कालमेघ की खेती

परिचय

कालमेघ खरीफ मौसम का खरपतवार है जो कि पड़ती जगहों पर, खेतों की मेढ़ों पर उगता है यह सीधा बढ़ने वाला शाकीय पौधा है । इसकी ऊँचाई 1-3 फुट तक होती है । विभिन्न भाषाओं में इसके अलग नाम हैं । इस कालमेघ, भूनिम्ब, करियातु भी कहते हैं ।

 

उपयोग

इसके गुण लघु रूक्ष, रस तिवत, पिपाक कटु तथा वीर्य उष्ण होता है । यह अग्निमांघ, यकृत वृद्धि विबंध, रक्त विकार, शोध, मलेरिया ज्वर, जीर्ण ज्वर तथा चर्मरोग में उपयोगी होता है । खून एवं लीवर की बीमारी के लिए अत्यंत उपयोगी औषधि है ।

 

रासायनिक संगठन

कालमेघ में एंड्रोग्राफोलाइड तथा कालमेघनिन नामक रासायनिक तत्व पाये जाते हैं ।

 

जलवायु

कालमेघ के लिए समशीतोष्ण जलवायु आवश्यक है । औसत वर्षा 75-90 से.मी. होनी चाहिए । परन्तु 125-130 से.मी. वर्षा वाले स्थानों में भी यह होती है । यह मुख्यतः खरीफ में उगता है ।

 

भूमि

यह सभी प्रकार की भूमि में अनुकूलन की क्षमता रखता है । वैसे उत्तम जल निकास वाली दोमट कछारी  तथा मटियारी काली भूमि इसकी खेती के लिए उत्तम होती है । इसके लिए मिट्टी का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए । इसे पहाड़ी, ऊँची-नीची कम उपजाऊ तथा पड़ती भूमि में सरलता से उगाया जा सकता है ।

 

भूमि की तैयारी

मई-जून माह में खेत को जोतना चाहिए । जुताई करने से पहले 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत में फैलाना चाहिए । हैरो तथा पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए ।

 

बोनी का समय

यह खरीफ की फसल है । इसकी बोनी 15 जून से 15 जुलाई तक की जाती है ।

 

बीज की मात्रा

इसकी खेती के लिए लगभग 5 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है ।

 

उन्नत किस्में

इसकी कोई उन्नत किस्म नहीं है । बोनी के लिए इसके बीजों को जंगल से या खेतों से संग्रह किया जाता है ।

 

बोनी की विधि

बीज को बोनी से पहले 2-5 ग्राम/किलो ग्राम बीज की दर से बावस्टीन नामक दवा से उपचारित करें एवं बीज को 4-5 दिन पानी में भिगो कर रखें । इस उपचारित बीज को दो तरह से बोनी की जा सकती है । प्रथम बीज को पहले नर्सरी में बोयें । बीज के अंकुरित होने के बाद जब पौधे लगभग 20 से.मी. के हो जावें तो उन्हे उखाड़ कर खेत में रोपाई करें । इस विधि से पौधे लगाने पर अधिक उपज प्राप्त होती है । दूसरा तरीका बीज को सीधा खेत में बोया जाये । बोनी करते समय कतारों के बीज 30 से.मी. व पौधों के बीच 25 से.मी. का अंतर रखें । बोनी के 6-7 दिन में अंकुरण हो जाता है । इसका बीज छोटा होता है अतः बोनी 1-1.5 से.मी. की गहराई पर ही करना चाहिए ।

 

खाद व उर्वरक

सिंचित फसल में नत्रजन, स्फुर, पोटाश प्रति हेक्टेयर बोनी के समय देना चाहिए । इसके बाद 15 किलो ग्राम नत्रजन / हेक्टेयर प्रथम सिंचाई के समय अवश्य देना चाहिए ।

 

निंदाई

खेत में नींदा होने पर उसकी निंदाई करना चाहिए । साथ ही पौधों की भी गुड़ाइ्र करना चाहिए ।

 

सिंचाई

वर्षा यदि जल्दी खत्म हो जाये और खेत में नमीं की कमी दिखाई दे तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए ।

 

रोग व कीट

सामान्यतःइसमें रोगों का प्रभाव नहीं होता है । कीटों के नियंत्रण के लिए मेलाथियान दवा 2 मि.ली./लीटर, 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें ।

 

फसल की कटाई

इसकी फसल 4-5 माह में पक कर तैयार हो जाती है । जब अधिकांश बीज पूर्ण रूप् से पक जाये ंतब काटना चाहिए । पौधों को काट कर छाया में सुखाना चाहिए । फसल को बोरियों में भर कर सूखे स्थान पर भंडारित करना चाहिए । इसके प्रत्येक भाग का उपयोग किया जाता है । अतः प्रत्येक भाग को अलग-अलग भंडारित करना चाहिए ।

 

उपज व आय व्यय

कालमेघ की फसल से प्रति हेक्टेयर 4-5 क्विंटल बीज तथा 30-35 क्विंटल शुष्क शाक मिलती है । बीज एवं शुष्क शाक दोनों का विक्रय हो जाता है ।

 

स्रोत-

  • जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर,मध्यप्रदेश
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