केले के कीट एवं उनका प्रबंधन:-
1. तना भेदक कीट (ओडोइपोरस लांगिकोल्लिस)
लक्षण:
- केले के तना छेदक कीट का प्रकोप 4-5 माह पुराने पौधो में होता है। शुरूआत में पत्तियाॅ पीली पडती है तत्पश्चात गोदीय पदार्थ निकालना शुरू हो जाता है। वयस्क कीट पर्णवृत के आधार पर दिखाई देते है। तने मे लंबी सुरंग बन जाती है। जो बाद मे सडकर दुर्गन्ध पैदा करता ।
प्रबंधन:
- प्रभावित एवं सुखी पत्तियों को काटकर जला देना चाहिए।
- नयी पुत्तियों को समय – समय पर निकालते रहना चाहिए।
- घड काटने के बाद पौधो को जमीन की सतह से काट कर उनके उपर कीटनाषक दवाओ जैसे – इमिडाक्लोरोपिड (1 मिली./लिटर पानी) के घोल का छिडकाव कर अण्डो एवं वयस्क कीटो को नष्ट करे।
- पौध लगाने के पाचवे महीने मे क्लोरोपायरीफाॅस (0.1 प्रतिशत) का तने पर लेप करके कीड़ो का नियंत्रण किया जा सकता है।
2. पत्ती खाने वाला केटर पिलर (टीराकोला प्लेगियाटा)
लक्षण:
- यह कीट नये छोटे पौधों के उपर प्रकोप करता है लार्वा बिना फैली पत्तियों में गोल छेद बनाता है।
प्रबंधन:
- अण्डों को पत्ती से बाहर निकाल कर नष्ट करें।
- नरपतंगों को पकड़ने हेतु 8-10 फेरोमेन ट्रेप/हेक्टेयर लगायें।
- कीट नियंत्रण हेतु ट्राइजोफाॅस 2.5 मि.ली./लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें एवं साथ में चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिलायें ।
3 . केले की लाही (पेन्टालोनिया नाइग्रोनर्वोसा)
लक्षण:
- गहरे हरे भूरे रंग की लाही पत्तियों एवं तनों के बीच स्थल पर अथवा केन्द्रीय अधखुली पत्तियों पर आक्रमण कर उससे रस चूसती रहती है। यह कीट केले के शीर्ष गुच्छा रोग, जो एक वायरस के कारण होता है को फैलाने में मददगार होती है।
प्रबंधन:
- पीला चिपको प्रंपच का बाग में उपयोग कर इसके आक्रमण को कम किया जा सकता है।
- कम आक्रमण के समय यानी शुरवाती अवस्था में आक्रंात भागों को लाही सहित काटकर जमीन के अन्दर गाड़ देना चाहिए। प्रभावित पौधो को उखाडकर जला देना चाहिये।
- आर्थिक क्षति का अदेंशा होने पर फास्फोमिडान (0.05 प्रतिषत ) अथवा डायमेथोएट (0.05 प्रतिषत ) अथवा मेटासिस्टाॅक्स (0.05 प्रतिशत ) का छिड़काव कर इस कीट से बचा जा सकता है।
4. मीलीबग (फेरिसिया विरगाटा)
लक्षण:
- यह कीट रस चूस कर फल को काफी क्षति पहुंचाता है, यह रेंग कर पौधो के कोमल अंगों एवं फलों का रस चूसती है।
प्रबंधन:
- इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड (1 मिली./लिटर पानी)घोल का छिडकाव उस समय करें जब पौधे मे बंच निर्माण प्रारंभिक स्थिति मे हो।
5. थ्रिप्स
लक्षण:
- तीन प्रकार की थ्रिप्स केला फल (फिंगर) को नुकसान पहंुचाती है, थ्रिप्स प्रभावित फल भूरा, बदरंग, काला तथा छोटे छोटे क्रेक आ जाते है, यद्यपि फल के गूदे पर प्रभाव नही पडता है, परन्तु बाजार भाव ठीक नही मिलता है, सभी व्यवसायिक प्रजातियों पर इसका प्रकोप होता है।
प्रबंधन:
- निंयत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड (0/5 रतिषत)का छिडकाव करें। मोटे कोरे कपडे से धार को ढंक देने से भी कीट का प्रकोप कम होता है या स्कर्टिंग बैग का प्रयोग करे।
स्रोत-
- कृषि विज्ञान केन्द्र बुरहानपुर