गंगा के मैदान की क्षारीय भूमियों का सुधार

कल्लर भूमि (क्षारीय भूमि) में पर्याप्त मात्रा में विनिमय सोडियम (ई एस पी) लवण होता है । 15% से अधिक विनिमय सोडियम मृदा परिक्षेपण का कारक है और इससे भूमि का पीएच मान बढ़ जाता है (>8.5) जिससे भूमि के भौतिक और पोषण गुणों का ह्रास होता है । इससे फसल विकास में भी बेहद कमी आती है । मृदा संतृप्तता निष्कर्ष चालकता आमतौर से 4 डैसीसीमन/मीटर से कम होती है । अत्याधिक क्षारीय मृदाओं में पीएच मान 10.7 के स्तर तक पहुंच सकता है । लगभग 28 लाख हैक्टेयर क्षेत्र कल्लर/रेह से प्रभावित है और यह हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के कुछ क्षेत्र में फैला हुआ है । केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल ने आर्थिक क्षम, पर्यावरण मैत्री और सामाजिक रूप से स्वीकृत भूमि सुधार प्रौद्योगिकी पैकेज का विकास किया है ।

भूमि सुधार प्रौद्योगिकी

क्षारीय मृदाओं के सुधार के लिए मूलतः सोडियम को आंशिक या पूर्णतः हटाकर इसकी जगह कैल्शियम को लाना आवश्यक है । यह स्थानीय परिस्थितियों, उपलब्ध संसाधनों और सुधरी भूमि उप उगाई जाने वाली फसलों पर निर्भर करता है । यदि भूमि सुधार के लिए कम खर्च करना है और कई साल तक इंतजार किया जा सकता है तो भूमि सुधार खरीफ के मौसम में सिर्फ धान की फसल उगाकर और उसके बाद रबी में (गेहूं) की फसल उगाकर किया जा सकता है। इसके साथ ही घूरे की खाद/हरी खाद दी जानी चाहिए ।

त्वरित भूमि सुधार के लिए, फसल उगाने से पहले भूमि सुधार प्रणाली को पैकेज के रूप में  अपनायें:

  •     रासायनिक सुधारक, खासतौर से जिप्सम का आवश्यक मात्रा में प्रयोग ।
  •    तत्पश्चात क्षारीय मृदा के सुधार के प्रतिक्रिया स्वरूप लवण, विशेषतौर से सोडियम सल्फेट का निक्षालन ।
  •    धान-गेहूं-ढेंचा (सेस्बानिया एक्यूलीटा) हरी खाद के लिए फसल चक्र अपनाना ।

 

