काजू खेती में सघन रोपण

भूमि की तैयारी और अंतर

चुनी हुई जगह से जंगली पेड़-पौधों को पूर्णतः निकालना चाहिए । बारिश के बाद छोटे मोटे पौधों को जड़ से निकालना चाहिए । अगर उन्हें नहीं निकालते तो वे काजू के कलमों की प्रवर्धन को बाधा देते हैं । कलम लगाने के जगह में कम से कम 2.0 मी. की त्रिज्य में घास-पूस निकालकर ठीक से सफाई करना चाहिए । मिट्टी की उर्वरता के अनुसार 5.0 * 5.0 मी., 6.0 * 4.0 मी. या 4.0 * 4.0 मी. के अंतर में रोपण करना चाहिए ।

यदि उर्वरता मिट्टी में मध्यम या उत्तम प्रमाण में हो तो 6.0 * 5.0 मी. या 6.0 * 4.0 मी. के अन्तर में रोपण कर सकते हैं । अगर मिट्टी में उर्वरता कम है तो (मखरला मिट्टी जैसे) 4.0 ग 4.0 मी. के अन्तर में रोपण कर सकते हैं । गड्ढे 1.0 * 1.0 * 1.0 मी. का लंबाई, चैड़ाई और गहराई का होना चाहिए । ढालूआँ जगहों में ये गड्ढे एक ही ऊँचाई के स्तर में उपरोक्त अंतर में खोदना चाहिए ।

मानसून के पहले कुछ बारिश होती है (अप्रैल और मई महीने) इस समय में जब मिट्टी नरम हो तब ही गड्ढा खोदना चाहिए । रोपण के 15-20 दिन पहले गड्ढे खोद कर धूप में खुला रखना चाहिए । पाँच कि कि.ग्रा. अच्छे सड़े हुए काम्पोस्ट या दो कि.ग्रा. सड़े हुए कुकुट खाद और 700 ग्रा. शिलांरजक को ऊपरी परत की मिट्टी में मिलाकर हर एक गड्ढे में आधे तक भरना चाहिए ।

बारिश के पानी को आसानी से निकालने के लिए नाली बनाना चाहिए । यह नालियां ढालुआँ जगह में गड्ढे के ऊपर होना चाहिए और गड्ढे के समतल पर एक छोटी सी नाली बनाना चाहिए । अधिक पानी इस नाली से निकल जाता है । पहाड़ी और ढालुआँ जगहों पर पेड़ के पीचे 1.5 मी. त्रिज्या का समतल बनाना चाहिए और 2.0 मी. लंबाई, 0.7 मी. चैड़ाई और 0.45 मी. गहराई का एक कंदक को पेड़ के ऊपरी तरफ 1.5 मी. दूर में खोदना चाहिए|

 

पौधों का संरक्षण

प्ररोहण के समय में प्रति लीटर पानी में 0.6 मी.ली. स् . सैहालोत्रिन और पुष्पण और फलन के समय में प्रति लीटर पानी में 2.0 ग्रा. कार्बारिल मिश्रण करके फुहारना चाहिए । इससे चाय मच्छर की हानि को नियंत्रण में किया जा सकता है । काजू काँड और जड़ छेदक के नियंत्रण के लिए बाधित पेड़ों से कीट की सूंडियों को निकालकर क्लोरपैरीफास (0.2%) फाहना चाहिए । जिन पेड़ की छाल परिधि में 50% से ज्यादा हानि है या जिनके पूरे पत्ते पीले हुए हैं, उन पेड़ों को नहीं बचा पाओगे, लेकिन उसमें रहने वाली कीट अवस्थाओं  भविष्य में कीट आक्रमण के मूल हो सकते हैं । इसलिए ऐसे पेड़ों को जड़ से उखाड़ कर बाहर फेंकना चाहिए ।

 

सघन खेती

सघन रोपण पद्धति से काजू बगानों की शुरूवात के सालों में खाली जमीन को पौध संख्या बड़ाकर लाभदायक रूप् से उपयोग कर सकेंगें । सघन रोपण पद्धति से पौध संख्या बड़कर 2-4 गुना उपज बड़ा सकेंगें ।

 

सघन खेती के लाभ

बागानों में घासपूस का प्रमाण कम होता है जिससे पानी और पोषकाँश के लिए काजू के साथ स्पर्धा कम होती है । इसमें काजू की छतरी ज्यादा फैलने से भूमि पर धूप आना कम होने से घासपूस कम होती है । भूमि से नमी की वाष्पीकरण भी पत्ते गिरने से कम होता है । गिरे हुए पत्ते परिवर्तित होकर अगले साल में खाद बनाते हैं । इससे पर्याप्त मात्रा में पोषकाँश स्वस्थान में पुनरावर्तित होकर पेड़ों को मिलता है । सघन कृषि में प्रारंभ की छः साल में चार गुना अधिक फसल मिलती है । दस साल तक 2.25 गुना ज्यादा फसल मिलने से तीन गुना लाभांश मिलता है ।

 

 

स्रोत-

  •    काजू अनुसंधान निदेशालय, पुत्तरू, दक्षिण कन्नडा कर्नाटका-574202      
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