कृषि के उपकरण एवं उनकी जानकारी इस प्रकार है:-
१.रोटरी पैडी वीडर
एस.आर.आई. पद्धति में धान की खेती में रोपाई के प्रत्येक 10 दिन बाद 40 दिनों तक निंदाई करनी पड़ती है जिस हेतु रोटरी वीडर का उपयोग किया जाता है । यह खेत में करीब 3 से 4 सें.मी. तक पानी भरा होने पर आसानी से कार्य करता है एवं इसे काली मिट्टी में भी आसानी से चलाया जा सकता है । इससे प्रतिदिन 0.30 से 0.40 हेक्टेयर एवं एक सीजन में लगभग 5 हेक्टेयर क्षेत्र के खरपतवार नष्ट किये जा सकते हैं । इस पर 75 प्रतिशत अनुदान है ।
२.कोनो वीडर
एस.आर.आई. पद्धति में धान की प्रारंभिक अवस्था में खेत में नमी बनाई रखी जाती है किन्तु जल भराव नहीं किया जाता है । जिससे खरपतवार बढ़ने की समस्या आ जाती है । इसे रोपाई के पश्चात प्रत्येक 10 दिन के अंतराल पर 40 दिनों तक चलाया जाता है । इसके दांतेदार ब्लेड खरपतवार को उखाड़ कर मिट्टी में मिला देते हैं जिससे जैविक तत्वों की वृद्धि होने के साथ – साथ मिट्टी की ऊपरी सतह टूट जाती है तथा मिट्टी में वायु का संचार बढ़ जाता है । इसका फ्लोट इसे मिट्टी में धंसने नहीं देता है ।
लंबा हेण्डिल होने के कारण व्यक्ति बिना झुके आसानी से कार्य कर सकता है । जिससे उसकी कार्यक्षमता बढ़ती है तथा समय में भी लगभग 75 प्रतिशत बचत होती है । इसका उपयोग निंदाई के अतिरिक्त हरी खाद को मिट्टी में मिलाने हेतू भी किया जाता है । इससे प्रतिदिन 0.30 से 0.40 हैक्टेयर एवं एक सीजन में लगभग 5 हैक्टेयर क्षेत्र के खरपतवार नष्ट किये जा सकते हैं । इस पर 75 प्रतिशत अनुदान है ।
३.डोरा
क्तारों में बोई गई फसलों की निंदाई गुड़ाई अच्छी तरह करता है । सोयाबीन, कपास, मक्का एवं ज्वार जैसी फसलों की निंदाई – गुड़ाई के लिए उपयुक्त है । इसे एक बैल जोड़ी से आसानी से खींचा जा सकता है । एक कतार के लिए सिंगल डोरा एवं दो कतारों के लिए डबल डोरा का उपयोग किया जाता है । इसका वनज क्रमशः 12 एवं 18 किलो ग्राम होता है । इसकी क्षमता 0.30 से 0.40 हैक्टेयर प्रतिदिन है ।
४.साइकिल व्हील हो
बेनी के 20 से 25 दिन के अंतराल में खरपतवार निकालने की आवश्यकता होती है । इस यंत्र से कतारों में बोई गई खरीफ/रबी की फसलों में खरपतवार निकाले जाते हैं । इसमें साईकिल का व्हील लगा होने के कारण टायर पर मिट्टी कम लगती है एवं बैरिंग होने से चलाने में आसानी होती है । इसे एक व्यक्ति द्वारा आसानी से चला सकता है । इसकी क्षमता 0.30 सं 0.40 हैक्टेयर प्रति दिन है ।
५.मार्कर
एस.आर.आई. पद्धति में धान के 10 से 12 दिनों के पौधों की रोपाई बीज, मिट्टी एवं जड़ सहित वर्गाकार 25 ग 25 से.मी. पद्धति में की जाती है । एक स्थान पर सिर्फ एक ही पौधा रोपा जाता है, जिससे पौधों में जड़ों एवं कंसों की संख्या में वृद्धि होने से उत्पादन बढ़ता है ।
