काजू की खेती

काजू एक प्रमुख बागवानी फसल है जिसे केरला, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटका, कमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और ओडिशा में विस्तार रूप से खेती की जा रही है । पश्चिम बंगाल, छत्तीसगड़, गुजरात तथा पूर्वोत्तर प्रदेशों में इसे कुछ हद तक उगाया जाता है । लोकप्रिय नाश्तावों में उपयोग के साथ-साथ काजू गरियों को आईसक्रीम, पेस्ट्री तथा मिठाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है । इसमें अधिक प्रोटीन और कम शक्कर होने के कारण आरोग्यवर्धक खाद्यों में एक अंश के रूप में अधिक प्रमुखता पा रहा है ।

 

भूमि की तैयारी

काजू खेती के लिए चुने हुए स्थल से जंगली पौधों तथा खरपतवार को हटाना चाहिए । कलम लगाने जगह से 2 मी. त्रिज्य में पौधों तथा खरपतवारों  की जड़ों को निकालना चाहिए । इससे नया रोपित कलम को स्पर्धा रहित स्थिति निश्चित किया जा सकता है ।

 

गड्ढा खोदना

ढाल के आर-पार में 7.5 * 7.5 मी. या 8.0 *8.0 मी. की अंतर में 1.0 * 1.0 * 1.0 मी. का गड्ढा खोदना चाहिए । यदि निचले स्तर पर पत्तर या कड़ा प्यान है तो 1.2 * 1.2 * 1.2 मी. तक गड्ढा को विस्तार करना चाहिए । ’’हेड्ज-रो’’ रोपण पद्धति में 1.0 * 5.0 मी. अंतर रखने से खेती की आरंभिक वर्षों में अंतराल फसल उगाने के लिए सुविधा होती है । रोपण से 15-20 दिन पहले गड्ढा खोदकर सूर्थराश्मि को खुला रखना चाहिए ताकि दीमक जैसे जड़ को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को नष्ट कि जा सके । गड्ढे को ऊपरी मिट्टी, 5.0 कि.ग्रा. काम्पोस्ट, 2.0 कि.ग्रा. कुकुट खाद और 200 ग्राम ’’राकफाॅस्फेट’’ का मिश्रण से तीन-चैथाई तक भरना चाहिए । पानी बंदजाना रोकने के लिए बनाना चाहिए |

 

कलम का रोपण

साधानणतः नर्सरियों में पाँच महीने से ज्यादा उम्र का कलम मिलते है । आरोग्यपूर्ण कलमों को पालीथीन थैली से सावधानी से निकालकर मिट्टी के साथ ही रोपण करना चाहिए । कलम का रोपण के लिए गड्ढे के मध्य में थोड़ी सी मिट्टी को निकालना चाहिए । गड्ढे में कलम रोपण करने के बाद धीरे से आस-पास की मिट्टी को दबाना चाहिए । कमल की जोड़ को मिट्टी से 5.0 से.मी. ऊपर रखना चाहिए । इससे प्रकंद से निकलने वाली प्ररोहों को हटाने में सुविधा होगी । गड्ढे को दो साल के अंदर धीरे-धीरे भरना चाहिए ।

 

खूँटा लगाना और घासपात डालना

कलम रोपण करने के बाद एक खूँटा लगाकर कलम को ढीला सा गाँठ बाँधना चाहिए ताकि जोर हवा से हानि न हो । नमी संरक्षण के लिए पौधे के आस पास में सूखी पत्तों और हरी पत्तों से घासपात करना चाहिए ।

 

पौधों की देखरेख अनुवर्धन और छाँटन

समय-समय पर कलम जोड़ के नीचे से आ रहे प्ररोहों को निकालना चाहिए । मुख्य कांड के 75-100 से.मी. तक की निचली शाखाओं को ’’सिकेचर’’ से काटना चाहिए ताकि रोपण के 4-5 साल के बाद मुख्य कांड उस ऊंचाई तक सीधा रहे । इसको हर साल क्रमशः करना चाहिए इससे कृषि कार्य, गुटलियों का संग्रहण, तथा काजू कांड और जड़ छेदक हानि लक्षणों को पता लगाने में सुविधा होगी । रोपण के दो साल तक पुष्पगुच्छों को निकालना चाहिए । प्रथम फलन को तीसरा साल में ही लेना चाहिए । 4-5 साल के बाद सीधे बढ़ने वाले मुख्य कांड को 3.5 मी. से 4.0 मी. की ऊंचाई पर काटना चाहिए ।

 

उर्वरक डालना – मात्रा निर्धारण

रोपण के बाद (सालों में) यूरिया (ग्रा./पौधा) राक फास्फेट(ग्रा./पौधा) म्युरियेट ऑफ़ पोटाश(ग्रा./पौधा)
1 330 125 40
2 660 250 80
3 990 375 120
4 1320 500 160
5 और अधिक 1650 625 200

