कपास की खेती भारत के बड़े क्षेत्र में की जाति है| यह खरीफ की फसल है | कपास की कार्यमाला इस प्रकार है-
भूमि का चुनाव एवं तैयारी
बालुई दोमट या मध्यम गहरी भूमि जिसमें पर्याप्त जीवांष एवं उत्तम जल निकास हो, की फसल के लिये उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिये। फसल के पुराने अवशेष निकाल कर खेत की अच्छी सफाई करें। खेत की मिट्टी देसी हल अथवा कल्टीवेटर चला कर पलटें। तीन साल में एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक है। मानसून से पहले बखर या कल्टीवेटर से 2-3 बार जुताई कर खेत समतल करें। अंतिम बखरनी से पूर्व 40-45 गाड़ी पका हुआ गोबर खाद या कम्पोस्ट प्रति एकड़ की दर मिलायें। तीन वर्ष में एक बार जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से गोबर खाद में मिलाकर दें।
क्षेत्र |
उपयुक्त जातियॉ |
निमाड़ घाटी | खंडवा-2, जवाहर ताप्ती, जे.के.-4, विक्रम, एल.आर.ए.-5166, हाइब्रिड-जे.के.एच.-1, जे.के.एच.-2 एवं जवाहर आकाश |
मालवा का पठार | विक्रम, जवाहर ताप्ती, हाइब्रिड- संकर-8, जेके.एच.-1, जेके.एच.-2, एवं जवाहर आकाश |
नर्मदा घाटी | जवाहर ताप्ती, जे.के.-4हाइब्रिड- एन.एच.एच.-44, जे.के.एच.-2 एवं जवाहर आकाश |
सतपुड़ा का पठार | जवाहर ताप्ती, जे.के.-4, एल.आर.ए.-5166, हाइब्रिड-जे.के.एच.-2, संकर-8, संकर-10 एवं एन.एच.एच.-44 |
बीज की मात्रा
सिंचित/अर्ध्दसिंचित |
बीज की मात्रा, किलोग्राम प्रति एकड़ |
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अमेरिकन कपास |
देशीकपास |
संकर कपास |
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सिंचित/अर्ध्दसिंचित |
2.-2.5 |
2.5-3 |
1-1.5 |
असिंचित |
2.5-3 |
3.20-4 |
1.2-2 |
बोनी का समय
सिंचित क्षेत्र में पलेवा देकर कपास की बोनी 25 मई से जून के प्रथम सप्ताह तक करें। असिंचित कपास की बोनी वर्षा प्रारम्भ होने के एक सप्ताह पूर्व या वर्षा प्रारम्भ होने पर सरता या चौफुली पध्दति से करें।
बीजोपचार
बोने से पूर्व बीज को प्रति किलोग्राम 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम या केप्टान दवा से उपचारित करें। इमिडाक्लोप्रिड 7.0 ग्राम अथवा कार्बोसल्फान 20 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित कर बोने से फसल को 40 से 60 दिन तक रस चूसक कीड़ों से सुरक्षा मिलती है।
बुवाई विधि
संकर कपास 90×90 से.मी. या 120×90 से.मी. की दूरी पर लगायें तथा उन्नत जातियों के लिये 60×60 से.मी. की दूरी सामान्यत: रखें। हल्की भूमि में यह दूरी 45×45 अथवा 45×30 से.मी. रखी जा सकती है। ।
खाद एवं उर्वरक
अ. जीवाश खाद : गोबर की खाद, कम्पोस्ट/नाडेप कम्पोस्ट 16-18 गाड़ी प्रति एकड़, नीम की खली 10-12 किलो ग्राम प्रति एकड़ डालें|
ब. रासायनिक उर्वरक : संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग आवश्यक है। निम्न मात्रा (किलोग्राम प्रति एकड़) में उर्वरकों का उपयोग करना चाहिये।
सिंचित | 64 नत्रजन | 32 सल्फर | 16 पोटाश |
अर्र्ध्दसिंचित | 40 नत्रजन | 24 सल्फर | 16 पोटाश |
असिंचित | 32 नत्रजन | 16 सल्फर | 16 पोटाश |
उर्वरक देने का समय |
उर्वरक की मात्रा (प्रतिशत में) |
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सिंचित |
असिंचित |
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नत्रजन |
फास्फोरस |
पोटाश |
नत्रजन |
फास्फोरस |
पोटाश |
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बोनी के समय |
10 |
50 |
50 |
33 |
50 |
50 |
अंकुरण के 1 माह बाद |
25 |
