परिचय
कलौंजी के बीजों का औषधि के रूप में प्रयोग होता है । इसके बीजों को कृमिनाशक, उत्तेजक, प्रोटोजोवा रोधी के रूप में उपयोग किया जाता है । इसके बीजों के प्रयोग से पेशाब खुलकर आती है । इसके अतिरिक्त इसे कैंसर रोधी औषधि के रूप में प्रभावी पाया गया है । इसका प्रयोग बिच्छू काटने पर भी किया जाता है ।
रासायनिक संगठन
इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है, जिसमें निगेलोन तथा 2 मिथाइल 1-4 आइसोप्रोपिल, क्विनोन होते हैं । इसके बीजों में पामिटिक, मिरिस्टिक, स्टिएरिक, ओलेइक, लिनोलेइक तथा लिनोलेनिक नामक वसा अम्ल पाये जाते हैं । इसके अतिरिक्त इसके बीजों में बीटा सिटोस्टैराॅल भी पाया जाता है ।
भूमि
इसकी खेती कंकरीली व पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में सरलता पूर्वक की जा सकती है । जैसे मटियार, दुमट, बलुई तथा दोमट भूमि जिसमें जीवांश की अधिकता हो । जल निकास उचित होना चाहिए ।
खेती की तैयारी
एक या दो उथली जुताई कर लें तथा पाटा चलाकर खेत समतल कर लें । अगेती धान की जाति जिसमें अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में पानी सूख जाता हो, परन्तु नमी बनी रहे तब इसकी उतेरा बोनी की जा सकती है ।
बीज दर
कतारों में बोनी करने पर 8-10 किला तथा छिड़काव विधि से बोनी करने पर 16-17 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है ।
उन्नत जातियाँ
एन.एस. 44- यह कलौंजी की उन्नत जाति है । यह 150-160 दिन में पक कर तैयार हो जाती है । इसमें 4.5 से 5.5 क्विंटल/हेक्टेयर तक है ।
खाद तथा उर्वरक
कलौंजी के उत्पादन के लिए अधिक उर्वरक व खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है । फिर भी उचित रूप से इनका प्रयोग किया जाये तो इसकी उपज में काफी वृद्धि होती है । अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि 20:30:20 किलोग्राम नत्रजन, स्फुर, पोटाश प्रति हेक्टेयर बीज बोते समय देना चाहिए ।
सिंचाई
कलौंजी सिंचित तथा असिंचित दोनों तरह से उगाई जाती है । भारी मिट्टी जिसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है, इसे असिंचित फसल के रूप में उगाया जा सकता है । इसमें 2-3 सिंचाई बुवाई के क्रमशः 30, 60 व 90 दिनों बाद करना चाहिए ।
निंदाई-गुड़ाई
बीज अंकुरण के 20-25 दिन बाद पहली निंदाई-गुड़ाई कर देना चाहिए । आवश्यक होने पर दूसरी सिंचाई के पश्चात् निंदाई करना चाहिए ।
कटाई तथा उपज
कलौंजी की फसल 120-130 दिनों में तैयार हो जाती है । जब फल पक कर पीले पड़ने लगे, तब तुरंत फसल की कटाई करें । देर करने से फल चटक जाता है एवं दानें खेत में बिखर जाते हैं । असिंचित फसल से 4-5 क्विंटल/हेक्टेयर एवं सिंचित फसल से 7-8 क्विंटल/हेक्टेयर उपज मिलती है ।
कीड़े तथा बीमारियाँ
पौधों में उक्टा रोग का प्रकोप देखा गया है । बीजांकुर अवस्था में रोकथाम के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 2 ग्राम बेबस्टिन कुल 4 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें ।
स्रोत-
- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ,जबलपुर,मध्यप्रदेश