 

उर्वरक डालना-प्रणाली

दुम्मटी मिट्टी तथा कम बारिश वाली जकहों में (पूर्व तटीय व भीतरी प्रदेश) उर्वरक को 50 से.मी. चैड़ाई की वर्तुलाकर पट्टीयों में क्रमशः मुख्य कांड से 0.5 मी., 0.7 मी., 10 मी. एवं 1.5 मी., प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चैथे साल में लगाना चाहिए ।
अधिक बारिश वालों प्रदेशों का मखरली मिट्टी और ढालूआँ मिट्टीयों में 25 से.मी. चैड़ाई तथा 1.5 से.मी. गहराई की वर्तुलाकार खंदकों में उर्वरक को से 0.5 मी., 0.7 मी., 10 मी. एवं 1.5 मी.,की दूरी में क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चैथे वर्ष में डालना चाहिए । उर्वरक को तुरन्त मिट्टी में मिश्रण करना चाहिए । उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए हरा पत्तों को बिछाकर ’’मल्च’’ करना चाहिए । अधिक बारिश में और मिट्टी में नमी की कमी होने पर उर्वरक नहीं डालना चाहिए । अगस्त महीने के दूसरे हफ्ते में जब बारिश कम रहती है उस समय उर्वरक दे सकते हैं ।

 

मिट्टी और जल संरक्षण विधिया

तीसरे साल से पहले ढालू प्रदेशों में प्रत्येक पौधे के चारों तरफ कगार बनाना चाहिए । कगारों को 1.8 मी. से 2.0 मी. तक त्रिज्य में बनाना चाहिए और ढाल के ऊपरी तरफ में एक जल संग्रहण खंदक बनाना चाहिए जो 2.0 मी. (लंबाई) * 0.3 मी. (चैड़ाई) ग 0.45 मी. (गहराई) का रहना चाहिए । पौधे के आस पास की मिट्टी पर जैविक को बिछाकर घासपात (मल्च) करने से बारिश के समय में भू-क्षरण और धूप से मिट्टी की नमी का बचाव हो पाता है|

 

सघन रोपण पद्धति

सघन रोपण पद्धति से काजू बागानों का शुरूआत चरण में खाली जमीन को पौध संख्या बढ़ाकर लाभदायक रूप से उपयोग कर सकेंगें । अधिक घनत्व रोपण पद्धति कम उर्वरकता वाले प्रदेशों को अत्यंत सूक्ष्म है क्योंकि ऐसी जगहों में पौधों का प्रवर्धन बहुत धीरे होता है जिससे आरंभिक वर्षों में अधिकांश भूभाग खुला रहता है । ऐसी जगहों में यदि साधारण घनत्व रोपण पद्धति में 8.0 मी. ग 8.0 मी. का अंतर (156 पेड़/है.) रखने से आरंभिक चरणों में उपज बहुत कम रहता है । 625 पेड़ /है. (4.0 * 4.0 मी.) का सघन रोपण पौध संख्या जारी रखने से कम उर्वरता मिट्टी में छटवीं साल तक का काजू उपज को 4 गुना बढ़ा सकता है  और 12 साल तक 2.5 गुना बढ़ा सकते हैं ।

सघन रोपण के लिए 5.0 मी. ग 5.0 मी. (400 पेड़/है.) तथा 6.0 मी. ग 4.0 मी. (415 पेड़/है.) का अन्य अंतर भी सिफारिश किया जाता है ।

 

पौध संरक्षण

काजू के कीट

१.चाय मच्छर का प्रबंधन(Tea Mosquito Bug [TMB])

नरम प्ररोहों, पुष्पगुच्छों, अपक्व गुठलियों तथा फलों से शिशुकीटों और वयस्क कीटों द्वारा रस चूसा जाता है, जिस वजह से काली धारियाँ पड़ जाती हैं । प्ररोहों तथा पुष्प गुच्छों पर इन धारियों से मिलकर प्ररोह अंगमारी या पुष्पगुच्छ अंगमारी उत्पन्न करता है । इस कीट की हानि गंभीर होने पर अभधित पेड़ों के रक्षण के लिए फुहार लेना आवश्यक है । लगातार कल्ला निकलने वाले पांच साल उम्र से कम अल्प वयस्क बागानों को कीटनाशक फुहारों से रक्षित करना चाहिए । उसके बाद बागानों में आवश्यकतानुसार फुहार लेना चाहिए ।

 

फुहार के लिए शिफरित किए हुए कीटनाश कइस प्रकार है:-

  • अंकुरण / कल्ला निकालने अवस्था में: मोनोक्रोटोफाॅस (0.05: यानि 1.5 मी.ली./लीटर पानी में)|
  • पुष्पण/फलन अवस्थावों में: कार्बारिल (0.1: यानि 2 ग्रा./लीटर पानी में)|

