अधिक उत्पादन एवं टिकाऊ खेती के लिए भूमि की उर्वरा शक्ति को उच्च स्तर पर बनाए रखना नितान्त आवश्यक है, जिसके लिए फसलों को संतुलित उर्वरकों की आपूर्ति आवश्यक है। फसलों की आवश्यकता के अनुरूप उर्वरको का प्रयोग संतुलित रूप में न हो पाने के कारण मृदा उर्वरता से सम्बन्धित समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। फसलों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों की अवशोषित मात्रा की तुलना में उर्वरको द्वारा पोषक तत्वों की अपर्याप्त एवं असंतुलित पूर्ति के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है, और फास्फोरस व पोटाश जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की भूमि में भारी कमी होने लगती हैं। इसके कारण यह आवश्यक हो गया है कि नत्रजन, फास्फोरस के साथ पोटाश का प्रयोग हो अन्यथा अधिकतम उत्पादन नही मिल पायेगा एवं मृदा स्वास्थ्य में हा्रस होगा।
वर्तमान में नत्रजन का प्रयोग व्यापक रूप से हो रहा है किन्तु फास्फोरस का इससे कम तथा पोटाश का प्रयोग नगण्य है जो मृदा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। फसल द्वारा मृदा में उपलब्ध पोटाश का दोहन अधिकता से हो रहा है, जबकि नत्रजन व फास्फोरस की तुलना में पोटाश का प्रयोग किसानों द्वारा आवश्यकता से कम होता है। अधिक उपज देने वाली सघन फसल पद्धतियों के अपनाने से नाइट्रोजन एवं फास्फोरस को पोटाश से संतुलित करना आवश्यक है।
फास्फोरस की पूर्ति हेतु अधिकतर किसान डी.ए.पी. का प्रयोग करते हैं, परन्तु इसकी पूर्ति एन.पी.के./सुपर फास्फेट से भी कर भरपूर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। एन0 पी0 के0 उर्वरक एक ऐसा मिश्रण है जो गेहूॅ, धान, दलहनी, तिलहनी एवं अन्य फसलो के लिए आदर्श उर्वरक है, जो नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश की आवश्यक मात्रा की पूर्ति करने में सक्षम है। संयुक्त उर्वरक होने के कारण इसके प्रत्येक दाने में पोषक तत्वों की मात्रा वही होती है जो बोरी पर लिखा होता है। संयुक्त उर्वरक इसलिए आवश्यक है ताकि प्रत्येक पौधे को समान मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति की जा सके। अतः किसान भाइयों से अनुरोध है कि संतुलित उर्वरक हेतु प्राथमिकता के आधार पर एन0 पी0 के0 एवं फास्फोरस की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक का भी प्रयोग करें जो आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टि से सर्वथा उचित है, जिससे कम लागत में अधिक पैदावार लेने में सफलता मिलेगी।
क्र. |
उर्वरक का नाम |
तत्व प्रतिशत |
|||
नत्रजन |
फास्फोरस |
पोटाश |
सल्फर |
||
१. | एन.पी.के.(15:15:15) | 15 | 15 | 15 | – |
२. | एन.पी.के.(12:32:16) | 12 | 32 | 16 | – |
३. | एन.पी.के.(10:26:26) | 10 | 26 | 26 | – |
४. | एन.पी.मिश्रण(20:20:0:13) | 20 | 20 | 0 | 13 |
५. | एन.पी.मिश्रण(20:20:0) | 20 | 20 | 0 | – |
६. | सिंगल सुपर फास्फेट | – | 16 | – | – |
नत्रजन के मुख्य कार्य
- पौधे की वृद्धि एवं विकास में सहायक ।
- सभी प्रोटीनों का आवश्यक अवयव। फसलों के कल्लों व उपज में वृद्धि।
फास्फोरस के मुख्य कार्य
- जड़ो की वृद्धि।
- कोशिका विभाजन।
- पौधों की वृद्धि व उपज में सहायक। फूलों व फलों के विकास के लिये तथा फसल शीघ्र पकने के लिए जरूरी।
पोटेशियम के मुख्य कार्य
- प्रोटीन, स्टार्च तथा शर्करा के उत्पादन एवं प्रवाह को ऽ नियन्त्रित करना।
- पौधों का रोगों, कीड़े-मकोड़ो, पाले व गिरने से बचाव।
- फसल की गुणवत्ता में सुधार।
Source-
- Krishi Vibhag , Uttarpradesh.