चूर्णीय धब्बों के रूप में प्रारंभ होकर पत्तियों के दोनों ओर प्रकट होते हैं । फूफंदी द्वारा वयस्क निचली पत्तियों में संक्रमण प्रारंभ होकर ऊपरी युवा पत्तियों तक बढ़ जाता है । यदि बीमारी गंभीर होती है तब पत्तियों का विकास अबरुद्ध हो जाता है ।

 

विषाणु बीमारियां

1. खीरावर्गीय हरा चितकबरा मोजे़क विषाणु (बीज जनित)

लक्षण: पौधे की ऊपरी पत्तियों पर धुंधले पीले धब्बे । देरी से संक्रमण में पत्ती मोजे़क, चितकबरे फल और अबरुद्ध विकास ।

 

2. खीरावर्गीय मोजे़क विषाणु ;ब्डटद्ध – एफिड द्वारा संक्रमित ।

लक्षण: पौधे की पत्तियों पर पीले मोजे़क धब्बों के कारण अवरुद्ध विकास

 

3.  खीरावर्गीय शिरा पीला विषाणु – सफेद मक्खी द्वारा संक्रमित ।

लक्ष्ण: संक्रमित पत्तियों में शिराएं पीली पड़ जाती हैं और ऐसे पौधों में फल पैदावार नहीं होती ।

 

४.जड़गांठ सूत्रकृमि: (कारणिक जीव – मेलाॅयडोगाएन इन्काग्निटा)

जड़ में स्थानीय सूजन से अनियमित गांठ अथवा पिटिका बन जाती है । भूमि सतह से ऊपर पीलापन तथा अवरुद्ध विकास के सीमित लक्षण होते हैं ।

 

खीरा वर्गीय फसलों की संरक्षित खेती के लिए जी.ए.पी. सहित आई.पी.एम. माॅड्यूल

बचाव उपाय:

ग्रीन हाउस के उपयुक्त प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें ।

  • मृदा सौरीकरण करें एवं स्वच्छता अपनायें ।
  • गोबर की खाद को ट्राइकोडर्मा हार्जेनियम ( c.f.u 2*10 स्पोर्स/ग्रा.)/1kg/500kg)या स्यूडोमोनाॅस फ्लोरेसेन्स (c.f.u 2*10 स्पोर्स/उस)/1/500kg) से संवर्धित करें व, fym क्यारियों में उपयोग करें । नवपौध की रोपाई जैव-नियंत्रण एजेन्टों से मृदा उपचार के 15 दिन पश्चात की जानी चाहिए । जैव-एजेन्टो के अनुप्रयोग के बाद न्यूनतम सिंचाई कर मृदा में नमी लाई जाए । मृदा में दूसरी बार जैव-एजेन्टों का प्रयोग रोपाई के 45 दिन पश्चात् किया जाना चाहिए । मृदा-जनित रोगों के बचाव के लिए
  • मेटालैक्जिल/काॅपरआॅक्सीक्लोराई/मैन्कोजेब-1g/l से तराई करें ।
  • चूसक नाशीजीवों के लिए जैस-आधारित/खेती करें व बागवानी तेल, नीम आधारित उत्पाद और पोंगैमिया तेल जैसे वनस्पतियों का उपयोग करें ।
  • गैर-घरेलू किस्मों का इस्तेमाल करते हुए फसल चक्र अपनाऐं ।
  • सूत्रक्रमियों से बचाव के लिए कार्बोफ्यूरान 3g दर – 6g वर्गमीटर अथवा कैप्टान 2g/l जल के साथ मृदा उपचार/पूरी तरह भिगोना ।ग्रीन हाउस के निकट सूत्रकृमि ग्रहणशील फसलों/पौधों की बढ़वार को रोकें । विषाणु संक्रमित पौधों को उखाड़कर सुरक्षित तरीके से नष्ट कर दें अथवा जला दें ।उत्कृष्ठ कृषि प्रक्रियाओं (जी.ए.पी.) जैसे प्रोटोकाॅल को अपनाऐं ।
  • सुरक्षित स्त्रात से सिंचाई के लिए स्वच्छ एवं गैर-संदूषित जल का उपयोग ।
  •  केवल जरूरत आधारित रसायनों का अनुप्रयोग करें ।
  • मजदूरों के स्वास्थ्य एवं रख-रखाव का ध्यान रखें ।
  • खरपतवार मुक्त ढांचा बनाए रखना और सभी फसल फालतू सामग्री तथा पौधे के रोग ग्रस्त हिस्सों को हटायें ।
  • जब कभी सुंडी या कैटरपिल तथा उनके अण्डे अधिक संख्या में दिखाई दें, तो उनको हाथों से भी नष्ट कर सकते हैं ।
  • पाॅलीथिन का समुचित निपटान ।
  • आईपीएम के प्रमुख घटकचूसक नाशीजीवों के विद्ध प्रमुख जैव आधारित – कृषि छिड़काव तेल ;0.5 ml/l बागवानी तेल ;1 ml/l नीम तेल ;0.5 ml/l  पोन्गैमिया ;0.5 ml/l बार-बार पानी देकर या/सादा जल के छिड़काव द्वारा 50 प्रतिशत तक कुहासा और आर्द्रता बढ़ाकर तापमान को नीचे लाना एवं कुटकी जनसंख्या नियंत्रण करना ।चूसक नाशीजीवों के लिए जैव – नियंत्रण एजेन्ट-