खेत प्रबंधन

  • भूमि सुधार प्रारम्भ करने के लिए भूमि का समतल होना आवश्यक है । खेत के चारों ओर मजबूत बंध लगा दें ताकि आस-पास के क्षेत्रों से पानी न आ सके । खेत सुधार वर्षा आने से पहले गर्मियों में जल्दी ही कर लेना चाहिए । गहरी जुताई न करें ।
  • जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) का प्रयोग भूमि सुधार के लिए अधिकतर किया जाता है । हालांकि अन्य कई भूमि सुधारक (सल्फर, सल्फ्यूरिक अम्ल, कैल्शियम क्लोराइड, एल्यूमिनियम सल्फेट आदि) का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु ये जिप्सम के मुकाबले महंगे होने के कारण प्रयोग नहीं किए जाते हैं । क्षारीय मृदाओं के सुधार के लिए चीनी मिलों की सल्फीटेशन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त प्रैस मड का इस्तेमाल भी किया जा सकता है । निम्नतम 8ः जल-विलयन सल्फर युक्त आयरन पाइराइट भी आशाजनक सुधारक है ।
  • मृदा विश्लेषण के आधार पर सुधारक की मात्रा का प्रयोग करें । तथापि 12-15 टन जिप्सम प्रति हैक्टेयर (जो 0-15 सें.मी. मृदा के लिए आवश्यक जिप्सम का 50% है) अत्यधिक क्षारीय (10.7 पीएच मान) मृदा के ऊपर 15 सें.मी. सुधार के लिए काफी है । इसमें धान-गेहूं फसल चक्र सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है । 10-15 टन/हैक्टेयर घूरे की खाद के जिप्सम के साथ प्रयोग से 25: जिप्सम में कमी की जा सकती है । 25: जिप्सम आवश्यकता की दर से जिप्सम के प्रयोग से लवण सहनशील धान किस्में (सी एस आर – 10, सी एस आर – 13, सी एस आर – 27, इत्यादि) और गेहूं (के आर एल 1-4, के आर एल 19) सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है ।
  • मृदा सुधारक का प्रयोग पूरे खेत में एक सार करना चाहिए और ऊपरी 10 सें.मी. मृदा में भली-भांति मिलाना चाहिए । इसके बाद निक्षालन और बेहतर मृदा आयन वातावरण के लिए 10-15 दिन तक सिंचाई/वर्षा का ठहराव करना चाहिए ।
  • फालतू पानी का निकास, और भूमि में भली प्रकार पौद लगाकर और उर्वरक देकर, धान का रोपण करें और 15-20 सेंमी. की दूरी पर 3-4 पौध इकट्ठा लगायें । नर्सरी अच्छी भूमि में उगाएं । इस फसल का प्रबंधन आम फसल प्रबंधन क्रियाओं के समान करें । जहां तक हो सके भूमि सुधार धान की पहली फसल के साथ शुरू करें । रबी मौसम में भूमि सुधार प्रक्रिया जारी रखने के लिए गेहूं, जौ, बरसीम जैसी फसलों को चुनें । सही समय पर संस्तुत किस्में लगायें । ग्रीष्म में हरी खाद फसल उगाना वांछनीय है, इससे मृदा की भौतिक दशा में सुधार के साथ अगली धान की फसल में 60-70 कि.ग्रा./हैक्टेयर नाइट्रोजन की बचत की जा सकती है ।
  • रबी के मौसम में गेहूं की फसल उगाते समय पानी खड़ा न हो । हल्की लेकिन बार-बार सिंचाई करें (सिंचाई जल की कुल मात्रा साधारण भूमि के समान रहती है) ।
    अन्य प्रबंधन बिंदु कुशल, संतुलित और समंवित पोषण प्रबंधन, क्षारीय मृदा के सुधार का आवश्यक अंग है । इसलिए भूमि सुधार के दौरान और बाद में उत्पादकता बनाए रखने के लिए निम्न संस्तुतियों का पालन करें ।
  • इन मृदाओं में जैविक पदार्थ और नाइट्रोजन की बेहद कमी होती है । भूमि सुधार के पहले कुछ वर्षों के दौरान आम मृदा की संस्तुत मात्रा के मुकाबले फसलों में 25% ज्यादा नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है । यूरिया (आधार रूप में 1/3 मात्रा, और एक तिहाई मात्रा फसल विकास के 21 वें और 45 वें दिन ) के रूप में प्रयोग करें । धान में पूर्व जलमग्न अवस्था में गीली जुताई से पहले यूरिया का उपयोग करें ताकि अमोनिया वाष्पन ह्रास में कमी हो और नाइट्रोजन प्रयोग दक्षता बढ़े ।
  • पहले कुछ वर्ष धान में 25-40 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति वर्ष प्रयोग करें और इसके बाद मृदा परीक्षण आधार पर प्रयोग करें ।
  • घूरे की खाद, जैविक अपशिष्ट और हरी खाद से उत्पादकता बढ़ती है । जैविक संसाधनों के प्रयोग और रासायनिक सुधारों में समन्वयन बेहद आवश्यक है ।
  • ळालांकि क्षारीय मृदाओं में शुरूआत में फाॅस्फोरस की अधिकता होती है तथापि धान और गेहूं की फसलों में 22 कि.ग्रा. फाॅस्फोरस/हैक्टेयर 4-5 वर्ष के बाद आवश्यक है, जब उपलब्ध फास्फोरस क्रांतिक मृदा परीक्षण मूल्य पर पहुंच जाता है यानी 12 कि.ग्रा./हैक्टेयर, जो उत्पादकता और मृदा उर्वरकता के लिए आवश्यक है ।
  •   धान में जलमग्नता बनाये रखें और गेहूं/जौ/बरसीम में उचित पानी निकासी करें ताकि पानी का ठहराव न हो और फसलों को हानि न पहचे । इसके लिए हल्की और बार-बार सिंचाई सुनिश्चित करें ।

जिप्सम उपलब्धता के स्रोत

कई राज्यों में स्थापित भूमि सुधार और विकास निगमों द्वारा जिप्सम का विपणन होता है । किसान राज्य कृषि विभागों से भी संपर्क कर सकते हैं|

 

स्रोत-

  •       केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान,करनाल-132 001
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