धान की प्रारंभिक अवस्था में खेत में पडलिंग कर पानी को निकाल दिया जाता है तथा मिट्टी की सतह हल्की कड़ी हो जाने पर मार्कर को चलाकर खेत में 25 ग 25 वर्ग से.मी. की वर्गाकार 5 कतारें एक साथ खींची जाती हैं । जिससे मजदूरों को धान की रोपाई निश्चित दूरी पर करने में आसानी रहती है । इसे एक व्यक्ति आसानी से खींचकर एक दिन में एक हैक्टेयर तथा एक सीजन में लगभग 10 हैक्टेयर में मार्किंग कर सकता है ।
६.स्पाइरल सेपरेटर
स्पाइरल सेपरेटर बिना ईंधन तथा बिना बिजली से चलने वाला यंत्र है । इससे सभी गोल दाने वाली जींस जैसे – सोयाबीन, रायडा अरहर ( तुअर ) आदि की ग्रेडिंग की जाती है तथा एक घण्टे में 3 क्विंटल बीज की ग्रेडिंग की जा सकती है । इसका वनज लगभग 30 से 35 किलो होने के कारण इसे लाने ले जाने में आसानी होती है ।
७.सीड ट्रीटिंग ड्रम
सीड ट्रीटिंग ड्रम हाथ से चलने वाला बीजोपचार यंत्र है जिससे एक बार में 15 से 20 किलो तथा एक घंटे में एक क्विंटल बीज का उपचार किया जा सकता है । इसकी बनावट इस प्रकार की है कि दवा एवं कल्चर बीज के चारों ओर लग जाती है, जिससे बीजोपचार शत्-प्रतिशत होता है । बीजोपचार बंद ड्रम में करने से कृषक के स्वास्थ्य पर रासायनिक दवाओं का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता ।
बीजोपचार
सोयाबीन
थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या ट्रायकोडर्मा 5 ग्राम/किग्रा बीज एवं राजोबियम 10 ग्राम $ पीएसबी कल्चर 5 ग्राम/किग्रा बीज के लिए ।
धान
थायरम/मेनजेब 2.5 ग्राम/किग्रा बीज एवं रोपा धान के लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम $ मेनकोजेब 2 ग्राम एवं थायोमिथाॅक्जाम 3 ग्राम/किग्रा बीज के लिए ।
चना
ट्रायकोडर्मा विरडी 4 ग्राम + वीटावेक्स पावर 1 ग्राम/किग्रा बीज एवं रायजोबियम एवं मोलीबिडनम 5 – 5 ग्राम/किग्रा बीज के लिए ।
गेहूं
थायरम/मेनजेब 2.5 ग्राम एवं एजोटोबेक्टर तथा पीएसबी कल्चर 5 – 5 ग्राम/किग्रा बीज के लिए । गेहूं में कण्डवा रोग के लिए बीटावेक्स 2 ग्राम/किग्रा बीज के लिए ।
८.सीड ग्रेडर ( पैडल आपरेटेड )
इससे सभी जिंसों की ग्रेडिंग की जा सकती है । इसे पैर से चलाने के अतिरिक्त एक एच.पी. की विद्युत मोटर से भी चलाया जा सकता है । इसकी क्षमता 3 से 8 क्विंटल/घण्टा है । अलग – अलग जींस की ग्रेडिंग हेतु छलनी की अलग – अलग साईज होती है:-
क्रमांक | जींस | ऊपरी छलनी (मिमी) | निचली छलनी (मिमी) |
1. | गेहूं एवं ज्वार | 5 x 20 | 2 x 20 |
2. | अरहर एवं चना छोटा | 6.5 x 20 | 3.2 x 20 |
3. | अरहर एवं चना बड़ा | 8 x 20 | 3.2 x 20 |
4. | सोयाबीन | 8 x 20 | 3.2 x 20 |
९.रिज फरो सीडड्रिल
सोयाबीन की बोनी के तुरंत पश्चात् अधिक वर्षा होने पर पानी की निकासी न होने से बीज गल जाता है । प्रचलित सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल में सोयाबीन की बोनी हेतु रिज फरो अटैचमेंट ( टाइन्स कुसिया सहित ) लगाया जा सकता है । इस सीड ड्रिल से रिज ( मेढ़ ) एवं नाली बनती है जिसमें बीज की बोनी रिज के ऊपर होती है । कम वर्षा में फरो ( नाली ) में एकत्रित जल फसल की जड़ों को मिल जाता है एवं अधिक वर्षा की स्थिति में अतिरिक्त जल की निकासी फरो से हो जाती है ।
