एस आर आई पद्धति से धान उत्पादन के मुख्य सिद्धान्त
1 .एस आर आई पद्धति में 21 दिन के बाद पौधा रोपा जाता है जिसमें जड़ बनने से ज्यादा ऊर्जा नष्ट हो जाती है । श्री विधि में पौध 08 से 12 दिन की रोपाई की जाती है । जिससे पौधे की जड़ें फैलाने एवं वृद्धि के लिए पर्याप्त समय एवं ऊर्जा प्राप्त होती है ।
2. पौध की रोपाई के समय एवं रोपाई के बाद खेत में पानी भरा नहीं रखा जाता ।
3. पौध को सीडिलिंग ( बीज ) सहित उखाड़कर तुरंत रोपाई की जाती है । जिससे पौधे में ओज बना रहता है, पौधे शीघ्र वृद्धि करते हैं ।
4. पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखी जाती है, जिससे प्रकाश, वायु एवं पोषक तत्वों का संचार ठीक से होता है, जड़ों का अधिक फैलाव, पौधे में अधिक कन्से एवं अच्छी वृद्धि के लिए पर्याप्त स्थान होता है ।
5. पौधों में पोषक तत्वों का समान रूप से विवरण एवं वायु संचार अच्छा होने से पौधे स्वस्थ्य एवं निरोग रहते हैं ।
एस आर आई की कृषि कार्यमाला
एस आर आई हेतु भूमि का चुनाव
1. जिन क्षेत्रों में सिंचित धान की खेती होती वह भूमि उपयुक्त होती है ।
2. सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ।
3. समतल भूमि जहां पानी भरा नहीं रहता हो ।
धान की किस्मों का चयन
1. अधिक उपज देने वाली उन्नत या संकर किस्मों का उपयोग करना चाहिए ।
2. कम या मध्यम अवधि समय ( 100 से 125 दिन ) में पकने वाली किस्में ।
बीज की मात्रा एवं उपचार
1. एक एकड़ क्षेत्र के लिए 2 से 2.5 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है ।
2. छस लीटर पानी में 1.5 से 2 कि.ग्रा. नमक डालें जब तक मुर्गी का अण्डा पानी पर ऊपर तैरने न लगे ।
3. बीज को पानी में भिगोने पर जो बीज ऊपर तैरने लगे उसे निकालकर अलग कर दें ।
4. बेविस्टिन 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज, या ट्राइकोडर्मा तीन ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें ।
5 . एजेक्टोबेक्टर 5 ग्राम एवं पीएसबी ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें |
नर्सरी की तैयारी
- एक एकड़ खेत के लिए 30 * 5 फीट की 6 बीज सैया या 10 * 1 मीटर 1 चैड़ी क्यारी बनायें । इसे 6 बाराबर भागों में बाँट दें, प्रत्येक क्यारी के बीच में 15 सेन्टीमीटर की नाली बनायें ।
- बीज सैया खेत से 15 सेन्टीमीटर ऊंची बनायें ।
- प्रत्येक क्यारी में 2 से 3 टोकरी गोबर केंचुआ खाद मिलायें ।
- उपचारित बीज को 6 बराबर भागों में बांटकर प्रत्येक क्यारी में समान रूप से फैला देवें ।
- बीज को गोबर या केंचुआ के बारीक भुरभुरी खाद की पतली पर्त से ढक दें ।
- रोपणी की बोनी के उपरांत प्रथम सिंचाई हजारा ( झारे ) से करें ।
खेत की तैयारी
- खेत की मिट्टी का परीक्षण कराये ।
- ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई कराये ।
- खेत को हरी खाद का उपयोग करें ।
- खेत को परम्परा तरीके से तैयार कर भुरभुरा एवं समतल कर लें ।
- खेत की तैयारी से 15 दिन पूर्व 6 से 8 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें
पौध ( थरहा ) को नर्सरी से खेत तक लाना
- आठ से बारह दिन की पौध जिसमें दो पत्ती निकल आती हैं, रोपाई के उपयोग में लाते हैं ।
- पौधों को जड़ की मिट्टी एवं सीडलिंग ( बीज ) सहित सावधानी से निकाले ।
- पौधे समतल पात्र में रखकर लाये ताकि पौध क्षतिग्रस्त न हो एवं बीज पौध से अलग न हो ।
रोपाई
- रोपाई करते समय खेत गीला होना चाहिए पानी भरा हुआ न हो ।
- थरहा को सावधानी पूर्वक धीरे से रोपें ।
- पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 25 से.मी. ग 25 से.मी. रखें ।
- एक पौधा प्रति हिल ( एक स्थान पर एक पौधा ) रोपें ।
- पौध रोपाई की 15 वीं कतार के बाद 16 वीं कतार 45 सेन्टीमीटर की दूरी पर रखें ।
पोषण व्यवस्था
- प्रति एकड़ नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश क्रमशः 40:20:10 किलो ग्राम पर्याप्त होता है ।
- नाईट्रोजन की आधी मात्रा ( 20 किलो ), फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें ।
- शेष नाईट्रोजन की आधी मात्रा ( 10 किलो ) कन्से फूटते समय एवं शेष 10 किलो गभोट अवस्था में डालें ।
- खाद डालते समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए ।
निंदाई
- पौध रोपण के बाद कम से कम दो बार कोनोवीडर चलाना चाहिए ।
- पौध रोपण के 7 से 10 दिन के अंतराल से कोनोवीडर से निंदाई करें ।
सिंचाई व्यवस्था
- खेत में पानी भरा न रहने दें परन्तु नमी बनाये रखें ।
- कन्से निकलते समय 2 से 4 दिन खेत सूखा छोड़ देना चाहिए, जिससे सामान्य कंसे निकले ।
धान की पैदावार
- एक जगह पर प्रत्येक पौधे से 40 से 80 कंसे फूटते हैं,क्यों कि प्रत्येक कल्ले को पर्याप्त जगह सूरज की रोशनी तथा पोषण मिलता है ।
- ठन 40 से 80 कंसो में अच्छी विकसित बालियां निकलती हैं ।
- एक एकड़ क्षेत्र से 20 से 25 क्विंटल उपज प्राप्त होती है
स्रोत-
- उप संचालक कृषि, संकृषि विभाग, जिला बलोदा बाजार ( छ.ग.)