कीट एवं रोग प्रबंधन में नवीन रसायनों का योगदान

कीट एवं रोग प्रबंधन में नवीन रसायन:-

विगत दो दशकों से कीटनाशकों से सम्बन्धित शोध में बदलाव आया है अब ऐसे कीटनाशकों के विकास किये जा रहे हैं जो वातावरण एवं मनुष्यों के लिए कम से कम हानिकारक हों। ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग पुराने एवं हानिकारक कीटनाशकों के स्थान पर किया जा रहा है। कम घातक कीटनाशकों में संश्लेषित एवं प्राकृतिक यौगिक का प्रयोग किया हैं जो नुकसानदायक कीट के आलावा अन्य मित्र जीवों को हानि नहीं पहुंचाते है।

भारत में सब्जियों के प्रयेाग हेतु लगभग 30 से अधिक नये कीटनाशकों एवं उनके विभिन्न फार्मुलेशन जिनकी क्रियाशीलता अलग है, का पंजीकरण किया गया है। नये कीटनाशी जैसेः नीओनीकोटिन्वायड, आक्जैडियाजिन, डायाएमाईडस, क्टिोनाॅलस, फेनाइल पाइराजेाल, पाइरीडीन, एवरमेक्टिन स्पाइनोसिन, पाइरोल एवं कीट वृद्धि नियामक वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।

अधिकांश नये कीटनाशी पुराने कीटनाशकों की अपेक्षा अधिक लाभदायक हैं, जैसे:

  • निर्धारित कीट के प्रति विशिष्टता।
  •  कम मात्रा में उत्तम प्रभावकारिता।
  • उच्च दर व कुल स्तर की चयनता।
  • वातावरण में नहीं बने रहने एवं दुष्प्रभाव का न छोड़ना।
  • स्तनधारियों के लिए कम हानिकारक।
  • प्राकृतिक मित्र कीटों के लिए व्यापक प्रभावी कीटनाशकों की तुलना में कम हानिकारक।
  • प्राकृतिक शत्रु कीटों से नियंत्रित होने वाले दूसरे दरजे के कीटों को कम हानि पहुंचाते हैं जिन्हे अच्छी प्रकार मित्र कीटों से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • नये कीटनाशकों के प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता का देर से विकसित होना एवं पुराने कीटनाशकों से प्रतिरोध विकसित कीटों का भी नियंत्रण करते हैं।

 

इन सभी फायदों के कारण नये कीटनाशकों का प्रयोग एकीकृत कीट प्रबंधन में अधिक उपयुक्त रहता है तथा कीट प्रतिरोधी प्रबंधन कार्यक्रम में भी सहायता प्रदान करता है। सब्जी उत्पादक एवं सुरक्षा सलाहकार, इन नवीन कीटनाशकों के चयन, विशिष्ट गुणों, क्रिया प्रणाली, प्रयोग के जानकारी से उनके उपयोग में ज्ञानवर्धन होगा।

 

 

स्रोत-

  • भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्था,वाराणसी
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