– |
– |
33 |
– |
– |
अंकुरण के 2 माह बाद |
25 |
50 |
50 |
33 |
50 |
50 |
अंकुरण के 3 माह बाद |
25 |
– |
– |
– |
– |
– |
अंकुरण के 4 माह बाद |
15 |
– |
– |
– |
– |
– |
बोनी के समय खाद बीज के नीचे 6-10 से.मी. गहराई पर दें। अंकुरण के 60-65 दिन बाद पौधे के पास रिंग पध्दति अथवा कॉलम पध्दति से गङ्ढे बनाकर उर्वरक दें|
अंतरवर्तीय खेती
कपास के साथ उड़द, सोयाबीन, मूंगफली की अंतरवर्तीय फसल लाभप्रद पाई गई है। इसे कतार छोड़ कतार जोड़ पध्दति से लगायें। इसके अतिरिक्त संकर मक्का या तिल की अंतरवर्तीय फसल लेना लाभकारी पाया गया है।
क.) कपास की हर 2 कतार के बाद दो कतार अंतरवर्तीय फसल लगायें। सिंचित में अंतरवर्तीय फसल की कतारें 45 से.मी. तथा असिंचित में 30 से.मी. दूरी पर लगायें।
ख.) कपास की हर 6-8 कतारों के बाद अरहर की दो कतार लगाना लाभप्रद रहता है। असिंचित कपास में कतारों के बीच, उड़द, मूंग, सोयाबीन अथवा फेंचबीन 30-35 किलोग्राम प्रति एकड़ की बीज दर से लगायें। इसे अंकुरण के 25 दिन बाद खेत में मिला दें। इससे खेत की नमी काफी दिनों तक बनी रहती है एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
सिंचाई
वर्षा समाप्त होने पर हल्की भूमि में 12-15 दिन तथा मध्यम-भारी भूमि में 25-35 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करे। कली एवं फूल बहार के समय नमी की आवश्यकता अधिक होती है। प्रत्येक बार एक कतार छोड़कर सिंचाई करे।
खरपतवार नियंत्रण
अंकुरण के 20-25 दिन पष्चात् हाथ से निंदाई कर कोल्पा-डोरा चलायें। वर्षा के बीच समय मिलने पर डोरा चलायें तथा हाथ से निदाई करते रहें।
नींदा नाशक रसायन लासो (ऐलाक्लोर) 2 लीटर या पेंडीमिथिलीन 2 कि.ग्रा. या डाययूरान 300 ग्राम सक्रिय तत्व दवा प्रति एकड़ के मान से 200-250 लीटर पानी में घोल कर बुवाई के बाद एवं अंकुरण से पहले छिड़काव करें। दवा के प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिये।
कपास की चुनाई
अ.) केवल पूरी तरह खिले घेटों से कपास की चुनाई करें।
ब.) गीले कपास की चुनाई न करें। ओस सूखने के बाद दिन में कपास की चुनाई करें।
स.) चुने हुये कपास में पेड़ के सूखे पत्ते, डंठल, मिट्टी आदि रहने पर कपास की गुणवत्ता कम हो जाती है तथा बाजार भाव कम मिलता है।
द.) आखिरी तुड़ाई का कपास पहले की चुनाई में ना मिलायें।
कपास का पौध संरक्षण
अ.) कपास के कीट
कपास में मुख्यत: दो प्रकार के कीटों का प्रकोप देखा गया है –
- रस चूसने वाले कीट : हरा मच्छर, माहो, तेला एवं सफेद मक्खी। इन कीटों का प्रकोप जुलाई से सितम्बर के मध्य प्राय: होता है। प्रकोपित पौधे की पत्तियाँ लाल व कुकड़ जाती है, फलस्वरुप पौधों की बढ़वार बहुत कम होती है।
- डेडूं छेदक इल्लियाँ : इनमें मुख्यत: चित्तीदार इल्ली, चने की इल्ली (अमेरिकन बालवर्म) एवं गुलाबी इल्ली है|
- चित्तीदार इल्ली : इस इल्ली का प्रकोप फसल अंकुरण से 15-20 दिन की अवस्था पर एवं डेण्डू बनने पर होता है। प्रकोप अगस्त से सितम्बर माह के मध्य अधिक होता है।
- अमेरिकन बालवर्म : फूल अवस्था पर इसका प्रकोप शुरु होता है। प्रकोपित पुड़ियों के सहपत्र चौडे होकर फैल जाते हैं व डेण्डूओं में खुले बड़े छेद पाये जाते हैं। इन इल्लियों का प्रकोप अगस्त-सितम्बर से अक्टूबर-नवम्बर तक होता है।
- गुलाबी इल्ली : मालवा एवं निमाड़ में इस कीट का प्रकोप कम होता है। इल्ली फूलों की पंखुड़ियों को जाले से लपेट कर फिरकनी का आकार बना लेती है|
नियंत्रण
- फसल कटाई उपरांत अवशेषों को नष्ट करें|
