कम उपज देने वाले पुराने पेड़ों की शाखाओं को काटकर उससे विकसित हुए कल्लों को उत्तम गुण की किस्मों से कलमबन्द करके पेड़ों की उत्पादकता बड़ाने को ’’ कायाकल्प ’’ कहते हैं । कम उपज देने वाले काजू बागानों को कायाकल्प करके सम्पर्क रूप में प्रबंधन करने से कम समय में उसकी उत्पादकता कई गुना बड़ा सकते हैं ।
कायाकल्प का उद्देश्य
1. अल्प समय में निराशादायक उपज देने वाले पेड़ों को सुधारना ।
2. पुराने पेड़ों को या बागानों को उत्तम गुणवत्ता तथा अधिक उपज देने वाले पेड़ या बागानों में परिवर्तन करना ।
3. विविधता दिखाने वाले काजू के पेड़ों (जननद्रव्य) को कम जगह में संरक्षण करना ।
कायाकल्प के लिए सूक्त पेड़
1. कायाकल्प के लिए चुने हुए पेड़ सुदृढ़ और आरोग्यपूर्ण होना चाहिए ।
2. काजू कांड और जड़ छेदक का हानि से मुक्त रहना चाहिए ।
3. 15 साल के अंदर के पेड़ कालाकल्प के लिए सूक्त है ।
4. सिर्फ निराशदायक या अत्यंत कम उपज देने वाले पेड़ों को ही कालाकल्प के लिए इस्तेमाल करना चाहिए ।
कायाकल्प की पद्धतियाँ
पेड़ों का काँटन
कम उपज देने वाले पेड़ों को चुन कर उसकी शाखाओं को जमीन स्तर से अंदाज 1.0 से 1.5 मीटर ऊपर तक छोड़कर काटना चाहिए । शाखाओं को काटते समय छाल को चीरने से रोकना चाहिए । कटे हुए शाखाओं को कीट और फफूंद बाधा से रक्षण करने के लिए 10ः बोर्डो मिश्रण का लेप करना चाहिए । बाहर दिखने वाले जड़ और कांड को 0.2ः क्लोरपैरिफोस फूहारना चाहिए । गुठली कटाई के बाद याने मई से जून महीने तक की समय पेड़ काटने के लिए अत्यंत सूक्त है । पेड़ों से कटा हुआ शाखाओं को तथा टहनियों को दूर फेंकना चाहिए ।
कलम बांधना
पेड़ों को काटने के बाद तना में सुप्तावस्था में स्थित असंख्य मुकुल विकसित होकर नये प्ररोह बनते हैं । उसमें से कुछ उत्तम/स्वस्थ प्ररोहों को, एक से दो महीने के अंदर चुनकर, उनपर उत्तम किस्म का कलम बांधकर नये छतरी बनवाना चाहिए । कायाकल्प हेतु कलम बांधने के लिए जुलाई या अगस्त महीना सूक्त है । हर एक पेड़ के चारों दिशाओं में 15-20 कलम बांधना उचित होगा । बचा हुआ प्ररोहों को धीरे-धीरे निकाल के सिर्फ कलम बांधा हुआ शाखाओं को बड़ाना चाहिए । इनमें ये अच्छे ढंग से उबरते हुए 10-12 कलमों को छोड़कर, बाकी कलमों को निकाल देना चाहिए ।
शुरूवात के एक-दो साल तक कलमें बलिष्ट होने तक पशुओं से या तेज हवा से बचाने के लिए, आवश्यकतानुसार शाखाओं को खूंटो का सहारा देना चाहिए । कायाकल्प किए हुए पेड़ दूसरी साल से अन्य पेड़ों जैसे उपज दे सकते हैं ।
कायाकल्प किए आठ साल पुराने पेड़ों का प्रबंधन और गुठली उपज को औसत ब्यौरा निम्नलिखित रूप में है । कायाकल्प किए कुल 94 पेड़ों में से 88 बचा है । कालाकल्प किए हुए पेड़ों से तना और जड़ छेदक का बाधा तीव्र हो सकती है । लेकिन ठीक प्रबंधन से उस कीड़ा की बाधा निभा सकते है ।
काजू कांड और जड़ छेदक कीट और कायाकल्प किए हुए पेड़ों में इसकी बाधा और नियंत्रण
कांड और जड़ छेदक काजू फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट हैं । कालाकल्प के लिए कटा हुए पेड़ों में भी यह हानि पहुंचाता है । सामान्यतः कायाकल्प के लिए काटा हुए पे़ड़ प्रौढ भुंगो को अण्डा रखने हेतु आकर्षित करते हैं । प्रदान कांड तथा जमीन से ऊपर आये हुए जड़ों से गोंद, पेड़ का चूरा और की कमल स्रवित होना इस कीट हानि का प्रमुख लक्षण है । कीट का सूंडिया छिलके में सुरंग बनाने के कारण पानी और पौषकांश का आपूर्ति नहीं हो पाती है । इस कारण से कटा हुआ पेड़ों से मुकुल आने में बाधा हो सकती है । पहले आये हुए मुकुल और कलम बांधा हुआ शाखायें पीले होकर सूख सकते है ।
पेड़ को काटने के तुरंत बाद इस कीट हानि से पेड़ों को रक्षित करने के लिए कार्बारिल (1.0%) या क्लोरपैरीफाॅस (0.2%) घोल को कांड पर फाहना करना चाहिए । कम से कम महीने में एक बार कीट हानि लक्षणों की जाँच करना चाहिए । बाधित पेड़ों के छिलके को चिप्पड़ाकर कीट सूंडियों को नाश करना चाहिए । कीट सुंडियां निकाला हुआ भागों को पहले जैसे ही कार्बारिल (1.0%) या क्लोरपैरीफाॅस (0.2%) घोल का लेपन करना चाहिए । पेड़ के तना की परिधि में कम से कम आधा भाग ठीक रहना चाहिए नही तो पेड़ के पुनरूज्जीवन नहीं हो जायेगा ।
तीव्रतर बाधित पेड़ों को जड़ से उखाड़ के नष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से अन्य स्वस्थ पेड़ों की कीट बाधा फैलने से रोक सकते हैं । यह कीट मिट्टी सेे नहीं फैलता है । यह कीट का भृंगों में निशाचरी होते हैं । पेड़ के विदिरिका में अण्डे रखने से इस कीट की हानि प्ररंभ होती है । कायाकल्प किए हुए पेड़ों के आस-पास में अन्य पेड़ों में भी कांड और जड़ छेदक का नियंत्रण जरूर करना चाहिए ।
स्रोत-
- काजू अनुसंधान निदेशालय, पुत्तरू, दक्षिण कन्नडा, कर्नाटका