जिस भूमि की उत्पादन क्षमता कम होती है, वैसी भूमि को बन्जर या ऊसर भूमि कहकर खाली छोड़ दिया जाता है । ऊसर शब्द संस्कृत से बना है, जिसका अर्थ बन्जर होता है । ऊसर नाम उत्तर भारत में खासतौर से उत्तर प्रदेश में लवणीय और क्षारीय मृदाओ के लिए प्रयोग किया जाता है ।
ऊसर भूमि बनने का मुख्य कारण
मिट्टी में घुलनशील लवणों जैसे सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्निशियम के सल्फेट, क्लोराइड, कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट का अधिक मात्रा में उपस्थित रहना है । जमीन की सतह पर लवणों की तह बन जाती है, जो पौधों के लिए हानिकारक होती है । ये लवण पौधों को भोजन प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न करते हैं । ऊसर भूमि का पी.एच. मान 7 से ज्यादा होता है । ऊसर भूमि का रंग उजला एवं काले धब्बों के रूप में दिखाई देता है । सोडियम क्लोराइड, सोडियम सल्फेट सोडियम बाइकार्बोनेट तथा सोडियम कार्बोनेट वैषिक होता है । इसमें से सबसे ज्यादा सोडियम कार्बोनेट सबसे अधिक वैषिक प्रदान करने वाले लवण होते हैं, जो पादप जड़ों तथा तनों के संपर्क में आने पर उन्हें सड़ा – गला देता है । जिस कारण कोई भी फसल नहीं ली जा सकती है ।
ऊसर भूमि की पहचान है
1. ग्रीष्म और शीतकाल में भूमि की ऊपरी सतह पर लवणों का पावडर जैसा दिखाई देता है ।
2. मेड़ों या ऊँचे स्थानों की मिट्टी नम अवस्था में काले रंग की दिखाई देना ।
3. प्रायः एक मीटर की गहराई पर कंकड़ की तह पाई जाती है ।
4. वर्षा समाप्त होने के बाद बहुत दिनों तक गड्ढों में भरा हुआ बरसात का पानी गंदा दिखलायी देता है ।
5.वनस्पति का पूर्ण अभाव या कँटीली झाड़ियों का होना ।
ऊसर भूमि बनने के कारण
1. कम वर्षा
शुष्क तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल जमाव होने के कारण घुलनशील लवण भूमि की निचली तहों में चला जाता है । तेज धूप से ये घुलनशील लवण केशिकीय जल के साथ भूमि की ऊपरी सतह पर एकत्र हो जाता है और जल का वाष्पीकरण होता है तो भूमि की ऊपरी सतह पर लवण एकत्र हो जाते हैं । लगातार ऊपरी सतह पर लवण एकत्रित होने के कारण मिट्टी क्षारीय हो जाती है ।
2. जल निकास की कमी
जिन स्थानों में जल – निकास का उचित प्रबन्ध नहीं रहता वहाँ पानी के साथ हानिकारक लवण घुले रहते हैं । पानी उड़ जाने पर जमीन की सतह पर लवण की परत बच जाती है । प्रति वर्ष इसी तरह रहने से कुछ समय बाद मृदा लवणीय व क्षारीय बन जाती है ।
3. भूमि के नीचे कड़ी परत
भूमि के नीचे कड़ी परत होने पर जल नीचे की तहों तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे विलेय लवण नीचे कड़ी परत के ऊपर वाली भूमि में बना रहता है । वाष्पीकरण के समय ये लवण मृदा की ऊपरी सतह पर एकत्रित हो जाते हैं ।
4. नहरो द्वारा सिंचाई
नहरों द्वारा सिंचाई करने से खेत की मिट्टी क्षारीय हो जाती है ।
5. क्षारीय उर्वरकों का अधिक मात्रा में प्रयोग
किसी खेत में लगातार क्षारीय उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट का प्रयोग करने से सोडियम आयन्स अवशोषित होते रहते हैं । इससे मिट्टी की संरचना बिगड़ जाती है, जिसके फलस्वरूप वायु – संचार, जलशोषण तथा जलधारण क्षमता कम हो जाती है ।
6. समुद्री तरंगों से
समुद्र में पानी में कई प्रकार के लवण मिले रहते हैं । जब तरंगों के साथ समुद्र का पानी दूर किनारों पर आता है, तो पानी के उड़ जाने के बाद लवण जमीन की सहत पर रह जाता है ।
7. एक ही गहराई पर सदैद जुताई
एक ही गहराई पर हमेशा जुताई करने से नीचे की सतह कड़ी हो जाती है हानिकारक लवण इस कड़ी सतह के नीचे जा नहीं पाता और गर्मी के दिनों में हानिकारक लवण भूमि की सतह पर चला जाता है ।
ऊसर भूमि का सुधार
1 .सर्वप्रथम खेत को समतल बना लें । यदि खेत में ढाल अधिक हो तो खेत को कई छोटे – छोटे भागों में बांट कर समतल करे ।
2.समतल भाग के चारों ओर ऊँची एवं मजबूत मेड़ बना लें, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसमें पानी जमा कर सकें ।
3 .खेत में पर्याप्त मात्रा में पानी भर दिया जाता है, जिससे ऊपरी सतह के लवण पानी में घुल जायें । इसके बाद पानी को खेत से बहा देने पर लवणों की अधिकांश मात्रा पानी के साथ बहकर बाहर निकल जाती है । सुधार का यह काम बरसात के दिनों में अच्छा होता है ।
4 .ऊसर भूमि के सुधार के लिए जिप्सम, पायराइट्स का प्रयोग करते हैं । जिप्सम से सुधार के लिए 5 – 6 टन प्रति एकड़ देते हैं, वर्षा ऋतु से पहले खेत की जुताई करके जिप्सम को फैलाते हैं, तथा जुताई द्वारा इसको मृदा में मिला देना चाहिए । पायराइट्स से सुधार करने के लिए 2 – 3 टन प्रति एकड़ देते हैं । पायराइट्स को मृदा में मिलाने से पहले खेत को समतल कर लेना चाहिए और इसके बाद पायराइट्स की मात्रा को खेत में जुताई करें ।
5.जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट के व्यवहार से न सिर्फ उपज में वृद्धि होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता में भी वृद्धि होती है।
6. हरी खाद का प्रयोग करने से मिट्टी के बिगड़ते स्वास्थ्य की रक्षा में काफी हद तक सहायक है, इनके प्रयोग से मिट्टी की बनावट एवं संरचना में सुधार होता है । मिट्टी में पानी संचित करने की शक्ति बढ़ाती है ।
7. अगर समस्याग्रस्त मिट्टी स्वस्थ नहीं है तो उपयुक्त फसलों को लेना चाहिए ।
a) कृषि फसलें:
जौ, ढैंचा, कपास, धान, गन्ना इत्यादि ।
b) सब्जी:
मूली, प्याज, टमाटर, कद्दू, करेला, गोभी इत्यादि ।
c) फल:
खजूर, फालसा, बेर, आंवला, जामुन इत्यादि ।
d) वृक्ष:
बबूल, नीम, महुआ, इमली इत्यादि ।
किसान भाई उपयुक्त कही गई बातों को व्यवहार में लायें, तो अवश्य ही वे अपने खेतों की समस्या का सुधार कर उर्वराशक्ति में बढ़ोत्तरी करके अधिक से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं ।
स्रोत-
- गहरा पानी धान अनुसंधान उपकेन्द्र बिरौल, जिला – दरभंगा (बिहार)