- ग्रीष्मकालीन भिण्डी की फसल को अप्रैल में समाप्त करें।
- बोनी वर्षा आगमन के पूर्व सूखे खेतों में या वर्षा के तुरंत बाद करें।
- कपास के साथ चौला अंतरवर्तीय फसल के रुप में लेवें।
- रस चूसने वाले कीट सहनशील प्रजातियाँ – खण्डवा -2, जे.के.-4, ताप्ती, जे.के.एच.वाय-1 लगावें।
- बीजोपचार इमिडाक्लोप्रिड 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करें।
- रस चूसक कीटों के प्रति सहनशील किस्मों को लगावें तथा दो माह तक कीटनाशकों का छिड़काव न करें।
- आवश्यकतानुसार 5 प्रतिशत निम्बोली का रस एवं नीम का तेल 400 मि.ली. प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें।
- फसल की 60-90 दिन की अवस्था के दौरान (यदि 40 पौधों में से 20 पौधों की फूल पुड़ियों कीट/प्रकोपित है व सहपत्र चौड़े हैं) तब ट्रायकोगामा 60000 अंडे प्रति एकड़ की दर से या एन.पी.व्ही. 100 लीटर प्रति एकड़ अथवा इण्डोसल्फान दवा का छिड़काव करें।
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फसल की उपरोक्त अवस्था पर आर्गेनोफास्फेट्स या पायरेथ्राइड्स दवा का छिड़काव नहीं करें।
- छिड़काव के 2-3 दिन बाद शेष बची हुई इल्लियों को एकत्रित कर नष्ट करें।
- अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह के बाद इण्डोसल्फान का छिड़काव नहीं करें।
- निर्धारित आर्थिक क्षति स्तर, ई.टी.एल. (20 लार्वा प्रति 20 पौधे) होने पर क्यूनालफास अथवाा क्लोरपायरीफास या प्रोफेनोफास 20-25 मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
- फेरोमोन्स ट्रेप 2 प्रति एकड़ गुलाबी इल्ली (पिंक बालवर्म) के लिये उपयोग करें।
- विलम्ब से आने वाले अमेरिकन बालवर्म एवं पिंक बालवर्म का प्रकोप फसल की 30-120 दिन की अवस्था पर होता है। इसके नियंत्रण के हेतु पायरेथ्राइड्स का उपयोग सेसेमम ऑयल (400 मि.ली. प्रति एकड़) के साथ प्रभावशाली पाया गया है।
- दो या तीन दवाओं को एक साथ मिलाकर न छिड़कें
- एक ही प्रकार की दवा का लगातार उपयोग नहीं करें।
ब.) कपास के रोग
बीज को अम्ल उपचारित करने के बाद बोते समय स्ट्रेप्टोसायक्लिन के 200 पी.पी.एम. घोल में 20 मिनट तक डुबोयें। जीवाणु झुलसा रोग की रोकथाम हेतु फसल (विशेषकर हाइब्रिड-4, डी.एस.एच.-32) पर फायटोलान या ब्लायटाक्स 50 एक किलोग्राम / स्ट्रेप्टोसायक्लिन 6 ग्राम प्रति एकड़ का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें। रोग रोधी संकर किस्में जे.के.एच.-1 तथा जे.के.एच.-2 का चयन करें। इन्हीं दवाओं के प्रयोग से आल्टनेरिया, माइरीधीसियम पर्ण झुलसा तथा डेण्डू सड़न एवं दाहिया (रेमूलेरिया) रोग का भी नियंत्रण हो जाता है। जड़ सड़न राग की रोकथाम हेतु केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के मान से उपचार करें तथा कपास के साथ मोठ एवं मूँग की अंतरवर्तीय फसल लगायें। पौधें सूखने (नई विल्ट) की समस्या के निदान के लिये मुरझाते हुये पौधों की जड़ों में डी.ए.पी / यूरिया के घोल का 3-4 लीटर प्रति पौधा दें। 100 लीटर घोल के लिये 1200 ग्राम डी.ए.पी. तथा 600 ग्राम यूरिया पर्याप्त होगा।
आवश्यक सुझाव
- क्षेत्र के अनुसार सिफारिश की गई किस्म लगायें।
- बीजोपचार कर सही विधि से उचित समय पर बोनी करें।
- विभिन्न रासायनिक उर्वरक उचित मात्रा में सही विधि से उचित समये पर दें।
- ऐजेटोबेक्टर एवं पी.एस.बी. कल्चर का उपयोग न करें।
- खरपतवार नियंत्रण एवं पौध संरक्षण तकनीक अपनायें।
- असिंचित कपास की फसल के बीच जीवित बिछावन का उपयोग कर खेत में अधिक समय तक नमी बनाये रखें।
Source-
- mpkrishi.org