खरपतवारिक धान-एक उभरती समस्या

क्या है खरपतवारिक धान

जीव विज्ञान के अनुसार खरपतवारिक धान बोये जाने वाली धान का समरूप है, लेकिन उसमें खरपतवार की विशेषतायें हैं । वनस्पतिक चरण में बोये जाने वाली और खरपतवारिक धान में अंतर कर पाना असंभव है और आम तौर पर इसे जंगली धान अथवा सदवा, पसाई क्या है|खरपतवारिक धान जीव विज्ञान के अनुसार खरपतवारिक धान बोये जाने वाली धान का समरूप है, लेकिन उसमें खरपतवार की विशेषतायें हैं । वनस्पतिक चरण में बोये जाने वाली और खरपतवारिक धान में अंतर कर पाना असंभव है और आम तौर पर इसे जंगली धान अथवा सदवा, पसाई आदि के साथ भ्रमित किया जाता है । जबकि यह बोये जाने वाली और जंगली धान का एक प्राकृतिक संकर है जो धान की खेती में, विशेष रूप से सीधी बुवाई वाली धान में, एक समस्या बन कर उभर रहा है ।

 

इसे कैसे पहचानें

क्यों कि खरपतवारिक धान जीनस ओराइजा के अंतर्गत आता है, इसीलिये उसके अधिकतम लक्षण बोये जाने वाली धान से मिलते हैं, लेकिन इसमें कुछ विशेष लक्षण भी हैं, जैसे कि-

  • यह अपने घरेलू प्रतिरूप से अधिकतर लम्बे होते हैं, परन्तु बौने समरूप भी पाये जाते हैं ।
  • सामान्य धान के मुकाबले इसमें परिपक्वता पहले पाई जाती है ।
  • दाने बाली से आसानी से झड़ जाते हैं । इसमें आॅन (शूक) मौजूद हो सकती है जिनके रंग और लम्बाई मे बहुत विभिन्नता पाई जाती है ।
  • इनके बाली के रंग, अनाज के आकार, रंग और पौधे की लम्बाई में विभिन्नता पाई जाती है ।
  • पुष्पन की अवधि आमतौर पर अधिक होती है ।
  • अपने घरेलू प्रतिरूप की तुलना में इनके पुष्पक 1 घंटे अधिक खुले रहते हैं ।इनका प्रसार कैसे होता है
    खेतों में खरपतवारिक धान का पर्याक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता है । शीघ्र पकने और जल्दी झड़ने की वजह से बीज धरती पर गिर जाते हैं और खरपतवारिक धान के बीज बैंक को बढ़ाते हैं
  • बोये जाने वाली धान की तुलना में इसमें अस्थिर बीज सुसुप्तावस्था की विशेषता पाई जाती है । जो इसके प्रसार का महत्वपूर्ण कारण है ।
  • इसके बीज कई वर्षों तक जीवक्षम है, इसीलिए प्रसांगिक प्रबंधन के तरीके विफल होते हैं ।
  • दूषित बीजों के प्रयोग से भी इनका प्रसार बढ़ता है ।
  • क्योंकि यह मूलतः धान ही है, इसलिए किसान इसे खरपतवार की श्रेणी में नहीं रखते और प्रबंधन नहीं करते, इसलिए भी इस समस्या का प्रसार होता है ।
  • ठनके लिए कोई चयनात्मक शाकनाशी भी उपलब्ध नहीं है ।
  • दूूषित मशीनों जैसे सीडर, कम्बाइन हार्वेस्टर-फसल काटने की मशीन , आदि से भी इनक बीजों का प्रसार होता है ।
  • यदि नल निकासी व्यवस्था उचित न हो, और पानी खरपतवारिक धान ग्रसित खेत से होकर गुजरता हो, तो भी इन समस्यात्मक बीजों का प्रसार होता है ।

 

यह हानिकारक कैसे हैं

  • खरपतवारिक धान बोये जानी वाली धान के साथ प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रतियोगिता करते हैं । इनकी मौजूदगी से बोई गई धान की उपज कम हो जाती है ।
  • परिपक्व होने पर झड़े हुए दानें अपनी अस्थिर बीज सुसुप्तावस्था के कारण लंबे समय तक खेतों में जीवक्षम रूप् में रह सकते हैं । इस तरह यह समस्या कई वर्षों के लिए उत्पन्न हो जाती है । इनके दानों की मिलावट से फसल के दानों की गुणवत्ता घट जाती है । और इसका असर विक्रय मूल्य पर पड़ता है, जिससे किसान को आर्थिक नुक्सान होता है ।