अथवा   सैहालोथ्रीन (0.003: यानि 6 मी.ली./10 लीटर पानी में) स्प्रेयर भरने से पहले कीटनाशक को अच्छी तरह मिश्रित करना चाहिए । दिन में 10.00 बजे तक और शाम के 4.00 बजे के बाद ही फुहार देना चाहिए । हवा के विरुद्ध फुहार नहीं करना चाहिए । कीटनाशक की खाली डिब्बों को नष्ट करके मिट्टी में गहराई में गाड़ना चाहिए । पीने वाली पानी की मूलों के आसपास के काजू पेड़ों को फुहार देते वक्त सूक्त ध्यान रखना चाहिए । फुहार करने वाले व्यक्ति अपने मुंह और नाक को ’’कपड़ा-मास्क’’ से बांदना चाहिए । प्लाटो में निराई के बाद ही फुहारी करना चाहिए ।

 

२.काजू कांड और जड़ छेदक  का प्रबंधन(Cashew Stem and Root Borer)

उपेक्षित काजू बागानों में स्थित फुराना काजू पेड़ों  की हानि को ज्यादा उन्मुक्त होता है । प्रौढ़ मादा भृंगों ने काँड के विदरिका में (मिट्टी के स्थन के नजदीक ) या खुला हुआ जड़ों में अंडों को रखते हैं । अंडों से निकलने के बाद नवजात सूंडीयाँ तुरंत कांड और जड़ों की छाल में सुरंग बनाते हैं । छाल में व्यापक सुरंग बनाने के कारण पोषकांश का बहाने में बाधा आती है । जिससे पत्तों व टहनीयाँ सूख जाते हैं । बाधित जगह से गोंद और ’’फ्राँस’’ के तरफ छाल को चिप्पड़कर  सूंडियों को पता करके निकालकर नाश करना चाहिए ।

पेड़ के नजदीक सफेद ’’फ्राँस’’ पड़ना  सूंडियाँ अन्तः कांड में कोश बनाने समय का चिन्ह है । इस अवस्था में कोश का सुरंग में एक मोड़ने वाले तार को सुरंग के अंदर घुसाकर, बार-बार दबाना चाहिए जब तक कीचड़दार आवाज सुनाई न है । सफेद द्रव बाहर निकलेगा, जो अंदर बसे हुए सूंडियां/कोश का हानि की सूचना है । उसके बाद, चिप्पड़ाया हुआ भाग को क्लोरोपैरिफाॅस (0.2%) (10 मि.ली. कीटनाशी/लीटर पानी में ) घोल से फाहना चाहिए या फुहारना चाहिए ।

जिन पेड़ के छाल के परिधि में 50% से ज्यादा हानि है या जिनका पूरे पत्ते पीले हुए हैं, उन पेड़ को नहीं बचा पाओगे, लेकिन उसमें रहने वाली कीट अवस्थाओं में भविष्य में कीट आक्रमक के मूल हो सकते हैं । इसलिए, ऐसे पेड़ों को जो नहीं बच पायेंगे, उन्हें ’’पौधस्वच्छता’’ के अंतर्गत जड़ से उखाड़कर उनमें बचे हुए कीटों को निकालकर, नाश करके तुरन्त दूर हटाना चाहिए ताकि, अगले साल के लिए कीट आक्रमण के मूल कारण न बनें ।

गुठली संग्रहण के समय (फरवरी से मई) में कीट आपात शुरू होती है, उसी समय में कीट बाधित पेड़ों को सूक्त तरीके से निशाना लगाया जा सकता है । बाद में निशाना लगाये हुए पेड़ों को 25 से 30 दिन के भीतर ’’रोगहर कार्रवाई’’ करना चाहिए, ताकि सूडियाँ और ज्यादा हानि न करें । इन पेड़ को भी ऊपर दिए हुए तरीके से ही उपचार करना चाहिए ।

 

कटाई

सिर्फ गिरे हुए सेबों की गुठलियों को ही पेड़ के नीचे से संग्रहण करना चाहिए । फलांे को कभी भी पेड़ों से नहीं तोड़ना चाहिए । गुठलियों को फल/सेब से अलग करके धूप में 2-3 दिन तक सुखाके बोरियों में जमीन से 4-6 इंच ऊपर में भंडारित करना चाहिए ।

गुठली पैदावार  सभी शिफरित किस्मों को 8 कि.ग्रा./पेड़ या 1.0 से 1.5 टन हैक्टेयर तक की संभाव्य पैदावार देने की क्षमता है । काजू तीसरी साल से उपज देता है, फिर भी प्रबंधन की स्थर के आधार से पूर्ण संभाव्य उपज लगभग 8 कि.ग्रा./पेड़ पाने के लिए 8 से 10 साल लगता है ।

 

स्रोत-

  •     काजू अनुसंधान निदेशालय, पुत्तरू, दक्षिण कन्नडा कर्नाटका-574202      

 

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