कुटकी – परभक्षी कुटकी (फायटोस्यूलिस परसिमिलिस)

सफेद मक्खी – परजीवी ततैया (एनकार्सिया फार्मोसा) या कीट – रोग जनक फफूंद (वर्टिसिलियम लेकेनाई)

थ्रिप्स – परभक्षी कुटकी (एमब्लाइसियस प्रजाति)

पत्ती माइनर – परजीविता (एमब्लाइसियस प्रजाति)

मृदा जनित रोगजनकों के लिए – ट्राइकोडर्मा प्रजाति ;(10g/m2)स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स ;(10ml/m2)

पर्णीय बीमारी के लिए – बैसिलस सबटिलिस ;(10g/l)  एक्सोडस ;(10m/l)

 

अगर ऊपर बताई गई विधि कारगर न हो तो निम्न रसायनों का नियतिबद्ध प्रयोग करें
कुटकी एमिदाक्लौप्रिड@2.5/10l या ईथीयान1ml/l या स्पय्रोमेसीफेन/1ml/1.5l As अथवा आखरी युक्ति के रूप में ऐबामेंकितिन 0.5 ml/l की दर से प्रयोग करें |
सफेद मक्खी एसीफेट@ 1g/l, अथवा एसीटामिप्रीड 0.2 g/l की दर से  प्रयोग करें |
क्लेदगलन कर्बेदंजिम (0.1) तथा कैप्टान (0.2%), अथवा मैटालैक्लिजल (1g/l) से मृदा उपचार करें |
फ्यूजेरियम मुरझान कार्बेद्न्जिम (0.1%) तथा कैप्टान (0.2%), अथवा मैटालैक्लिजल (1g/l) से मृदा उपचार करें |
चूर्नीय मिल्ड्यू सल्फर पाउडर का 25kg/ha की दर से छिड़काव अथवा सल्फर घोल 0.3% का स्प्रे अथवा थयोफिनेट मिथाएल 1.5 g/l या फिनारिमोल 0.35 ml/l या कापर ओक्सीक्लोराइड 1.5 g/l की दर से पहले लक्षण दिखते ही स्प्रे करें |
जड़गाँठ सूत्रकृमि कार्बोफ्यूरआन (6g/m2), या मिटाम सोडियम (0.5 ml/l), या डैजोमेट से मृदा उपचार करें | परंतु इसके लिये साथ में सदैव ही किसी विशेषज्ञ की सहायता अनिवार्य है |
थ्रिप्स इमिडक्लोप्रीड 0.4g/l अथवा एक्सोडस 5ml/l की दर से स्प्रे करें |
लीफ माइनर स्पाइनोसायड 0.3 ml/l अथवा ऐबामैकिटन 0.5 ml/l की दर से स्प्रे करें |

 

 

स्रोत-

  • राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केन्द्र,
    भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली
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