 

इनका प्रबंधन कैसे हो सकता है

जिनके खेतों में यह समस्यात्मक धान नहीं है, उनमें

  • स्वच्छ और प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें ।
  • स्वच्छ मशीनों का उपयोग करें ।
  • जल निकासी के रास्ते साफ रखें और सिंचाई में उपयोग आने वाला पानी भी ।
  • किसानो को इस समस्या के लिए जागरुक बनायें ।

 

जिन खेतों में यह समस्या है, उनमें –

  • जल निकासी व्यवस्था ऐसी हो कि दूषित जल आगे और खेतों से होकर न गुजरे ।
  • समय रहते ऐसे पौधों को जड़ से समाप्त करें ।
  • कटाई के बाद धान के भूसे को जलाकर सतह पर पड़े खरपतवारिक धान के बीजों को समाप्त कर दें ।
  • बुवाई के धान का उच्च बीज दर जैसे 80 कि.ग्रा./है. उपयोग करें ।

 

बुवाई से पहले भूमि तैयार करने में, समय पर प्रयासों और सफल प्रबंधन प्रथाओं के उपयोग से ग्रसित खेतों का प्रबंधन संभव है, जैसे-

  • सीधी बुवाई की जगह परंपरागत रोपाई से धान की उपज लेने से खरपतवारिक धान का बीज बैंक धीरे-धीरे कम हो सकता है ।
  • बुवाई से तीन दिन पहले 2 इंव खड़े पानी में आॅक्सीफ्लोरफेन (0.2-1.3 कि.ग्रा./है.) का प्रयोग करें । जब 2-3 दिन बाद पानी उड़ जाये, तो अंकुरित बीजों की बुवाई करें ऐसी भी समस्या को कम किया जा सकता है ।
  • गहरी जुताई से सतह और मिट्टी के नीचे दबे  खरपतवारिक धान के बीज और गहराई में जा सकते हैं और इनके प्रकास को कम किया जा सकता है ।
  • बीज प्रसारण की जगह पंक्तियों से भी समस्या के प्रसार को कम कर सकते हैं । दो पंक्तियों के बीच में आने वाला धान खरपतवारिक होगा और समय रहते उसे हटाया जा सकता है ।
  •  यदि बीज का प्रसारण ही करना हो तो अंकुरित बीज लें ।
  • धान की प्रजाति जिसमें बैंगनी रंग की पत्तियां या कलम हो जैसे नागकेसर, श्यामला आदि को ग्रसित खेतों में उगाकर खरपतवारिक और बुवाई की हुई धान में अंतर किया जा सकता है । और समय रहते हाथ से निदाई की जा सकती है ।
  • कर्नाटक में किसान हर चैथे साल में बैंगनी पत्ती वाली धान की प्रजाति डम्बरसाली का प्रयोग कर खरपतवारिक धान का प्रबंधन करते आये हैं ।
  • फसल चक्र में बदलाव कर के भी इस समस्या का प्रबंधन किया जा सकता है ।
  • ग्लाइफोसेट को कपड़े में भिगोकर लम्बे खरपतवारिक धान की पत्तियों पर लगाकर इनका नियंत्रण किया जा सकता है ।

ध्यान रहे

  • अभी तक किसी भी एक दृष्टिकोण से हुए प्रयासों/प्रबंधन तरीके ने प्रभावी ढंग से इस समस्या का निदान नहीं किया है
  • विभिन्न संभव प्रबंधन तरीकों को प्रयोग करके धीरे-धीरे इस समस्या को हटाया जा सकता है ।
  • प्रकृति में कुछ भी बेकार नहीं है ।
  • खरपतवारिक धान मूलतः धान ही है, इसलिए खाद्य है ।
  • निदाई से निकले इन पौधों से वर्मीकम्पोस्ट बनाया जा सकता है ।
  • इसके भूसे को जिसमें बीज न हों, मल्च के रूप् में प्रयोग किया जा सकता है ।

 

 

स्रोत-

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