कम तथा अधिक फैलने वाली प्रजाति की बोनी क्रमशः 14 एवं 18 इंच की दूरी पर की जाती है जिससे बीज भी कम मात्रा में लगता है । इस पद्धति से सोयाबीन की बोनी करने से उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है । इस पर कीमत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू. 2500 अनुदान है ।
१०.रेज्डबेड प्लांटर
रेज्ड बेड पद्धति में रेज्डबेड प्लांटर से सोयाबीन, गेहूं, मक्का, कपास, गन्ना एवं उद्यानिकी फसलों की बुआई दो या तीन कतारों में की जाती है तथा बेड के दोनों तरफ बनी नालियों से सिंचाई का पानी दिया जाता है । बेड की चैड़ाई 70 से 90 से.मी. तथा ऊंचाई 15 से 30 से.मी. होती है । इस पद्धति में फ्लड इरीगेशन की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत पानी की बचत होती है । इस पद्धति में बुआई करने के पूर्व सिंचाई करने में सुविधा होती है एवं स्टेल सीड विधि, यांत्रिकी एवं रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है ।
एक फसल के बाद दूसरी फसल की बोवाई हेतु रेज्ड बेड को पुनः आकार देकर उसका उपयोग किया जा सकता है ।मृदा की जैविक एवं भौतिक स्थिति में सुधार होने से जड़ों में हवा का संचार ( एरोबिक ) अच्छा होता है जिससे जड़ों का बेहतर विकास होने से पौधा स्वस्थ एवं मजूत रहने से पौधे गिरने ( क्राप लाजिंग ) की समस्या नहीं रहती है। इस पद्धति में बीज में 10 प्रतिशत खाद में 20 प्रतिशत की बचत होने के साथ साथ समय एवं मजदूरी में भी बचत होती है । इसे 45 हार्स पावर के ट्रेक्टर से चलाया जाता है एवं इसकी क्षमता 0.20 हैक्टेयर प्रति घंटा होती है ।
कृषि यंत्रीकरण का महत्व
1. कृषि यंत्रों एवं मशीनों के उपयोग से खेती में लगने वाले श्रम, समय एवं लागत में कमी की जा सकती है ।
2. समय पर खेत तैयार करने, बीज एवं खाद को निर्धारित दूरी तथा गहराई पर बोने, निंदाई, गुड़ाई एवं कटाई आदि कृषि कार्य को समय पर करने हेतु उन्नत कृषि यंत्रों की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है ।
3. यंत्रों के उपयोग से कठिन श्रम एवं नीरसता को कम कर मजदूरों की दक्षता बढ़ाई जा सकती है ।
4. कृषि यंत्रों के द्वारा जैविक एवं रासायनिक आदानों का दक्षतापूर्ण उपयोग कर उत्पादकता को बढ़ाने के साथ – साथ उत्पादन की लागत को भी कम किया जाता है ।
5. कृषि यंत्रों के उपयोग से फसल की सघनता को बढ़ाने के साथ – साथ उत्पादन में लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि प्राप्त की जा सकती है ।
6. कृषि यंत्रों/संयंत्रों के उपयोग से उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर कृषक की आय को बढ़ाया जा सकता है ।
खेती को लाभ का धंधा बनाने में कृषि यंत्रीकरण की भूमिका
स्रोत-
- कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय, मध्य प्रदेश भोपाल